जर्मनी में इस बात पर बहस चल रही है कि जजों और वकीलों को स्कार्फ जैसे धार्मिक प्रतीक पहनने चाहिए या नहीं. रोक के समर्थकों का कहना है कि इससे निष्पक्षता प्रभावित होती है.
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जर्मनी में फिलहाल बुर्के पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है. लेकिन जर्मनी में जजों के संगठनों की तरफ पहली बार ऐसी मांग उठी है. जजों के कई संगठनों ने मांग की है कि जज और प्रशिक्षु वकीलों पर अदालतों ने बुर्के पहनकर आने पर प्रतिबंध होना चाहिए ताकि निष्पक्षता बरकरार रखी जा सके. वैसे इस तरह का एक सीमित प्रतिबंध बर्लिन में पहले से लगा हुआ है. बर्लिन के नगर अधिकारियों पर दफ्तर में इस तरह का प्रतिबंध लागू है.
जजों के दो संगठनों, असोसिएशन ऑफ जर्मन एडमिनिस्ट्रेटिव जज और जर्मन असोसिएशन ऑफ जज के अलावा दो राज्यों बाडेन-वुर्टेमबर्ग और मेकलेनबुर्ग-वेस्ट पोमेरेनिया के न्याय मंत्रियों ने भी कहा है कि जजों और जूनियर वकीलों को कोर्ट में बुर्का पहनने से रोका जाना चाहिए. उनका तर्क है कि अपने धार्मिक विश्वासों का इस तरह सार्वजनिक प्रदर्शन दिखाता है कि कोर्ट रूम में न्यायिक निष्पक्षता का पालन नहीं हो रहा है.
आगे बढ़ने से पहले जानिए, किस-किस देश में बैन है बुर्का
कहां कहां बैन है बुरका
दुनिया में ऐसे कई मुल्क हैं जहां बुरके या नकाब पर प्रतिबंध है. कहीं पूरी तरह तो कहीं आंशिक रूप से. जानिए...
तस्वीर: Getty Images/AFP/G.-G. Kitina
डेनमार्क
31 मई 2018 को डेनमार्क की सरकार ने एक नया कानून लागू किया है जिसके तहत सार्वजनिक स्थलों पर चेहरा ढंकने की मनाही होगी. स्की मास्क और नकली दाढ़ी-मूछ लगाने पर भी रोक होगी. हालांकि बीमारियों से बचने के लिए पहनने वाले मास्क और मोटरसाइकल हेलमेट को इसमें शामिल नहीं किया गया है.
फ्रांस यूरोप का पहला ऐसा मुल्क है जिसने बुरके को बैन करने का कदम उठाया. 2004 में इसकी शुरुआत हुई. पहले स्कूलों में धार्मिक चिन्हों पर रोक लगी. 2011 में सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर बुरके को पूरी तरह बैन कर दिया. ऐसा करने पर 150 यूरो का जुर्माना है. कोई अगर महिलाओं को जबरन बुरका पहनाएगा तो उस पर 30 हजार यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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बेल्जियम
फ्रांस के नक्श ए कदम पर चलते हुए बेल्जियम ने भी 2011 में बुरका बैन कर दिया. बुरका पहनने पर महिलाओं को 7 दिन की जेल या 1300 यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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नीदरलैंड्स
2015 में हॉलैंड ने बुरके पर बैन लगाया. लेकिन यह बैन स्कूलों, अस्पतालों और सार्जवनिक परिवहन तक ही सीमित है. सभी जगहों पर इसे लागू नहीं किया गया है.
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स्विट्जरलैंड
1 जुलाई 2016 से स्विट्जरलैंड के टेसिन इलाके में बुरके पर प्रतिबंध लागू हो गया है. इसका उल्लंघन करने पर 9200 यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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इटली
इटली में राष्ट्रीय स्तर पर तो बैन नहीं है लेकिन 2010 में नोवारा शहर ने अपने यहां प्रतिबंध लगाया. हालांकि अभी बुरका पहनने पर किसी तरह की सजा नहीं है. और कुछ राज्यों में बुरकीनी पहनने पर रोक है.
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जर्मनी
जून 2017 से जर्मनी में भी बुरके और नकाब पर रोक है लेकिन ऐसा सिर्फ सरकारी नौकरियों और सेना पर लागू होता है. इसके अलावा ड्राइविंग के दौरान भी चेहरा ढंकने की अनुमति नहीं है. जर्मनी की एएफडी पार्टी लगातार बुरके पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग कर रही है.
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स्पेन
स्पेन के कैटेलोनिया इलाके में कई जिलों में बुरके और नकाब पर 2013 से ही प्रतिबंध है. कई राज्यों में कोशिश हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे धार्मिक आजादी का उल्लंघन मानते हुए पलट दिया. लेकिन यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट का फैसला है कि बुरके पर बैन मानवाधिकार उल्लंघन नहीं है. इसी आधार पर कई जिलों ने इस बैन को लागू किया हुआ है.
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तुर्की
मुस्लिम बहुल आबादी वाले तुर्की में 2013 तक सरकारी संस्थानों में बुरका या हिजाब पहनने पर रोक थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. महिलाएं अपना सर और चेहरा ढंकते हुए भी वहां जा सकती हैं. बस अदालत, सेना और पुलिस में ऐसा करने की अनुमति अब भी नहीं है.
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चाड
अफ्रीकी देश चाड में पिछले साल बुरके पर प्रतिबंध लगाया गया. जून में वहां दो आत्मघाती बम हमले हुए जिसके बाद प्रधानमंत्री ने कदम उठाए. बाजारों में बुरके की बिक्री तक पर बैन है. पहनने पर जुर्माना और जेल होगी.
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कैमरून
चाड के प्रतिबंध लगाने के एक महीने बाद ही उसके पड़ोसी कैमरून ने भी नकाब और बुरका बैन कर दिए. हालांकि यह सिर्फ पांच राज्यों में ही प्रभावी है.
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निजेर
आतंकवाद प्रभावित दीफा इलाके में बुरका प्रतिबंधित है. हालांकि सरकार इसे पूरे देश में लागू करने की इच्छुक है.
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कॉन्गो
पूरे चेहरे को ढकने पर कॉन्गो ने बैन लगा रखा है. 2015 से यह प्रतिबंध लागू है.
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कैसे शुरू हुई बहस
बुर्के को लेकर मौजूदा बहस आउग्सबुर्ग के एक केस से शुरू हुई. इसी साल जून में बवेरिया प्रांत के इस शहर में 25 साल की एक प्रशिक्षु वकील को सिर पर स्कार्फ पहनने से रोक दिया गया. उसने मुकदमा कर दिया और जीत भी गई. आउग्सबुर्ग की प्रशासनिक अदालत ने कहा कि संघीय न्याय मंत्रालय ने 2008 में प्रशिक्षु वकीलों को कोर्ट में स्कार्फ पहनने से पाबंदी का जो निर्देश जारी किया था, वह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और उसका कोई कानूनी आधार नहीं है क्योंक बवेरिया में ऐसा कोई कानून नहीं है.
आउग्सबर्ग मामले के बाद कोर्ट में इस तरह की पाबंदी की मांग तेज हो गई है. बाडेन-वुर्टेमबर्ग राज्य के न्याय मंत्री गीडो वुल्फ इस तरह के कानून का मसौदा बना रहे हैं जिसके तहत जजों और प्रशिक्षु वकीलों पर पाबंदी लगाई जा सके. मेकलेनबुर्ग-वेस्ट पोमेरेनिया राज्य की न्याय मंत्री ऊटा-मारिया कुडेर का कहना है कि कोर्ट में अपने धर्म का प्रदर्शन करते प्रतीक पहनना अनुचित है क्योंकि जज और वकील राज्य के प्रतिनिधि होते हैं. उन्होंने कहा, "कोर्ट रूम में तो राज्य को हर हाल में और पूरी सख्ती के साथ निष्पक्ष होना होता है, लिहाजा ऐसा कोई भी प्रतीक वहां नहीं होना चाहिए जिससे निष्पक्षता में किसी भी तरह की कमी प्रतीत होती हो."
जर्मनी में हुए अजब-गजब केस, यहां देखिए
अजब गजब केस जो हार गए लोग
मामला कितना भी अजीब क्यों न हो, अदालत को उस पर गंभीरता से विचार करके फैसला देना है. जर्मन जजों के सामने ऐसे कई मामले आ चुके हैं.
तस्वीर: picture-alliance/joker
कॉपी करने के चक्कर में
एक साहब दफ्तर में फोटो कॉपी मशीन के पास खड़े थे. सोचा कॉपी करते करते अल्कोहल-फ्री बियर गटक ली जाए. लेकिन बियर की बोतल खुली तो झाग निकली और हड़बड़ा गए. कई दांत तुड़ा बैठे. इंश्योरेंस से पैसे मांगे. ड्रेसडेन की कोर्ट ने कहा, नहीं. खाना-पीना तो इंश्योरेंस के तहत नहीं आता. और फोटोकॉपी करने से आप थकते भी नहीं हैं कि पानी की प्यास लगी. लिहाजा, कुछ नहीं मिलेगा.
तस्वीर: Techniker Krankenkasse
फिसल गए
एक महिला ने घर में ही दफ्तर बना रखा था. वह पानी लेने के लिए उठीं तो फिसल गईं. मामला जर्मनी की नेशनल सोशल कोर्ट तक पहुंचा. कोर्ट ने कहा कि ऑफिस में खाने पीने के लिए जाते वक्त कुछ होने पर मुआवजा मिलना चाहिए. लेकिन ऑफिस तो घर में ही था. इसलिए महिला को खुद ही जिम्मेदार ठहराया गया.
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आइस क्रीम से हार्ट अटैक
एक साहब काम से घर लौट रहे थे, आइस क्रीम खाते हुए. ट्राम में घुसने लगे तो जल्दबाजी में एक पूरा बड़ा सा हिस्सा निगल गए. यह हिस्सा यूं का यूं चला गया नली में. और जो दर्द उठा. बाद में पता चला कि यह हार्ट अटैक था. मुआवजा नहीं दिया. कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने कहा, यह हादसा काम से नहीं जुड़ा था. आइस क्रीम मजे के लिए खाई जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Seidel
सेक्स में गड़बड़
एक सरकारी अफसर बिजनेस ट्रिप पर थीं. उस दौरान होटल में सेक्स करते हुए एक गड़बड़ हो गई. दीवार पर लगा बल्ब उखड़ा और उनके ऊपर आ गिरा. चोट भी लगी. महिला ने मुआवजा मांगा तो कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अफसर को उस वक्त सेक्स नहीं करना चाहिए था क्योंकि वह काम पर थीं.
तस्वीर: Colourbox
कूदने से पहले सोचें
एक ऑफिस में ट्रेनिंग चल रही थी. ब्रेक हुआ तो कॉलीग्स मस्ती करने लगे. एक 27 साल के युवक पर लोग पिचकारी से पानी फेंकने लगे. वह खिड़की से कूद गया. धड़ाम से गिरा. चोट लगी. लेकिन मुआवजा नहीं मिला. कोर्ट ने कहा, कूदना ही नहीं चाहिए था.
तस्वीर: picture alliance/dpa
काम पर सो गए
बार में काम करते हुए एक बंदी सो गई और नींद में कुर्सी से गिर गई. चोट लग गई. मुआवजा नहीं मिला. कोर्ट ने कहा कि वह काम की वजह से नहीं गिरी है इसलिए उसे मुआवजा नहीं मिल सकता.
तस्वीर: Imago/blickwinkel
सोच समझ के लड़ो
एक साहब काम से इबित्सा गए थे. बीच पर क्लाइंट्स के साथ थोड़ी ज्यादा ही पी ली. बाउंसर्स से झगड़ा हो गया. दो-चार पड़ भी गए. अब उन्होंने कहा कि मैं तो काम से वहां गया था, मुआवजा दो. कोर्ट ने झाड़ा. कहा कि काम से गए थे तो दारू क्यों पी.
तस्वीर: picture alliance/PIXSELL/F. Brala
गाय सोच-समझकर बचाएं
एक गाय अपनी ही जंजीर में फंस गई. उसका दम घुटने लगा. गाय के मालिक का भाई उसे बचाने आया तो उस पर एक और गाय ने पांव रख दिया. उसकी टांग टूट गई. कोर्ट ने मुआवजा खारिज कर दिया. कहा कि तुम उस वक्त किसी का काम नहीं कर रहे थे, इसलिए कुछ नहीं मिलेगा.
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जजों की वर्दी
जर्मनी में इस वक्त जजों को वर्दी पहननी होती है. उन्हें सफेद कमीज या ब्लाउज के साथ काला चोगा पहनना होता है. गर्दन पर सफेद बोटाइ या फिर स्कार्फ जरूरी है. असोसिएशन ऑफ जर्मन एडमिनिस्ट्रेटिव जजेस के अध्यक्ष रॉबर्ट जीगम्युलर ने द लोकल अखबार से कहा, "महिला और पुरुष दोनों जजों को एक ही तरह के कपड़े पहनने होते हैं जो इस बात का प्रतीक है कि केस का नतीजा इस बात पर निर्भर नहीं करता कि जज कौन है, बल्कि पूरी तरह इस बात पर निर्भर है कि कानून क्या कहता है." उन्होंने कहा कि अगर मामले में वादी इस्लाम के अलावा किसी और धर्म से हैं तो कपड़ों में निष्पक्षता का झलकना और ज्यादा जरूरी हो जाता है.
जर्मन फेडरेशन ऑफ एडमिनिस्ट्रेटिव जजेस का कहना है कि अगर जज अपनी वर्दी के अलावा सिर पर स्कार्फ पहनेंगे तो लोगों के न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता पर विश्वास को धक्का पहुंच सकता है.
प्रॉपर्टी के कैसे-कैसे पचड़े होते हैं, ये तस्वीरें बताएंगी
प्रॉपर्टी के अजीब पचड़े
कभी कभी शहरों के बड़े प्रोजेक्ट में स्थानीय लोगों का ख्याल नहीं रखा जाता. लेकिन कुछ मामलों में बिल्डरों का ऐसे अड़ियल लोगों से पाला पड़ता है कि उन्हें ही हार माननी पड़ती है. देखें ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध प्रॉपर्टी विवाद.
तस्वीर: Reuters
जेल-बसेरा
उत्तरी ब्रसेल्स के हारेन जिले में एक बड़े जेल के निर्माण का प्रस्ताव आया. ऐसी कोई मेगाजेल अपने पड़ोस में ना चाहने वाले इसका विरोध कर रहे हैं. उन्होंने अगस्त 2014 से ही जेल के लिए प्रस्तावित जमीन पर डेरा डाला हुआ है. 18 हेक्टेयर जमीन में तंबुओं, झोपड़ियों के अलावा कई सामुदायिक बाग भी बस गए हैं. पुलिस के साथ कई झड़पें झेल चुके निवासी 2015 के अंत में इस पर अंतिम फैसले का इंतजार कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/M. Kübler
वर्टिकल झुग्गी
वेनेजुएला की राजधानी काराकस शहर के बीचोबीच स्थित इस 45 मंजिलों वाली गगनचुंबी इमारत को झुग्गी मानना थोड़ा मुश्किल लगता है. दुनिया का सबसे ऊंचा यह स्लम 'टावर ऑफ डेविड' कहलाता है. 2014 में इसके निवासियों को निकाल दिया गया. एक समय इसमें करीब 3,000 लोग रहा करते थे.
तस्वीर: Reuters
100 फीसदी टेंपेलहोफ
शीतयुद्ध के काल में बर्लिन के एयरलिफ्ट का केन्द्र रहा टेंपेलहोफ एयरपोर्ट 2008 में बंद हो गया. इसे सार्वजनिक पार्क के रूप में खोल दिया गया और लोगों ने इसे अपनी जगह मान लिया है. न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क जितनी बड़ी इस खुली जगह को ऐसे ही बरकरार रखने पर मई 2014 में वोटिंग हुई. भविष्य में यहां खेलकूद या ओपेन एयर सिनेमा के निर्माण की योजना है.
तस्वीर: Getty Images
श्टुटगार्ट 21
2010 में जब श्टुटगार्ट के मुख्य रेलवे स्टेशन के पुनर्निर्माण की योजना बनी तो हजारों लोग इसके विरोध में सड़कों पर आ गए. नई हाई स्पीड ट्रेनों के लिए ट्रैक तैयार करने के लिए श्लॉसगार्टेन इलाके में आसपास के करीब 180 पेड़ों को काटना पड़ता. भारी कीमत और पर्यावरण को नुकसान के विरूद्ध होने के बावजूद 2011 में हुए रेफरेंडम में 60 फीसदी लोगों ने प्रोजेक्ट का समर्थन कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नेल हाउस
चीन के तेजी से विकास करते शहरों में संघर्ष के कई ऐसे मामले हैं. रॉयटर्स के अनुसार, 2008 में बीजिंग ओलंपिक की तैयारी के दौरान करीब 15 लाख लोगों को विस्थापित किया गया था. आयोजक इसे बढ़ा चढ़ाकर बताई गई संख्या कहते हैं. कई मामलों में लोगों ने मुआवजा लेने से मना कर दिया, जिसका नतीजा ऐसा नजर आता है.
तस्वीर: Reuters
जबर्दस्ती बाहर
2016 में रियो दे जनेरो में होने वाले ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की तैयारी में वहां भी खूब निर्माण कार्य चल रहा है. एक खास ओलंपिक पार्क बनाने के लिए गोल्फ कोर्स (तस्वीर में) के अलावा विला ओटोड्रोमा फावेल समुदाय के लोगों को विस्थापित करना पड़ा. यहां के करीब 700 निवासियों ने मुआवजा स्वीकार कर लिया लेकिन कुछ अब भी पानी और बिजली की कमी के बावजूद यहीं रह रहे हैं.