जर्मनी में विदेशी कामगारों की आमद वाला प्रस्ताव पास
२३ जून २०२३
जर्मन संसद ने नए अप्रवासन बिल का प्रस्ताव पास किया है. नया इमिग्रेशन लॉ, विदेशी कुशल कामगारों को आकर्षित करने पर केंद्रित है.
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जर्मनी की अर्थव्यवस्था मंदी से जूझ रही है और कंपनियां कुशल कामगारों यानी स्किल्ड लेबर की कमी से. विशेषज्ञों के मुताबिक जर्मनी में कई सेक्टरों में 50,000 से ज्यादा नौकरियां खाली पड़ी हैं. स्किल्ड लेबर की कमी पूरी करने के लिए ही जर्मन संसद ने नए अप्रवासन बिल के मसौदे को मंजूरी दी है.
जर्मनी में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल तीनों पार्टियों द्वारा तैयार इस ड्राफ्ट बिल के पक्ष में 388 वोट पड़े. 234 वोट विरोध में पड़े. 31 सांसद वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहे. जर्मन सरकार में सेंटर लेफ्ट एसपीडी, लिबरल एफडीपी और पर्यावरण मुद्दों पर आधारित ग्रीन पार्टी शामिल है.
पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी सीडीयू और उसकी सिस्टर पार्टी सीएसयू ने इसका विरोध किया. दोनों पार्टियों का कहना है कि नया कानून, अकुशल कामगारों की आमद भी आसान कर देगा. धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी ने भी विरोध में वोट दिया.
सीएसयू की आंद्रेया लिंडहोल्ज के मुताबिक जर्मन भाषा में दक्षता की शर्त को कमजोर करने से सिर्फ कम कुशल कामगार ही जर्मनी आने के लिए प्रोत्साहित होंगे.
एक आदमी के लिए 17 अर्जियां भरो
सरकार का प्लान पेश करते हुए जर्मनी की आंतरिक मामलों की मंत्री नैंसी फेजर ने कहा, "प्रस्तावित कानून जर्मनी में समृद्धि को सुनिश्चित करता है."
हालांकि फेजर ने माना कि असली बदलाव तभी आएगा जब जमीनी स्तर पर प्रशासनिक बाधाएं खत्म होने लगेंगी. उन्होंने कहा, "एक केयर वर्कर को देश में लाने के लिए आपको 17 अलग अलग अर्जियां भरनी पड़ती हैं, ये अस्वीकार्य है."
नौकरियां हैं लेकिन लोग नहीं
कानून में एक प्वाइंट आधारित सिस्टम का जिक्र है. इस सिस्टम में आवेदनकर्ताओं के लिए कई तरह की बाधाएं खत्म की गई हैं. यह बदलाव पेशेवर योग्यता, उम्र और भाषाई दक्षता से जुड़े हैं.
इस साल की शुरुआत में जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (डीआईएचके) ने कहा कि आधे से ज्यादा जर्मन कंपनियों में नौकरियां खाली पड़ी है. इन कंपनियों को स्किल्ड वर्कर नहीं मिल रहे हैं. कुशल कामगारों की इतनी कमी जर्मनी में पहले कभी महसूस नहीं की गई. डीआईएचके ने 22,000 कंपनियों का सर्वे करने के बाद यह रिपोर्ट सामने रखी. रिपोर्ट के मुताबिक 53 फीसदी जर्मन कंपनियां कर्मचारियों का अभाव झेल रही हैं.
ओएसजे/एसबी (डीपीए, रॉयटर्स)
जर्मनी में विदेशियों के लिए नौकरी पाना होगा आसान
जर्मन सरकार एक नए इमिग्रेशन कानून पर काम कर रही है ताकि देश में काम करने वाले लोगों की किल्लत से निपटा जा सके. नए कानून का मकसद यूरोपीय संघ के बाहर के देशों से दक्ष कामगारों को आकर्षित करना है.
कामगारों की कमी
जर्मनी की अर्थव्यवस्था मजबूत है. बेरोजगारी दर 3.5 प्रतिशत से भी कम है. लेकिन देश में कई उद्योग कामगारों की कमी से जूझ रहे हैं. कारखानों में काम करने के लिए लोग नहीं है. ऐसे में विदेशों से कामगार बुलाने की मांग उठ रही है.
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नया कानून
कामगारों की किल्लत को देखते हुए सरकार ऐसा कानून बनाना चाहती है जिसमें कंपनियों से यह नहीं कहा जाएगा कि वे नियुक्तियां करते वक्त जर्मन नागरिकों को प्राथमिकता दें. यानी जर्मन कंपनी यूरोप के बाहर के देशों के लोगों को आराम से नौकरी पर रख पाएंगी.
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गठबंधन में सहमति
जर्मनी के सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पार्टियों सीडीयू, सीएसयू और एसपीडी के बीच नए कानून को लेकर एक दस्तावेज पर सहमति हुई है. इसके लिए जर्मनी के श्रम, अर्थव्यवस्था और गृह मंत्रालयों से भी हरी झंडी ले ली गई है.
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योग्यताएं
जिन विदेशी स्नातकों और कामगारों के पास पेशेवर ट्रेनिंग होगी, उन्हें कुछ समय के लिए जर्मनी आने की अनुमति दी जाएगी ताकि वे अपने लिए काम तलाश सकें. लेकिन इसके लिए कुछ योग्यताओं और भाषा संबंधी जरूरतों को पूरा करना होगा.
दस्तावेज के अनुसार इन लोगों को इस अवधि के दौरान सामाजिक कल्याण भत्ता नहीं मिलेगा, लेकिन उन्हें ऐसी नौकरियां करने की भी इजाजत दी जाएगी, जिनके लिए वे ओवर क्लालिफाइड हैं, ताकि वे कुछ पैसे कमा सकें.
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आसान और तेज
जर्मनी में क्वालिफिकेशन के मूल्यांकन की प्रक्रिया को तेज और आसान बनाया जाएगा. सहमति पत्र कहता है कि कुछ चुनिंदा देशों में खास तौर से मुहिम चलाए जाने की योजना है ताकि वहां से युवा और दक्ष कामगारों को जर्मनी की तरफ आकर्षित किया जा सके.
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उदार जर्मनी
वैसे जर्मनी में मौजूदा इमिग्रेशन सिस्टम भी सबसे उदार सिस्टमों में से एक माना जाता है. ओईसीडी संगठन के मुताबिक, अमेरिका के बाद जर्मनी विदेशियों के लिए सबसे लोकप्रिय देश है. यूरोपीय संघ के कामगार तो यहां आसानी से रह और काम कर सकते हैं.
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ब्लू कार्ड
जर्मनी में ब्लू कार्ड सिस्टम है जो कम से कम 50,800 यूरो के सालाना वेतन पर विदेशों से अकादमिक और पेशेवर क्षेत्र से जुड़े लोगों को भर्ती की प्रक्रिया को आसान बनाता है. अब वेतन की इस सीमा को और नीचे लाने की कोशिश हो रही है.
विरोध
विदेशी कामगरों को आकर्षित करने की इस योजना का विरोध भी हो रहा है. कई मजदूर यूनियनों और वामपंथी पार्टी डी लिंके और दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी का कहना है कि बाहर से लोगों को लाकर प्रतियोगिता बढ़ाने की बजाय कंपनियां स्थानीय लोगों के वेतन और काम की परिस्थितियों को बेहतर बनाएं.