जर्मनी ने परमाणु बिजली घरों को चालू रखने का फैसला किया
१८ अक्टूबर २०२२
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने सोमवार को देश के तीन परमाणु बिजली घरों के अप्रैल तक काम जारी रखने का ऐलान किया. संभावित ऊर्जा संकट के मद्देनजर इन बिजली घरों को बंद करने का फैसला टाल दिया गया है.
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विरोध और विवाद के बीचजर्मनी ने देश में अब भी काम कर रहे तीनों परमाणु बिजली घरों की जिंदगी बढ़ाने का फैसला किया है. जर्मनी में यह एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है और सरकार में शामिल दलों के बीच भी इस पर मतभेद हैं. इसके बावजूद चांसलर शॉल्त्स ने बिजली घरों में काम जारी रखने का ऐलान किया है.
इसके बारे में ग्रीन पार्टी के सदस्य और देश के वाइस चांसलर व अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबेर्ट हाबेक ने कहा कि उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया कि शॉल्त्स ने कैबिनेट के सदस्यों की असहमतियों को दरकिनार कर यह फैसला किया है. चांसलर शॉल्त्स ने अर्थव्यस्था, पर्यावरण और वित्त मंत्रालयों से कहा है कि बिजली घरों को चालू रखने के लिए जरूरी कानूनी आधार तैयार किया जाए.
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
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कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
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हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
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सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
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पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
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न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
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डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
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नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
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समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
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जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.
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एक बयान में शॉल्त्स ने कहा, "इजार 2, नेकारवेस्थाइम 2 और इम्सलांड 2 परमाणु बिजली घरों को 31 दिसंबर 2022 के बाद 15 अप्रैल 2023 तक चालू रखने के लिए कानूनी आधार तैयार किया जाएगा.” देश की सबसे बड़ी ऊर्जा कंपनी आरडब्ल्यूई ने कहा कि वह फौरन इम्सलांड संयंत्र को अप्रैल तक चालू रखने के लिए जरूरी तैयारियों शुरू कर रही है.
जर्मनी ने देश में न्यूकिलयर ऊर्जा का उत्पादन 2022 तक बंद कर देने की योजना बनाई थी. लेकिन यूक्रेन में जारी युद्ध के कारणरूसी गैस में हुई कटौती के चलते ऊर्जा की आपूर्ति का संकटपैदा हो गया है. इस वजह से देश में लगातार इस मुद्दे पर बहस चल रही है कि परमाणु बिजली घरों को बंद करने का फैसला टाल दिया जाए या नहीं.
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राजनीतिक मतभेद
ग्रीन पार्टी इस बात पर सहमत हो गई थी कि इम्सलांड स्थित परमाणु बिजली घर को बंद कर दिया जाए और दोअन्यों को अप्रैल तक के लिए आरक्षित रखा जाए. उधर फ्री डेमोक्रैट्स पार्टी (एफडीपी) तीनों संयंत्रों को 2024 तक चालू रखने के लिए जोर लगा रही है.
वित्त मंत्री और एफडीपी के सदस्य क्रिस्टियान लिंडनर ने सोमवार को ट्वीट कर कहा कि ऐसा करना देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी है. उन्होंने लिखा, "यह हमारे देश और अर्थव्यस्था के लिए बेहद जरूरी है कि हम अपनी सभी ऊर्जा उत्पादन क्षमताओं को इस शीत ऋतु के दौरान बनाए रखें. चांसलर ने अब स्थिति साफ कर दी है.”
जर्मनी में परमाणु विवाद के पांच दशक
जर्मनी में परमाणु ऊर्जा को लेकर पांच दशक से विवाद चल रहा है. इन सालों में जर्मनी ने परमाणु बिजली घरों की हिमायत से लेकर उसे पूरी तरह से बंद करने का फैसला किया है. एक नजर इस विवाद के पड़ावों पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/I. Bajzat
1977
लोअर सेक्सनी प्रांत के मुख्यमंत्री एर्न्स्ट अलब्रेष्ट ने गोरलेबेन में परमाणु कचरे के भंडारण के लिए सेंट्रल स्टोरेज बनाने की घोषणा की. कुछ ही हफ्तों के भीतर इसका विरोध शुरू हो गया. इसी विरोध से शुरू हुए आंदोलन से बाद में ग्रीन पार्टी का जन्म हुआ.
तस्वीर: picture alliance / dpa
1979
गोरलेबेन में परमाणु कचरे के लिए सेंट्रल स्टोरेज बनाने का इतना विरोध हुआ कि सरकार ने ये फैसला तो वापस ले लिया लेकिन वहां अंतिम भंडार बनाने की जांच करने पर सरकार अड़ी रही. उसी साल इस पर आरंभिक काम शुरू हो गया.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images/H. Langenheim
1980
परमाणु ऊर्जा के हजारों विरोधियों ने गोलवेबेन के निकट फ्री रिपब्लिक ऑफ वेंडलंड बनाने की घोषणा की और वहां झोपड़ियों वाला एक गांव बनाया. ये गांव पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन का आदर्श बन गया. एक महीने बाद ही पुलिस ने लोगों को हटा दिया और गांव को गिरा दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Baum
1983
अक्टूबर 1983 में जर्मन सरकार ने गोरलेबेन में नमक वाले खान में भूमिगत हिस्से की जांच को सहमति दे दी. 1984 में पहली बार स्टाडे के परमाणु बिजलीघर से परमाणु कचरे को गोरलेबेन के स्टोर में ले जाया गया. उसी के साथ परमाणु विरोधियों का उसे रोकने का आंदोलन भी.
तस्वीर: AP
1995
अप्रैल 1995 में अत्यंत रेडियोधर्मी परमाणु कचरे का परमाणु बिजलीघर फिलिप्सबुर्ग से पहली बार कास्टर ट्रांसपोर्ट शुरू हुआ. हजारों लोगों ने इसका विरोध किया, रेल लाइन पर हमले हुए, सड़कों को जाम किया गया. कास्टर ट्रांसपोर्ट की सुरक्षा के लिए हुई पुलिस कार्रवाई जर्मनी में तब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई थी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K.-U. Knoth
2000
1998 के चुनाव के बाद पहली बार जर्मनी में ऐसी सरकार बनी जिसमें ग्रीन पार्टी शामिल थी. पर्यावरण मंत्रालय उसी के पास था. 2000 में सरकार और परमाणु बिजलीघरों के बीच में उन्हें बंद करने का समझौता हुआ. साथ ही गोरलेबेन में स्टोर बनाने के लिए भूमिगत जांच को दस साल तक बंद रखने का फैसला हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
2009
सीडीयू और एफडीपी की तत्कालीन जर्मन सरकार ने गोरलेबेन में जांच के दस साल से रुके काम को फिर से शुरू करने का फैसला किया. 2010 में ये काम शुरू हुआ लेकिन बीच बीच में रुका रहा. पिछली सरकार के फैसले को बदलने के कारण देश में तीखी बहस भी चलती रही.
तस्वीर: picture alliance / dpa
2011
इस साल जापान में अचानक फुकुशिमा परमाणु बिजलीघर में दुर्घटना हुई. जर्मनी में दुर्घटना की स्थिति में कोई सुरक्षा ना होने की बहस और बढ़ गई. अंगेला मैर्केल की सरकार ने फौरन परमाणु बिजलीघरों को बंद करने का फैसला लिया. केंद्र और राज्य सरकारों ने देश भर में परमाणु कचरे का अंतिम भंडार खोजने का फैसला किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Kyodo
2017
सालों के विवाद के बाद जर्मन संसद ने परमाणु कचरे के लिए अंतिम भंडार कानून पास कर दिया. इसके तहत एक ठिकाने की तलाश के लिए एक संस्था बनाई गई. उसने जो अंतरिम रिपोर्ट दी है उसमें 90 ठिकानों के नाम हैं. गोरलेबेन को इस सूची से बाहर रखा गया है. इसके साथ पांच दशक पुराने विवाद का अंत हो गया है.
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लेकिन ग्रीन के दो नेताओं में से एक रिकार्डा लैंग ने शॉल्त्स के फैसले की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि ‘ग्रिड सुरक्षा बनाए रखने के लिए' इम्सलांड संयंत्र की जरूरत नहीं है और इसे चालू रखना आवश्यक नहीं है.
आगे क्या होगा
जर्मन सरकार का कहना है कि अप्रैल में सभी परमाणु बिजली घरों को बंद कर दिया जाएगा. देश की पर्यावरण मंत्री स्टेफी लेमके ने वादा किया कि जर्मनी अप्रैल 2023 के आखिर तक परमाणु बिजली की पूर्ण बंदी के अपने वादे पर कायम रहेगा. लेमके ने ट्विटर पर कहा, "ना तो नई ईंधन रॉड्स आएंगी और ना मियाद बढ़ाई जाएगी.”
कितनी खतरनाक है परमाणु बिजली?
02:57
जर्मनी ने 2000 में परमाणु बिजली को खत्म कर देने की बात कही थी. तब देश में एसपीडी की सरकार थी जिसने कई बिजली घरों को बंद कर दिया था. कई साल बाद जब जापान के फुकुशिमा परमाणु बिजली घर में हादसा हुआ, तब जर्मनी में सीडीयू की सरकार थी और अंगेला मैर्केल देश की चांसलर थीं. उन्होंने बाकी बचे परमाणु बिजली घरों को भी बंद करने का फैसला किया था.
रूस के यूक्रेन पर हमला करने से पहले तक परमाणु बिजली घरों को एक-एक कर बंद किए जाने की प्रक्रिया जारी थी लेकिन इस हमले ने देश में बिजली का संकट पैदा कर दिया और उसे अपनी ऊर्जा सप्लाई पर फिर से विचार करना पड़ा है. उसी का नतीजा है कि बिजली घरों को तीन महीने और चालू रखने का फैसला किया गया है.