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पहली बार चीन के बगल में युद्धाभ्यास करेंगे जर्मन विमान

१७ अगस्त २०२२

हिंद-प्रशांत में जब ताइवान को लेकर तनाव चरम पर है, तब जर्मनी के लड़ाकू विमान पहली बार वहां युद्धाभ्यास कर रहे हैं. जर्मन विमान ऑस्ट्रेलिया की पिच ब्लैक एक्सराइज में शामिल हो रहे हैं.

पिच ब्लैक के लिए तैयार जर्मन यूरोफाइटर
पिच ब्लैक के लिए तैयार जर्मन यूरोफाइटरतस्वीर: Daniel Karmann/dpa/picture alliance

ऑस्ट्रेलिया के युद्धाभ्यास ‘पिच ब्लैक 2022' में जर्मन लड़ाकू विमान शामिल होंगे. जर्मनी इस अभ्यास के लिए अपने सैन्य विमान भेज रहा है जो उसकी वायुसेना की अब तक की सबसे बड़ी शांतिपूर्ण तैनाती है. यानी इतना बड़ा वायुसेना बेड़ा अब तक जर्मनी ने युद्धों के दौरान ही तैनात किया है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के साथ पश्चिमी देशों के तनाव के चलते इस इलाके में हो रहे युद्धाभ्यास में जर्मन सेना की मौजूदगी के राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं.

पिछले साल जर्मनी का सैन्य जहाज दो दशक में पहली बार दक्षिणी-चीन सागर से गुजरा था. उस कदम को जर्मनी द्वारा चीन के खिलाफ पश्चिमी देशों की सैन्य लामबंदी में हिस्सेदारी के तौर पर देखा गया था. अब ताइवान को लेकर चीन पहले से ही उखड़ा हुआ है. चीन की चेतावनी के बावजूद इसी महीने अमेरिकी नेता नैंसी पेलोसी द्वारा ताइवान की यात्रा करने के बाद से वह ताइवान खाड़ी में लगातार युद्धाभ्यास कर रहा है.

सोमवार को छह यूरोफाइटर जेट विमानों ने जर्मनी के नोएबर्ग स्थित वायुसेना बेस से उड़ान भरी. तीन ए330 टैंकर कोलोन से उड़े. इसके अलावा ए400एम विमान पहले से ही ऑस्ट्रेलिया पहुंच चुके हैं. ये जर्मन विमान पिच ब्लैक अभ्यास में 16 अन्य देशों की सेनाओं के साथ अभ्यास करेंगे, जो तीन दिन चलेगा.

इस अभ्यास में जापान और दक्षिण कोरिया भी शामिल हैं. जर्मनी के वायुसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल इंगो गेरहार्त्ज ने इस मिशन के बारे में पत्रकारों को जानकारी देते हुए कहा कि सभी पायलट लगभग 200 विमानों में हवा में ही तेल भरने का अभ्यास करेंगे. जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या विमान विवादित इलाकों दक्षिणी-चीन सागर और ताइवान खाड़ी से गुजरेंगे, तो उन्होंने कहा कि उनके लड़ाकू जेट नागरिक विमानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रास्ते से ही ऑस्ट्रेलिया जाएंगे और ताइवान खाड़ी से गुजरने का उनका कोई इरादा नहीं है.

पेलोसी के बाद अब पांच अमेरिकी सांसद ताइवान पहुंचे

जनरल गेरहार्त्ज ने कहा, "साउथ चाइना सी, ताइवान – ये क्षेत्र के जगजाहिर विवादित बिंदु हैं. हम 10 किलोमीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर उड़ेंगे और दक्षिणी चीन सागर को मुश्किल से बस छू भर कर गुजरेंगे. तब हम अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर आ जाएंगे."

चीन को क्या संदेश मिलेगा?

क्या यह तैनाती चीन को किसी तरह का संकेत है? इस सवाल के जवाब में गेरहार्त्ज ने कहा कि इस तैनाती का संकेत चीन को नहीं जर्मनी के साझीदारों को है. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि ऑस्ट्रेलिया में होने वाले अभ्यास में हिस्सा लेने जाने से हम चीन को कोई धमकी भरा संदेश भेज रहे हैं."

उधर डिफेंस न्यूज डॉट कॉम से बातचीत में जनरल गेरहार्त्ज ने स्पष्ट तौर पर कह कि किसी भी आपातकाल में जर्मन सेना अपने साझीदारों की मदद को पहुंचेगी. जर्मन विमान सिर्फ एक दिन में सिंगापुर पहुंच गए हैं. मिशन से पहले जनरल गेरहार्त्ज ने इस तथ्य को उभारते हुए कहा, "हम दिखाना चाहते हैं कि हम एक दिन के भीतर एशिया पहुंच सकते हैं."

उन्होंने कहा, "हिंद-प्रशांत जर्मनी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. हमारे और उस इलाके के हमारे साझीदारों के मूल्य एक समान हैं. युद्ध जैसे आपातकाल में उन मूल्यों की रक्षा और अपने साझीदारों की मदद का अभ्यास करना जरूरी है."

हिंद-प्रशांत में बढ़ रहे हैं शीत युद्ध के आसार

ऑस्ट्रेलिया में जर्मनी के राजदूत फिलिप ग्रीन ने भी अपने देश के वायुसेना प्रमुख के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि इस नियमित युद्धाभ्यास से चीन को किसी तरह का खतरा महसूस नहीं करना चाहिए. चीन को संदेश देने के सवाल पर उन्होंने कहा, "हम एक ऐसे क्षेत्र की इच्छा करते हैं जहां स्थिरता हो, शांति हो और उन्नति हो. रणनीतिक संतुलन वाला एक ऐसा क्षेत्र जहां हर देश अपने संप्रभु चुनाव कर सके."

विशाल सैन्य अभ्यास

‘पिच ब्लैक' अभ्यास 19 अगस्त से 8 सितंबर तक होगा. यह पहला मौका है जब ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी की सेनाएं साथ अभ्यास कर रही हैं. साथ ही, ऑस्ट्रेलिया का एफ-35ए लाइटनिंग टू विमान पहली बार किसी युद्धाभ्यास में हिस्सा ले रहा है.

जनरल गेरहार्त्ज ने कहा, "एफ-35 विमान हमारी क्षमताओं को और विस्तार देगा. चूंकि रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयरफोर्स पहले से ही इस लड़ाकू विमान को उड़ा रही है, हमें उनसे सीखने को मिलेगा." यूरोफाइटर कई भूमिकाएं निभाने वाला विमान है और जर्मन सरकार पहले ही कह चुकी है कि एफ-35 जल्द ही टोरनैडो की जगह लेगा.

पिच ब्लैक एक्सराइज में 16 देशों के लगभग 100 लड़ाकू विमान और 2,500 सैनिक हिस्सा ले रहे हैं. हिस्सेदार देशों में ऑस्ट्रेलिया के अलावा फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, भारत, सिंगापुर, जापान, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, फिलीपींस, थाईलैंड, यूएई, कनाडा, नीदरलैंड्स, मलेशिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका शामिल हैं. जर्मनी के अलावा जापान और दक्षिण कोरिया भी हर दूसरे साल होने वाले इस अभ्यास में पहली बार शामिल हो रहे हैं. भारत की तरफ से सुखोई-30एमकेआई और हवा में ईंधन भरने वाले आईएल-78 विमान इस अभ्यास में शामिल होंगे.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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