दुनिया भर में जर्मन राजनीति के कुछ सबसे जाने माने चेहरों में से एक वोल्फगांग शॉएब्ले का 81 साल की उम्र में देहांत हो गया.
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बीते 30 सालों से जर्मन राजनीति में खासे सक्रिय रहे कंजर्वेटिव क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक पार्टी के नेता वोल्फगांग शॉएब्ले का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया. लंबी और गंभीर बीमारी से गुजर रहे शॉएब्ले ने 26 दिसंबर की रात आखिरी सांसें लीं.
हाल के सालों में वह चांसलर अंगेला मैर्केल और 90 के दशक में चांसलर हेल्मुट कोल की कैबिनेट में मंत्री रहे. 1990 में हुए जर्मन एकीकरण यानि पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के फिर से मिलकर एक होने में भी शॉएब्ले का अहम योगदान माना जाता है.
इस मौके पर जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा है कि शॉएब्ले ने "आधी सदी से भी ज्यादा समय तक हमारे देश को आकार दिया है." माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर लिखे अपने संदेश में चांसलर शॉल्त्स ने लिखा, "जर्मनी ने एक तीव्र-बुद्धि विचारक, जुनूनी राजनेता और जुझारू डेमोक्रैट खो दिया."
कोल से लेकर मैर्केल तक
सन 1942 में जर्मन शहर फ्राइबुर्ग में जन्मे शॉएब्ले ने 1972 में जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग में सदस्य के रूप में कदम रखा. तबसे लगातार सदस्यता बरकरार रखते हुए उनके नाम से देश के संसदीय इतिहास में सबसे दीर्घकालीन सदस्य बनने का गौरव जुड़ा है.
पूर्व सीडीयू नेता हेल्मुट कोल के नेतृत्व में एक यूरोप समर्थक नेता के तौर पर शॉएब्ले ने अपना करियर शुरु किया. आगे बढ़ते हुए उन्होंने कोल के चीफ ऑफ स्टाफ की भूमिका निभाई और बहुत से लोग उन्हें कोल का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानते थे.
जर्मन एकीकरण के समय इन दोनों नेताओं के योगदान को काफी महत्व दिया जाता है. लेकिन 1990 में ही एक व्यक्ति ने शॉएब्ले पर उनकी जान लेने के इरादे से हमला किया. इसमें उनकी जान तो बच गई लेकिन तबसे जीवन भर के लिए शॉएब्ले व्हील चेयर पर निर्भर हो गए.
'यूरोजोन कर्ज संकट' में मनवाया लोहा
मैर्केल की सरकार में वह कई सालों तक जर्मनी के वित्तमंत्री रहे. उस दौरान यूरोपीय देश ग्रीस में पैदा हुए ग्रीक वित्त संकट को लेकर जर्मनी के बजट को कुशलता से संभालने के लिए उनको श्रेय दिया जाता है. उस दौर में इसे 'यूरोजोन कर्ज संकट' का नाम मिला था.
शॉएब्ले की उनकी बचत नीतियों और दक्षिणी यूरोपीय देशों के प्रति सख्ती को लेकर काफी आचोलना और साथ ही सराहना भी मिली. जर्मन वित्तीय नीति का सुनहरा सूत्र माने जाने वाला "ब्लैक जीरो" यानि ऋणमुक्त संघीय बजट उन्होंने उस वक्त भी बना कर दिखाया था.
मौजूदा विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने एक्स पर अपने संदेश में लिखा है, "हालिया जर्मन इतिहास और हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति पर इतना असर डालने वाला वोल्फगांग शॉएब्ले जैसे कोई दूसरा राजनेता शायद ही हो."
दो बार वित्तमंत्री और उसके पहले दो बार आंतरिक मामलों के मंत्री रहने के बाद उन्हें बुंडेसटाग का स्पीकर बनाया गया, जिस पद पर वह 2021 तक बने रहे.
आरपी/एए (डीपीए, रॉयटर्स)
'काले शून्य' से जर्मनी को क्यों है इतना प्यार
जर्मन भाषा में "श्वार्त्से नुल" या अंग्रेजी में "ब्लैक जीरो" - 'बचत' के बाद इसे जर्मन अर्थव्यवस्था का सबसे प्रिय शब्द कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी. आइए जानें संतुलित बजट को लेकर जर्मन जुनून के इस फॉर्मूले को.
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बचत के पिता
जर्मनी के पूर्व वित्त मंत्री वोल्फगांग शौएब्ले इस ब्लैक जीरो फार्मूले का "चेहरा" बने. सन 2014 में पेश वित्तीय योजनाओं में जर्मनी को कोई नया कर्ज नहीं लेना पड़ा. सन 1969 के बाद ये पहला मौका था जब बजट पूरी तरह संतुलित रहा. इसे हासिल करने के लिए बजट खर्च में बढ़ोत्तरी का पूरा इंतजाम राजस्व से किया गया और सार्वजनिक कर्ज को घटाया गया.
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जिसके लिए किया संविधान में संशोधन
"कर्ज पर ब्रेक" या जर्मन में "शुल्डेनब्रेम्जे" कहे जाने वाले प्रावधान को जर्मन संविधान में शामिल करवाने के लिए उसमें संशोधन तक करवाया गया. इसके तहत जर्मन राज्यों को अधिकार नहीं कि वे घाटा उठाकर योजनाएं चलाएं और केंद्र सरकार को भी कुल जीडीपी का 0.35 प्रतिशत से भी कम ही संरचनात्मक घाटा उठाने की अनुमति है. हालांकि तमाम अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इससे आर्थिक अस्थिरता पर कोई असर नहीं पड़ता.
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कर्ज या गुनाह?
कर्ज और कसूर दोनों के लिए जर्मन भाषा में एक शब्द है - शुल्ड. इससे कहीं ना कहीं पता चलता है कि जर्मन संस्कृति में दोनों कितने करीब समझे जाते हैं. जर्मन लोग पुरानी इमारतों में भी संतोष से जी सकते हैं. घर खरीदने के लिए लालायित रहने के बजाए किराए पर रह लेते हैं. क्रेडिट कार्ड वाली जीवनशैली से अब भी कोसों दूर हैं. कुल मिलाकर कर्ज लेकर घी पीने वाली सोच आम लोगों में भी नहीं देखी जाती है.
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फॉर्मूले पर सवालिया निशान
जर्मन अर्थव्यवस्था के मंदी की ओर बढ़ने की अटकलें हैं. अगर बजट संतुलित रखना इतना प्रभावी होता तो ये नौबत नहीं आनी थी. पहले भी कई अर्थशास्त्री आर्थिक अस्थिरता को संभालने में इसकी कोई खास भूमिका ना होने की बात कह चुके हैं. फिर भी जर्मनी खर्च और निवेश दोनों कम करने की अपनी आदत के कारण ऐसी अर्थव्यवस्था गढ़ चुका है जिसमें नएपन, विस्तार और स्टार्ट अप कंपनियों के फलने फूलने में दिक्कतें महसूस हो रही हैं.
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यूरोपीय पड़ोसियों का क्या
जर्मनी के इस फॉर्मूले में विश्वास के कारण जर्मनी में निवेश पर असर पड़ता है. लेकिन निर्यात पर आधारित यूरोप की इस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से ज्यादा छोटी अर्थव्यवस्थाओं वाले इसके बाकी यूरोपीय पड़ोसियों पर ज्यादा असर होता है. कमाई के बड़े हिस्से को जब दोबारा व्यापार में निवेश ना किया जाए और सरप्लस बढ़ेगा ही, जिसके लिए जर्मनी की आलोचना होती है.
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गर्व का विषय
पूरे जर्मनी में कर्ज मुक्त होने का कई तरीकों से उत्सव जैसा मनाया जाता है. जैसे कि यहां चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी सीडीयू के लोग ब्लैक जीरो फॉर्मूले पर गर्व करते हुए फोटो लेते हुए. जर्मन राज्य हेस्से में बाकायदा ब्लैक जीरो की प्रतिमा लगाई गई है. डुसेलडॉर्फ शहर में यह घड़ी दिखा रही है कि शहर कितने समय से कर्ज-मुक्त है. (रिपोर्ट: एलिजाबेथ शूमाखर/आरपी)