सरकारी आंकड़ों के अनुसार जर्मनी में पिछले साल शरणार्थियों पर साढ़े तीन हजार से ज्यादा हमले हुए. इसका मतलब है कि हर दिन औसतन 10 प्रवासी विरोधी गतिविधियां दर्ज की गईं.
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शरणार्थियों और आप्रवासियों पर हमले से जुड़े आंकड़े जर्मनी के गृह मंत्रालय ने दिये हैं. संसद में एक सवाल के लिखित जबाव में कहा गया है कि इन हमलों में 560 लोग घायल हुए और इनमें 43 बच्चे थे. बयान में यह भी कहा गया है कि सरकार इस तरह की हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा करती है. इसके मुताबिक, "जो लोग अपने घरों को छोड़ कर भागे हैं और जर्मनी में संरक्षण चाहते हैं, उन्हें यहां सुरक्षित आसरा पाने का अधिकार है."
2015 में जब प्रवासी संकट चरम पर था तो जर्मनी ने करीब 9 लाख शरणार्थियों को लिया था. इसके बाद जर्मनी में आप्रवासियों के खिलाफ नफरत में इजाफा देखने को मिला है. शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोलने की चांसलर अंगेला मैर्केल की नीति का कई हल्कों में विरोध हो रहा है. धुर दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है.
देखिए चूर चूर होते पाकिस्तानियों के ख्वाब
चूर-चूर होते पाकिस्तानियों के ख्वाब
शरणार्थी संकट के बीच हजारों पाकिस्तानी भी यूरोप में पहुंचे हैं. ग्रीस से पाकिस्तानी इफ्तिखार अलीकी भेजी कुछ तस्वीरें भेजीं यूरोप में बेहतर जिंदगी के इन लोगों के सपने की हकीकत को बयान करती हैं.
तस्वीर: Iftikhar Ali
सफाई का काम
हजारों पाकिस्तानी अपने घरों से निकले और उनकी मंजिल जर्मनी या उसके पड़ोसी देश थे. किसी ने सोचा भी न होगा कि खतरनाक पहाड़ी और समंदरी रास्ते पर जिंदगी दांव पर लगाने के बाद उन्हें एथेंस के शरणार्थी शिविर में शौचालय साफ करना होगा.
तस्वीर: Iftikhar Ali
झूठे सब्जबाग
इनमें से ज्यादा लोग पाकिस्तान के पंजाब प्रांत हैं. एजेंटों ने उन्हें जर्मनी तक पहुंचाने का खर्चा प्रति व्यक्ति पांच लाख रुपए बताया था और सबसे ये पैसा एडवांस में ही ले लिया गया. लेकिन अब एजेंटों के दिखाए सब्जबाग झूठे साबित हो रहे हैं.
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शरण संभव नहीं
सीरिया और अन्य संकटग्रस्त देशों से आए शरणार्थियों को बालकन देशों के रास्ते जर्मनी जाने की इजाजत दी गई थी. लेकिन यूरोपीय सरकारों का मानना है कि ज्यादातर पाकिस्तानी आर्थिक कारणों से यूरोप आ रहे हैं. इसलिए उन्हें यहां शरण दिए जाने की संभावना बहुत कम है.
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रहने की शर्त
इन लोगों का कहना है कि ग्रीस में अधिकारियों ने सफाई का काम सिर्फ उन्हें ही सौंपा है. इनसे कहा गया है कि पाकिस्तानी नागरिकों को शरणार्थी शिविर में रखने की इजाजत ही नहीं है, फिर भी उन्हें वहां रहने की इजाजत सिर्फ इस शर्त पर दी गई है कि वो सफाई करेंगे.
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नाउम्मीद
ऐसे सैकड़ों पाकिस्तानी आप्रवासियों को अब उम्मीद ही नहीं है कि वो ग्रीस से आगे पश्चिमी यूरोप की तरफ जा पाएंगे और इसलिए वो वापस पाकिस्तान जाना चाहते हैं. इनमें से बहुत से मानसिक और शारीरिक बीमारियों का शिकार हैं. कई लोगों ने आत्महत्या की कोशिश भी है.
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खाना भी पूरा नहीं
ग्रीस में शरण की आस में रह रहे ज्यादातर पाकिस्तानियों का कहना है कि शिविर में उन्हें पर्याप्त खाना भी नहीं मिलता है और वो अच्छा भी नहीं होता है. कई लोगों का कहना है कि उन्हें सिर्फ जिंदा रहने के लिए रोज एक वक्त का खाना दिया जाता है. ऐसे में कई लोग बीमारियों का शिकार हैं.
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वतन वापसी भी मुश्किल
विडंबना तो ये है कि ज्यादातर लोगों के पास पासपोर्ट या अन्य दस्तावेज भी नहीं है और पाकिस्तान वापस जाना भी उनके लिए कठिन है. एथेंस में पाकिस्तानी दूतावास की तरफ से उनकी पहचान और पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया बहुत धीमी है.
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याद आते हैं बच्चे
पाकिस्तान के जिला गुजरात से संबंध रखने वाले 41 साल के सज्जाद शाह भी अब वापस वतन लौटना चाहते हैं. उनके तीन बच्चे हैं. वो कहते हैं कि कैंप में बच्चे को खेलते देख उन्हें अपने बच्चे याद आते हैं और जल्द से जल्द उनके पास जाना चाहते हैं.
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खराब हालात
अन्य देशों से संबंध रखने वाले आप्रवासियों और शरणार्थियों को यूनानी अधिकारियों ने रिहायशी इमारतों में रहने को जगह दी है जबकि पाकिस्तानियों को ज्यादातर अस्थायी शिविरों में रखा गया है. हालत इसलिए भी खराब है कि उन्हें यूरोप की कड़ी सर्दी की आदत नहीं है.
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नहीं मिलता जवाब
इन लोगों का कहना है यात्रा दस्तावेजों के लिए उन्होंने एथेंस के पाकिस्तानी दूतावास में अर्जी दी है लेकिन महीनों बाद भी कोई जबाव नहीं मिला है. कुछ लोगों ने शरणार्थी एजेंसी से भी खुद को स्वदेश भिजवाने की अपील की, लेकिन उन्होंने कहा कि इसके लिए पासपोर्ट या अन्य दस्तावेज चाहिए.
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गुहार
बहुत से लोगों ने पाकिस्तान सरकार से भी जल्द से जल्द वतन वापसी की गुहार लगाई है. एहसान नाम के एक पाकिस्तानी आप्रवासी ने डीडब्ल्यू को बताया, “न हम वापस जा सकते हैं और न आगे. बस पछतावा है और यहां टॉयलेट की सफाई का काम है.”
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वैसे 2016 में जर्मनी आने वाले शरणार्थियों की संख्या में खासी कमी आई है और यह लगभग 2.8 लाख रही. इसका कारण बाल्कन देशों में सीमाओं को बंद किया जाना और शरणार्थियों को रोकने के लिए तुर्की के साथ हुआ समझौता है. जर्मनी की वामपंथी पार्टी डी लिंके की सांसद उला येल्प्के ने आप्रवासियों के खिलाफ हिंसा के लिए धुर दक्षिणपंथियों को जिम्मेदार ठहराया है और सरकार से इस बारे में कड़े कदम उठाने को कहा है.
उन्होंने एक जर्मन अखबार से बातचीत में कहा, "हम लगभग हर रोज 10 (आपराधिक) गतिविधियां देख रहे हैं. क्या लोगों को मरना ही होगा, तब जाकर दक्षिणपंथी हिंसा को एक घरेलू सुरक्षा समस्या समझा जाएगा और राष्ट्रीय नीति के एजेंडे में सबसे ऊपर रखा जाएगा." फरवरी में ही, एक नव नाजी जर्मन को आठ साल की सजा सुनाई गई क्योंकि उसने एक स्पोर्ट्स हॉल में आग लगा दी थी. इस हॉल में शरणार्थियों को रखा जाना था. आगजनी के चलते वहां 35 लाख यूरो का नुकसान हुआ.
जानिए क्या हैं यूरोपीय लोगों की चिंता
क्या है यूरोपीय लोगों की चिंता
यूरोपीय संघ के एक सर्वे में पता चला कि किस बात को लेकर यूरोपीय लोग सबसे ज्यादा चिंतित हैं.
तस्वीर: Imago/ZUMA Press
मौसम, 5%
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जलवायु परिवर्तन, 6%
तस्वीर: AP
महंगाई, 7%
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
दुनिया पर यूरोपीय संघ का प्रभाव, 7%
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Monasse
अपराध, 9%
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बेरोजगारी, 15%
तस्वीर: dapd
खराब वित्तीय स्थिति, 16%
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आर्थिक हालात, 19%
तस्वीर: Reuters/D. Ruvic
आतंकवाद, 39%
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शरणार्थी, 48%
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/M. Muheisen
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इसके अलावा पिछले साल फरवरी में एक घटना ने सबको सकते में डाल दिया. इस घटना में जब पूर्वी शहर बाउत्सेन में एक शरणार्थी शिविर को आग लगाई गई तो वहां खड़े दर्जनों लोगों को खुशी में शोर मचाते और तालियां बजाते देखा गया. लोगों को यह कहते सुना गया, "बहुत बढ़िया, जल गया." जर्मनी में इस साल आम चुनाव होने हैं और शरणार्थी एक बड़ा मुद्दा हैं. देश में इतनी बड़ी संख्या में आए लोगों का समाज में समेकन एक बड़ी चुनौती है.