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नजरिया: जर्मनी को एक नए बिजनेस मॉडल की जरूरत है

हेनरिक बोएमे
९ अप्रैल २०२२

जर्मनी की आर्थिक सफलता काफी हद तक सस्ती ऊर्जा पर आधारित है. लेकिन यूक्रेन युद्ध ने इस पर अचानक विराम लगा दिया है. हेनरिक बोएमे के मुताबिक आगे की राह और मुश्किल नजर आती है.

जोखिम भरी राह पर जर्मन अर्थव्यवस्था
जोखिम भरी राह पर जर्मन अर्थव्यवस्थातस्वीर: picture alliance

लोग कहते हैं कि युद्ध का पहला शिकार सच होता है. और यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता ने इसे फिर से साबित किया है. साथ ही, युद्ध उन सत्यों को भी सामने लाता है जो सामान्य रूप से छिपे रहते हैं और बिना चर्चा के गुम हो जाते हैं.

मार्टिन ब्रुडरम्युलर ने जर्मन अर्थव्यवस्था के बारे में एक कड़वी सच्चाई हाल ही में जर्मन अखबार फ्रैंकफुर्टर ऑलगेमाइने त्साइटुंग को दिए एक साक्षात्कार में उजागर की थी. जर्मनी स्थित दुनिया के सबसे बड़े केमिकल कॉर्पोरेनश बीएएसफ के प्रमुख ब्रुडरम्युलर का कहना था, "यह एक निर्विवाद तथ्य था कि रूसी गैस जर्मन उद्योग की वैश्विक प्रतिस्पर्धा की नींव है.”

जब उनसे पूछा गया कि क्या जर्मनी रूस से अपने ऊर्जा आयात के जरिए पुतिन के युद्ध को बढ़ावा नहीं दे रहा है, उनका कहना था, "उन आयातों पर प्रतिबंध ‘जर्मन लोगों के हितों को नष्ट कर देगा'.

डीडब्ल्यू के बिजनेस मामलों के एक्सपर्ट हेनरिक बोएमे

ब्रुडरम्युलर ने जिसे ‘जर्मनी की आर्थिक ताकत का मुख्य आधार' के रूप में वर्णित किया, दरअसल, वह देश के व्यापार मॉडल का एक अनिवार्य हिस्सा रहा है और इसी आधार पर जर्मनी ने दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक देशों में से एक के रूप में अपनी जगह सुरक्षित कर ली है. पिछले 20 वर्षों में जर्मन कंपनियों द्वारा बनाए गए सफल व्यवसाय मॉडल की वजह से बाजार मूल्य से नीचे ऊर्जा आयात करना और प्रतिस्पर्धी उत्पादों को विकसित करने के लिए इसका उपयोग संभव हो सका है.

रूस, चीन और वैश्वीकरण की ताकतें

हाल के वर्षों में, चीन ने भी सफलता की कहानी में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. हालांकि जर्मन कॉर्पोरेट प्रमुख दुनिया में अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में बहुत पहले चीन की आर्थिक बाजीगरी को समझ गए थे. ऐसा करके वे न केवल चीनी बाजार के बड़े हिस्से को सुरक्षित करने में सक्षम थे, बल्कि चीन की दुर्लभ मृदा धातुओं और अन्य मूल्यवान खनिजों तक भी पहुंचने में सक्षम थे. उदाहरण के लिए, जर्मनी की दिग्गज कार कंपनी फोल्क्सवागेन मौजूदा समय में अपने वार्षिक उत्पादन का करीब 40 फीसदी हिस्सा चीन में बेचती है.

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जर्मनी के पक्ष में जो बात थी, वह थी, वैश्वीकरण के बैनर तले राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए खुद को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए खोलने का विश्वव्यापी अभियान. ‘मेड इन जर्मनी' एक वैश्विक मुक्त-बाजार के वातावरण में चमकने लगा.

रूस से मिलने वाली सस्ती बिजली, चीन के विशाल बाजार, उदारवादी व्यापार व्यवस्था और एक मजबूत घरेलू उद्योग के समीकरण ने जर्मन अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में मदद की. परिणाम यह हुआ कि आज जर्मनी के पास बड़े पैमाने पर अतिरिक्त विदेशी व्यापार हैं, आयात की तुलना में निर्यात कहीं ज्यादा है लेकिन इसी समय यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि रूस और चीन पर निर्भरता भी बहुत ज्यादा है.

2020 में रूस से गैस खरीदने वाले यूरोपीय देश

लेकिन लंबे समय तक जर्मन अर्थव्यवस्था की सफलता का यह सीधा रास्ता, अब अचानक रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से फिसलन भरी ढलान में बदल गया है. कोविड-19 महामारी पहले से ही एक बड़ी समस्या के रूप में आई थी जिसे कई लोग ‘वैश्वीकरण के अंत' के रूप में भी देखते हैं.

जर्मनी से रूसी गैस का 50 साल पुराना पेचीदा रिश्ता

व्यापारिक घराने वैश्विक महामारी के दौरान बहुत जटिल साबित हुई सप्लाई चेन्स को अलग करने के बारे में अब गंभीरता से सोचने लगे हैं. जर्मनी में, मेडिकल मास्क के उत्पादन न होने की स्थिति ने राजनेताओं और आम जनता की आंखें खोलकर रख दीं कि आवश्यक बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से दुनिया के अन्य हिस्सों से आउटसोर्स नहीं किया जा सकता बल्कि खुद भी उत्पादन करना पड़ता है.

COVID युग के बाद के लिए "रीशोरिंग" एक प्रचलित शब्द बनता जा रहा है, हालांकि अधिकांश औद्योगिक देशों के लिए उत्पादन घर लाना एक कठिन कार्य है.

कुदरत के साथ अर्थव्यवस्था का विकास

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द्विध्रुवीय वैश्विक अर्थव्यवस्था

रूस-यूक्रेन युद्ध ने जर्मनी में वैश्वीकरण की कहानी में एक नया मोड़ ला दिया है. जर्मनी में रूस से ऊर्जा आयात बंद करने को राष्ट्रीय भावना से जोड़कर देखा जा रहा है ताकि रूस के राष्ट्रपति पुतिन की आक्रामकता को और बढ़ावा न मिल सके.

हाल ही में एक सवाल और उभरकर आ रहा है कि चीन से कैसे निपटें जो स्पष्ट रूप से क्रेमलिन का समर्थन करने का विकल्प चुन रहा है. ध्यान देने वाली बात यह है कि चीन में पुतिन के लिए अचानक प्रेम नहीं उमड़ पड़ा है बल्कि चीन के राष्ट्रपति का यह चतुराई भरा कदम है कि ऐसा करके वो भारी मात्रा में रूस से बिजली और कच्चा माल प्राप्त कर सकेंगे. हालांकि जो बात पुतिन और शी जिनपिंग को एकजुट करती है, वह है लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के शासन जैसे पश्चिमी मूल्यों के प्रति उनकी संयुक्त घृणा.

जर्मनी रूस से मुंह मोड़ेगा, तो तेल, गैस, कोयला कहां से लाएगा

तो क्या यह माना जाए कि दुनिया एक बार फिर दो विरोधी ब्लॉकों में विभाजित हो रही है या फिर जैसा कि जर्मन अर्थशास्त्री गाब्रिएल फेलबेमायर कहते हैं कि क्या हम ‘वैश्वीकरण के गौरवशाली 30 वर्षों का अंत' देख रहे हैं? क्या हम एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका पश्चिम का नेतृत्व करेंगे जबकि रूस, चीन और शायद भारत, जिसके बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, सुदूर पूर्व के देशों का नेतृत्व करने जा रहे हैं?

कुछ ही देशों तक सिमट रही है सप्लाई चेन की शुरुआततस्वीर: picture alliance / Photoshot

ऐसी ‘द्विध्रुवीय दुनिया' जर्मन व्यापार मॉडल को गंभीर रूप से कमजोर कर देगी और ऐसी स्थिति में उसे एक नए मॉडल की जरूरत होगी. हालांकि ऐसी स्थिति में भी उसका एक मजबूत पक्ष यह रहेगा कि जर्मन व्यवसायों की आर्थिक जीवन की अनिश्चितताओं के अनुकूल होने की निर्विवाद क्षमता. ऊर्जा परिवर्तन के तमाम नए विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जर्मन उद्योगों को कार्बनरहित बनाकर भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.

शुरुआत करने के लिए, जर्मनी को ऊर्जा के स्तर पर आत्मनिर्भर बनने के बारे में गंभीर होना चाहिए क्योंकि अक्षय स्रोतों और हाइड्रोजन से बिजली बनाना फायदेमंद हो सकता है.

आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक चाहते हैं कि जर्मनी अगले 13 वर्षों के भीतर कार्बन मुक्त बिजली प्राप्त करे और सौर, पवन और बायोमास से बिजली उत्पादन को ‘बड़ा सार्वजनिक हित' घोषित किया जाए. यदि यह हासिल हो जाता है तो यह एक बड़ी छलांग होगी और भविष्य में जर्मनी के हितों की रक्षा करते हुए जर्मन उद्योग को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उत्पादन जारी रखने में सक्षम बनाएगा.

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