जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा है कि तालिबान के साथ बातचीत जरूरी है ताकि जर्मन सरकार के लिए काम कर चुके अफगानों को वहां से निकाला जा सके.
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जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल तालिबान के साथ राजनीतिक बातचीत के पक्ष में हैं. रविवार को उन्होंने कहा कि वह इस्लामिक संगठन तालिबान के साथ राजनीतिक बातचीत शुरू करने के समर्थन में हैं.
पश्चिमी जर्मनी के हागेन की यात्रा के दौरान मैर्केल ने कहा, "तालिबान के बारे में तथ्य यह है कि बेशक हमें उनसे बात करनी पड़ेगी क्योंकि अब तो वही हैं जिनसे बातचीत की जा सकती है.”
क्या बोलीं मैर्केल?
मैर्केल हागेन की यात्रा पर गई थीं, जो इसी साल भयंकर बाढ़ से प्रभावित हुआ था. उस दौरान पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि जो लोग अफगानिस्तान में छूट गए हैं, उन्हें निकालने के लिए बातचीत जरूरी है.
मैर्केल ने कहा, "जिन लोगों ने जर्मनी की संस्थाओं के साथ काम किया है, हम उन्हें देश से निकालना चाहते हैं. खासकर उन्हें जो खतरा महसूस कर रहे हैं.” जर्मन चांसलर ने कहा कि बातचीत से अफगानिस्तान में मानवीय मदद की सप्लाई जारी रह सकेगी. उन्होंने काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को यातायात के लिए खोले जाने को भी ‘अच्छा संकेत' बताया.
आगामी आम चुनाव में सीडीयू-सीएसयू पार्टी के उम्मीदवार आर्मिन लाशेट भी इस दौरे पर मैर्केल के साथ थे. उन्होंने तालिबान के साथ बातचीत के मैर्केल के सुझाव का समर्थन किया.
तालिबान का रुख
अंगेला मैर्केल का यह बयान तालिबान के प्रवक्ता के उस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने जर्मनी के साथ आधिकारिक रिश्तों की इच्छा जताई थी. जर्मन अखबार द वेल्ट अम जोनटाग को दिए एक इंटरव्यू में तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा, "हम जर्मनी के साथ मजबूत और आधिकारिक राजनयिक रिश्ते चाहते हैं.”
देखें, तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान
तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद जीवन सामान्य दिखने लगा है. देखिए, अब कैसा है अफगानिस्तान...
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
समर्थक खुश
तालिबान समर्थक खुश हैं. सड़कों पर हथियारबंद तालिबान के साथ वे फोटो खिंचवा रहे हैं.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
हर जगह तालिबान
हथियारबंद तालिबान सड़कों पर गश्त लगाते घूमते हैं. उन्हें गली-बाजारों, चौक-चौराहों पर देखा जा सकता है.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
आधुनिक हथियार
सैकड़ों की संख्या में ये युवा लड़ाके आधुनिक हथियारों से लैस हैं और हर जगह मौजूद हैं.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
काम धंधे शुरू
आम जन जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है. लोग अपने काम धंधे शुरू कर रहे हैं.
तस्वीर: HOSHANG HASHIMI/AFP/Getty Images
नारेबाजी नई बात
सब्जी भाजी खरीदना-बेचना यूं तो आम जीवन का हिस्सा है लेकिन सब्जीवाले का तालिबान और इस्लामिक अमीरात के समर्थन में नारे लगाना नई बात है.
तस्वीर: U.S. Air Force/Senior Airman Taylor Crul/REUTERS
खोस्त में जुलूस
31 अगस्त को खोस्त शहर में एक विशाल जुलूस निकाला गया जिसमें नाटो, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के झंडों से ढंके ताबूत उठाए लोग नजर आए.
तस्वीर: ZHMAN TV via REUTERS
बैंकों के बाहर कतारें
बैंकों के बाहर लंबी कतारें हैं. बैंकों में नकदी की समस्या है. महंगाई बढ़ गई है और एक व्यक्ति 20 हजार अफगानी (करीब 17 हजार रुपये) ही निकाल सकता है.
तस्वीर: REUTERS
जन जीवन सामान्य
इस बीच शहर की गलियां सामान्य लगने लगी हैं. लोग आ रहे हैं, जा रहे हैं और सड़क किनारे नमाज अदा कर रहे हैं.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
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मुजाहिद ने कहा कि जर्मन नागरिकों का अफगानिस्तान में हमेशा स्वागत है. उन्होंने तो यहां तक कहा कि जर्मनी को कभी सकारात्मक प्रभाव के रूप में देखा जाता था. मुजाहिद ने कहा, "दुर्भाग्य से उन्होंने अमेरीकियों का साथ दिया. लेकिन अब वह सब माफ कर दिया गया है.”
तालिबान चाहते हैं कि जर्मनी अफगानिस्तान की आर्थिक और मानवीय मदद भी करे. वे जर्मनी से स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा के क्षेत्र सहयोग चाहते हैं.
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रणनीति पर विचार
जर्मनी ने फिलहाल अफगानिस्तान में अपना दूतावास बंद कर रखा है और वहां के राजदूत मार्कुल पोत्सेल दोहा से काम कर रहे हैं. लेकिन जर्मन सरकार तालिबान के संपर्क में है.
तालिबान ने 15 अगस्त को बीस साल बाद दोबारा अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था. अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के दो दशक लंबे अभियान के औपचारिक रूप से खत्म होने से पहले ही तालिबान ने देश पर नियंत्रण कर लिया.
जानेंः तालिबान को मिले होंगे कैसे कैसे हथियार
तालिबान को मिला होगा हथियारों का जखीरा
अफगानिस्तान में अपने मिशन के दौरान अमेरिका ने अफगानिस्तान की नवगठित सेना को बड़ी संख्या में हथियार दिए. उनमें से कितने तालिबान के हाथ पहुंच गए हैं, इसकी कोई जानकारी नहीं है. देखिए, क्या क्या हो सकता है तालिबान के पास.
अमेरिका ने अफगान नेशनल आर्मी को बड़ी संख्या में हथियार दिए हैं. अमेरिका की एकाउंटेबिलिटी रिपोर्ट के मुताबिक 2003 से 2016 के बीच अफगानिस्तान की सेना को अलग-अलग तरह की 3,58,530 राइफल, 64 हजार से ज्यादा मशीनगन, 25 हजार ग्रेनेड लॉन्चर दिए. 2017 में ही लगभग 20 हजार एम16 राइफल दी गईं.
तस्वीर: picture-alliance/McClatchy/A. Rizvi
एम-4 कार्बाइन
स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रीकंस्ट्रक्शन (सिगार) की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका ने 2017 और 2021 के बीच अफगानिस्तान की सेना को कम से कम 3,598 एम4 राइफल दी हैं.
सिगार की ही रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका ने 3,012 हमवी दी थीं. पिछले दिनों जब तालिबान एक के बाद एक शहरों पर कब्जा कर रहा था तब कई वीडियो फुटेज में उसके लड़ाकों को हमवी पर सवार हुए देखा गया.
तस्वीर: Ahmad Sahel Arman/AFP/Getty Images
एमएसएफ गाड़ियां
नाटो की मौजूदगी में प्रशिक्षित की गई अफगान सेना के पास मोबाइल स्ट्राइक फोर्स गाड़ियां भी थीं, जिन्हें लोगों या उपकरणों को ले जाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
तस्वीर: Mustafa Andaleb/REUTERS
हेलिकॉप्टर और विमान
अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ने से ठीक पहले कहा कि अफगानिस्तान में मौजूद सारे विमान अयोग्य कर दिए गए हैं और उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. सिगार की रिपोर्ट कहती है कि जून के आखिर तक अफगानिस्तान की एयरफोर्स के पास लड़ाकू हेलिकॉप्टर और विमान मिलाकर कुल 167 एयरक्राफ्ट थे. ये सारे अयोग्य हो गए हैं या कुछ तालिबान के पास भी पहुंच गए हैं, इसकी जानकारी नहीं मिल सकी है.
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन अगले हफ्ते जर्मनी की यात्रा पर आ सकते हैं, जहां वह अफगानिस्तान की स्थिति पर जर्मन नेताओं से बातचीत करेंगे. कुछ जर्मन नेताओं ने अमेरिका के अफगानिस्तान को छोड़ जाने के फैसले की आलोचना की है. इनमें बवेरिया प्रांत के मुख्यमंत्री मार्कुस जोएडर शामिल हैं.