जर्मनी और फ्रांस का कहना है कि पूर्वी यूक्रेन में युद्धविराम बना रहना चाहिए. नए साल में सुरक्षा वार्ता को लेकर रूस और अमेरिका अभी भी एक साथ नहीं आ पाए हैं.
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जर्मनी और फ्रांस ने गुरुवार को यूक्रेन की सेना और रूस समर्थक अलगाववादी ताकतों से पूर्वी यूक्रेन में नए सिरे से संघर्ष विराम की प्रतिज्ञा का सम्मान करने का आग्रह किया है. बर्लिन और पेरिस ने एक संयुक्त बयान में कहा, "हम पक्षों से युद्धविराम का सम्मान करने और मानवीय क्षेत्र में आगे के कदमों पर चर्चा जारी रखने का आग्रह करते हैं, जैसे कि क्रॉसिंग पॉइंट खोलना और बंदियों की अदला-बदली."
साझा बयान ऐसे समय में आया है जब यूक्रेन द्वारा दावा किया गया कि गुरुवार को "रूसी संघ के सशस्त्र बलों" ने तीन बार ताजा संघर्ष विराम का उल्लंघन किया था. युद्धविराम के पहुंचने से पहले यूक्रेन और रूस ने एक दूसरे पर अलगाववादी डोनबास क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई के लिए सेना के जमावड़े का आरोप लगाया था.
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अमेरिका, रूस सुरक्षा वार्ता
हालांकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह कहा है कि मॉस्को यूक्रेन के साथ संघर्ष नहीं चाहता है. एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान बोलते हुए पुतिन ने कहा कि नाटो के पूर्वी विस्तार को रोकने के उद्देश्य से रूस के सुरक्षा प्रस्तावों पर चर्चा करने की अमेरिका की इच्छा "सकारात्मक" थी. पुतिन ने कहा, "अमेरिकी साझेदारों ने हमें बताया कि वे इस चर्चा, इन वार्ताओं को अगले साल की शुरुआत में शुरू करने के लिए तैयार हैं." राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि अमेरिका ने अभी तक पुतिन के साथ नए सिरे से बातचीत के समय और स्थान पर सहमति नहीं जताई है.
रूस ने हाल के महीनों में यूक्रेनी सीमा के पास अपने सैनिकों को तैनात किया है. यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगी लंबे समय से रूस पर यूक्रेन के अलगाववादियों को हथियारों की आपूर्ति करने का आरोप लगाते रहे हैं. यूक्रेन के मुताबिक उन्हीं अलगाववादी समूहों ने 2014 में रूस को क्रीमिया पर कब्जा करने में मदद की थी. रूस ने उन आरोपों से इनकार किया था. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने पिछले महीने कहा था कि वॉशिंगटन रूस की "असाधारण" गतिविधियों के बारे में चिंतित है. उन्होंने मॉस्को को 2014 की गंभीर गलती करने से बचने की चेतावनी दी. रूस पश्चिमी देशों के आरोपों से इनकार करता आया है. मॉस्को के मुताबिक इस साल के वसंत में रूस के बारे में इसी तरह की चिंता व्यक्त की जा रही थी, लेकिन रूस द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई.
टाइम बम जैसे विवाद
दुनिया भर में कुछ ऐसे विवाद हैं जो कभी भी युद्ध भड़का सकते हैं. ये सिर्फ दो देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को लड़ाई में खींच सकते हैं.
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दक्षिण चीन सागर
बीते दशक में जब यह पता चला कि चीन, फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और कंबोडिया के बीच सागर में बेहद कीमती पेट्रोलियम संसाधन है, तभी से वहां झगड़ा शुरू होने लगा. चीन पूरे इलाके का अपना बताता है. वहीं अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल चीन के इस दावे के खारिज कर चुका है. बीजिंग और अमेरिका इस मुद्दे पर बार बार आमने सामने हो रहे हैं.
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पूर्वी यूक्रेन/क्रीमिया
2014 में रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप को यूक्रेन से अलग कर दिया. तब से क्रीमिया यूक्रेन और रूस के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है. यूक्रेन क्रीमिया को वापस पाना चाहता है. पश्चिमी देश इस विवाद में यूक्रेन के पाले में है.
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कोरियाई प्रायद्वीप
उत्तर और दक्षिण कोरिया हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहते हैं. उत्तर कोरिया भड़काता है और दक्षिण को तैयारी में लगे रहना पड़ता है. दो किलोमीटर का सेनामुक्त इलाका इन देशों को अलग अलग रखे हुए हैं. उत्तर को बीजिंग का समर्थन मिलता है, वहीं बाकी दुनिया की सहानुभूति दक्षिण के साथ है.
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कश्मीर
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटा कश्मीर दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य मौजूदगी वाला इलाका है. दोनों देशों के बीच इसे लेकर तीन बार युद्ध भी हो चुका है. 1998 में करगिल युद्ध के वक्त तो परमाणु युद्ध जैसे हालात बनने लगे थे.
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साउथ ओसेटिया और अबखासिया
कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन इलाकों पर जॉर्जिया अपना दावा करता है. वहीं रूस इनकी स्वायत्ता का समर्थन करता है. इन इलाकों के चलते 2008 में रूस-जॉर्जिया युद्ध भी हुआ. रूसी सेनाओं ने इन इलाकों से जॉर्जिया की सेना को बाहर कर दिया और उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे दी.
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नागोर्नो-काराबाख
नागोर्नो-काराबाख के चलते अजरबैजान और अर्मेनिया का युद्ध भी हो चुका है. 1994 में हुई संधि के बाद भी हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. इस इलाके को अर्मेनिया की सेना नियंत्रित करती है. अप्रैल 2016 में वहां एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बने.
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पश्चिमी सहारा
1975 में स्पेन के पीछे हटने के बाद मोरक्को ने पश्चिमी सहारा को खुद में मिला लिया. इसके बाद दोनों तरफ से हिंसा होती रही. 1991 में संयुक्त राष्ट्र के संघर्षविराम करवाया. अब जनमत संग्रह की बात होती है, लेकिन कोई भी पक्ष उसे लेकर पहल नहीं करता. रेगिस्तान के अधिकार को लेकर तनाव कभी भी भड़क सकता है.
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ट्रांस-डिनिएस्टर
मोल्डोवा का ट्रांस-डिनिएस्टर इलाका रूस समर्थक है. यह इलाका यूक्रेन और रूस की सीमा है. वहां रूस की सेना तैनात रहती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिम और मोल्डोवा की बढ़ती नजदीकी मॉस्को को यहां परेशान कर सकती है.
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पुतिन के आरोप क्या हैं
पुतिन ने अपने संवाददाता सम्मेलन के दौरान पश्चिम पर यूक्रेन को "रूस विरोधी, लगातार आधुनिक हथियारों से लैस करने और आबादी का ब्रेनवॉश करने" के प्रयास करने के आरोप लगाए थे. इस बीच साकी ने कहा, "तथ्य यह है कि वह हास्यजनक है, तथ्य स्पष्ट करते हैं कि रूस और यूक्रेन की सीमा पर हम जो एकमात्र आक्रामकता देख रहे हैं, वह रूसियों द्वारा सैन्य तैनाती है और रूस के नेता द्वारा युद्ध की बयानबाजी है."
ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा कि उन्होंने यूक्रेन के प्रति रूस की आक्रामकता के बारे में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से बात की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि वे सहमत हैं कि रूसी घुसपैठ "एक बड़ी रणनीतिक गलती होगी और इसके गंभीर परिणाम होंगे." इस बीच ब्लिंकेन ने नाटो महासचिव येन्स स्टोल्टनबर्ग के साथ यूक्रेन की सीमा पर स्थिति पर चर्चा की.
पिछले दिनों रूस ने पश्चिम पर काला सागर में सैन्य अभ्यास करने और यूक्रेन को आधुनिक हथियार मुहैया कराने का आरोप लगाया था. रूस ने यह भी मांग की है कि नाटो गारंटी दे कि उसकी सैन्य महत्वाकांक्षाएं पूर्व की ओर नहीं फैलेंगी.
एए/सीके (एपी, एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)
मैर्केल के सामने बदले अंतरराष्ट्रीय राजनीति के चेहरे
अपने सामने हर देश और उसके साथ बदलते रिश्तों को कुछ ही राष्ट्रप्रमुख लंबे समय तक देख पाते हैं. अंगेला मैर्केल के 16 साल के कार्यकाल के दौरान भारत, अमेरिका, रूस और चीन समेत कई देशों में निर्णायक सत्ता परिवर्तन हुए.
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अमेरिका में रोलर कोस्टर
नवंबर 2005 में 51 साल की उम्र में अंगेला मैर्केल जब जर्मनी की पहली महिला चांसलर बनीं तब अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश थे. फिर बराक ओबामा (2009-2017) और उसके बाद डॉनल्ड ट्रंप (2017-2021) अमेरिका के राष्ट्रपति बने. जाते जाते मैर्केल ने जो बाइडेन को अमेरिका का राष्ट्रपति बनते हुए देखा.
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भारत में दो बदलाव
फिजिक्स से पीएचडी कर चुकीं डॉक्टर अंगेला मैर्केल, बतौर चासंलर पहली बार भारत के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलीं. 2014 के चुनावों में भारतीय जनता ने जनादेश नरेंद्र मोदी को दिया. मोदी के कार्यकाल में भारत और जर्मनी के रिश्तों को नई रफ्तार मिली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. von Jutrczenka
रूसी अदला बदली
रूसी भाषा जानने वाली मैर्केल ने अपने सामने रूस में सत्ता का खेल भी देखा. लगातार दो कार्यकालों की संवैधानिक रोक के कारण 2008 में व्लादिमीर पुतिन ने दिमित्री मेद्वेदेव को राष्ट्रपति बना दिया और खुद प्रधानमंत्री बन गए. 2012 में व्लादिमीर पुतिन फिर से रूसी राष्ट्रपति बन गए.
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फ्रांस में चार बदलाव
जर्मन चासंलर के तौर पर 2005 में मैर्केल पहले विदेश दौरे पर फ्रांस गई. तब फ्रांस के राष्ट्रपति जाक शिराक थे. फिर निकोला सारकोजी आए, उनके बाद फ्रांसुआ ओलांद फ्रांस के राष्ट्रपति बने. 2017 में इमानुएल माक्रों फ्रांस के राष्ट्रपति बने और सबसे पहले मैर्केल से मिलने पहुंचे.
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चीन में हू से शी
2003 से 2013 तक हू जिनताओ चीन के राष्ट्रपति रहे. हू के दौर में चीन और जर्मनी के आर्थिक रिश्ते परवान चढ़े. हू के बाद राष्ट्रपति बने शी जिनपिंग के साथ भी मैर्केल की शुरुआत में अच्छी ट्यूनिंग रही. लेकिन चीन के आक्रामक सैनिक रुख के कारण धीरे धीरे इन संबंधों में संदेह पैदा होने लगे.
तस्वीर: picture alliance/dpa/B. von Jutrczenka
रोम में इटैलियन ड्रामा
मैर्केल ने यूरोप में सबसे ज्यादा सत्ता परिवर्तन इटली में ही देखा. बतौर चांसलर मैर्केल का सामना इटली के रंगीन मिजाज प्रधानमंत्री सिल्वियो बैर्लुस्कोनी से खूब हुआ. मैर्केल ने अपने कार्यकाल के दौरान इटली के सात प्रधानमंत्री देखे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ब्रिटेन में ब्लेयर से ब्रेक्जिट तक
मैर्केल जब चांसलर बनी तब जॉर्ज डब्ल्यू बुश के करीबी टोनी ब्लेयर ब्रिटेन के पीएम थे. फिर गॉर्डन ब्राउन और डेविड कैमरन प्रधानमंत्री बने. दूसरे कार्यकाल के लिए चुनावी रणनीति बनाते हुए कैमरन ने ब्रेक्जिट के लिए जनमत संग्रह का वादा किया. मामूली अंतर से ब्रेक्जिट हो गया. ब्रेक्जिट के बवंडर में कैमरन और थेरेसा मे जैसे पीएम उड़ गए. बोरिस जॉनसन के कार्यकाल में ब्रिटेन अलग हो गया.
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जापान में नौ चेहरे
2001 में जापान के पीएम बने जूनीचिरो कोईजूमी ने 2006 में त्यागपत्र देकर अपनी ही पार्टी के शिंजो आबे के लिए रास्ता साफ किया. आबे दो किस्तों में जापान के प्रधानमंत्री रहे, लेकिन मैर्केल के सामने जापान ने पीएम के तौर पर आठ चेहरे देखे.