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क्या जर्मनी कारोबारी रूप से चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है?

माथियास फॉन हाइन
२३ सितम्बर २०२२

जर्मन सरकार अपने सबसे अहम कारोबारी साझेदार, चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहती है. हालांकि जर्मन कारोबारी इससे सहमत नहीं है.

Hamburg Reederei COSCO Terminal
तस्वीर: intern + HHLA Presse/Thies Rätzke

जर्मनी का सबसे बड़ा बंदरगाह हैंबर्ग, दुनिया का प्रवेश द्वार माना जाता है. हलांकि सबसे पहले, यह चीन की ओर खुलने वाला द्वार है. चीन इस बंदरगाह का सबसे बड़ा ग्राहक है. 2022 के पहले छह महीने में चीन से आए 13 लाख से ज्यादा कंटेनर यहां पर उतारे गये थे.

अब चीन की विशाल जहाजरानी कंपनी कोस्को, बंदरगाह की व्यापारिक गतिविधियो में 35 फीसदी हिस्सा चाहती है. उसके ऑपरेटर भी यही चाहते हैं. उनका कहना है कि यह कंटेनर टर्मिनल, फिर दुनिया की सबसे विशाल शिपिंग कंपनी का, यूरोप में एक प्रमुख ट्रांसशिपमेंट ठिकाना बन जाएगा.

जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्रालय को इस बारे में अपने कुछ संदेह है और वो हैंबर्ग बंदरगाह पर कोस्को के निवेश को शायद मंजूरी ना दे. कोस्को की भागीदारी पर जारी विवाद दिखाता है कि चीन के साथ गठजोड़ पर पुनर्विचार, जर्मन अर्थव्यवस्था पर कैसे असर डाल रहा है.

यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद, उसकी गैस पर जर्मन निर्भरता एक कमजोर बिंदु साबित हुआ है. इस अहसास ने जर्मन सरकार को चीन के साथ अपने संबंध पर फिर से विचार करने को प्रेरित किया है. आज चीन में करीब 5,000 जर्मन कंपनियां कारोबार करती हैं.

चीन के पक्ष में झुकते संतुलन के बीच, उस गैरलोकतांत्रिक शासन से आखिर जर्मनी कैसे निपटे जो सालों से उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है? उस देश से कैसे निपटे जिसे यूरोपीय संघ (ईयू) के दस्तावेज एक "पार्टनर, एक "प्रतिस्पर्धी" और एक "सामरिक प्रतिद्वंद्वी" के रूप में देखते हैं?

फॉल्क्सवागन चीन में प्रमुख जर्मन निवेशकों में हैतस्वीर: Xing Yun/Costfoto/picture alliance

भोलेपन का अंत'

जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री और उप-चांसलर रॉबर्ट हाबेक ग्रीन पार्टी से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने पहले ही ऐलान कर दिया है कि चीन के साथ "ज्यादा मजबूत और सख्त व्यापार नीति" अपनाई जायेगी. मध्य सितंबर में जी-7 समूह की मंत्रीस्तरीय बैठक के बाद हाबेक ने घोषणा कर दी कि "चीन के प्रति भोलेपन और सरलता का दौर अब खत्म होता है."

मई में हाबेक ने चीन में निवेश के लिए फॉल्क्सवागन समूह को गारंटियां देने से इंकार कर दिया था. यह एक बड़ा झटका थाः दशकों से जर्मन कंपनियों का चीन में निवेश और व्यापार, सरकारी गारंटियों के बूते चला आया है.

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विदेशी संबंधों की जर्मन परिषद (डीजीएपी) में चीन मामलों के विशेषज्ञ टिम ह्युर्लिश कहते हैं, "निकट भविष्य में, अगर जर्मन कंपनियां निवेश करना चाहती हैं, चीन के साथ व्यापार करती हैं, तो ऐसा उन्हें अपने जोखिम पर ही करना होगा, सरकार की ओर से किसी गारंटी या सुरक्षा उपाय पर वे निर्भर नहीं रह सकती हैं." ह्युर्लिश ने डीडब्ल्यू से एक इंटरव्यू में कहा कि वो यकीनन एक बदलाव देखते हैं कि जर्मन सरकार "चीन में व्यापार फैलाने के लिए जर्मन कंपनियों को और रियायतें या मदद देना नहीं देना चाहती है."

हालांकि इससे जर्मन कारोबारियों के कदम पीछे नहीं हुए हैं. जर्मन इकोनॉमिक इंस्टीट्यूटसे जुड़े अर्थशास्त्री युर्गन माथीस के एक अध्ययन के मुताबिक, जर्मन उद्योग ने इस साल के पहले छह महीने में ही, करीब 10 अरब यूरो का निवेश, चीन में कर लिया है. यह एक रिकॉर्ड है.

खासतौर पर कार बनाने वाली और कैमिकल कंपनियां लगातार चीनी बाजार में पकड़ बनाने की कोशिशों मे जुटी हैं. रोडियम समूह के मध्य सितंबर में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, चीन में एक तिहाई यूरोपीय प्रत्यक्ष निवेश अकेले जर्मनी के चार बड़े उद्योगों का है. ये हैं कार बनाने वाली कंपनियां फॉल्क्सवागन,  बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज़ और केमिकल कंपनी बीएएसएफ.

चीनी सोलर प्लेट जैसी चीजों की जर्मनी को जरूरत हैतस्वीर: dpa/picture alliance

क्या ये निर्भरता कुछ ज्यादा ही आंकी गई है?

चीन में यूरोपियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष, योर्ग वुटके के मुताबिक सिर्फ 10 बड़ी यूरोपीय कंपनियां 80 फीसदी यूरोपीय निवेश की जिम्मेदार हैं. उनका कहना है, "अन्य कंपनियां चीन को छोड़कर नहीं जा रही हैं, लेकिन अभी दूसरे देशों में नये निवेशों में उनकी दिलचस्पी है, वे व्यापार के अलग क्षेत्रों में विस्तार के बारे में भी विचार कर रही हैं."

हालांकि वो ध्यान दिलाते हैं कि यूरोप की शीर्ष दस कंपनियां, चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. दुर्लभ धातुओं (रेयर-अर्थ धातुएं), दवा कंपनियों के उत्पादों और फोटोवोल्टाइक सिस्टम के आयात के लिए वे चीन पर निर्भर हैं. वो यह भी कहते हैं कि चीन पर निर्भरता बुनियादी रूप से रूसी ऊर्जा पर निर्भरता से अलग है, "रूस से हमारे पास तेल और गैस की पाइपलाइन है, लेकिन चीन से हमारे पास खिलौनों, फर्नीचर, खेल उपकरणों, कपड़ों, जूतों की भी एक 'पाइपलाइन' है. इनमें से ज्यादातर, मैं कहूंगा 90 फीसदी चीजें, आसानी से कहीं और दोबारा बनायी जा सकती हैं."

अर्थशास्त्री माथियास रेखांकित करते हैं कि करीब 3 फीसदी जर्मन रोजगार चीन से आयात पर निर्भर है. "यानी दस लाख से ज्यादा रोजगार. यह एक अच्छीखासी संख्या है, लेकिन साढ़े चार करोड़ लोग आज जर्मनी में रोजगार में लगे हैं. मैक्रोइकोनोमिक स्तर पर, एक आयात बाजार के रूप में चीन पर निर्भरता प्रासंगिक है, समझ में आती है लेकिन ये उतनी बड़ी नहीं है कि जैसी कि मीडिया रिपोर्टे अक्सर इसे बना देती हैं."

जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेकतस्वीर: Kay Nietfeld/dpa/picture alliance

ग्रीन पार्टी का दबाव

जर्मनी में सत्तारूढ़, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी), नवउदारवादी फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) और पर्यावरणवादी ग्रीन पार्टी की मध्य-वाम गठबंधन सरकार में, ग्रीन पार्टी ही खासतौर पर चीन के साथ रिश्तों को लेकर जर्मन कंपनियों पर दबाव बना रही है.

सितंबर के शुरू में, विदेश मंत्री अनालेना बायरबॉक ने जर्मन उद्योगपतियों से कहा थाः "हम लोग ये उम्मीद लगाये नहीं बैठे रह सकते कि इन तानाशाह हुकूमतों के साथ मामले अंततः उतने बुरे नहीं होंगे." ग्रीन पार्टी की नेता और "मूल्य आधारित और फेमेनिस्ट विदेश नीति" की प्रवक्ता आनालेना ने नयी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के एक हिस्से के रूप में नयी चीनी रणनीति बनाने की घोषणा भी की. "जर्मन सरकार के लिए और निजी रूप से मेर लिए यह महत्वपूर्ण है कि रूस पर अपनी निर्भरता से हमने जो भी सबक लिए हैं उन्हें हम अपनी नयी चीनी रणनीति में शामिल करें."

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जर्मनी का आर्थिक मामलों का मंत्रालय, कंपनियों को चीन के बदले, एशिया के दूसरे देशों का रुख करने के लिए प्रोत्साहित करने के तरीके निकाल रहा है. सरकार की ओर से निवेश और आयात गारंटियों का फिर से मूल्यांकन किया जा रहा है. सरकारी बैंक केएफडब्ल्यू ये जांच करेगा कि अपने चीनी कार्यक्रम में कटौती लाकर बदले में इंडोनेशिया समेत दूसरे एशियाई देशों में निवेश के लिए, वो और कर्ज दे सकता है या नहीं. 

पिछले साल, जर्मन उद्योग संघ (बीडीआई) तानाशाह देशों के साथ विदेश व्यापार नीति मामलों में सहयोग के नियमों को लेकर बहस कर चुका है. उसने "विदेशी आर्थिक नीति में जिम्मेदार सहअस्तित्व की अवधारणा और किसी भी सहयोग के लिए स्पष्ट सीमाएं" तय करने का सुझाव दिया था. हालांकि कई प्रबंधकों को लगता है कि जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्रालय में बदलाव का रास्ता कुछ ज्यादा ही आगे चला गया है.

जर्मन व्यापार की एशिया प्रशांत कमेटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी फ्रीडोलिन श्ट्राक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "चीन में जर्मन कंपनियों को सरकार का समर्थन और सुरक्षा, सिद्धांत रूप से बनी रहनी चाहिए."

उन्होने जोर दिया कि चीनी निवेश का जर्मनी और यूरोप में स्वागत किया जाना चाहिए. हैंबर्ग बंदरगाह में चीनी कंपनी कोस्को को मंजूरी देने जैसे विशिष्ट मामले पर भी, क्या ये बात लागू होगी, इस बारे में श्ट्राक कुछ कहना नहीं चाहते हैं.

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