भारत की दो दिनों की यात्रा पर जर्मन विदेश मंत्री वाडेफुल
२ सितम्बर २०२५
बात साल 1959 की है. भारत के ओडिशा के राउरकेला में नए बने स्टील प्लांट की भट्ठियों से धुआं निकल रहा था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पश्चिमी जर्मनी के इंजीनियरों के साथ जर्मन-निर्मित मशीनों को देखने गए थे.
भारत के पहले बड़े औद्योगिक उद्यमों में से एक यह प्लांट महज एक स्टील फैक्ट्री नहीं था, बल्कि देश की आजादी के बाद की महत्वाकांक्षा और दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करने का एक बड़ा प्रतीक था.
नेहरू ने इसे ‘आधुनिक भारत का मंदिर' कहा था. एक ऐसी जगह जहां जर्मनी की तकनीकी विशेषज्ञता और भारत के दृढ़ संकल्प का मिलन हुआ. इसने औद्योगिक साझेदारी की एक ऐसी विरासत गढ़ी जो छह दशकों से भी अधिक समय तक चली. तब से भारत और जर्मनी के बीच संबंधों में काफी प्रगति हुई है.
दोनों पक्ष अब रणनीतिक साझेदार हैं. व्यापार, प्रवासन, जलवायु और विदेश नीति जैसे व्यापक क्षेत्रों में अपनी साझेदारी को और मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं.
भारत के दौरे पर जर्मन विदेश मंत्री
जर्मनी के विदेश मंत्री योहान वाडेफुल 2 और 3 सितंबर को भारत दौरे पर हैं. वे यहां राजनेताओं और कारोबारियों से मिलकर द्विपक्षीय सहयोग के नए रास्ते तलाशेंगे. इस दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए नए समझौतों और परियोजनाओं पर बातचीत होने की उम्मीद है.
वाडेफुल ने भारत दौरे पर जाने से पहले कहा, "भारत, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी का एक रणनीतिक साझेदार है. वह वैश्विक साझेदारी की व्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है. हम सभी क्षेत्रों में अपने संबंधों को और मजबूत बनाना चाहते हैं.” उन्होंने आगे कहा कि आर्थिक, सुरक्षा, और रक्षा मामलों में सहयोग से दोनों देशों को फायदा होगा.
जर्मन विदेश मंत्री ने अपनी दो दिवसीय यात्रा की शुरुआत बैंगलोर शहर से की. जहां उनका मकसद उन्हीं के शब्दों में: "भारत की इनोवेशन क्षमता को इतना शक्तिशाली बनाने वाली बातों की नब्ज टटोलना और सहयोग के लिए अन्य बड़े अवसरों की तलाश करना है.”
इस उच्च तकनीक वाले महानगर में वाडेफुल के एजेंडे में अनुसंधान, विज्ञान और प्रवासन जैसे विषय शामिल होंगे. 3 सितंबर को राजधानी नई दिल्ली में उनकी बातचीत चीन और रूस के साथ संबंधों पर केंद्रित रहने की उम्मीद है.
द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी
पिछले एक दशक में द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2024 में लगभग 33 अरब डॉलर (28 अरब यूरो) के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है. जर्मनी पिछले साल यूरोपीय संघ में भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार भी था. भारत मशीन टूल, वाहनों और रसायनों सहित जर्मन वस्तुओं का एक बड़ा बाजार है.
फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट के भारत कार्यालय की निदेशक आनंदी अय्यर ने कहा, "बहुत लंबे समय से जर्मनी भारत को चीन के साथ जोड़कर देखता रहा है.” उन्होंने जोर देकर कहा कि जर्मनी को ‘भारत को उसकी अपनी ताकत और अवसरों के नजरिए से देखना चाहिए.'
उन्होंने कहा कि ‘चीन में भले ही किसी भी काम को शुरू करने के लिए कम रुकावटें थीं, लेकिन लंबी अवधि में भारत का विकास और स्थिरता कहीं ज्यादा मायने रखती है.'
इसके बावजूद, जर्मनी के साथ भारत का मौजूदा व्यापार चीन के व्यापार से बहुत कम है. पिछले साल जर्मनी और चीन के बीच करीब 246 अरब यूरो का व्यापार हुआ.
चीन एशिया में जर्मन कंपनियों का मुख्य केंद्र बना हुआ है. हालांकि, भारतीय बाजार उनके लिए तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है. फिर भी, कई लोग भारत में नौकरशाही बाधाओं, भ्रष्टाचार और जटिल कर प्रणाली सहित अन्य समस्याओं की भी शिकायत करते हैं.
आनंदी ने जोर देकर कहा, "जर्मन मिटेलस्टैंड (छोटे और मध्यम आकार के व्यवसाय) भारत में फल-फूल सकते हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उन्हें कारोबार के लिए बेहतर नीतियां और सुविधाएं मिलें. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वास्थ्य से जुड़ी तकनीक जैसे क्षेत्रों में, जर्मनी की मजबूत इंजीनियरिंग और भारत के तेजी से बढ़ते डिजिटल इकोसिस्टम के बीच एक ऐसी साझेदारी बन सकती है जिससे दोनों देशों को फायदा होगा.”
मुक्त व्यापार में रुकावटें
अपनी यात्रा से पहले, वाडेफुल ने कहा कि यूरोपीय संघ और भारत जल्द से जल्द मुक्त व्यापार समझौते को पूरा करें. ईयू और भारत, दोनों इस साल सीमा शुल्क और व्यापार बाधाओं को कम करने के लिए एक समझौते पर बातचीत कर रहे हैं. हालांकि, रुकावटें बनी हुई हैं, खासकर कृषि और डेयरी बाजारों तक पहुंच को लेकर.
रोजा लक्जमबर्ग फाउंडेशन के दक्षिण एशिया कार्यालय की निदेशक ब्रिटा पेटरसन ने डीडब्ल्यू को बताया, "डेयरी उद्योग जैसे भारत के कुछ क्षेत्र व्यापारिक समझौतों में रुकावट पैदा करते हैं, क्योंकि भारत एक बहुत बड़ा देश है. यहां बहुत सारे छोटे किसान और उत्पादक इस काम से जुड़े हुए हैं. इसलिए, भारत इन मामलों में अपनी नीतियों में ढील नहीं दे सकता.”
अय्यर ने कहा कि चुनौतियों के बावजूद, समझौते पर पहुंचने की दिशा में काफी प्रगति हो रही है. उन्होंने जोर देकर कहा, "बिल्कुल, हमें दोनों देशों की आर्थिक समृद्धि के लिए एक फ्रेमवर्क की जरूरत है. भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहां का बाजार और लोगों का आर्थिक स्तर बेहद अलग-अलग है. इस फ्रेमवर्क की शर्तों पर चर्चा करते समय जर्मनी को इस बात को ध्यान में रखना होगा.”
संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ है जलवायु सहयोग
जलवायु सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का एक मुख्य स्तंभ रहा है. जर्मनी ने भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारी निवेश किया है. 2022 की हरित एवं सतत विकास साझेदारी के तहत स्वच्छ परियोजनाओं के लिए अरबों डॉलर जुटाए जा रहे हैं. दोनों पक्ष भविष्य के एक महत्वपूर्ण ईंधन के तौर पर ग्रीन हाइड्रोजन पर दांव लगा रहे हैं.
हालांकि, कर्नाटक राज्य में बायोएनर्जी डेवलपमेंट बोर्ड के अध्यक्ष एस. ई. सुधींद्र ने कहा कि भारत-यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता न होना, ‘जर्मन कंपनियों के लिए निवेश, व्यापार और भारतीय बाजार तक पहुंच को जटिल बनाता है.'
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उन्होंने बताया कि नियामक विसंगतियों यानी नियमों में काफी ज्यादा अंतर, जटिल नौकरशाही प्रक्रियाएं, वित्तीय और मुद्रा से जुड़े जोखिम के साथ-साथ बुनियादी ढांचे की कमी कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जो भारत में व्यापार के लिए मुश्किलें पैदा करती हैं.
इसके अलावा, सुधींद्र ने कहा कि भारत में ग्रीन हाइड्रोजन और ऑफशोर विंड जैसी तकनीकें अभी भी महंगी हैं. इसके साथ ही, इलेक्ट्रोलाइजर और सोलर पीवी के लिए सप्लाई चेन भी कमजोर है. इससे द्विपक्षीय सहयोग में मुश्किलें आ रही हैं.
रक्षा क्षेत्र को प्रमुखता
हालांकि, एक अहम रणनीतिक बदलाव के तौर पर रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों की भागीदारी बढ़ रही है. जर्मनी ने भारत के साथ सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने में रुचि दिखाई है. पिछले साल जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरिउस भारत आए थे, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को बहुत बढ़ावा मिला.
इस यात्रा के दौरान, जर्मनी और भारत की कंपनियों ने एक बड़े रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के तहत, छह उन्नत स्टील्थ डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां बनाने की बात की गई है. भारत सरकार ने हाल ही में अधिकारियों को इन पनडुब्बियों के निर्माण के लिए जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स के साथ औपचारिक बातचीत शुरू करने की अनुमति दी है.
पेटरसन ने कहा, "इस क्षेत्र में व्यापार करने के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है. अब यह ज्यादा खुला है. मुझे लगता है कि भारत भी इस ओर ध्यान दे रहा है.”
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क्या भारतीय कामगार जर्मनी के श्रम बाजार की कमियों को पूरा कर सकते हैं?
श्रमिकों की गतिशीलता, यानी काम के लिए लोगों का एक देश से दूसरे देश में जाना भी भारत और जर्मनी के बीच सहयोग का बहुत ही अच्छा और नया क्षेत्र बनकर सामने आया है.
जर्मनी में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है. इसलिए, जर्मनी लंबे समय से अपने श्रम बाजार में खाली जगहों को भरने के लिए कुशल श्रमिकों की तलाश में विदेशों की ओर देख रहा है.
दूसरी ओर, दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत, युवा लोगों से भरा हुआ है. हालांकि, देश की अर्थव्यवस्था और नौकरियों का बाजार इतने ज्यादा लोगों को काम नहीं दे पा रहा है.
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इस वजह से, दोनों पक्षों ने 2022 में एक व्यापक प्रवासन और गतिशीलता साझेदारी पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते का मुख्य उद्देश्य भारतीय कामगारों और छात्रों के लिए जर्मनी में काम करने और रहने की प्रक्रिया को आसान बनाना है.
दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित करता है वैश्विक तनाव
इन तमाम बातों के बावजूद, भारत-जर्मनी संबंधों में सब कुछ ठीक नहीं है. पेटरसन ने कहा, "यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख से यूरोप में कोई भी विशेष रूप से खुश नहीं था, लेकिन उन्होंने लगभग स्वीकार कर लिया है कि यह भारत का रुख है. इसमें कोई बदलाव नहीं आने वाला है.”
भारत और जर्मनी के बीच साझेदारी व्यापक भू-राजनीतिक और आर्थिक संकटों से भी प्रभावित होती है. डॉनल्ड ट्रंप की अस्थिर व्यापार नीतियों, यूक्रेन और मध्य पूर्व के युद्ध के साथ-साथ दुनिया भर में बढ़ती आर्थिक दूरियों ने वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता और अस्थिरता को बढ़ा दिया है. यह नियमों पर आधारित वैश्विक व्यवस्था के लिए खतरा है.
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विशेषज्ञों के मुताबिक, मौजूदा हालात को देखते हुए, भारत और जर्मनी अब बड़ी रणनीतियों के बजाय सिर्फ उन क्षेत्रों में मिलकर काम कर रहे हैं जहां उनके अपने हित पूरे होते हैं.
पेटरसन ने कहा, "अब यह बिल्कुल स्पष्ट है कि रूस वास्तव में पूरी तरह चीन का सहयोगी बन गया है. इसलिए, भारत के लिए भी इन पड़ोसियों के साथ संपर्क बनाए रखना जरूरी है क्योंकि अंततः चीन एक पड़ोसी है. अगर यूरोपीय देश इस बात को ध्यान में रखते हैं, तो मुझे लगता है कि दोनों पक्षों के बीच बहुत कुछ किया जा सकता है.”