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जर्मनी में चाकू हमले के बाद प्रवासियों पर फिर बहस तेज

२४ जनवरी २०२५

जर्मनी में मंगलवार को फिर ऐसा हमला हुआ, जिसमें एक आप्रवासी शामिल था. इसके बाद देश में फिर में आप्रवासन से जुड़े कानूनों को बदलने की बहस तेज हो गई है.

अशाफेनबुर्ग में जमा लोग
अशाफेनबुर्ग में आयोजित श्रद्धांजलि सभातस्वीर: Heiko Becker/REUTERS

जर्मनी के बवेरिया प्रांत के छोटे से शहर आशफेनबुर्ग में बुधवार को स्थानीय पार्क में चाकू से किए गए हमले में दो लोगों की मौत हो गई और तीन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. इस घटना ने ना केवल शहर को सदमे में डाल दिया है, बल्कि जर्मनी में आप्रवासन, मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर नई बहस छेड़ दी है.

बुधवार को 28 साल के एक अफगान शरणार्थी इनामुल्लाह ओ. ने एक पार्क में चाकू से लोगों पर हमला किया. इस हमले में दो लोग मारे गए जिनमें 2 साल का एक मोरक्को मूल का बच्चा और 41 साल के एक जर्मन आदमी थे. जर्मन व्यक्ति दूसरों को बचाने की कोशिश में हमलावर की चपेट में आ गया था. 

शहर के लोगों की प्रतिक्रिया

घायलों में 2 साल की एक सीरियाई बच्ची, 72 साल के एक बुजुर्ग और 59 साल की एक महिला शामिल हैं, जो बच्चों को देखभाल करने वाली टीचर हैं.

पुलिस ने तुरंत आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और बाद में उसे मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में भेजा गया. जर्मन अधिकारियों ने कहा कि इनामुल्लाह ओ. को उसकी मानसिक स्थिति के कारण अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

बवेरिया के गृह मंत्री योआखिम हेरमान ने कहा, "अब तक की जांच में इस्लामी आतंकवाद का कोई सबूत नहीं मिला है. यह मानसिक बीमारी से जुड़ा एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला प्रतीत होता है.”

आशफेनबुर्ग में हमले के बाद माहौल गमगीन हैतस्वीर: Heiko Becker/REUTERS

आशफेनबुर्ग के लोग इस हमले के बाद शोक में हैं. मेयर युर्गेन हेर्त्सिंग ने इसे व्यक्तिगत दुख की तरह बताया. उन्होंने कहा, "मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरा खुद का बच्चा मारा गया हो या मेरा भाई घायल हो गया हो.”

हेर्त्सिंग ने लोगों से आग्रह किया कि वे इस दुख को नफरत में ना बदलें. उन्होंने कहा, "हम एक व्यक्ति के अपराध के लिए पूरे समुदाय को दोष नहीं दे सकते, चाहे हमारा गुस्सा कितना भी बड़ा हो.”

हेर्त्सिंग की इस भावना को स्थानीय लोगों में भी महसूस किया गया, जो हजारों की तादाद में जमा हुए और पीड़ितों को एक खामोश श्रद्धांजलि दी.

आप्रवासन और राजनीति

इस घटना के बाद जर्मनी में आप्रवासन और शरणार्थी नीति पर बहस और तेज हो गई है. यह मुद्दा अगले महीने के आम चुनावों पर भी असर डाल सकता है. 

रुढ़िवादी नेता फ्रीडरिष मैर्त्स ने सरकार की शरण नीति की आलोचना करते हुए कहा, "मैं अब इन स्थितियों को और सहन नहीं कर सकता." उन्होंने बॉर्डर सुरक्षा को मजबूत करने और शरण देने के कानून में बदलाव की मांग की.

क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक पार्टी की ओर से चांसलर पद के दावेदार मैर्त्स ने वादा किया कि अगर वह चुने जाते हैं तो देश में इमिग्रेशन के नियमों को सख्त करेंगे और अवैध रूप से देश में घुसने की सारी कोशिशों को नाकाम करने वाली नीतियां बनाएंगे. उन्होंने कहा, "मेरे नेतृत्व में, जर्मनी में इमिग्रेशन कानून, शरण कानून और निवास के अधिकार में बुनियादी बदलाव होंगे."

मैर्त्स ने यह भी कहा कि उन्होंने इस हमले को "आतंकी घटना" नहीं माना, बल्कि इसे वह इसे "साफ तौर से ड्रग्स पर निर्भर और मानसिक रूप से परेशान अपराधी का आपराधिक कृत्य" मानते हैं. उन्होंने कहा, "चांसलर बनने के पहले दिन मैं आंतरिक मंत्रालय को यह निर्देश दूंगा कि वह "किसी भी अवैध प्रवेश के प्रयास को बिना किसी अपवाद के अस्वीकार कर दे. यह विशेष रूप से उन व्यक्तियों पर लागू होता है जिन्हें सुरक्षा का अधिकार है."

साथ ही उन्होंने यूरोपीय संघ की मौजूदा शरण प्रणाली को "स्पष्ट रूप से असंगत" करार दिया. इसे डबलिन नियमों के रूप में जाना जाता है, उन्होंने कहा, "इसलिए, जर्मनी को राष्ट्रीय कानून की प्राथमिकता का अधिकार लागू करना चाहिए."

काम नहीं कर रहे नियम

आंतरिक मामलों की मंत्री नैन्सी फैजर ने कहा कि अफगान व्यक्ति के मामले में, "यूरोपीय कानून के तहत शरण प्रक्रिया के लिए बुल्गारिया जिम्मेदार था" और यह स्वीकार किया कि "डबलिन सिस्टम अब काम नहीं कर रहा है." फैजर ने यह भी बताया कि जर्मनी ने पहले तालिबान-शासित अफगानिस्तान के हिंसक अपराधियों को वापस भेजा था. उन्होंने कहा, "हम और अपराधियों को काबुल भेजने के लिए मेहनत कर रहे हैं."

बवेरियाई प्रीमियर मार्कुस जोएडर ने हमले को "सबसे घृणित और भयानक अपराध” करार दिया और हिंसा में शामिल शरणार्थियों को तुरंत देश से बाहर निकालने की बात कही. उन्होंने 41 वर्षीय जर्मन व्यक्ति को "सच्चा हीरो” बताया, जो लोगों को बचाने में घायल हुआ.

इस मामले ने जर्मन प्रशासन की खामियों को भी उजागर किया है. संघीय शरण कार्यालय (बीएएमएफ) ने जून 2023 में इनामुल्लाह ओ. की शरण याचिका खारिज कर दी थी और उसे बुल्गारिया वापस भेजने का आदेश दिया था. लेकिन यह आदेश स्थानीय अधिकारियों तक समय पर नहीं पहुंचा.

हेरमान ने इसे प्रक्रिया की असफलता बताया. उन्होंने कहा, "सिर्फ छह दिन में वापसी की प्रक्रिया पूरी करना असंभव था.” 

सभी हमले आतंकवाद नहीं होते

हाल के महीनों में एक के बाद एक कई बार ऐसे हमले हुए, जिनमें शरणार्थी या विदेशी शामिल थे. इस कारण देश में आप्रवासी विरोधी सोच को बढ़ावा मिला है लेकिन आशफेनबुर्ग की घटना ने यह भी दिखाया कि हर हमला आतंकवाद से प्रेरित नहीं होता. इससे पहले दिसंबर में सऊदी अरब में जन्मे एक डॉक्टर तालिब ए. नेमाग्देबुर्ग शहर में क्रिसमस मार्केट में लोगों पर कार चढ़ा दी थी, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 300 लोग घायल हुए थे.

अधिकारियों ने कहा है कि उस घटना की जांच आतंकी हमले के रूप में नहीं की जा रही है. संघीय महाभियोजक येन्स रोमेल ने कहा, "हमलावर ने शायद व्यक्तिगत गुस्से में ऐसा किया. उसका किसी आतंकी संगठन से कोई संबंध नहीं था.” 

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अधिकारियों ने आतंकवाद और अन्य प्रकार की हिंसा के बीच अंतर करने के महत्व को पर जोर दिया है. रोमेल ने कहा, "किसी घटना को आतंकवाद के रूप में वर्गीकृत करने के लिए उसकी पृष्ठभूमि पर ध्यान देने की जरूरत है." यह बारीक नजरिया इसलिए जरूरी है  ताकि किसी एक व्यक्ति द्वारा अंजाम दी गईं घटनाओं को व्यापक राजनीतिक या वैचारिक खतरों से ना जोड़ा जाए.

इससे पहले जोलिंगन में भी पिछले साल अगस्त में ऐसी ही घटना हुई थी. इन घटनाओं ने जर्मनी में इमिग्रेशन और शरण नीति पर गहरी दरारें उजागर की हैं. एक ओर यह कड़े नियमों की मांग करता है, तो दूसरी ओर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और आप्रवासियों को समाज में घुलने-मिलने की व्यवस्था की खामियां भी सामने लाता है.

मेयर हेर्त्सिंग ने कहा, "हमें दुख में एकजुट होना चाहिए, ना कि बंटना चाहिए.”

वीके/एनआर (डीपीए, एएफपी)

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