आप्रवासन रोकने का प्रस्ताव जर्मन संसद में पारित
२९ जनवरी २०२५जर्मनी की संसद ने एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें सरकार से आप्रवासन सीमित करने और खासतौर पर शरणार्थियों को सीमा पर रोकने की अपील की गई है. यह प्रस्ताव 348 मतों के समर्थन और 345 मतों के विरोध के साथ पारित हुआ, जबकि 10 सांसदों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.
इस प्रस्ताव को क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के विपक्षी नेता फ्रीडरिष मैर्त्स ने पेश किया था. फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि किन सांसदों ने इसका समर्थन किया, लेकिन सोशल डेमोक्रेट्स और ग्रीन्स पहले ही इसके खिलाफ थे. ऐसे में संभावना है कि इसे धुर-दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) या दूसरे छोटे दलों का समर्थन मिला हो. प्रस्ताव जर्मनी के आम चुनाव से ठीक चार हफ्ते पहले लाया गया.
आप्रवासन नीति में बदलाव के प्रस्ताव में क्या है
आप्रवासन देश में 23 फरवरी को होने जा रहे मध्यावधि चुनाव के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है. चुनाव प्रचार में इसकी गूंज आए दिन सुनाई दे रही है. खासतौर से हाल ही में हुए चाकू हमलों में आप्रवासियों के संदिग्ध रूप से शामिल होने से इस मुद्दे को और हवा मिल गई है.
रुढ़िवादी क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) के नेता फ्रीडरीष मैर्त्स ने आप्रवासन नीति में बदलाव के लिए दबाव बनाया है. पिछले हफ्ते अशाफेनबुर्ग में एक अफगान संदिग्ध ने चाकू मार कर दो लोगों की हत्या कर दी थी. इस शख्स के जर्मनी में रहने के आवेदन को खारिज कर दिया गया था. इस घटना के बाद जर्मनी में आप्रवासियों को लेकर चल रही बहस और तेज हो गई.
मैर्त्स के प्रस्तावों में जर्मनी की सीमा पर शरण मांगने के लिए आने वालों को वापस लौटाने का प्रस्ताव है. इसके साथ ही दोहरी नागरिकता वाले लोग अगर किसी गंभीर अपराध में दोषी पाए जाते हैं तो उनकी जर्मन नागरिकता वापस लेने की भी बात है.
मैर्त्स का प्रस्ताव तो वैसे ही विवादित है लेकिन यह मामला ज्यादा गर्म इसलिए हो गया है क्योंकि उन्होंने इसे पास कराने के लिए एएफडी का समर्थन लेने के लिए भी तैयार होने की बात कही है. धुरदक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर डायचलैंड (एएफडी) आप्रवासियों और विदेशियों का विरोध करती है. मैर्त्स ने कहा कि अगर प्रस्ताव को पर्याप्त समर्थन नहीं मिला तो वो एएफडी के समर्थन से भी परहेज नहीं करेंगे.
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"इस गलती की माफी नहीं"
वोटिंग से पहले चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने संसद में सरकार का पक्ष रखा. शॉल्त्स ने कहा कि एएफडी का समर्थन लेना, "गंभीर गलती है, ऐसी गलती है जिसकी माफी नहीं." शॉल्त्स का कहना था, "75 साल से ज्यादा पहले फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी की स्थापना के समय से ही संसद के सभी लोकतांत्रिक दलों में यह स्पष्ट सहमति रही है कि हम धुर दक्षिणपंथ के साथ नहीं जाएंगे."
इसके साथ ही शॉल्त्स ने यह भी कहा कि शरण देने की नीति को बचाया जाना चाहिए. शॉल्त्स ने कहा, "शरण का अधिकार हमारे कानूनी तंत्र और हमारे सिद्धांतों का अभिन्न हिस्सा है. हमें इसे बिल्कुल नहीं डिगाना चाहिए."
शॉल्त्स ने यह भी कहा कि जर्मनी के नाजी अतीत को देखते हुए शरण देने का अधिकार ऐतिहासिक जिम्मेदारी थी. उनका कहना है, "उस वक्त जर्मन और यूरोपीय यहूदियों को विदेशी सीमाओं से लौटा दिया गया था. जर्मनी को ऐसा फिर कभी नहीं होने देना चाहिए."
शॉल्त्स ने इस प्रस्ताव को संसद के पटल पर रखने के लिए अपने प्रतिद्वंद्वी फ्रीडरिष मैर्त्स की तीखी आलोचना की. उन्होंने कहा कि जर्मनी की सीमा पर सभी शरणार्थियों को लौटाना और गंभीर अपराध के दोषियों की नागरिकता वापस लेना सतही समाधान हैं जो कानून के शासन और यूरोपीय संघ की बुनियाद को हिला देंगे. शॉल्त्स ने दलील दी, "किसी जर्मन चांसलर ने ऐसा कुछ कभी नहीं किया. जर्मनी के चांसलर को जुआरी नहीं होना चाहिए."
"गलत लोगों के समर्थन से मुद्दा गलत नहीं होता"
शॉल्त्स ने यह आशंका भी जताई है कि चुनाव के बाद सीडीयू, धुर दक्षिणपंथी एएफडी के साथ गठजोड़ कर सकती है. हालांकि मैर्त्स बार-बार ऐसी संभावना से इनकार कर रहे हैं. आप्रवासन नीति में बदलाव के लिए लाए गए इस प्रस्ताव पर संसद में एएफडी का समर्थन लेने पर उनका कहना है, "जो सही मुद्दा है वह इस बात से गलत नहीं हो जाता कि कुछ गलत लोग उससे सहमत हैं."
चुनाव के बाद अगला जर्मन चांसलर बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे मैर्त्स ने अपने प्रस्ताव का बचाव किया है. उनका कहना है कि लोकतंत्र खतरे में है, अगर एक राजनीतिक तौर पर अल्पसंख्यक पार्टी, "कट्टरपंथियों का इस्तेमाल एक औजार के तौर पर बहुसंख्यक आबादी की इच्छा की अनदेखी करने में करती है."
मैर्त्स पर मुख्य रूप से एएफडी का समर्थन लेने पर सहमति देने के लिए हर तरफ से हमले हो रहे हैं. कई धार्मिक संस्थाओं ने भी उनकी तीखी आलोचना की है जिनमें जर्मनी के चर्च संगठन भी शामिल हैं. संसद में मैर्त्स ने एक बार फिर दोहराया कि वह एएफडी के साथ गठबंधन नहीं बना रहे हैं.
मैर्त्स ने इस दलील को भी खारिज किया कि यह प्रस्ताव यूरोपीय संघ के कानून के खिलाफ है. उनका कहना है कि शरण का अधिकार यूरोपीय संघ के उस देश पर लागू होना चाहिए जहां आप्रवासी सबसे पहले पहुंचते हैं.
एनआर/वीके (डीपीए)