म्यूनिख हमले के पीड़ितों के परिजनों को जर्मनी भरेगा जुर्माना
१ सितम्बर २०२२
साल 1972 में म्यूनिख ओलंपिक के हमले में मारे गए 11 इस्राएली एथलीटों के परिजनों को जर्मन सरकार करोड़ों यूरो का मुआवजा देने को तैयार हो गई है. हमले की 50वीं वर्षगांठ के आयोजनों का बॉयकॉट करने वाले थे परिवार जन.
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जर्मन सरकार ने एलान किया है कि वह पीड़ितों के परिजनों के साथ एक सहमति पर पहुंच गई है. 1972 के हमले में मारे गए सभी 11 एथलीटों के परिवारों के साथ सरकार की लंबे समय से बातचीत जारी थी. जो प्रस्ताव बर्लिन की ओर से दिया गया था उसे परिजन नाकाफी बता चुके थे.
हमले की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर जर्मनी के म्यूनिख में ही कार्यक्रमों का आयोजन होना है जिसमें हिस्सा ना लेने की परिजनों की मंशा से काफी चिंता का माहौल बन गया था.
समझौता और प्रायश्चित
वर्षगांठ के आयोजनों से पहले जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक-वाल्टर श्टाइनमायर ने इस्राएली राष्ट्रपति आइजैक हेरजोग के साथ एक संयुक्त बयान जारी किया है. इस बयान में आखिरी मौके पर "ऐतिहासिक साफगोई, पहचान और मुआवजे" वाले समझौते पर पहुंचने पर राहत जताई गई है. राष्ट्रपतियों ने संयुक्त रूप से माना कि "समझौते से सारे जख्म नहीं भर सकते. लेकिन इससे एक दूसरे तक ले जाने वाले रास्ते जरूर खुलते हैं."
बयान में साफ लिखा है कि जर्मन सरकार इस बात को मानती है कि वह अपनी "जिम्मेदारी और मारे गए लोगों और उनके परिजनों के भयंकर कष्ट को समझती है." यरूशलम से आए संदेश में हेरजोग ने जर्मन सरकार को धन्यवाद दिया कि उसने जिम्मेदारी ली और पीड़ित परिवारों के साथ हुए "ऐतिहासिक अन्याय" के लिए प्रायश्चित करने की दिशा में एक "अहम कदम" उठाया.
म्यूनिख ओलंपिक की खूनी यादें
5 सितंबर 1972 को एक फलस्तीनी मिलिशिया समूह के आठ बंदूकधारी हमलावरों ने ओलंपिक विलेज में ठहरी इस्राएली एथलीटों की टीम पर हमला किया था. इस हमले में दो एथलीटों को गोली मारी गई और हमलावरों ने नौ एथलीटों को बंधक बना लिया गया. पश्चिमी जर्मनी की पुलिस के बचाव अभियान के बावजूद सभी नौ बंधक मारे गए थे. साथ ही उस अभियान में आठ में से पांच हमलावर मारे गए और एक पुलिसकर्मी की भी जान गई.
नायकों के साथ पीड़ितों की भी याद दिलाते हैं बर्लिन के ये युद्ध स्मारक
हिटलर को मारने की कोशिश करने वालों से लेकर नाजियों द्वारा मारे गए लाखों यहूदियों तक, बर्लिन में सबको समर्पित कई स्मारक हैं. एक नजर बर्लिन के कई युद्ध स्मारकों पर.
तस्वीर: picture-alliance/360-Berlin/J. Knappe
प्रतिरोध का प्रतीक
द्वितीय विश्व युद्ध 1945 में खत्म हुआ लेकिन वह एक साल पहले 20 जुलाई 1944 को ही खत्म हो जाता अगर हिटलर को मारने निकले कुछ जर्मन अधिकारी अपने मिशन में सफल हो जाते. लेकिन क्लाउस शेंक ग्राफ फॉन स्टाउफेनबर्ग के नेतृत्व में निकले ये अधिकारी असफल रहे और उन्हें खत्म कर दिया गया. जर्मन रेजिस्टेंस मेमोरियल सेंटर ऐसे ही लोगों की याद में बनाया गया जिन्होंने नाजी शासन का मुकाबला करने में अपनी जान दे दी.
बर्लिन में नाजी शासन में मारे गए लोगों की याद में कई स्मारक हैं. इनमें सबसे मशहूर और सबसे बड़ा है ब्रैंडनबर्ग गेट के पास स्थित होलोकॉस्ट मेमोरियल. यहां पत्थर के 2,711 शिलापट्ट हैं जो पूरे यूरोप में मारे गए 60 लाख से भी ज्यादा यहूदियों के प्रति श्रद्धांजलि के प्रतीक हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Büttner
जहां बनाई जाती थी आतंक की योजनाएं
"टोपोग्राफी ऑफ टेरर" के नाम से जाना जाने वाला यह स्थल 1933 से 1945 तक नाजियों की सीक्रेट स्टेट पुलिस 'गेस्टापो' और आतंक मचाने वाले बल 'एसएस' का मुख्यालय था. यहीं नाजियों के आतंक के जाल बुने जाते थे और उनका संचालन किया जाता था. आज यहां सालाना करीब 10 लाख लोग आते हैं.
तस्वीर: DW/F. Wiechel-Kramüller
सिंटी और रोमा लोगों की याद में
बर्लिन के टीयरगार्टन स्थित यह स्मारक नाजियों द्वारा जर्मनी और दूसरे यूरोपीय देशों में मारे गए पांच लाख 'जिप्सी' लोगों को श्रद्धांजलि है. यह एक कुंड जैसा है जिसे प्रतीकात्मक आंसुओं से भरा गया है.
तस्वीर: imago/C. Ditsch
काइजर विल्हेम मेमोरियल चर्च
काइजर विल्हेम मेमोरियल चर्च 1943 में बमबारी में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था. युद्ध के बाद इसे ध्वस्त कर फिर से बनाने का फैसला लिया गया लेकिन बर्लिन के लोगों ने इसका विरोध किया. फिर तय किया गया कि 233 फीट के इस टावर को युद्ध और तबाही के खिलाफ और शांति और सुलह के प्रतीक के रूप में ही संभाल कर रखा जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Günther
सोवियत युद्ध स्मारक
ट्रेप्टो स्थित इस विशालकाय सोवियत स्मारक में एक सोवियत सिपाही को एक हाथों में बचाए हुए एक बच्चे को लिए टूटे हुए स्वास्तिक के एक चिन्ह के ऊपर खड़ा हुआ दिखाया गया है. यहां 1945 में बर्लिन के लिए लड़े गए युद्ध में मारे गए 7,000 सोवियत सिपाहियों को दफनाया गया था. (कर्स्टिन श्मिट)
तस्वीर: picture-alliance/360-Berlin/J. Knappe
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कहां तो यह ओलंपिक खेल इस सोच के साथ आयोजित हुए थे कि होलोकॉस्ट के 27 साल बाद एक नए जर्मनी की तस्वीर उभरेगी. इसके बजाय हुआ ये कि इस्राएल के साथ जर्मन रिश्तों में एक गहरी खाई पैदा हो गई.
सन 2012 में इस्राएल ने ऐसे 45 आधिकारिक दस्तावेज जारी किए जिनसे जर्मन रक्षा सेवाओं के प्रदर्शन पर ही सवालिया निशान लग गया. इसमें इस्राएली जासूसी सेवा के एक पूर्व प्रमुख जवी जमीन का बयान भी शामिल था जिसने कहा था कि जर्मन पुलिस ने "इंसानी जीवन को बचाने के लिए कम से कम कोशिश भी नहीं की थी."
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परिजनों की लंबी नाराजगी
करीब पांच दशकों से पीड़ितों के परिजन जर्मन सरकार से इस बाबत एक आधिकारिक माफीनामा चाहते थे. इसके अलावा वे चाहते हैं कि जर्मनी उससे संबंधित आधिकारिक दस्तावेज भी उन्हें मुहैया कराए. तीसरी सबसे अहम मांग थी उचित हर्जाने की, जो कि पहले ही दिए जा चुके 45 लाख यूरो से अलग है.
दो हफ्ते पहले परिजनों की ओर से खबर आई कि उन्हें कुल 1 करोड़ यूरो ऑफर हुए हैं, जिसमें से 45 लाख पहले ही मिल चुके हैं. हमले में मारे गए एथलीट आंद्रे श्पित्सर की पत्नी आंके श्पित्सर ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा था कि 50वीं वर्षगांठ के आयोजनों का बॉयकॉट किया जा सकता है क्योंकि "जिम्मेदारी लेने की कीमत होती है. सिर्फ शब्दों से नहीं चलेगा."
अब घोषित हुए समझौते में बताया गया है कि पीड़ितों के परिवारों को जर्मन सरकार 2.8 करोड़ यूरो का हर्जाना देगी. इसके अलावा सरकार अपने उन दस्तावेजों को भी डीक्लासिफाई करने को तैयार हो गई है कि बंधक बनाने वाली पूरी घटना और असफल बचाव अभियान से जुड़े हैं.
बर्लिन में जर्मन सरकार के प्रवक्ता श्टेफन हेबेश्ट्राइट ने बताया, "पचास साल बाद ऐसे हालात बने कि अंतत: हमारे साझा इतिहास के इस दर्दनाक अध्याय को स्वीकारा जा सके और एक नई और स्मरण रखने की जीवंत संस्कृति की आधारशिला रखी जा सके." हालांकि जर्मनी में सेंट्रल काउंसिल ऑफ ज्यूज के अध्यक्ष योसेफ शूस्टर ने जोर देकर कहा कि जर्मन पक्ष की ओर से जो गलतियां हुईं उन्हें भुलाया नहीं जा सकता. उन्होंने इस अहमियत पर जोर देकर कहा, "लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि जो आज राजनीतिक रूप से जिम्मेदार हैं वे उसकी जिम्मेदारी समझते हैं और पुरानी गलतियों का सामना कर रहे हैं."
ऋतिका पाण्डेय (डीपीए, एएफपी)
नाजी काल की विभीषिका बयान करते हैं ये ग्राफिक उपन्यास
हाल ही में अमेरिका में 1944 की एक कॉमिक स्ट्रिप मिली जिसे होलोकॉस्ट के बारे में सबसे पुरानी कॉमिक्स माना जा रहा है. बीते दशकों में कई कलाकारों ने नाजी काल की दास्तां कॉमिक्स के जरिए बताने की कोशिश की है.
तस्वीर: 2020 Pascal Bresson, Sylvain Dorange, La Boîte à Bulle/Carlsen Verlag GmbH
नाजियों के अत्याचार का चित्रण
डच इतिहासकार किस रिब्बंस को 1944 का यह कॉमिक्स "नाजी डेथ परेड" इंटरनेट पर एक अमेरिकी दुकान की वेबसाइट पर मिली. इसमें मवेशियों के लिए बनी गाड़ी में इंसानों, बाथरूम जैसे दिखने वाले गैस चेम्बरों में हत्याओं और ओवन में जल रही लाशों के चित्र हैं. चित्र चश्मदीद गवाहों के बयानों पर आधारित हैं. रिब्बंस के मुताबिक यह कॉमिक्स नाजी शासन के खिलाफ एक अभियान का हिस्सा था.
तस्वीर: Institut zur Erforschung von Krieg, Holocaust und Völkermord/picture alliance
'माउस': एक सर्वाइवर की कहानी
नाजी काल के बारे में अमेरिकी लेखक आर्ट स्पीगलमैन की विश्व प्रसिद्द कॉमिक्स 1991 में छपी थी. उसमें यहूदियों को चूहों और जर्मनों को बिल्लियों के रूप में दिखाया गया है. पुलित्जर पुरस्कार जीतने वाले इस ग्राफिक उपन्यास में स्पीगलमैन ने आउश्वित्ज कंसंट्रेशन कैंप से बच निकलने वाले अपने पिता की कहानी बताई है. उन्होंने अपनी मां की आत्महत्या और अपने परिवार के तनावपूर्ण रिश्तों के बारे में भी बताया है.
तस्वीर: Artie/Jewish Museum New York/picture alliance
नाजी काल, एक बच्चे की नजर से
लोइस डॉविलिएर की "हिडेन: अ चाइल्ड्स स्टोरी ऑफ द होलोकॉस्ट" (2014) मानवता के लिए एक मर्मस्पर्शी अपील है. एल्सा अपनी दादी डौनिया से पूछती है, "मुझे जब बुरे सपने आते हैं तो मैं मम्मी को उनके बारे में बता देती हूं और उसके बाद मुझे काफी बेहतर लगता है. क्या आप मुझे अपने बुरे सपनों के बारे में बताना चाहती हैं?" यहूदी डौनिया अपनी दशकों पुरानी चुप्पी को तोड़ती हैं और उनके साथ क्या हुआ था एल्सा को बताती हैं.
जर्मनी और मयोरका के बीच
"आंट वुसी" (2016) ग्राफिक उपन्यास भी अर्ध-आत्मकथा शैली में ही है. लेखिका कैटरीन बेचर स्पेन के द्वीप मयोरका में अपनी दादी से मिलने जाती हैं और अपने परिवार के इतिहास के बारे में जानती हैं. परिवार जर्मनी का रहने वाला है जहां कैटरीन की परदादी और उनके परिवार के बाकी सदस्यों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.
एक नाजी पनडुब्बी बंकर
"वैलेन्टिन" (2019) येंस जेनियर का ग्राफिक उपन्यास है जो एक फ्रांसीसी रेमंड पोर्तेफाश की डायरी पर आधारित है. एक कंसंट्रेशन कैंप में कैद पोर्तेफाश को ब्रेमेन में "वैलेन्टिन" नाम के एक पनडुब्बी बंकर के निर्माण के काम में लगाया गया था. इसे नाजी बनवा रहे थे और इसे बनाने के दौरान 1,000 से भी ज्यादा जबरन मजदूरी कर रहे लोगों की जान चली गई थी.
नाजियों का शिकार करने वाले पति-पत्नी
2020 में छपे पास्कल ब्रेस्सों और सीलवैन दोरांज के कॉमिक्स ने नाजियों का शिकार करने वाली फ्रांस की सबसे मशहूर जोड़ी को अमर कर दिया. सर्ज क्लार्सफेल्ड के पिता की आउश्वित्ज में हत्या हो गई थी. अपनी होने वाली पत्नी बीटे से मिलने के बाद दोनों ने नाजी युद्धकालीन अपराधियों को खोजना शुरू कर दिया. 1968 में बीटे ने जर्मन चांसलर कर्ट जॉर्ज किसिंजर को नाजी कह कर उन्हें एक थप्पड़ लगा दिया था. (सुजैन कॉर्ड्स)
तस्वीर: 2020 Pascal Bresson, Sylvain Dorange, La Boîte à Bulle/Carlsen Verlag GmbH