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समाजजर्मनी

रोने से नहीं, बल्कि नए किस्म की ट्रेनिंग से टलेगी बेरोजगारी

२२ अप्रैल २०२२

बदलती दुनिया में करोड़ों नौकरियां खत्म होनी तय हैं, ऐसे में बेरोजगारों की फौज क्या करेगी? जर्मनी के लेबर यूनियनों ने दिग्गज कंपनियों के साथ मिलकर इसका बढ़िया हल खोजा है.

फोल्क्सवागेन की इलेक्ट्रिक कार प्रोडक्शन यूनिट
फोल्क्सवागेन की इलेक्ट्रिक कार प्रोडक्शन यूनिटतस्वीर: Matthias Rietschel/dpa/picture alliance

38 साल के श्टेफान ड्रीज अब दुनिया की दिग्गज पोस्टल सर्विस कंपनी डॉयचे पोस्ट (DHL) में डिलीवरी मैनेजर हैं. इस जॉब से पहले ड्रीस एक केयरर के रूप में काम करते थे. वह बुजुर्गों और मदद पर निर्भर लोगों की देखभाल करते थे. 2020 की शुरुआत में कोरोना महामारी के फैलने के साथ ड्रीज के लिए केयरर की नौकरी करना मुश्किल होने लगा. पहले कुछ समय की छुट्टी मिली और फिर नौकरी छोड़नी पड़ी. सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के लिए चलते ड्रीज की नौकरी चली गई.

महामारी में बेरोजगार होने से परेशान ड्रीज की नजर एक ट्रेनिंग कार्यक्रम पर पड़ी. यह प्रोग्राम जर्मनी की सफलतम कंपनियों में शुमार DHL का था. ट्रेनिंग में 10 दिन का इंटेसिव कोर्स था. कोर्स में ड्रीज को सॉफ्टवेयर से डाक रजिस्टर करना, ट्रैक करना और भारी सामान को सही तरीके से हैंडल करना सिखाया गया. ड्रीज नई नौकरी में रम गए. आज वह डिलीवरी मैनेजर बन चुके हैं.

DHL की पोस्टल गाड़ियों में अब ज्यादातर इलेक्ट्रिकतस्वीर: Deutsche Post DHL Group/picture alliance

ड्रीज कहते हैं, "पैसे और निजी जिंदगी के लिहाज से देखें, तो कुछ नया शुरू करना हमेशा आसान नहीं होता है. आपको उसकी जरूरत महसूस होनी चाहिए." ड्रीज के मुताबिक ट्रेनिंग के जरिए कंपनियां नए कर्मचारियों को काफी कुछ सिखा सकती हैं और भविष्य के लिए तैयार कर सकती हैं.

जर्मनी में 36 बड़ी कंपनियां अब ऐसी ट्रेनिंग ऑफर कर रही हैं. इनमें बहुराष्ट्रीय कंपनी बॉश, बीएएसएफ, फोल्क्सवागेन, मर्सिडीज बेंज और सीमेंस जैसी कंपनियां शामिल हैं. कंपनियां, दूसरी कंपनी की जरूरत के मुताबिक भी लोगों को प्रशिक्षण देने को तैयार हैं. पुरानी नौकरी छोड़ने वाले को नई ट्रेनिंग देने में होने वाली झिझक भी अब टूट रही है.

रिसर्च एंड डेवलपमेंट में भारी निवेश करती है बॉशतस्वीर: Christoph Schmidt/dpa/picture alliance

श्रम संगठनों की अहम भूमिका

जर्मनी में जॉब मार्केट पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑनलाइन शॉपिंग, क्लीन एनर्जी और इको फ्रेंडली बिजनेस मॉडलों के चलते लाखों नौकरियां खत्म होनी तय हैं. जर्मनी में लेबर यूनियनें बेहद ताकतवर हैं. वे सिर्फ मुनाफा बढ़ाने के चक्कर में कर्मचारियों की छंटनी का पुरजोर विरोध करती हैं. लेबर यूनियनों और कंपनियों की बातचीत के बाद ट्रेनिंग का नया मॉडल बनाया गया है.

इसके तहत अगर एक फैक्ट्री बंद होती है, तो उसे नए कर्मचारी खोज रही दूसरी कंपनी से संपर्क करना होगा. कर्मचारियों की ट्रेनिंग में आने वाला खर्च दोनों मिलकर उठाएंगे. उदाहरण के लिए जर्मन रेल कंपनी डॉयचे बान ने गाड़ियों के पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों के साथ साझेदारी की है. इलेक्ट्रिक कारों के कारण पेट्रोल और डीजल गाड़ियों का कारोबार सिमटता जा रहा है. ऐसे में कई तरह के पार्ट्स बनाने वाली कंपनियां भी बंद हो रही हैं. बंद होने वाली कंपनियों के कर्मचारियों को रेलवे कंपनी नौकरी देगी. नई नौकरी के लिए उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. इस ट्रेनिंग का खर्चा डॉयचे बान और बंद हुई कंपनी साझा करेंगे.

जर्मन रेल कंपनी डॉयचे बानतस्वीर: Vladimir Esipov/DW

आरियाने राइनहार्ट, कॉन्टिनेंटल कंपनी में ह्यूमन रिसोर्स (HR) की हेड हैं. राइनहार्ट कहती हैं, "हमें बेरोजगारी की सामाजिक कीमत पता है और हम वहां तक नहीं पहुंचना चाहते हैं." जर्मनी में नौकरी जाने पर सरकार की तरफ से कड़ी शर्तों के साथ बेरोजगारी भत्ता मिलता है. राइनहार्ट के मुताबिक, डाटा दिखा रहा है कि बेरोजगारी ने 2020 में जर्मन अर्थव्यवस्था को 63 अरब यूरो की चपत लगाई. वह कहती हैं कि लोगों को नए जॉब के लिए इस तरह मिलकर ट्रेनिंग देने की ये योजना पहली बार लागू हो रही है.

दुनिया भर में करोड़ों नौकरियां खतरे में

जर्मनी में बेरोजगारी आमतौर पर कम रहती है. मार्च 2022 में देश में बेरोजगारी की दर 5 फीसदी थी, लेकिन आगे चिंता के बादल घने हैं. अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा, जलवायु लक्ष्य और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के चलते जर्मनी में भी लाखों नौकरियां दांव पर हैं. जर्मन थिंक टैंक इंफो इंस्टीट्यूट ने चेतावनी दी है कि 2025 तक ही इंटरनल कम्बशन इंजन सेक्टर से जुड़ी 1,00,000 नौकरियां खत्म हो सकती हैं. इसकी वजह इलेक्ट्रिक कारें हैं.

कार और पार्ट्स निर्माता कंपनियां अगर तेजी से अपनी प्रोडक्शन यूनिट को इलेक्ट्रिक कारों के मुताबिक ढालें, तभी ये नौकरियां बच सकती हैं. मर्सिडीज बेंज के मारीनफेल्डे प्लांट में वर्कर्स काउंसिल के हेड फेवजी सिकर कहते हैं, "कुछ लोगों के पास कम्बशन इंजन के अलावा और कोई विकल्प नहीं हैं." कर्मचारियों की बात करते हुए वह कहते हैं, "वे भरोसमंद कर्मचारी हैं और उन्हें नौकरी पर रखना ज्यादा समझ भरा है."

जर्मनी में टेस्ला का प्लांटतस्वीर: Jens Krick/Flashpic/picture alliance

ट्रेनिंग के साथ साथ जॉब गारंटी भी

बदलती दुनिया में नई नौकरियां भी खूब पैदा हो रही हैं. जर्मनी में इंजीनियरिंग, मेटलवर्क और लॉजिस्टिक्स में बड़ी संख्या में वैकेंसीज निकल रही हैं. मर्सिडीज और फोल्क्सवागेन जैसी दिग्गज कंपनियां भी ताकतवर लेबर यूनियनों के साथ मधुर संबंध बरकरार रखना चाहती हैं. कंपनी के ताकतवर बोर्ड के साथ मीटिंग करने वाली लेबर यूनियनें ये भी तय कर रही हैं कि स्टाफ को कई साल की जॉब गारंटी दी जाए.

कॉन्टिनेटल कंपनी की एचआर हेड आरियाने राइनहार्ट कहती हैं कि रोजगार और कर्मचारियों को "खुले बाजार के भरोसे छोड़ देना काफी नहीं है- यह न तो कर्मचारियों के लिए अच्छा है और ना ही अर्थव्यवस्था के लिए."

ओएसजे/एसएस (रॉयटर्स)

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