जर्मन नेता और सैन्य अधिकारी रूसी हमले के खतरे की चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन यहां के आम नागरिक इस मामले को अलग नजरिए से देखते हैं. एक सर्वे के मुताबिक युद्ध होने की स्थिति में जर्मनी के सिर्फ कुछ ही लोग लड़ने को तैयार हैं.
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यूरोपीय चुनाव को लेकर जर्मनी में प्रचार अभियान जारी है. राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के पोस्टर अलग-अलग जगहों पर नजर आ रहे हैं. इन पोस्टर में इस बार एक खास बात यह दिख रही है कि "बाहरी खतरों" को मुद्दा बनाया गया है. हर गली-मोहल्ले में "सुरक्षा" और "ताकत" जैसे शब्दों के साथ उम्मीदवारों की गंभीर मुद्रा वाली तस्वीर नजर आ रही है.
दरअसल, फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से जर्मन राजनेता आम लोगों को खतरनाक समय के लिए तैयार कर रहे हैं. इसकी वजह यह है कि जर्मन सेना यानी बुंडेसवेयर को सुरक्षा कार्य के लिए सक्षम नहीं माना जाता है. जर्मन सेना के बड़े अधिकारियों का कहना है कि जर्मनी की फौज न तो नाटो की जिम्मेदारियों को पूरा कर पाएगी और न ही खुद जर्मनी की रक्षा कर सकेगी.
चांसलर ने खर्च पर लगाई रोक
यही वजह है कि जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस बुंडेसवेयर के लिए अधिक धन की मांग कर रहे हैं. 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के ठीक बाद, चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने सशस्त्र बलों को सशक्त बनाने के लिए 100 अरब यूरो के "विशेष फंड" की घोषणा की थी. यह फंड जर्मन सेना को आधुनिक बनाने के लिए लिया गया एक विशेष कर्ज है. वहीं, पिस्टोरियस चाहते हैं कि 2025 के सैन्य बजट में अतिरिक्त 6.5 अरब यूरो दिया जाए.
उन्होंने जोर देकर कहा कि इस अतिरिक्त खर्च को जर्मन संविधान में मौजूद "डेट ब्रेक (कर्ज लेने की सीमा)" प्रावधान के तहत शामिल नहीं किया जाना चाहिए. दरअसल, सरकारी कर्जे पर लगाम लगाने के लिए, 2009 में जर्मन बेसिक लॉ में "डेट ब्रेक" को लाया गया था. इस कदम को वित्तीय संकट के बाद उठाया गया, ताकि वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी कर्ज पर कड़ी सीमा लगा दी जाए. हालांकि, अप्रत्याशित स्थिति में इस लगाम को हटाया जा सकता है, जैसा कोविड महामारी के समय किया गया.
रक्षा मंत्री को उनके इस तर्क के लिए उनके ही मंत्रालय द्वारा प्रकाशित कानूनी राय का समर्थन मिला है. इस राय में कहा गया है कि जर्मनी की खुद को बचाने की क्षमता, सरकारी कर्ज कम करने की नीति (डेट ब्रेक) से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है.
म्यूनिख में बुंडेसवेयर यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा विषय के प्रोफेसर फ्रैंक सॉयर का मानना है कि 100 अरब यूरो की मदद के बाद भी बुंडेसवेयर को अभी कम धन मिल रहा है. उनका तर्क है कि अगर 2026 तक और अधिक धन नहीं मिलता है, तो जर्मन सेना "बहुत मुश्किल से मौजूदा कार्यों को जारी रख पाएगी" और उससे आगे कुछ नहीं कर सकेगी.
हालांकि, जर्मनी के वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर ने फिलहाल अतिरिक्त धन देने से इनकार कर दिया है और चांसलर शॉल्त्स भी उनका समर्थन कर रहे हैं. ऐसे में रक्षा खर्च को लेकर चल रहा उच्च-स्तरीय विवाद काफी ज्यादा बढ़ सकता है.
अगर ट्रंप जीत गए, तो क्या होगा?
स्थिति कितनी गंभीर है, इस पर अभी साफ तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है. हालांकि, फरवरी में आयोजित म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के प्रमुख क्रिस्टोफ होएसगेन ने कहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का लक्ष्य पूर्व सोवियत संघ की सीमाओं के भीतर एक महान रूस को फिर से स्थापित करना है. होएसगेन का मानना है कि अगर पुतिन यूक्रेन युद्ध में नहीं हारते हैं, तो वे मोल्दोवा या बाल्टिक देशों के साथ युद्ध जारी रखेंगे.
वहीं, युद्ध के हालात की गंभीरता को लेकर अलग-अलग राय है. हाल ही में एक अखबार को दिए साक्षात्कार में पिस्टोरियस ने कहा कि जर्मनी की सेना के पास मजबूत होने के लिए पांच से आठ साल का वक्त है. दूसरी ओर, नॉर्वे स्थित ओस्लो यूनिवर्सिटी में परमाणु रणनीति के शोधकर्ता फाबियान हॉफमैन ने इस साल की शुरुआत में सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर और भी डरावनी भविष्यवाणी की थी. उन्होंने कहा था, "हमारे पास रूसी हमले से सुरक्षा करने में सक्षम होने के लिए ज्यादा से ज्यादा दो से तीन साल का समय है."
वहीं, बुंडेसवेयर यूनिवर्सिटी के सॉयर को अब तक नाटो के सदस्य देश के तौर पर जर्मनी के लिए कोई गंभीर खतरा नहीं दिखता है, लेकिन उन्हें लगता है कि अगर डॉनल्ड ट्रंप आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीत जाते हैं, तो हालात और भी खतरनाक हो सकते हैं. अपने मौजूदा चुनावी अभियान में ट्रंप ने कई बार कहा है कि जिन यूरोपीय देशों ने सुरक्षा के लिए अपना "बिल" नहीं चुकाया है उन्हें अब सुरक्षा नहीं मिलेगी.
सॉयर का तर्क है कि अमेरिका अब तक जिन खास सैन्य कार्यों को अंजाम देता आया है उन्हें संभालना यूरोपीय देशों के लिए मुश्किल है. वहीं, पश्चिमी देशों के समर्थन की कमी के कारण यूक्रेन एक छोटा सा देश बन सकता है. ऐसे में रूस के लिए यह युद्ध जीतने जैसा होगा.
सॉयर अपने अनुमान के हिसाब से कहते हैं, "पुतिन 80 वर्ष के होने वाले हैं. वह अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करना चाहते हैं और एक महान रूस की स्थापना करना चाहते हैं. वह तमाम संभावित नतीजों का अनुमान लगाने के बाद एक या उससे ज्यादा बाल्टिक देशों पर हमला भी कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में अमेरिका भी कह सकता है कि यह हमारी समस्या नहीं है. आपने वैसे भी आपने बिल का भुगतान नहीं किया है और हम चीन के साथ उलझे हुए हैं." सुरक्षा विशेषज्ञ सॉयर का यह भी मानना है कि जरूरी नहीं कि अगले पांच वर्षों में ऐसी स्थिति आ ही जाएगी, लेकिन आ भी सकती है.
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काफी कम जर्मन को खतरे का डर
जिस तरह से जर्मनी के नेता और अधिकारी चिंतित हैं उस तरीके से यहां के आम लोग चिंतित नहीं हैं. हाल ही में किए गए YouGov सर्वे के अनुसार, करीब 36 फीसदी यानी सिर्फ एक तिहाई जर्मन मानते हैं कि 2030 तक रूस नाटो की सीमा में हमला कर सकता है. वहीं, 48 फीसदी लोग इसे असंभव या कुछ हद तक असंभव मानते हैं.
जबकि, 23 फीसदी लोग कुछ हद तक या पूरी तरह इस बात की संभावना जताते हैं कि इस दशक के आखिर तक रूस जर्मनी पर हमला कर सकता है. 61 फीसदी लोग इसे असंभव या कुछ हद तक असंभव मानते हैं.
इसके अलावा, सिर्फ 2 फीसदी लोग ही आश्वस्त हैं कि बुंडेसवेयर देश की रक्षा करने के लिए बहुत अच्छी स्थिति में है. जबकि, 12 फीसदी लोग सेना को ‘काफी अच्छी' स्थिति में देखते हैं. 39 फीसदी लोगों का मानना है कि जर्मन सेना की स्थिति काफी ज्यादा खराब है.
मार्च में सिवे इंस्टीट्यूट ने एक अन्य सर्वे किया. इसके नतीजे देश की सुरक्षा और सेना के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं. इस सर्वे में पाया गया कि सिर्फ 30 फीसदी जर्मन ही देश पर हमले की स्थिति में लड़ने के लिए तैयार होंगे. वहीं, 50 फीसदी से ज्यादा लोग लड़ाई में शामिल नहीं होंगे.
सॉयर कहते हैं, "हमारी दुनिया ऐतिहासिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है, लेकिन जर्मनी के लोग अब तक इसे समझ नहीं पा रहे हैं. हमारी मानसिकता को बदलने में थोड़ा समय लगता है. हम इसे बल पूर्वक, कुछ भाषणों से या खबरों की कुछ सुर्खियों से नहीं बदल सकते."
सॉयर समझते हैं कि जर्मन सेना को मजबूत बनाने के लिए पैसे जुटाने में राजनेताओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. वह कहते हैं, "मैं पवन चक्कियां लगाना, घरों पर सौर पैनल लगाना और किंडरगार्टन बनाना ज्यादा पसंद करूंगा, लेकिन दुर्भाग्य से हमें इसके बजाय बख्तरबंद तोप, क्रूज मिसाइल और लड़ाकू ड्रोन बनाने पड़ रहे हैं." आखिरकार, सॉयर का मानना है कि धन जुटाने का तरीका भले ही कुछ भी हो, लेकिन चीजें अब जैसी हैं वैसे नहीं चल सकतीं.
यूक्रेन युद्ध के साए में जर्मनी में नए रक्षा मंत्री की नियुक्ति
जर्मनी में चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने बोरिस पिस्टोरियुस को नया रक्षा मंत्री नियुक्त किया है. जर्मनी रूसी हमला झेल रहे यूक्रेन को भारी हथियार देने में हिचकिचा रहा है और इसके कारण घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आलोचना झेल रहा है.
लोवर सेक्सनी के गृह मंत्री बोरिस पिस्टोरियुस की नियुक्ति राजनीतिक प्रेक्षकों के लिए आश्चर्य लेकर आई. ओलाफ शॉल्त्स की सरकार में लैंगिक समानता पर ध्यान दिया गया है. इसलिए किसी महिला को ही इस पद पर नियुक्त करने की चर्चा थी, लेकिन पिस्टोरियुस का अनुभव काम आया. जर्मनी को इस समय रक्षा के मोर्चे पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय छवि संभालनी है.
तस्वीर: Droese/localpic/IMAGO
क्रिस्टीने लाम्ब्रेष्ट (एसपीडी) 2021-2023
लाम्ब्रेष्ट का एक साल से कुछ ज्यादा का कार्यकाल छोटे-छोटे कांडों के कारण सुर्खियों में रहा. कभी बेटे को साथ हेलिकॉप्टर में ले जाने के कारण तो कभी उनके असामयिक बयानों के कारण. सबसे ज्यादा आलोचना यूक्रेन को भारी हथियार देने में जर्मन सरकार की हिचकिचाहट के कारण हुई. इसकी वजह से चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और एसपीडी की लोकप्रियता पर भी आंच आई.
तस्वीर: Sean Gallup/Getty Images
आनेग्रेट क्रांप कार्रेनबावर (सीडीयू) 2019-2021
कार्रेनबावर सीडीयू पार्टी की अध्यक्षता छोड़कर रक्षा मंत्री बनी थीं. लेकिन अपने कार्यकाल में उन्हें स्पेशल फोर्सेस की एक कंपनी को भंग करना पड़ा. पुलिस को उग्र दक्षिणपंथी नेटवर्क से जुड़े स्पेशल फोर्सेस के एक जवान के घर पर हथियारों का जखीरा मिला था. कार्रेनबावर ने सेना के उन जवानों से माफी मांगी, जिनके साथ उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन के कारण भेदभाव किया गया था.
तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance
उर्सुला फॉन डेय लाएन (सीडीयू) 2013-2019
उर्सुला फॉन डेय लाएन के कार्यकाल में बुंडेसवेयर का एजेंडा था, उसे भर्तियों के लिए आकर्षक बनाना. उसे कर्मचारियों, साजो-सामान और वित्तीय सुविधाओं से लैस करने की शुरुआत हुई. इसी दौरान जर्मन सेना ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई शुरू की और सुरक्षा बलों में जल, थल और वायु सेना के साथ साइबर युद्ध के लिए नई टुकड़ी का गठन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. I. Bänsch
थॉमस दे मेजियर (सीडीयू) 2011-2013
थॉमस दे मेजियर ने अनिवार्य सैन्य सेवा को खत्म किए जाने के बाद जर्मन सेना को नया रूप दिया. 2011 में उन्होंने सेना की संख्या घटाने, नौकरशाही को कम करने, अकुशलता को खत्म करने की योजना पेश की ताकि सेना को पूरी तरह पेशेवर सेना में बदला जा सके. बाद में उन्हें गृह मंत्री बना दिया गया.
तस्वीर: Reuters
कार्ल थियोडोर सू गुटेनबर्ग (सीएसयू) 2009-2011
गुटेनबर्ग जर्मनी के सबसे युवा रक्षा मंत्री थे. उन्हें कुंडुस में हुए हवाई हमले के नतीजों से निबटना पड़ा. बाद में उन्हें इन आरोपों से मुक्त कर दिया गया कि घटना के लिए रक्षा मंत्रालय की अपर्याप्त संचार नीति जिम्मेदार थी. उनके कार्यकाल में जर्मन सेना में व्यापक सुधार हुए और 2011 में अनिवार्य सैन्य सेवा को खत्म कर दिया गया. उन्हें अपने डॉक्टरल थीसिस में चोरी के आरोपों के चलते इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
फ्रांस योजेफ युंग (सीडीयू) 2005-2009
फ्रांस योजेफ युंग ने दक्षिणी अफगानिस्तान में लड़ाकू टुकड़ी भेजने की अमेरिका की मांग ठुकरा दी और उसके बदले अपेक्षाकृत शांत उत्तरी अफगानिस्तान में रेपिड रिएक्शन फोर्स भेजने का फैसला किया. उनके कार्यकाल में ही अमेरिकी लड़ाकू विमान ने जर्मन सेना के आग्रह पर कुंडुस में दो टैंकरों पर बमबारी की जिसमें 90 लोग मारे गए. युंग ने हमले की जिम्मेदारी ली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पेटर श्ट्रुक (एसीपीडी) 2002-2005
अफगानिस्तान में जर्मनी की सेना की तैनाती को उचित ठहराने के लिए पेटर श्ट्रुक ने कहा था, "जर्मनी की रक्षा हिंदूकुश में भी की जाएगी.“ उनके कार्यकाल में जर्मन सेना का आधुनिकीकरण हुआ और वह छोटे व क्षेत्रीय विवादों में हस्तक्षेप करने लायक बनी. सेना को तेज बनाने के साथ ही पेटर स्ट्रुक ने उसमें 2010 तक 10 फीसदी की कटौती की भी घोषणा की.
तस्वीर: Kurt Vinion/Getty Images
रूडॉल्फ शार्पिंग (एसपीडी) 1998-2002
रूडॉल्फ शार्पिंग के रक्षा मंत्री रहने के दौरान जर्मनी ने सर्बिया पर नाटो के हवाई हमलों में हिस्सा लिया. ये पहला मौका था जब जर्मन सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के बाहर लड़ाकू कार्रवाई में हिस्सा लिया था. लेकिन यही वह समय भी था जब जर्मनी ने अमेरिका पर 09/11 के आतंकवादी हमले के बाद आतंकवाद विरोधी युद्ध में सीधे शामिल होने से इंकार कर दिया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
फोल्कर रूहे (सीडीयू) 1992-1998
पहले शिक्षक रहे फोल्कर रूहे के नेतृत्व में जर्मन सेना बुंडेसवेयर की भूमिका में बदलाव शुरू हुआ और उसने नाटो के इलाके से बाहर विदेशी अभियानों में भाग लेना शुरू किया. कंबोडिया, सोमालिया और बाल्कन में संयुक्त राष्ट्र मिशनों में भाग लेकर जर्मन सेना ने आरंभिक अनुभव हासिल किए. बाद में उसने अफगानिस्तान और माली जैसे अभियानों में हिस्सा लिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गेरहार्ड श्टॉल्टेनबर्ग (सीडीयू) 1989-1992
पहले देश के वित्त मंत्री रह चुके गेरहार्ड श्टॉल्टेनबर्ग, उस समय देश के रक्षा मंत्री थे जब 1990 में कम्युनिस्ट विरोधी जन आंदोलन और साम्यवादी शासन के पतन के बाद जर्मनी का एकीकरण हुआ. 3 अक्तूबर 1990 को वे एकीकृत जर्मनी की संयुक्त सेना के प्रमुख बने. पूर्वी जर्मनी की सेना का पश्चिम जर्मनी की सेना में विलय हो गया और वह वारसॉ संधि से अलग होकर नाटो का हिस्सा बन गई.
तस्वीर: Sepp Spiegl/IMAGO
रूपर्ट शॉल्त्स (सीडीयू) 1988-1989
कम्युनिस्ट ब्लॉक के विघटन के दौर में रूपर्ट शॉल्त्स जर्मनी के रक्षा मंत्री थे. उन्होंने अपने कार्यकाल में दोनों सैनिक गुटों के बीच तनाव शिथिलन की नीति जारी रखी. 1989 में मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के दौरान उन्हें हटा दिया गया, लेकिन वह सैन्य मामलों पर बोलते रहे. 2007 में उन्होंने यह कहकर हंगामा मचा दिया कि जर्मनी में परमाणु सत्ता बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
तस्वीर: Sven Simon/United Archives/IMAGO
मानफ्रेड वोएर्नर (सीडीयू) 1982-1988
हेल्मुट कोल ने चांसलर बनने के बाद सेना में पाइलट रहे मानफ्रेड वोएर्नर को रक्षा मंत्री बनाया. बाद में वे नाटो के महासचिव भी रहे. वोएर्नर की 1983 में जनरल गुंटर कीसलिंग के मामले को लेकर आलोचना हुई. कीसलिंग पर सैन्य खुफिया सेवा ने समलैंगिक होने का झूठा आरोप लगाया था. उन्हें रिटायर कर दिया गया क्योंकि समलैंगिकता को उस समय सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हंस आपेल (एसपीडी) 1978-1982
हंस आपेल जर्मनी के ऐसे पहले रक्षा मंत्री थे जिन्होंने सेना में काम नहीं किया था. उनके कार्यकाल के दौरान ही पश्चिमी सैन्य सहबंध नाटो का दोहरा फैसला हुआ. इस फैसले के तहत 1979 में कम्युनिस्ट सैनिक सहबंध वारसॉ पैक्ट को बैलिस्टिक मिसाइलों की संख्या में आपसी कटौती का प्रस्ताव दिया गया. लेकिन दूसरी तरफ और ज्यादा परमाणु हथियारों की तैनाती की धमकी भी दी गई.
तस्वीर: dapd
गेयॉर्ग लेबर (एसपीडी) 1972-1978
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गेयॉर्ग लेबर नाजी वायुसेना में थे. बाद में वे ट्रेड यूनियन में सक्रिय रहे. बुंडेसवेयर के सैनिकों में उनका बड़ा सम्मान था. उनके कार्यकाल में बुंडेसवेयर का विस्तार हुआ और म्यूनिख व हैम्बर्ग में सेना की दो यूनिवर्सिटी शुरू की गईं. अपने मंत्रालय में पूर्वी जर्मन जासूसी के एक मामले में जिम्मेदारी को लेकर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: Egon Steiner/dpa/picture alliance
हेल्मुट श्मिट (एसपीडी) 1969-1972
बाद में चांसलर बनने वाले हेल्मुट श्मिट वामपंथी एसपीडी के पहले रक्षामंत्री थे. वे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी सेना में अधिकारी थे और बाद में हैम्बर्ग ने मेयर और देश के वित्त मंत्री रहे. उनके कार्यकाल में सेना में अनिवार्य भर्ती के कार्यकाल को 15 महीने से घटाकर 8 महीने कर दिया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गेरहार्ड श्रोएडर (सीडीयू) 1966-1969
गेरहार्ड श्रोएडर रक्षा मंत्री बनने से पहले देश के गृहमंत्री और विदेश मंत्री रह चुके थे. 1966 में तत्कालीन चांसलर कुर्ट गियॉर्ग कीसिंगर ने उन्हें रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी. 1969 में उन्होंने सीडीयू और उग्र दक्षिणपंथी एनपीडी के समर्थन से राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा. लेकिन एसीपीडी के गुस्ताव हाइनेमन से चुनाव हार गए.
तस्वीर: Kurt Rohwedder/dpa/picture alliance
काई ऊवे फॉन हासेल (सीडीयू) 1963-1966
शुरुआत में जर्मन सेना बहुत से गैर सैनिक अभियानों में शामिल रही. मसलन बाढ़ और भूकंप के समय राहत और बचाव कार्य. काई ऊवे फॉन हासेल के कार्यकाल में ही 1960 के दशक के मध्य से सेना के असैनिक अभियानों की शुरुआत हुई. इसके साथ साथ उन्होंने बुंडेसवेयर के विस्तार और उसे मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
तस्वीर: Fritz Fischer/dpa/picture alliance
फ्रांस योजेफ श्ट्राउस (सीएसयू) 1956-1963
जर्मनी के दक्षिणी प्रांत बवेरिया के रूढ़िवादी नेता फ्रांस योजेफ श्ट्राउस 1953 से 1969 के बीच सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उन्हें पश्चिमी जर्मनी की नई सेना बुंडेसवेयर बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी. 1961 में उनपर और उनकी सीएसयू पार्टी पर लॉकहीड कंपनी से रिश्वत लेने के आरोप लगे. दोनों ने आरोपों का लगातार खंडन किया.
तस्वीर: picture-alliance/F. Leonhardt
थियोडोर ब्लांक (सीडीयू) 1955-1956
थियोडोर ब्लांक बढ़ई परिवार में पैदा हुए थे और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सेना में भर्ती हुए थे. 1945 में सीडीयू पार्टी की स्थापना के समय वे उसके संस्थापक सदस्यों में शामिल थे. रक्षा मंत्री के रूप में छोटे कार्यकाल के बाद वे 1957 से 1965 तक देश के श्रम और समाज कल्याण मंत्री रहे.