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समाजजर्मनी

जर्मनी की शिक्षा व्यवस्था क्यों बीमार पड़ रही है

ओलिवर पीपर
५ मई २०२४

पुरानी इमारतें, हताश छात्र और टीचरों पर बढ़ते हमले. जर्मनी की शिक्षा व्यवस्था कई मुश्किलों से घिरी है.

स्कूलों में हिंसा
जर्मन स्कूलों में हिंसा के मामले बढ़ रहे हैंतस्वीर: imagebroker/IMAGO

जर्मनी के स्कूल हाल के महीनों में बुरी वजहों से सुर्खियों में रहे हैं. दिसंबर में एक अध्ययन में कहा गया कि जर्मन छात्र गणित और पढ़ पाने में पिछड़ रहे हैं. पिछले महीने की 2024 यूथ स्टडी के मुताबिक जर्मन स्कूलों में डिजिटलाइजेशन की कमी है, छात्र खुद को नौकरी ढूंढने और जीवन की चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं पा रहे हैं. इसके अलावा अप्रैल में कराए गए स्कूल बैरोमीटर नाम के सर्वे में, दो में एक टीचर ने कहा कि वे छात्रों की तरफ से होने वाली शारीरिक या मानसिक हिंसा का शिकार बने हैं.

एक पूर्व टीचर और रॉबर्ट बॉश फाउंडेशन में शिक्षा शोध की प्रमुख डागमार वोल्फ कहती हैं, "हमें बीमार पड़ चुके सिस्टम की झलक दिखाई पड़ती है." उनके फाउंडेशन ने स्कूल बैरोमीटर सर्वे में 1,600 से ज्यादा टीचरों से बात की. वोल्फ ने बताया, "हम बुलिंग की बात कर रहे हैं, हम हिंसा की बात कर रहे हैं, हम मार-पिटाई की बात कर रहे हैं, और इनमें से कुछ मामले स्कूल परिसर के बाहर भी चले जाते हैं. हमारे सामने ऐसे भी मामले आए हैं जब माता-पिता इसमें शामिल हो जाते हैं. हालांकि ऐसे मामले इक्का दुक्का ही हैं, लेकिन ऐसा हो रहा है."

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प्राइमरी स्कूल में हिंसा

जर्मन शिक्षा मंत्री ने हाल में 800 स्कूलों को एक पत्र भेजा जिसमें टिकटॉक पर चल रही एक झूठी रिपोर्ट के बारे में चेतावनी दी गई थी. इस रिपोर्ट में 'राष्ट्रीय बलात्कार दिवस' में भाग लेने को कहा जा रहा था.

वोल्फ कहती हैं कि शिक्षा व्यवस्था पर भूराजनैतिक संकटों और युद्धों की वजह से भी गलत असर हो रहा है. उनके मुताबिक स्कूल प्रशासन इस्राएल-हमास युद्ध की वजह से भी छात्रों में हिंसा देख रहे हैं. यह समस्या सिर्फ माध्यमिक स्कूलों में नहीं हैं. प्राइमरी स्कूलों में, जहां छह से दस साल की उम्र के बच्चे पढ़ते हैं, वहां भी बुलिंग और हाथापाई की खबरें मिल रही हैं.

वोल्फ मानती हैं कि जब बात शिक्षा की आती है तो जर्मनी एक विभाजित देश है. आला दर्जे के तीन हजार स्कूल कभी उन समस्याओं को नहीं झेलते हैं जो उन स्कूलों में पाई जाती हैं जहां प्रवासी मूल के या गरीब तबकों के बच्चे पढ़ते हैं. शरणार्थी बच्चों का एकीकरण जर्मनी के सभी स्कूलों के लिए मुश्किल काम होता है. वोल्फ ने डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में कहा, "बीते दो साल में हमने यूक्रेन में रूसी आक्रमण के बाद वहां से भागे दो लाख से ज्यादा शरणार्थी बच्चों को अपनी शिक्षा व्यवस्था में शामिल किया है. इतनी ही तादाद उन देशों से आए बच्चों की है जहां आर्थिक मुश्किलें या गृह युद्ध की स्थिति है. बेशक ये सब चीजें स्थिति को दस साल पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा मुश्किल बनाती हैं."

स्कूलों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल को लेकर दुनिया भर में सवाल उठाए जाते हैंतस्वीर: SZ Photo/picture-alliance

स्मार्टफोन और कोविड-19

टोर्स्टेन म्यूलर (बदला हुआ नाम) जर्मनी में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के एक स्कूल में सोशल वर्कर हैं. वह बीते कुछ सालों में स्कूलों में बदली हुई स्थिति के लिए स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के इस्तेमाल को जिम्मेदार बताते हैं. उनके मुताबिक इनकी वजह से बच्चों में तनाव और थकान बढ़ रही है जबकि खुद पर संदेह करने और सुनने की उनकी क्षमता घट रही है.

वह कहते हैं, "किशोर बच्चे एक-दूसरे से बात करने की बजाय एक-दूसरे के बारे में ज्यादा बात कर रहे हैं. इससे उनके बीच गलतफहमियां बढ़ रही हैं. इसके अलावा हम लोग कोरोना महामारी के प्रभावों को भी झेल रहे हैं. इनकी वजह से मानसिक बीमारियों में वृद्धि हुई है." कई लोग महामारी के दौरान स्कूलों को लंबे समय तक बंद रखने पर भी सवाल उठाते हैं. जर्मनी में बच्चों को 180 दिनों से ज्यादा घर पर रहना पड़ा, जो किसी भी अन्य यूरोपीय देश के मुकाबले बहुत ज्यादा है.

म्यूलर कहते हैं कि कई बच्चे तर्क करने की बजाय हिंसा पर उतर आते हैं. जिस स्कूल में म्यूलर काम करते हैं, वहां हिंसा की समस्या से निपटने के लिए खास कार्यक्रम चलाया जा रहा है. वह बताते हैं, "हम छात्रों को समझाते हैं कि कैसे कहासुनी शुरू होती है और जब ऐसा हो जाए तो उससे व्यक्तिगत और समूह के तौर पर कैसे बचना चाहिए. हम उन्हें बताते हैं कि बुलिंग कैसे काम करती है और हम उससे निपटने के तरीके उन्हें बताते हैं."

ज्यादा मनोविज्ञानियों, कर्मचारियों की जरूरत

जर्मनी के स्कूलों को वापस पटरी पर कैसे लाया जाए? इसके जवाब में म्यूलर कहते हैं, छोटी क्लासें, ज्यादा टीचर और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ मनोविज्ञानियों का साथ लेकर स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है.

जर्मन अध्यापक संघ के प्रमुख श्टेफान ड्युल तो इससे कहीं ज्यादा की मांग करते हैं. वह कहते हैं, "मनोविज्ञानियों, प्रशासनिक सहायकों और युवा कर्मचारियों के अलावा, हमें बहुत सारे लोगों की जरूरत हैं जो जर्मन भाषा पढ़ा सकें. लेकिन लोगों को भर्ती करना आसान नहीं है. मांग लगातार बढ़ रही है लेकिन काम करने वालों की संख्या घट रही है. यह पूरी व्यवस्था इस तरह काम नहीं कर सकती है."

ऐसे में अध्यापकों के बीच भी हताशा बढ़ रही है. स्कूल बैरोमीटर सर्वे के अनुसार हर तीन में से एक टीचर तनाव का शिकार है. 27 प्रतिशत अध्यापकों का कहना है कि वे अक्सर नौकरी छोड़ने के बारे में सोचते हैं. उन सभी का कहना है कि छात्रों का व्यवहार उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

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