जर्मनी ने चार महीने में ही खत्म कर दिए एक साल के संसाधन
एलिस्टेयर वॉल्श
४ मई २०२४
जर्मनी ने सिर्फ चार महीनों में ही पूरे साल के पारिस्थितिक संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया है. यह आंकड़ा जर्मनी में जरूरत से अधिक उपभोग की समस्या की ओर इशारा करता है.
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जर्मनी ने सिर्फ चार महीनों में ही अपने पूरे साल के पारिस्थितिक संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया है. अमेरिकी गैर सरकारी संगठन ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के मुताबिक अगर पूरी दुनिया जर्मनी की तरह व्यवहार करने लगे तो इंसानों के उपभोग को पूरा करने के लिएतीन पृथ्वियोंकी जरूरत पड़ेगी.
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क्या है ओवरशूट डे
एक साल की अवधि में जब किसी देश की पारिस्थितिक संसाधनों और सेवाओं की मांग पृथ्वी पर उन संसाधनों को दोबारा पैदा करने की क्षमता से अधिक होती है उसे ‘ओवरशूट डे' कहते हैं. लग्जमबर्ग, कतर जैसे देशों ने फरवरी में ही अपने पूरे साल के संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया था. वहीं, साल भर के संसाधनों के उपभोग को लेकर कंबोडिया और मैडागास्कर जैसे देशों के तय सीमा के अंदर ही रहने की संभावना है.
पिछले साल जर्मनी ने चार मई को अपने सभी संसाधनों को इस्तेमाल कर लिया था. इस बार जर्मनी ने तीन मई यानी एक दिन पहले ही ऐसा कर दिखाया है. जर्मनी के गैर सरकारी संगठन जर्मन वॉच की शिक्षा अधिकारी आयलिन लीनर्ट ने बयान जारी कर कहा कि जर्मनी का ओवरशूट डे का चार महीनों के अंदर ही आना इस बात की ओर ध्यान दिलाता है कि सभी सेक्टरों की मौजूदा स्थितियों को बदलना होगा.
प्राकृतिक संसाधनों पर सरकारी कब्जे की होड़
हाल ही में चिली ने दो निजी लीथियम खनन कंपनियों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की है. पिछले तीन सालों में कई अन्य देशों ने अपने खनिज संसाधनों को सरकारी नियंत्रण में लाने का निर्णय लिया है.
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चिली
लीथियम एक मुलायम सफेद धातु है जो इलेक्ट्रिक वाहनों, मोबाइल फोन और कम्प्यूटरों की बैटरियों में इस्तेमाल होता है. कार्बन मुक्त होने की वैश्विक दौड़ में लीथियम की भारी मांग है. दुनिया में सबसे ज्यादा लीथियम चिली में है. हाल ही में वहां की सरकार ने लीथियम एक्सट्रैक्शन में काम करने वाली दो निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने की घोषणा की है.
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इंडोनेशिया
इंडोनेशिया कभी निकल के दुनिया के प्रमुख निर्यातकों में से एक था. हालांकि, जून 2020 में देश ने निकल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. इंडोनेशिया निकल के खनन से लेकर बैटरी बनाने के लिए धातुओं के इस्तेमाल पर खुद काम करने की योजना बना रहा है.
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मेक्सिको
इस साल फरवरी में मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रेज मैनुअल लोपेज ओब्रादोर ने ऊर्जा मंत्रालय को देश के लीथियम भंडार की जिम्मेदारी देते हुए एक फरमान जारी किया था. अप्रैल 2022 में लीथियम भंडार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था.
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जिम्बाब्वे
पिछले दिसंबर में जिम्बाब्वे ने असंसाधित लीथियम के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. सरकार का कहना था लीथियम को खदानों से निकालकर सीमा पार ले जाने से रोकने के लिए यह फैसला लिया गया.
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म्यांमार
टिन या रांगा इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर उद्योग में इस्तेमाल होने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व है. 2022 में म्यांमार के टिन उत्पादन का 70 प्रतिशत से अधिक वॉ जातीय समूह द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों से आया था. अप्रैल में वॉ मिलिशिया ने कहा था कि यह अगस्त से अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में खानों पर सभी काम को निलंबित कर देगा. इस कदम से टिन की कीमत में वृद्धि हुई.
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मांस की भारी खपत है एक कारण
पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था ग्रीनवॉच के मुताबिक जर्मनी में पृथ्वी के संसाधनों के जरूरत से अधिक इस्तेमाल के पीछे मांस का उत्पादन और खपत सबसे बड़ी वजह है. जर्मनी में खेती की 60 फीसदी जमीन जानवरों का खाना उगाने के लिए इस्तेमाल की जाती है. लाखों टन जानवरों का खाना जर्मनी दूसरों देशों से आयात करता है.
जर्मन डेवलपमेंट एजेंसी (जीआईजेड) के मुताबिक जर्मनी के इस आयात के कारण 2016 से 2018 के दौरान दुनिया भर में 138,000 हेक्टेयर जंगल नष्ट हो गए. इस जरूरत से ज्यादा उपभोग का सबसे अधिक भार दक्षिण के देश जलवायु परिवर्तन और वहां नष्ट होते पर्यावरण के रूप में उठाते हैं.
पर्यावरण के मुद्दे पर काम करने वाले एक अन्य संगठन ‘फ्रेंड्स ऑफ अर्थ' ने जर्मनी में मिट्टी, पानी और खनिज पदार्थों जैसे प्राकृतिक संसाधनों का लापरवाही के साथ इस्तेमाल करने की आलोचना की है. संस्था के चेयरमैन ओलाफ बांट ने एक बयान में कहा, "हमारी पृथ्वी पर अत्यधिक बोझ है. एक देश जो इतने संसाधनों का इस्तेमाल करता है, उसमें हम बेहद घटिया और लापरवाह तरीके से काम कर रहे हैं." संगठन ने सरकार से मिट्टी, जमीन, पानी, लकड़ी, जंगल और मछली पालन की जगहों को सुरक्षित करने के लिए एक कानून की मांग की है.
अधिक उपभोग से नहीं आती खुशहाली
हैप्पी प्लैनेट इंडेक्स के मुताबिक अधिक उपभोग से नागरिकों की बेहतर और खुशहाल नहीं बनती. बर्लिन के थिंक टैंक हॉट एंड कूल ने इस इंडेक्स को जारी किया था. यह संस्था खुशहाली, जीवन अवधि, कार्बन फुटप्रिंट जैसे मुद्दों पर आंकड़े इकट्ठा करती है. इससे यह पता लगाया जाता है कि एक देश बिना धरती के संसाधनों का दोहन किए अपने नागरिकों का कितना ख्याल रख पा रहा है.
उदाहरण के तौर पर स्वीडन और जर्मनी में लोगों की खुशहाली और जीवन अवधि का स्तर बेहद मिलता जुलता है. हालांकि, जर्मनी के मुकाबले स्वीडन जीवन की यह गुणवत्ता 16 फीसदी कम उत्सर्जन के साथ पा लेता है. कोस्टा रिका में भी जीवन अवधि जर्मनी से मिलती जुलती ही है लेकिन वहां पर्यावरण पर पड़ने वाला नुकसान बिल्कुल आधा है.
कल तक जहां बारिश को तरस रहे थे, अब वहां पानी से मर रहे लोग
दक्षिणी केन्या में एक बांध टूटने के कारण कम-से-कम 45 लोगों की मौत हो गई है और कई दर्जन लोग लापता हैं. यह घटना 29 अप्रैल की सुबह रिफ्ट घाटी के पास हुई.
तस्वीर: LUIS TATO/AFP
"ऐसा लगा मानो भूकंप आया हो"
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, स्थानीय लोगों ने बताया कि हादसा नाकुरू काउंटी के माय माहियू शहर के पास पुराने किजाबे बांध में हुआ. भारी बारिश के कारण इस बांध का किनारा टूटा और पानी पहाड़ की ढलान से होता हुआ नीचे की ओर बहा. लोगों ने बताया कि ऐसा लगा मानो भूकंप आया हो.
तस्वीर: Gerald Anderson/Andalou/picture alliance
कीचड़ की मोटी परत, नीचे दबे लोग
पानी का तेज बहाव बड़ी संख्या में घरों और गाड़ियों को बहा ले गया. कई लोग कीचड़, गाद और मलबे में दबे बताए जा रहे हैं. बचावकर्मी कहीं फावड़ा-कुदाल से, तो कहीं हाथ से ही गाद हटाकर लोगों को बचाने की कोशिश करते दिखे.
तस्वीर: Gerald Anderson/Anadolu/picture alliance
बारिश से तबाही
आपातकालीन बचाव में शामिल एक स्थानीय निवासी ने एएफपी को बताया, "हमने पेड़ों में फंसी कुछ लाशें भी बरामद की हैं. हमें नहीं पता कीचड़ के नीचे कितने लोग दबे हैं." बीते महीनों में करीब चार दशक के सबसे गंभीर सूखे का सामना कर रहा केन्या अभी मूसलाधार बारिश और भीषण औचक बाढ़ से जूझ रहा है.
तस्वीर: Luis Tato/AFP/Getty Images
कई देशों में हालत खराब
चरम बारिश से जुड़ी घटनाओं से अब तक 120 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं. पड़ोसी तंजानिया में भी बारिश से आफत मची है. वहां बाढ़ और भूस्खलन के कारण कम से कम 155 लोगों के मारे जाने की खबर है. इथियोपिया, बुरुंडी, रवांडा और युगांडा में भी भारी बारिश के कारण जानमाल को नुकसान पहुंच रहा है.
तस्वीर: Edwin Waita/REUTERS
अल-नीनो का कहर
जानकारों के मुताबिक, औसत से कहीं ज्यादा हो रही बारिश का संबंध अल-नीनो से भी है. इसके कारण दुनियाभर में गर्मी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है. कई इलाके भीषण सूखे की चपेट में हैं, तो कई जगहों पर भीषण बरसात से बुरा हाल है.
तस्वीर: Thomas Mukoya/REUTERS
आपदाओं की झड़ी
2020 से 2023 के बीच पूर्वी अफ्रीका में सूखे की स्थिति बेहद विकराल थी. लगातार तीन साल तक औसत से कम बारिश के कारण खेती और मवेशीपालन को बहुत नुकसान पहुंचा. भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई. ऐसे में अब बारिश का प्रकोप लोगों पर दोहरी मार है. जलवायु परिवर्तन आपदाओं की शृंखला ला रहा है. कभी लोग बारिश के लिए तरसते हैं, तो कभी उसी बारिश की अधिकता से तड़पते और मरते हैं.
तस्वीर: Gerald Anderson/AA/picture alliance
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अनावश्यक उपभोग पर ध्यान देने की जरूरत
वानुआतु, स्वीडन, एल सल्वाडोर, कोस्टा रिका और निकारागुआ उन देशों में हैं, जिन्होंने पर्यावरण पर बेहद कम प्रभाव के साथ अच्छे जीवन को संतुलित करने में कामयाबी पाई है.
हैप्पी प्लैनेट इंडेक्स के मुताबिक दुनिया में सबसे अधिक कमाई करने वाले 10 फीसदी लोग ही करीब आधे उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि, कम उत्सर्जन करने वालों के मुकाबले इन्हें भी बेहतर जीवन और स्वास्थ्य से जुड़ा कोई फायदा नहीं मिल रहा है.
इसका एक अच्छा उदाहरण हवाई यात्रा है. जो लोग अधिक हवाई यात्रा करते हैं, उनके उत्सर्जन की मात्रा भी अधिक होती है लेकिन इससे उनके जीवन में खुशहाली का स्तर, कम उत्सर्जन करने वालों की तुलना में बढ़ती नहीं है. अमेरिका में हुए एक अध्ययन के मुताबिक अमीर घरों के कार्बन फुटप्रिंट कम आय वाले घरों के मुकाबले 25 फीसदी अधिक होते हैं, लेकिन जीवन को लेकर संतुष्टि का स्तर दोनों में ही समान पाया गया.
बर्लिन स्थित थिंक टैंक ‘हॉट और कूल' इंस्टिट्यूट के निदेशक लुइस अकेंजी के मुताबिक जरूरत है कि सभी देश अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करें. वह कहते हैं कि हमें गैरबराबरी और अनावश्यक उपभोग पर ध्यान देने की जरूरत है जो धरती के संकट को और अधिक बढ़ाने का काम कर रहे हैं.