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रूस के हाइब्रिड हमलों से कैसे निपटेगा जर्मनी

यानोश डेलकर
२९ मार्च २०२४

जर्मनी की गृह मंत्री ने चेताया है कि जर्मन लोगों की राय को प्रभावित करने के लिए रूस नई कोशिशें कर सकता है. जानिए कैसे काम करते हैं ऐसे "हाइब्रिड वॉरफेयर" और उनसे कैसे बचा जा सकता है.

2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से जर्मनी पर भी साइबर हमले हुए
2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से जर्मनी पर भी साइबर हमले हुएतस्वीर: Darko Vojinovic/AP/dpa/picture alliance

जर्मनी में लोगों की राय पर असर डालने के लिए रूस साइबर हमलों, प्रोपेगैंडा और दूसरे तरीकों का सहारा ले सकता है. जर्मनी की गृह मंत्री नैंसी फेजर के मुताबिक, ये खतरा वास्तविक है और लगातार बढ़ रहा है. उन्होंने स्थानीय मीडिया से बातचीत में कहा कि ऐसे खतरे अब नए स्तर पर पहुंच गए हैं.

ये चेतावनी ऐसे समय पर आई है जब जर्मनी जून में होने वाले यूरोपीय संसद के चुनावों की तैयारियों में जुटा है. इसके अलावा सितंबर में होने वाले तीन क्षेत्रीय चुनावों की तैयारी भी जारी है. ऐसी चिंताएं बढ़ रही हैं कि रूस इन चुनावों से पहले जर्मनी की रूस-समर्थक पार्टियों के लिए जनसमर्थन जुटाने की कोशिश करेगा. इनमें धुर-दक्षिणपंथी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) जैसी पार्टियां शामिल हैं.

जर्मनी लंबे समय से रूस की ओर से लोगों की राय पर असर डालने वाले कई अभियानों के निशाने पर रहा है. 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से कई अभियानों का लक्ष्य यूक्रेन के लिए समर्थन कम करना देखा गया.

रुडिगर फॉन फ्रित्श मॉस्को में जर्मनी के राजदूत रह चुके हैं. जर्मनी की विदेशी खुफिया एजेंसी ‘बीएनडी' के उपाध्यक्ष भी रह चुके फ्रित्श कहते हैं, "अब इसका सामना करने में दृढ़ संकल्प और ताकत दिखानी होगी. साथ ही यह उजागर करना होगा कि दूसरा पक्ष कैसे काम कर रहा है.”

रुडिगर फॉन फ्रित्श मॉस्को में जर्मनी के राजदूत रह चुके हैंतस्वीर: DW

हाइब्रिड वॉरफेयर क्या है?

हाइब्रिड युद्ध एक तरह की जटिल रणनीति है, जिसमें सैन्य उपकरणों के साथ दूसरे अपरंपरागत तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है. इन तरीकों में आर्थिक दबाव बढ़ाने से लेकर प्रोपेगैंडा फैलाना तक शामिल है.

यह कोई नई रणनीति नहीं है. सदियों से, अलग-अलग देशों ने दूसरे देशों में जनता की राय को प्रभावित करने के लिए गैर-सैन्य साधनों का इस्तेमाल किया है.

लेकिन पिछले दो दशकों में इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के उभार ने उन्हें ऑनलाइन हथियारों की एक नई खेप दे दी है. जिसे ‘हैक एंड लीक' ऑपरेशन के रूप में भी जाना जाता है. इसमें हैकर्स संवेदनशील और गोपनीय जानकारी हासिल कर लेते हैं, फिर इसे रणनीतिक रूप से जनता के लिए जारी कर देते हैं.

साइबर हमलों का इस्तेमाल किसी देश के जरूरी बुनियादी ढांचे को ध्वस्त करने के लिए भी किया जा सकता है. चुनाव में इस्तेमाल होने वाली मशीनों और सॉफ्टवेयर पर भी हमला किया जा सकता है. वहीं दूसरी तरफ, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल मनगढ़ंत और भ्रामक जानकारी फैलाने के लिए किया जाता है. फॉन फ्रित्श ने डीडब्ल्यू से कहा कि डिजिटल दुनिया खुफिया एजेंसियों के लिए एक सपने के सच होने जैसी है.

हाइब्रिड युद्ध काम कैसे करता है?

इसे शैडो वॉर माना जाता है, जो जनता की नजरों से परे होता है और कभी भी आधिकारिक रूप से घोषित नहीं किया जाता. हैम्बर्ग स्थित कॉर्बर फाउंडेशन में रूसी मामलों की विशेषज्ञ लेस्ली शुबेल बताती हैं, "हाइब्रिड युद्ध की अवधारणा यह है कि शुरुआत में आपको इसके होने का पता नहीं चलता.”

हैम्बर्ग स्थित कॉर्बर फाउंडेशन में रूसी मामलों की विशेषज्ञ लेस्ली शुबेल इसे 'शैडो वॉर' बताती हैंतस्वीर: DW

जर्मन सरकार ने जनवरी में एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक रूसी दुष्प्रचार अभियान का पर्दाफाश करने का दावा किया था. इस अभियान के तहत फर्जी अकाउंट्स के जरिए दस लाख से ज्यादा मैसेज भेजे गए थे. इनमें झूठे और भ्रामक नैरेटिव को बढ़ावा दिया जा रहा था, जैसे कि ये संदेश कि युद्धग्रस्त यूक्रेन को मदद भेजने की वजह से देश में जर्मन लोगों की उपेक्षा हुई.

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर बड़ी संख्या में ऐसे मैसेज भेजकर, रूस अपने लिए समर्थन की भावना को बढ़ावा देना चाहता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, इसका लक्ष्य सामाजिक विभाजन और गुस्से को बढ़ावा देना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया व मीडिया के प्रति अविश्वास पैदा करना है. शुबेल कहती हैं कि "रूस के लिए संदेह फैला पाना ही अपने आप में एक सफलता है."

‘टॉरस लीक' का असर

हाइब्रिड युद्ध के ज्यादातर अभियान छुपकर ही चलाए जाते हैं, लेकिन कुछ को जानबूझकर सार्वजनिक किया जाता है.

मार्च की शुरुआत में, रूस के सरकारी न्यूज चैनल आरटी के प्रमुख ने जर्मनी के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच हुई एक गोपनीय बातचीत सार्वजनिक की थी. इसे टॉरस लीक के नाम से जाना गया. इससे जर्मनी की सेना को शर्मिंदा होना पड़ा और कूटनीतिक समस्या खड़ी हो गई.

मारिया सानिकोवा-फ्रांक बर्लिन स्थित एक थिंक टैंक में रूस कार्यक्रम की प्रमुख हैं. वे कहती हैं कि इन मामलों से पुतिन को घरेलू स्तर पर भी फायदा होता है.

लीक हुई बातचीत में अधिकारी रूस-यूक्रेन युद्ध के संभावित परिदृश्यों पर बहस कर रहे थे. इस पर रूसी मीडिया ने दावा किया कि बातचीत से पता चला है कि जर्मन सेना रूसी क्षेत्र पर हमला करने के लिए पर्याप्त और विशिष्ट योजनाओं पर चर्चा कर रही थी.

सानिकोवा-फ्रांक ने डीडब्ल्यू से कहा, "पुतिन यह छवि बनाना चाहते हैं कि जर्मनी और पश्चिमी देश रूस को धमका रहे हैं. और वे ऐसा करने में सफल भी हुए हैं. उन्होंने एलेक्सी नवाल्नी की मौत और अंतिम संस्कार से भी लोगों का ध्यान भटका दिया.”

नवाल्नी रूस में पुतिन के सबसे मुखर विरोधियों से से एक थे. वे 47 साल के थे. 16 फरवरी को आर्कटिक पैनल कॉलोनी में उनकी मौत हो गई. एक मार्च को उन्हें दफनाया गया. इसी दिन जर्मन सेना की गोपनीय बातचीत भी सार्वजनिक की गई.

क्या पूरे के पूरे देश हैक हो सकते हैं?

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इसका मुकाबला कैसे होगा?

विशेषज्ञ मानते हैं कि हाइब्रिड युद्ध का मुकाबला करने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की जरूरत है. देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि मतदान तकनीक समेत उनके सभी बुनियादी ढांचे साइबर हमलों से सुरक्षित रहें.

‘टॉरस लीक' के बारे में पता चला कि मीटिंग में एक व्यक्ति के असुरक्षित कनेक्शन के जरिए शामिल होने के चलते ऐसा हुआ. इससे यह भी पता चलता है कि समाज के सभी क्षेत्रों में साइबर सुरक्षा जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है.

विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि नागरिकों को दुष्प्रचार की रणनीतियों के बारे में शिक्षित किया जाए. यह भी बताया जाए कि ऑनलाइन मिलने वाली कोई भी जानकारी उन्हें धोखा देने और भ्रमित करने के मकसद से बनाई गई हो सकती है.

सानिकोवा-फ्रांक कहती हैं, "इस प्रचार तंत्र को उजागर करना जरूरी है. जैसे- यह कैसे काम करता है, हमें कैसे प्रभावित करता है और कैसे लोगों की राय को प्रभावित करता है.”

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