जर्मनी की सरकार ने ट्रांसजेंडर लोगों के लिए कानूनी तौर पर अपना नाम और लिंग बदलना आसान बनाने के लिए नई योजना निकाली है. सरकार ने माना है कि मौजूदा कानून पुराना और अपमानजनक है.
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नए नियमों के बारे में बताते हुए जर्मनी के परिवार मामलों के विभाग की मंत्री लिसा पाऊस ने बर्लिन में एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा, "खुद निर्धारित किया हुआ जीवन जीना सबके लिए एक मूलभूत अधिकार है."
नया कानून जर्मनी के 40 साल पुराने "ट्रांससेक्सुअल कानून" की जगह ले लेगा. पुराने कानून के मुताबिक लिंग और नाम बदलने के लिए अदालत जाना और दो विशेषज्ञों की रिपोर्ट देना अनिवार्य था. ये विशेषज्ञ अमूमन मनोचिकित्सक होते थे.
इस कानून के विरोधी लंबे समय से इसे हटाने की मांग कर रहे हैं. आवेदक पूरी प्रक्रिया के प्रशासनिक बोझ और शर्मिंदा करने वाले निजी सवालों के बारे में शिकायत करते रहे हैं. इन सवालों में व्यक्ति के यौन इतिहास के बारे में पूछे जाने वाले सवाल भी शामिल हैं.
जर्मनी की संसद बुंडेस्टाग के दो ट्रांस सदस्यों में से ग्रीन पार्टी के नाइकी स्लाविक ने कहा कि यह "नौकरशाही के लिए एक छोटा कदम लेकिन एक मुक्त समाज के लिए एक बड़ी छलांग है."
नए "सेल्फ-डेटर्मिनेशन" कानून के तहत कानूनी तौर पर नाम और लिंग बदलवाने के लिए स्थानीय रजिस्ट्री कार्यालय जाना और वहां बदलाव के बारे में सिर्फ बता देना काफी होगा. वयस्कों के अलावा 14 साल की उम्र से ट्रांस या गैर-बाइनरी नाबालिग भी अपने माता-पिता या कानूनी अभिभावकों की अनुमति से इस प्रक्रिया का इस्तेमाल कर पाएंगे.
पाऊस ने यह भी कहा कि पुरानी प्रक्रिया "ना सिर्फ लंबी और महंगी है बल्कि अत्यंत अपमानजनक भी है." उन्होंने आगे कहा, "हम एक ऐसे मुक्त और विविध समाज में रहते हैं जो कई मामलों में हमारे कानूनों से आगे है. कानूनी संरचना को समाज की वास्तविकता के अनुकूल बनाने का समय आ गया है."
इस विषय में जर्मनी दूसरे यूरोपीय देशों से पीछे है. बेल्जियम, डेनमार्क, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड में कानूनी रूप से लिंग बदलवाने के लिए एक सेल्फ-डेक्लरेशन देना काफी है. उम्मीद की जा रही है कि जर्मनी की नई गठबंधन सरकार इस साल के अंत से पहले नए कानून को स्वीकृति दे देगी.
उसके बाद कानून को संसद की स्वीकृति लेनी होगी. हाल के सालों में एलजीबीटीक्यू ऐक्टिविस्टों और मानवाधिकार समूह बार बार जर्मनी को उसके "ट्रांससेक्सुअल कानून" को आधुनिक बनाने के लिए आग्रह करते रहे हैं. देश की संवैधानिक अदालत ने भी कानून के पहलुओं की आलोचना की है.
पिछले साल दिसंबर में सत्ता में आने के बाद चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और उनकी साझेदार पार्टियों ग्रीन पार्टी और एफडीपी ने इस कानून को हटा देने का वादा किया था.
उन्होंने नाजी-काल के एक विवादित गर्भपात कानून को हटाने का भी वादा किया था जिसके तहत गर्भपात के बारे में डॉक्टरों और क्लीनिकों द्वारा दी जाने वाली जानकारी को सीमित कर दिया गया था. इस कानून को हटाने के लिए पिछले सप्ताह संसद में हुआ मतदान सफल रहा.
सीके/ (एएफपी/डीपीए)
एलजीबीटीक्यू+ जहां खुल कर घूम सकते हैं
लेस्बियन, गे, ट्रांसजेंडर, बायसेक्शुअल या क्वीयर- चाहे कोई किसी भी तरह की लैंगिक पहचान या यौन वरीयता वाला इंसान हो, दुनिया में कहीं भी उनके जाने पर रोक तो नहीं होनी चाहिए. देखिए कौन से हैं सबसे क्वीयर-फ्रेंडली ठिकाने.
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कनाडा
कनाडा को विश्व का सबसे क्वीयर-फ्रेंडली देश कहना गलत नहीं होगा. वर्ल्ड ट्रैवल एवार्ड्स में इसे टॉप LGBTQ+ फ्रेंडली ठिकाना पाया गया. समलैंगिक शादियों को यहां 2005 से ही कानूनी मान्यता मिली हुई है. इसके अलावा यहां साल भर समुदाय की रंगबिरंगी पहचान का उत्सव मनाने के लिए कार्यक्रम होते रहते हैं. जैसे जून में होने वाला टोरंटो प्राइड (फोटो में) या अगस्त में मॉन्ट्रियाल प्राइड फेस्टिवल.
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माल्टा
भूमध्य सागर में बसा यह छोटा सा द्वीपीय देश यूरोप के कुछ सबसे प्रगतिशील देशों में से एक है. LGBTQ+ समुदाय के लिए यहां इतना काम हुआ है कि 2004 में यहां किसी भी यौन वरीयता या लैंगिक पहचान वाले इंसान के साथ भेदभाव पर रोक लग गई. 2016 में गे कनवर्जन थेरेपी को गैरकानूनी घोषित करने वाला भी यह पहला देश है.
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पुर्तगाल
लिस्बन और पोर्तो (फोटो में) को पुर्तगाल का सबसे विविधता से भरा और खुले विचारों वाला शहर कहा जा सकता है. यहां समलैंगिक शादियों को 2010 से ही वैधता मिली हुई है. इसके कुछ साल बाद समान सेक्स वाले जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार भी मिल गया. लेकिन ट्रांसजेंडर लोगों की सुरक्षा और तथाकथित कनवर्जन थेरेपी पर बैन लगाने जैसे कदम अभी बाकी हैं.
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स्वीडन
इसकी गिनती विश्व के सबसे प्रगतिशील देशों में होती है. यहां एलजीबीटीक्यू समुदाय की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं. इस स्कैंडिनेवियन देश में समान सेक्स के लोगों के बीच सेक्स को 75 साल पहले ही अपराध के दायरे से बाहर निकाल लिया गया था. अब तो यहां किसी को संबोधित करने के लिए एक ही न्यूट्रल सर्वनाम चलता है - "hen". पहले महिलाओं के लिए hon ("she") और पुरुषों के लिए han ("he") सर्वनाम चलन में थे.
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उरुग्वे
लैटिन अमेरिका के सबसे सहनशील देश के रूप में उरुग्वे का नाम आता है क्योंकि यह समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाला पहला देश था. इस छोटे से देश में 1934 से ही समान सेक्स के लोगों के बीच सहमति से होने वाले सेक्स को अपराध के दायरे से बाहर निकाल लिया गया था. 2004 में यहां LGBTQ+ समुदाय को सुरक्षा देने वाले कई कानून बनाए गए.
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ऑस्ट्रेलिया
घूमने फिरने वालों के दिमाग में ऑस्ट्रेलिया की छवि खूबसूरत समुद्री तटों और रंगबिरंगी संस्कृति वाले शहरों से जुड़ी होगी. लेकिन अब भी शायद यह नहीं पता होगा कि यह बेहद सहनशील देश भी है. यहां भेदभाव विरोधी कानून 1984 में ही पास हो गए थे. इनका मकसद किसी भी इंसान को उसकी लैंगिक पहचान या यौन वरीयता के आधार पर दुर्व्यवहार से बचाना था. 2017 से यहां समलैंगिक विवाह भी वैध हैं.
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जर्मनी
इंटरसेक्स लोगों के अधिकारों के लिए हाल के सालों में जर्मनी में काफी तरक्की हुई है. बड़े शहरों जैसे कोलोन (फोटो में) और राजधानी बर्लिन में समाज काफी हद तक क्वीयर-फ्रेंडली माना जा सकता है लेकिन देश के बाकी हिस्से इतने खुले विचारों वाले नहीं कहे जा सकते. एक ही लिंग के लोगों की आपस में शादी को यहां 2017 में ही कानूनी मान्यता मिल गई थी. इंटरसेक्स लोग भी अपनी अलग कानूनी पहचान रखते हैं.
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आइसलैंड
आर्कटिक के इस कम आबादी वाले देश आइसलैंड में ना केवल प्रकृति के अद्भुत नजारे और जाड़ों का स्वर्ग है बल्कि यहां क्वीयर लोगों की भी जन्नत है. ऐसे में LGBTQ+ लोगों के लिए इससे दोस्ताना, सुरक्षित और स्वागत करने वाला घूमने का ठिकाना खोजना मुश्किल होगा. राजधानी रिक्याविक (फोटो में) में 1999 से ही सालाना प्राइड फेस्टिवल होता आता है. समान-सेक्स शादियां 2010 से वैध हैं.
तस्वीर: IBL Schweden/picture alliance
ताइवान
LGBTQ+ लोगों के अधिकारों के मामले में एशिया के सबसे प्रगतिशील देश के रूप में ताइवान का नाम आता है. इस द्वीपीय देश में लैंगिक भेदभाव के खिलाफ कई कानून बनाए गए हैं. समान सेक्स के लोगों की आपस में शादी को 2019 में कानूनी मान्यता देने वाला यह एशिया का पहला देश बना. और इस तरह उनके घूमने फिरने का सुरक्षित ठिकाना भी.
तस्वीर: Ceng Shou Yi/NurPhoto/picture alliance
कोलंबिया
कोलंबिया की संस्कृति वैसे तो कैथोलिक आस्था वाली और समाज में पुरुषवादी रवैया कूट कूट के भरा दिखता है लेकिन फिर भी इसकी गिनती लैटिन अमेरिका के सबसे प्रगतिवादी देशों में होती है. उरुग्वे के बाद यहां एलजीबीटीक्यू+ स्पेक्ट्रम के लोगों को सबसे ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में समलैंगिक शादियों को भी कानूनी मान्यता दे दी.(जोफी डिसेमोंड/आरपी)
तस्वीर: Sofia Toscano/colprensa/dpa/picture alliance