गृहयुद्ध के कारण सीरिया से भागने पर मजबूर हुए रयान अलशेबल, आठ साल बाद एक जर्मन गांव के मेयर बन गए हैं.
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दक्षिण जर्मनी के ओस्टेलहाइम गांव ने रविवार को नया ग्राम प्रधान चुनने के लिए वोट डाला. सोमवार को जब नतीजे आए तो 29 साल के रयान अलशेबल ने सबको चौंका दिया. चुनाव में सीरिया शरणार्थी रयान अलशेबल की जीत हुई. 29 साल के अलशेबल 2015 में सीरिया के स्वेइदा से भागकर जर्मनी आए. लेकिन अब वह दक्षिण जर्मन राज्य बाडेन-वुर्टमबर्ग के 2,500 बाशिंदों का प्रतिनिधित्व करेंगे.
अलशेबल, ग्रीन पार्ट के प्राइवेट मेम्बर हैं. पर गांव के चुनावों में वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए थे. रविवार को हुए मतदान में उन्हें 55.41 फीसदी वोट मिले. समाचार एजेंसी डीपीए के मुताबिक, अलशेबल ने अपने चुनावी अभियान को "गजब सकारात्मक" करार दिया.
कौन है रयान अलशेबल
राज्य के स्थानीय ब्रॉडकास्टर एसडब्ल्यूआर के मुताबिक, नए मेयर को 21 साल की उम्र में गृहयुद्ध के कारण अपना देश सीरिया छोड़ना पड़ा था. रिफ्यूजी संकट की शुरुआत में वह हजारों शरणार्थियों के साथ भटकते हुए जर्मनी पहुंचे.
लाखों लोगों की तरह अलशेबल ने भी यूरोप तक पहुंचने के लिए भूमध्यसागर पार किया. जर्मनी पहुंचने के बाद उन्होंने जर्मन भाषा सीखी और प्रशासनिक व्यवस्था की ट्रेनिंग की.
फिर उन्होंने जर्मनी की नागरिकता ली और पड़ोसी कस्बे आल्टहेंग्श्टेट की स्थानीय परिषद में नौकरी शुरू कर दी.
अलशेबल का कहना है कि अब चुनाव जीतने के बाद वह गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अलशेबल, बाडेन वुर्टेमबर्ग के पहले सीरियाई मूल के मेयर और प्रत्याशी हो सकते हैं.
सीरिया के शरणार्थी शिविरों में कैसी है जिंदगी
सीरिया के उत्तरपश्चिम में करोड़ों लोगों को मदद की जरूरत है, लेकिन बागियों के नियंत्रण वाले इदलिब प्रांत में मदद पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र दिए गए अधिकार की समय सीमा अब समाप्त होने वाली है.
तस्वीर: Francisco Seco/AP Photo/picture alliance
जहां तक नजर जाती है
यह इदलिब में तुर्की रेड क्रेसेंट द्वारा चलाया जाने वाला शरणार्थी शिविर है. तुर्की की सीमा के पास स्थित यह इलाका अभी अभी सीरियाई विपक्ष के नियंत्रण में है. यह सीरियाई संकट का 10वां साल है और इसकी वजह से विस्थापित कई लोग यहां आ गए हैं.
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बाब अल-हवा की अहमियत
यह बाब अल-हवा में सीमा पार करने का स्थान है जहां एक शिविर में महिलाएं खाना लेने के लिए कतार में लगी हुई हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक आंतरिक रिपोर्ट में महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने उस रसद की अहमियत पर जोर दिया है जो संयुक्त राष्ट्र इसी स्थान के जरिए तुर्की से यहां पहुंचा रहा है. उन्होंने कहा है कि यह मदद करोड़ों लोगों के लिए प्राणदायी है.
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बच्चे भी क्या करें
शिविरों में समय बिताने के उपाय कम ही हैं. देश के अलग अलग हिस्सों से आए शरणार्थियों को यह नहीं मालूम है कि क्या वो कभी घर लौट भी पाएंगे या नहीं. सीरिया में 10 सालों से लड़ाई चल ही रही है और अभी भी इसका अंत नजर नहीं आ रहा है.
तस्वीर: Francisco Seco/AP Photo/picture alliance
नमाज भी यहीं
पुरुष नमाज पढ़ते हैं और हालत पर चर्चा करते हैं, बच्चे खेलते हैं और महिलाएं घर का काम करती हैं. इन शिविरों में इसके अलावा ज्यादा कुछ किया भी नहीं जा सकता. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अकेले इसी इलाके में करीब 24 लाख लोग मदद पर निर्भर हैं. पूरे देश को देखें तो यह संख्या बढ़ कर 40 लाख से ज्यादा है.
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अस्थायी स्कूल
इस क्लासरूम में पढ़ रही सीरियाई लड़कियां खुशकिस्मत हैं. इदलिब में स्कूल जाने की उम्र के कई बच्चे हैं लेकिन स्कूलों और शिक्षकों की कमी है. यह तस्वीर एक अस्थायी स्कूल की है जो इदलिब के बाहर की तरफ सरमादा में है. इसे रेड क्रेसेंट ही चलाता है.
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रोमन साम्राज्य के खंडहरों के बीच
सर्दियां आ रही हैं और इन शरणार्थियों के लिए निरंतर मदद सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है. बाब अल-हवा इस मदद को पहुंचाने का एकमात्र रास्ता है लेकिन इस रास्ते का इस्तेमाल करने के लिए अमेरिका और रूस की सहमति से संयुक्त राष्ट्र को मिली अनुमति की समय सीमा 10 जनवरी को खत्म हो जाएगी. (फिलिप बोल)