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हेट पोस्ट के खिलाफ सख्त कानून की मांग

२१ मार्च २०१७

जर्मनी में सोशल मीडिया पर घृणा फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज हो रही है. जर्मनी के जजों के संघ ने सरकार से सोशल मीडिया पर होने वाले अपराधों के खिलाफ सख्त कानून बनाने की मांग की है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/Heimken

जर्मनी में न्यायाधीश संघ के प्रमुख स्वेन रेबेन ने कानून मंत्री के प्रस्ताव की आलोचना करते हुए कहा है कि गैरकानूनी पोस्ट को जल्द से जल्द हटाने का प्रस्ताव पर्याप्त नहीं है. उन्होंने कहा, "गैरकानूनी पोस्ट को जल्दी डिलीट करना इंटरनेट में घृणा और विद्वेश फैलाने के खिलाफ संघर्ष का सिर्फ एक पाया हो सकता है." उन्होंने कहा कि जो सोशल मीडिया में सजा पाने लायक मैटीरियल पोस्ट करता है, उसके खिलाफ प्रभावकारी कानूनी कार्रवाई भी होनी चाहिए.

अब तक जर्मनी में अभियोक्ताओं को सोशल मीडिया कंपनियों से घृणा फैलाने वाले गुमनाम यूजरों के बारे में जानकारी पाने में अक्सर दिक्कत होती है. स्वेन रेबेन कहते हैं, "फेसबुक और उसकी जैसी कंपनियों को बाध्यकारी सूचना कार्यालय खोलना चाहिए, जो जांचकर्ताओं द्वारा पूछे जाने पर विश्वसनीय जानकारी दे सकें." न्यायाधीश संघ की शिकायत है कि सरकारी विधेयक में इस तरह के सूचना कार्यालय का प्रावधान है लेकिन सूचना न देने पर किसी तरह की सजा का प्रावधान न होने के कारण वह प्रभावी नहीं है.

इसके अलावा न्यायाधीश संघ ने सोशल मीडिया में हेट कैंपेन का शिकार होने वाले लोगों को मीडिया कंपनियों से सीधे जानकारी पाने का अधिकार देने की मांग की है. "जिसे नेट पर बदनाम किया जाये या अपमानित किया जाए उसे नोटिस या हर्जाने के मुकदमे के जरिये प्रभावकारी बचाव करने की स्थिति में होना चाहिए." स्वेन रेबेन ने कहा कि अपराधियों पर इस बात का ज्यादा असर होता है कि उनकी टिप्पणियां सिर्फ हटा ही नहीं ली गई हैं बल्कि उन्हें सजा या जुर्माने का भी खतरा है. जजों के संगठन ने प्रभावित लोगों को नफरत फैलाने वाली टिप्पणियों के गुमनाम लेखकों के नाम बताने के लिए नेटवर्कों को बाध्य करने पर जोर दिया है.

जर्मन कानून मंत्री द्वारा पेश मसौदे में यह प्रावधान है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों को स्पष्ट रूप से गैरकानूनी कंटेंट को 24 घंटे के अंदर हटाना होगा. कानूनी कर्तव्यों का पालन नहीं करने की स्थिति में इन कंपनियों को 5 करोड़ यूरो तक का जुर्माना हो सकता है. कंपनियों को हर तीन महीने पर शिकायतों और उनके निबटारे के बारे में रिपोर्ट भी देनी होगी.

एमजे/एके (एएफपी, डीपीए)

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