अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का काम जर्मनी ने पूरा कर लिया है. मंगलवार को आखिरी दस्ते ने मजार स्थित कैंप छोड़ दिया. इस तरह 20 साल लंबे अभियान का पटाक्षेप हो गया है.
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जर्मनी के 570 सैनिक अफगानिस्तान से निकल गए हैं. सुरक्षा के लिहाज से खराब होते हालात के बीच लगभग बीस साल चला यह अभियान खत्म हो गया है. पिछले हफ्ते जर्मन रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि 570 सैनिक बाकी हैं जो मजार में हैं. मंगलवार को वे भी वापस आ गए. इनमें स्पेशल केएसके फोर्स के वे सैनिक भी शामिल हैं जिन्हें कैंप की सुरक्षा में तैनात किया गया था.
मंगलवार को जर्मन रक्षा मंत्री आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर ने ट्विटर पर लिखा कि सैनिक घर वापसी के लिए निकल गए हैं. उन्होंने लिखा, "यह एक ऐतिहासिक अध्याय का अंत है – एक ऐसी तैनाती जिसने चुनौतियां पेश की और हमें बदला भी.”
क्रांप कारेनबावर ने अफगानिस्तान में अपने कर्तव्यों को ‘पेशवराना तरीके से और पूरी निष्ठा के साथ निभाने के लिए' सैनिकों का धन्यवाद किया. उन्होंने संकल्प लिया कि इस अभियान की समीक्षा होगी और इस बात पर विमर्श होगा कि "क्या अच्छा था, क्या अच्छा नहीं था और क्या सबक रहे.”
तस्वीरों मेंः सैन्य अभियानों में शामिल रहे ये मशहूर कुत्ते
सैन्य अभियानों में शामिल रहे ये मशहूर कुत्ते
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सेना के एक घायल कुत्ते की ट्वीट की जिसने इस्लामिक स्टेट के मुखिया अबु बक्र अल बगदादी को खत्म करने के मिशन में हिस्सा लिया था. इससे पहले भी कई कुत्तों ने सुर्खियां बंटोरी हैं.
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व्हाइट हाउस का "वेरी गुड बॉय"
ट्रंप ने बेल्जियन मेलिनवा नस्ल के कुत्ते की फोटो ट्वीट की, जो सीरिया में आईएस मुखिया के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में घायल हो गया. हालांकि कुत्ते का नाम नहीं बताया गया है. नाम सार्वजनिक करने से सैन्य कार्रवाई करने वाली यूनिट के बारे में भी सबको पता चल सकता है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने लिखा है कि कुत्ते को मामूली चोट ही आई थी और वह काम पर लौट चुका है. ट्रंप ने कहा कि उसने "जबरदस्त काम" किया है.
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रिन टिन टिन, एक फिल्म स्टार
कुत्तों को संकटग्रस्त क्षेत्रों में सालों से इस्तेमाल किया जाता रहा है. पहले विश्व युद्ध के दौरान जर्मन शेपर्ड कुत्ते रिन टिन टिन ने जर्मन सेना में अपनी सेवा दी. फिर उसे एक अमेरिकी सैनिक ने पकड़ लिया और अपनी सेना में भर्ती कर लिया. रिन टिन टिन की नई जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा अमेरिका में ही बीता. उसने 1920 के दशक में हॉलीवुड की कई कामयाब फिल्मों में भी काम किया.
तस्वीर: picture-alliance/Everett Collection
सार्जेंट मेजर जिग्स, अमेरिकी मरीन का चेहरा
जिग्स एक इंग्लिश बुलडॉग था जो 1922 में अमेरिकी मरीन कोर का पहला मैस्कॉट बना. उसने तेजी से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ीं और वह चंद साल के भीतर सार्जेंट मेजर बन गया. किसी नए रंगरूट के लिए यह छोटी कामयाबी नहीं थी. जिग्स की मौत 1927 में हुई और उसे पूरे सैन्य सम्मान के साथ दफन किया गया.
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जन्म से ट्रेनिंग
मिलिट्री के ज्यादातर कुत्तों को जन्म से ही ट्रेनिंग दी जाती है. जर्मन सेना में उन्हें स्पेशल पपी ट्रेनर्स के पास रखा जाता है. बड़े होने पर उन्हें सेना में भर्ती कर लिया जाता है. यहां ऑस्ट्रिया के राष्ट्रपति अलेंक्जांडर फान डेय बेलेन को कुत्ते के बच्चों के साथ देखा जा सकता है. इन्हें ऑस्ट्रिया की सेना में भर्ती के लिए ट्रेन किया जा रहा है.
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रॉबी ने बदली मिलिट्री कुत्तों की किस्मत
अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 2000 में "रॉबी'ज" लॉ पर हस्ताक्षर किए, जिसका मकसद यह सुनिश्चित करना था मिशन पूरा होने के बाद मिलिट्री कुत्तों को संकटग्रस्त क्षेत्रों में ना छोड़ दिया जाए या मारा ना जाए. वियतनाम में अमेरिकी सेना ने 2,700 कुत्ते दक्षिणी वियतनाम को दिए थे. इसमें से 1,600 मार दिए गए. सेवा समाप्ति के बाद अब कुत्तों को अमेरिकी ट्रेनर गोद ले सकते हैं. लेकिन रॉबी की ऐसी किस्मत नहीं थी.
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जर्मन शेपर्ड
जर्मन शेपर्ड दिखने में बहुत अच्छे लगते हैं. बावजूद इसके सेना में भर्ती सभी कुत्ते जर्मन शेपर्ड नहीं होते. बार्क पोस्ट के अनुसार अमेरिकी सेना में भर्ती होने वाले 85 प्रतिशत कुत्ते जर्मनी और नीदरलैंड्स से खरीदे जाते हैं. सेना के लिए जर्मन शेपर्ड नस्ल सबसे पसंदीदा नस्ल नहीं है, बल्कि बेल्जियन मेलिनवा है जिसकी फोटो ट्रंप ने भी ट्वीट की है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Baumgarten
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मई में जर्मन सैनिकों की वापसी का काम शुरू हुआ था. तब मजार में 1,100 सैनिक थे. सुरक्षा कारणों से जर्मन सेना ने अपनी वापसी की सूचनाओं को स्पष्ट नहीं किया था. मंगलवार तक यह जाहिर नहीं था कि आखिरी दस्ते की वापसी कब होगी.
अब क्या होगा?
आधिकारिक पुष्टि से कुछ ही घंटे पहले क्रांप कारेनबावर ने कहा कि वापसी का काम व्यवस्थित तरीके से लेकिन पूरी तेजी से चल रहा है. बाद में जर्मन सेना ने कहा कि आखिरी सैनिक भी मजार छोड़ चुका है. उनका पुराना कैंप अफगान सैनिकों को दे दिया जाएगा.
जर्मन सैनिक बुधवार को तबिलिसी होते हुए स्वदेश पहुंचेंगे. जर्मनी पहुंचने के बाद सैनिकों को दो हफ्ते के अनिवार्य एकांतवास में रहना होगा ताकि कोरोनावायरस के बेहद संक्रामक डेल्टा वेरिएंट के खतरे को टाला जा सके. पत्रिका डेर श्पीगल के मुताबिक कम से कम एक जर्मन सैनिक को इस महीने की शुरुआत में कोविड हो गया था.
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लगभग दो दशक
11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क के ट्विन टावर पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जर्मनी ने अपनी फौजों को अफगानिस्तान में तैनात किया था. जर्मनी के सैनिक पहली बार जनवरी 2002 में काबुल पहुंचे थे. शुरुआत में उनसे कहा गया था कि उनकी जिम्मेदारी देश में स्थिरता बनाए रखना है ना कि तालीबान से लड़ना.
इन दो दशकों में एक लाख 50 हजार से ज्यादा जर्मन सैनिक अफगानिस्तान का दौरा कर चुके हैं. बहुत से तो एक से ज्यादा बार अफगानिस्तान में तैनात रहे. 2020 के आखिर तक जर्मन फौज की इस तैनाती पर लगभग 12.5 अरब यूरो यानी करीब 11 खरब रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके थे.
तस्वीरों मेंः ऐसे होते हैं अफगान
ऐसे होते हैं अफगान
जर्मन फोटोग्राफर येंस उमबाख ने उत्तरी अफगानिस्तान का दौरा किया. इस इलाके में जर्मन सेना तैनात रही है और लोग जर्मन लोगों से अपरिचित नहीं हैं.
मजार-ए-शरीफ के चेहरे
ये बुजुर्ग उन 100 से ज्यादा अफगान लोगों में से एक हैं जिन्हें जर्मन फोटोग्राफर येंस उमबाख ने मजार-ए-शरीफ शहर के हालिया दौरे में अपने कैमरे में कैद किया है.
असली चेहरे
उमबाख ऐसे चेहरों को सामने लाना चाहते थे जो अकसर सुर्खियों के पीछे छिप जाते हैं. वो कहते हैं, “जैसे कि ये लड़की जिसने अपनी सारी जिंदगी विदेशी फौजों की मौजूदगी में गुजारी है.”
नजारे
उमबाख 2010 में पहली बार अफगानिस्तान गए और तभी से उन्हें इस देश से लगाव हो गया. उन्हें शिकायत है कि मीडिया सिर्फ अफगानिस्तान का कुरूप चेहरा ही दिखाता है.
मेहमानवाजी
अफगान लोग उमबाख के साथ बहुत प्यार और दोस्ताना तरीके से पेश आए. वो कहते हैं, “हमें अकसर दावतों, संगीत कार्यक्रमों और राष्ट्रीय खेल बुजकाशी के मुकाबलों में बुलाया जाता था.”
सुरक्षा
अफगानिस्तान में लोगों की फोटो लेना आसान काम नहीं था. हर जगह सुरक्षा होती थी. उमबाख को उनके स्थानीय सहायक ने बताया कि कहां जाना है और कहां नहीं.
नेता और उग्रवादी
उमबाख ने अता मोहम्मद नूर जैसे प्रभावशाली राजनेताओं की तस्वीरें भी लीं. बाल्ख प्रांत के गवर्नर मोहम्मद नूर जर्मनों के एक साझीदार है. उन्होंने कुछ उग्रवादियों को भी अपने कैमरे में कैद किया.
जर्मनी में प्रदर्शनी
उमबाख ने अपनी इन तस्वीरों की जर्मनी में एक प्रदर्शनी भी आयोजित की. कोलोन में लगने वाले दुनिया के सबसे बड़े फोटोग्राफी मेले फोटोकीना में भी उनके फोटो पेश किए गए.
फोटो बुक
येंस उमबाख अपनी तस्वीरों को किताब की शक्ल देना चाहते हैं. इसके लिए वो चंदा जमा कर रहे हैं. वो कहते हैं कि किताब की शक्ल में ये तस्वीरें हमेशा एक दस्तावेज के तौर पर बनी रहेंगी.
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दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का यह सबसे लंबा और घातक सैन्य अभियान था. इस दौरान 59 जर्मन सैनिकों की जान गई. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक 2009 से अफगानिस्तान में 39 हजार लोगों की जानें गई हैं. ज्यादातर नागरिक तालीबान द्वारा मारे गए लेकिन अंतरराष्ट्रीय फौजों ने भी नागरिकों की जान ली है, खासकर हवाई हमलों में. अमेरिका ने इस अभियान में अपने 2,442 सैनिक खोए हैं.
अफगानिस्तान में हालात
जर्मन सेना का यह अभियान ऐसे वक्त में खत्म हुआ है जबकि अफगानिस्तान में तालीबान का कब्जा एक बार फिर तेजी से बढ़ रहा है. अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत डेबरा ल्योन्स का कहना है कि मई से अब तक देश के 370 में से 50 जिलों पर तालिबान का कब्जा हो चुका है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को उन्होंने बताया, "जो जिले उन्होंने कब्जाए हैं वे प्रांतों की राजधानियों के इर्द गिर्द हैं. इससे संकेत मिलता है कि तालिबान रणनीतिक जगह बना रहा है और विदेशी फौजों के पूरी तरह चले जाने के बाद इन राजधानियों पर कब्जा करने की कोशिश कर सकता है.'
नाटो सेनाओं की 11 सितंबर तक अफगानिस्तान छोड़ देने की योजना है. इसका अर्थ यह होगा कि देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय सेना के हाथ में होगी.