जर्मनी: हर लिंग के फुटबॉल खिलाड़ी चुन सकेंगे अपनी टीम
२३ जून २०२२
जर्मनी के फुटबॉल संघ ने कहा है कि सभी ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स और गैर-बाइनरी खिलाड़ी खुद चुन सकेंगे कि उन्हें पुरुषों की टीम में खेलना है या महिलाओं की.
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फुटबॉल संघ ने लैंगिकता की पारंपरिक परिभाषाओं को ना मानने वाले ऐसे खिलाड़ियों के लिए यह नया नियम निकाला है जिनको आधिकारिक रूप से "विविध" या "अनिर्दिष्ट" दर्जा हासिल है. संघ ने एक बयान में कहा, "यह उन लोगों पर लागू है जो जब चाहें टीम बदल सकते हैं या शुरू में उसी टीम में रह भी सकते हैं जिसमें वो पहले से खेल रहे थे."
संघ ने यह भी कहा, "जब तक खेल की वजह से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर कोई असर ना पड़े, व्यक्ति खेल खेल सकता है. इसीलिए नए नियम से डोपिंग को बाहर रखा गया है." नए नियम आने वाले सीजन से लागू होंगे और उन्हें संघ के खेल संबंधी नियमों, युवा संबंधी नियमों और शौकिया फुटबॉल के फुटसाल संबंधी नियमों में शामिल कर लिया जाएगा.
संघ में महिला फुटबॉल का प्रबंधन देखने वाली सबीन मामित्ज ने बताया कि इस स्पष्टीकरण की लंबे समय से जरूरत रही है. उन्होंने कहा, "राज्यों और प्रांतों के संगठन और ग्रासरूट स्तर पर और भी कई लोग लंबे समय से संकेत दे रहे हैं कि ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स और गैर-बाइनरी खिलाड़ियों को कैसे शामिल करना है इसे लेकर अनिश्चितताएं हैं. इसलिए वो खेलने के अधिकार के लिए एक देशव्यापी, व्यापक नियम का पूरी तरह से स्वागत कर रहे हैं."
संघ के डाइवर्सिटी अधिकारी थॉमस हित्सपरजर ने कहा, "खेलने के अधिकार के विनियमन के साथ हम अलग अलग लैंगिक पहचान वाले खिलाड़ियों का खेलना सुनिश्चित करने के लिए जरूरी नियम ला रहे हैं." इन नए नियमों की स्थानीय स्तर पर 2019 से परिक्षण भी हो चुका है.
संघ ने कहा, "तजुर्बा दिखाता है कि इससे प्रतियोगिता की शुद्धता को कोई खतरा नहीं होता. आखिर सबकी अलग अलग ताकत और काबिलियत है जिससे एक टीम को सफलता हासिल होती है, चाहे लिंग जो भी हो." जर्मनी का फुटबॉल संघ दुनिया का सबसे बड़ा संघ है.
इसके 70 लाख से भी ज्यादा सदस्य हैं, 24,000 से ज्यादा क्लब हैं, लगभग 1,30,000 टीमें हैं. उसकी सभी लीग, डिवीजन और प्रतियोगिताओं में 22 लाख से ज्यादा खिलाड़ी हैं. संघ ने कहा है कि उसके राज्य स्तर और प्रांत स्तर के संगठन भरोसेमंद लोगों को नियुक्त करेंगे जो जेंडर-नॉनकन्फर्मिंग खिलाड़ियों की मदद करेंगे.
सीके/एए (एपी)
एलजीबीटीक्यू+ जहां खुल कर घूम सकते हैं
लेस्बियन, गे, ट्रांसजेंडर, बायसेक्शुअल या क्वीयर- चाहे कोई किसी भी तरह की लैंगिक पहचान या यौन वरीयता वाला इंसान हो, दुनिया में कहीं भी उनके जाने पर रोक तो नहीं होनी चाहिए. देखिए कौन से हैं सबसे क्वीयर-फ्रेंडली ठिकाने.
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कनाडा
कनाडा को विश्व का सबसे क्वीयर-फ्रेंडली देश कहना गलत नहीं होगा. वर्ल्ड ट्रैवल एवार्ड्स में इसे टॉप LGBTQ+ फ्रेंडली ठिकाना पाया गया. समलैंगिक शादियों को यहां 2005 से ही कानूनी मान्यता मिली हुई है. इसके अलावा यहां साल भर समुदाय की रंगबिरंगी पहचान का उत्सव मनाने के लिए कार्यक्रम होते रहते हैं. जैसे जून में होने वाला टोरंटो प्राइड (फोटो में) या अगस्त में मॉन्ट्रियाल प्राइड फेस्टिवल.
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माल्टा
भूमध्य सागर में बसा यह छोटा सा द्वीपीय देश यूरोप के कुछ सबसे प्रगतिशील देशों में से एक है. LGBTQ+ समुदाय के लिए यहां इतना काम हुआ है कि 2004 में यहां किसी भी यौन वरीयता या लैंगिक पहचान वाले इंसान के साथ भेदभाव पर रोक लग गई. 2016 में गे कनवर्जन थेरेपी को गैरकानूनी घोषित करने वाला भी यह पहला देश है.
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पुर्तगाल
लिस्बन और पोर्तो (फोटो में) को पुर्तगाल का सबसे विविधता से भरा और खुले विचारों वाला शहर कहा जा सकता है. यहां समलैंगिक शादियों को 2010 से ही वैधता मिली हुई है. इसके कुछ साल बाद समान सेक्स वाले जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार भी मिल गया. लेकिन ट्रांसजेंडर लोगों की सुरक्षा और तथाकथित कनवर्जन थेरेपी पर बैन लगाने जैसे कदम अभी बाकी हैं.
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स्वीडन
इसकी गिनती विश्व के सबसे प्रगतिशील देशों में होती है. यहां एलजीबीटीक्यू समुदाय की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं. इस स्कैंडिनेवियन देश में समान सेक्स के लोगों के बीच सेक्स को 75 साल पहले ही अपराध के दायरे से बाहर निकाल लिया गया था. अब तो यहां किसी को संबोधित करने के लिए एक ही न्यूट्रल सर्वनाम चलता है - "hen". पहले महिलाओं के लिए hon ("she") और पुरुषों के लिए han ("he") सर्वनाम चलन में थे.
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उरुग्वे
लैटिन अमेरिका के सबसे सहनशील देश के रूप में उरुग्वे का नाम आता है क्योंकि यह समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाला पहला देश था. इस छोटे से देश में 1934 से ही समान सेक्स के लोगों के बीच सहमति से होने वाले सेक्स को अपराध के दायरे से बाहर निकाल लिया गया था. 2004 में यहां LGBTQ+ समुदाय को सुरक्षा देने वाले कई कानून बनाए गए.
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ऑस्ट्रेलिया
घूमने फिरने वालों के दिमाग में ऑस्ट्रेलिया की छवि खूबसूरत समुद्री तटों और रंगबिरंगी संस्कृति वाले शहरों से जुड़ी होगी. लेकिन अब भी शायद यह नहीं पता होगा कि यह बेहद सहनशील देश भी है. यहां भेदभाव विरोधी कानून 1984 में ही पास हो गए थे. इनका मकसद किसी भी इंसान को उसकी लैंगिक पहचान या यौन वरीयता के आधार पर दुर्व्यवहार से बचाना था. 2017 से यहां समलैंगिक विवाह भी वैध हैं.
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जर्मनी
इंटरसेक्स लोगों के अधिकारों के लिए हाल के सालों में जर्मनी में काफी तरक्की हुई है. बड़े शहरों जैसे कोलोन (फोटो में) और राजधानी बर्लिन में समाज काफी हद तक क्वीयर-फ्रेंडली माना जा सकता है लेकिन देश के बाकी हिस्से इतने खुले विचारों वाले नहीं कहे जा सकते. एक ही लिंग के लोगों की आपस में शादी को यहां 2017 में ही कानूनी मान्यता मिल गई थी. इंटरसेक्स लोग भी अपनी अलग कानूनी पहचान रखते हैं.
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आइसलैंड
आर्कटिक के इस कम आबादी वाले देश आइसलैंड में ना केवल प्रकृति के अद्भुत नजारे और जाड़ों का स्वर्ग है बल्कि यहां क्वीयर लोगों की भी जन्नत है. ऐसे में LGBTQ+ लोगों के लिए इससे दोस्ताना, सुरक्षित और स्वागत करने वाला घूमने का ठिकाना खोजना मुश्किल होगा. राजधानी रिक्याविक (फोटो में) में 1999 से ही सालाना प्राइड फेस्टिवल होता आता है. समान-सेक्स शादियां 2010 से वैध हैं.
तस्वीर: IBL Schweden/picture alliance
ताइवान
LGBTQ+ लोगों के अधिकारों के मामले में एशिया के सबसे प्रगतिशील देश के रूप में ताइवान का नाम आता है. इस द्वीपीय देश में लैंगिक भेदभाव के खिलाफ कई कानून बनाए गए हैं. समान सेक्स के लोगों की आपस में शादी को 2019 में कानूनी मान्यता देने वाला यह एशिया का पहला देश बना. और इस तरह उनके घूमने फिरने का सुरक्षित ठिकाना भी.
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कोलंबिया
कोलंबिया की संस्कृति वैसे तो कैथोलिक आस्था वाली और समाज में पुरुषवादी रवैया कूट कूट के भरा दिखता है लेकिन फिर भी इसकी गिनती लैटिन अमेरिका के सबसे प्रगतिवादी देशों में होती है. उरुग्वे के बाद यहां एलजीबीटीक्यू+ स्पेक्ट्रम के लोगों को सबसे ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में समलैंगिक शादियों को भी कानूनी मान्यता दे दी.(जोफी डिसेमोंड/आरपी)
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