जर्मनी में टैक्स सुधारों के लिए सक्रिय एक लेबर यूनियन ने मांग की है कि आम कर्मचारियों के लिए टैक्स रिटर्न फाइल करने की अनिवार्यता को खत्म किया जाए. लेकिन जर्मनी में मजदूर संघ इतने शक्तिशाली कैसे हैं?
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जर्मनी विश्व भर में अपनी कई चीजों के लिए मशहूर है, जैसे इसकी शक्तिशाली अर्थव्यवस्था, पर्यटन, इंजीनियरिंग, संगीत और उच्च गुणवत्ता वाली जीवनशैली. कई मामलों में यह देश बहुत सख्त भी माना जाता है, जैसे दस्तावेजीकरण और डेटा की सुरक्षा और संग्रहण. इन दो चीजों में किसी को भी छूट नहीं मिलती. और चूंकि दस्तावेजीकरण इतना है, इसलिए हर प्रक्रिया लंबी और धीमी, दोनों हो जाती है. और इसका अनुभव तब भी होता है जब कोई यहां अपना टैक्स रिटर्न फाइल करता है.
क्या है लेबर यूनियन की मांग?
कुछ समय से जर्मनी में टैक्स रिटर्न दर्ज करने की अवधि चल रही थी जो जुलाई के अंत में समाप्त होने वाली है. इस डेडलाइन के चंद दिनों पहले ही स्थानीय लेबर यूनियन ने एक बड़ी मांग उठाई है. टैक्स नियमों से जुड़ी 'डॉयचे श्टॉयर गेवेर्कशाफ्ट' (DSTG) नामकी एक प्रमुख लेबर यूनियनका कहना है कि कामगारों के लिए टैक्स रिटर्न दर्ज करने की प्रक्रिया को खत्म कर दिया जाना चाहिए और यह काम या तो उनकी कंपनी करे, या फिर सरकार.
फुंक मीडिया ग्रुप को दिए एक बयान में यूनियन लीडर फ्लोरियान कुब्लर ने कहा, "हम चाहते हैं कि टैक्स कानून को सरल बनाया जाए – कम फॉर्म, कम दस्तावेजीकरण, और डिजिटल समाधान को बढ़ाया जाए.”
कुब्लर ने कहा, "इसके बजाय, टैक्स रिटर्न पूरी तरह से स्वचालित रूप से तैयार किया जाए, और कर्मचारी को केवल इसकी समीक्षा करनी होगी और जरूरत पड़ने पर इसमें संशोधन करना होगा.” यह न केवल तकनीकी रूप से संभव है, बल्कि ऑस्ट्रिया जैसे देशों में इसे पहले ही सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है.
उनकी राय में, पेंशनभोगियों को कर रिटर्न दाखिल करने की बाध्यता से भी छूट दी जानी चाहिए. इसकी जगह "पेंशन फंड द्वारा सीधे एक स्वचालित कर कटौती लागू की जानी चाहिए.”
बाकी देशों से थोड़ा अलग है जर्मन दस्तावेजीकरण
डिजिटाइडेशन में काफी आगे निकल चुके भारत जैसे देश में जो काम सरल हो चुके हैं, उनके लिए आज भी जर्मनी में काफी दस्तावेजीकरण होता है. यह केवल ऑनलाइन या डिजिटल माध्यम से ही नहीं बल्कि ऑफलाइन, यानी पेपर के माध्यम से भी होता है. जर्मनी उन चुनिंदा देशों में से एक है जहां आज भी पोस्टल सेवा जोरों-शोरों से काम कर रही है और जहां आज भी किसी भी जरूरी संदेश या औपचारिक संचार के लिए कंपनियां, सरकारी संस्थान और खुद सरकारें आपको पत्र भेजती हैं.
क्या कहती है जर्मनी की ब्लैक बुक
जर्मनी में करदाताओं के संघ ने नई ब्लैक बुक प्रकाशित की है. इससे पता चलता है कि जनता की गाढ़ी कमाई को कैसे और कहां कहां बर्बाद किया गया.
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क्या है ये "ब्लैक बुक"
जर्मन टैक्सपेयर्स एसोसिएशन (बीएसटी) ने "ब्लैक बुक" का 50वां अंक छापा है. हर साल छपने वाली इस किताब में सार्वजनिक पैसे की बर्बादी के उदाहरण दिए जाते हैं. 2022 में आई ब्लैक बुक में ऐसे 110 मामले में जहां पैसा बर्बाद किया गया.
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चांसलर मुख्यालय का विस्तार
जर्मनी में जर्मन चांसलरी के मुख्यालय को और बड़ा बनाया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 77.7 करोड़ यूरो बताई गई है. कुछ विशेषज्ञ इसे 17.7 करोड़ ज्यादा महंगा बता रहे हैं. टैक्सपेयर्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट राइनर होत्सनागल कहते हैं कि, "मैं दावा करता हूं कि यह खर्च करीब एक अरब तक पहुंचेगा."
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एल्माऊ कासल में राजसी सम्मेलन
जून 2022 में जर्मन प्रांत बवेरिया के एल्माऊ में जी-7 देशों के अधिकारी मिले. कासल में हुए सम्मेलन पर 18 करोड़ यूरो खर्च हुए. बीएसटी के मुताबिक 2015 में हुए इसी तरह के सम्मेलन का खर्च 4.5 करोड़ यूरो सस्ता था. इस अतिरिक्त खर्च के लिए केवल महंगाई को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
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जरा सी सेवा और बड़ा मेवा
गॉयटिंगन में एक हेड ऑफ डिपार्टमेंट को समय से पहले सेवानिवृत्त करने का फैसला किया गया. बीएसटी के मुताबिक अब वह अधिकारी 2028 तक प्रतिवर्ष साढ़े चार लाख यूरो पेंशन की हकदार हैं. दो साल की सेवा के बदले अब उन्हें भविष्य में हर महीने 5000 यूरो से ज्यादा की पेंशन मिला करेगी. यह रकम जर्मनी में मिलने वाले औसत वेतन की करीब दोगुनी है.
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अरबों यूरो समंदर में
जर्मन मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक दो नए फ्यूल ट्रांसपोर्टर जहाज खरीदने में 87 करोड़ यूरो खर्च किए जाएंगे. बाजार में इस कैटेगरी के दूसरे शिप 14 से 21 करोड़ यूरो के हैं. बीएसटी के मुताबिक इस मामले में संघीय सेना के खरीदारी विभाग ने 25 करोड़ यूरो ज्यादा कैलकुलेट किए.
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महंगा अस्थायी इंतजाम
कोविड-19 के खिलाफ पहली कारगर वैक्सीन बनाने वाली जर्मन कंपनी बायोन्टेक के मुनाफे से माइंज शहर को बहुत टैक्स मिला. 2013 में तंगहाली के चलते जो शहर, एक स्कूल में इमरजेंसी सीढ़ियां नहीं बना पा रहा था, अब वो बाहरी ढांचे की मदद से ये निकास बना चुका है, इस ढांचे के बदले 1,68,000 यूरो किराया दिया जा रहा है. बीएसटी के मुातबिक इससे कहीं कम खर्च में सीढ़ियां बन जाती. (रिपोर्ट: डिर्क काउफमन)
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यही कारण है कि आपको जर्मनी में जर्मनी में निवास स्थान बनाने या बदलने के बाद हर किसी को अपना पता पंजीकृत कराना ही होता है, ताकि आपको चिट्ठी भेजी जा सके. यदि ऐसा नहीं होता है तो आपके पास सरकार या कंपनी, किसी के साथ भी औपचारिक पत्राचार का कोई जरिया नहीं होगा. आपके पते से ही आपका सोशल सिक्योरिटी नंबर भी जुड़ा होता है. इसके बिना जर्मन प्रणाली में मान लीजिए कि आपकी गिनती ही नहीं होती.
जर्मन लोगों का तकनीक पर हमेशा संशय
जर्मनी को भले ही दुनिया के सबसे विकसित देशों में गिना जाता हो लेकिन जर्मन जनता के लिए विकास का अर्थ केवल हर चीज को डिजिटल बना देना नहीं है. टेक्निकरडार, एकाटेक - नेशनल साइंस एंड इंजीनियरिंग अकादमी और कोर्बर फाउंडेशन द्वारा किया गया एक सर्वेक्षण दिखाता है कि सर्वे में हिस्सा लेने वाले 73.7 प्रतिशत लोग ऐसी टेक्नोलॉजी चाहते हैं जो न्यायपूर्ण हो और पर्यावरण संरक्षण में मददगार भी.
सर्वे में ये भी पता चला है कि अधिकांश लोग (54.5 प्रतिशत) भले ही मानते हैं कि चीजें डिजिटल होने से उनका जीवन आसान हो जाएगा, लेकिन उससे ज्यादा यानी करीब 60.6 प्रतिशत लोग चिंतित भी हैं कि इससे वे अपने डेटा और निजता पर नियंत्रण खो देंगे.
जर्मनी में टैक्स फाइल करने में दिक्कत
यदि आप गूगल पर जर्मनी में टैक्स फाइल करने की प्रक्रिया ढूंढेंगे तो आपको ऐसे अनगिनत वीडियो और लेख मिल जाएंगे जो आपको शुरू से लेकर अंत तक समझाते हैं कि टैक्स रिटर्न कैसे फाइल करना है. लेकिन ये लेख और वीडियो इतनी बड़ी तादाद में इसलिए हैं क्योंकि आम जनता के लिए जर्मनी में टैक्स फाइल करना काफी कठिन है.
जर्मनी में अलग अलग टैक्स क्लास होते हैं जो आपके सिंगल, शादीशुदा, या बच्चों वाले होने के ऊपर आधारित होते हैं. फिर इनमें भी अलग श्रेणियां होती हैं, जैसे कि सिंगल पिता या मां तो नहीं, उसमें भी शादी हुई है या नहीं, इत्यादि. ये भी जानना जरूरी है कि टैक्स रिटर्न में से किस मदों पर किया गया खर्च रिफंड कराया जा सकता है और जर्मनी में काम करने वाले गैर जर्मन लोगों के लिए भाषा की चुनौती भी होती है. इसके ऊपर से अगर वे किसी पेशेवर से ये काम कराते हैं तो उसकी महंगी फीस को मिलाकर यह पूरी प्रक्रिया और भी कठिन हो जाती है.
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जर्मनी में श्रमिक संघ का दबदबा
जर्मनी में कर्मचारियों के हित के लिए खड़े होना और उनके लिए मांगें करना जर्मनी के श्रमिक संघों के लिए कोई नई बात नहीं है. जर्मनी में श्रमिक संघ ऐतिहासिक, कानूनी, सांस्कृतिक और आर्थिक वजहों के कारण मजबूत हैं और इन संघों ने हमेशा ही प्रभावशाली श्रम वातावरण को बढ़ावा दिया है.
जर्मनी में बड़ी कंपनियों (जिनमें 500 से 2,000 कर्मचारी हैं) में कर्मचारी फैसले लेने की प्रक्रिया में कानूनी रूप से शामिल हो सकते हैं, और उन फैसलों को बदलने या उनपर बातचीत करने का हक भी रखते हैं. ऐसी प्राइवेट कंपनियों में कर्मचारियों के प्रतिनिधि शेयरधारकों के साथ सुपरवाइजरी बोर्ड में भी हिस्सा लेते हैं. 2,000 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों में, कर्मचारियों के प्रतिनिधियों को 50 प्रतिशत सीटें मिलती हैं. इसे जर्मन में 'मिटबेश्टिमुंग' (निर्णय लेने में प्रबंधन और श्रमिकों के बीच सहयोग) कहा जाता है. इसके अलावा कर्मचारियों की बिना बताये या अनुचित बर्खास्तगी भी नहीं की जा सकती. उन्हें ऐसी बर्खास्तगी के खिलाफ कानूनी सुरक्षा मिली हुई है.
किसान आंदोलन: ट्रैक्टरों ने जाम कर दी जर्मनी की राजधानी
15 जनवरी को जर्मनी में हफ्ते भर से चल रहे किसान प्रदर्शन का आखिरी अंक था. इस मौके पर हजारों किसान ट्रैक्टर लेकर राजधानी बर्लिन में जमा हुए. हॉर्न बजाते ट्रैक्टरों ने सुबह से ही सड़कें जाम रखीं.
तस्वीर: Florian Gaertner/photothek/IMAGO
बर्लिन में जमा हुए 5,000 से ज्यादा ट्रैक्टर
जर्मनी में 8 जनवरी से शुरू हुआ सप्ताह भर लंबा किसान प्रदर्शन 15 जनवरी को अपने क्लाइमैक्स पर पहुंचा. राजधानी बर्लिन में प्रदर्शनकारी किसानों का बड़ा जमावड़ा लगा. 5,000 से ज्यादा ट्रैक्टरों के कारण बर्लिन में सड़कें जाम रहीं. अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए किसान सुबह से ही ट्रैक्टरों के हॉर्न बजाए जा रहे थे.
तस्वीर: Jochen Eckel/picture alliance
प्रदर्शनकारियों ने वित्त मंत्री को कहा "झूठा"
वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर भी सरकार का पक्ष रखने प्रदर्शन में पहुंचे. उन्होंने जोर दिया कि सब्सिडी में प्रस्तावित कटौती की योजना साथ मिलकर मुश्किल वक्त से बाहर निकलने की कोशिश है. लेकिन लिंडनर जैसे ही मंच पर पहुंचे, प्रदर्शनकारियों ने "झूठा" कहकर उनका विरोध किया और सीटियां बजाई. तस्वीर: किसान प्रदर्शन के दौरान रैली में मंच पर खड़े क्रिस्टियान लिंडनर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
सरकार से इस्तीफे की मांग
प्रदर्शनकारी सरकार बदले जाने की मांग कर रहे हैं. कई किसान कह रहे हैं कि सरकार को इस्तीफा देना चाहिए, क्योंकि वह नेतृत्व देने में सक्षम नहीं है. हालांकि, किसानों के विरोध को देखते हुए सरकार को कटौती आंशिक तौर पर वापस लेनी पड़ी.
तस्वीर: Manngold/IMAGO
क्यों नाराज हैं किसान?
किसानों की नाराजगी का ताल्लुक सरकार की बचत योजना से है. सरकार खेती से जुड़े कामों में इस्तेमाल होने वाले डीजल पर सब्सिडी खत्म करना चाहती है. शुरुआत में इसे एक झटके में खत्म करने की योजना थी, लेकिन अब सरकार का कहना है कि ये सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म की जाएंगी.
तस्वीर: Rainer Keuenhof/IMAGO
आंशिक रियायत से संतुष्ट नहीं किसान
पहले किसानों द्वारा खरीदे जाने वाले कृषि वाहनों पर मिलने वाली टैक्स छूट भी खत्म करने का प्रस्ताव था. लेकिन अब इस रियायत को जारी रखने का फैसला किया गया है. किसान इससे संतुष्ट नहीं हैं. वह सरकार से योजना पूरी तरह वापस लेने की मांग कर रहे हैं. तस्वीर: बर्लिन के केंद्र में किसानों द्वारा ब्लॉक की गई सड़क
तस्वीर: Florian Gaertner/photothek/IMAGO
किसानों को भविष्य का डर
प्रदर्शन में शामिल किसान हेंड्रिक फेर्डमेंगेस ने एएफपी से कहा, "हालिया सालों में हमारी कई सब्सिडी खत्म हुईं. इतने ज्यादा नियम-कायदे और प्रशासकीय काम हैं कि एक वक्त आएगा, जब हम इसे और नहीं संभाल सकेंगे." लोअर सेक्सनी की एक अन्य किसान ने प्रदर्शन में शामिल होने का कारण कुछ यूं बताया, "अगर सिर्फ एक शब्द में बताना हो कि मैं यहां क्यों हूं, तो मेरा जवाब होगा: भविष्य."
तस्वीर: Nadja Wohlleben/REUTERS
सरकार से असंतोष
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे चाहते हैं, कल को उनके बच्चे भी किसान बनें. लेकिन मौजूदा स्थितियों में इसकी संभावना कमजोर दिखती है. किसानों के पास नए तौर-तरीकों और तकनीकों में निवेश के लिए पैसा नहीं है. इस वक्त ओलाफ शॉल्त्स की गठबंधन सरकार की अप्रूवल रेटिंग सबसे कम है. जर्मन अखबार "बिल्ड डेली" के एक हालिया सर्वेक्षण में 64 फीसदी जर्मनों ने कहा कि वे सरकार में बदलाव देखना चाहेंगे.
तस्वीर: Leo Simon/REUTERS
दक्षिणपंथी तत्वों का अंदेशा
बीते दिनों आशंका जताई गई कि किसान प्रदर्शनों की आड़ में दक्षिणपंथी तत्व अपने हित साधने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, किसान इन आशंकाओं को खारिज करते हैं. हेंड्रिक फेर्डमेंगेस कहते हैं, "हम किसी भी सूरत में दक्षिणपंथी चरमपंथी नहीं हैं. ये बस नेताओं द्वारा डर फैलाने का तरीका है." फेर्डमेंगेस कहते हैं कि किसान प्रदर्शनों में मौजूद दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों की संख्या "बेहद कम" है.
तस्वीर: Annette Riedl/dpa/picture alliance
अन्य क्षेत्रों में भी नाराजगी
जर्मनी में सिर्फ किसानों में ही नहीं, कई अन्य क्षेत्रों के कामगारों में भी नाराजगी है. पिछले हफ्ते रेलवे कर्मचारियों ने तीन दिन की हड़ताल की. इससे पहले दिसंबर में मेटल वर्करों और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया था.
तस्वीर: JANA RODENBUSCH/REUTERS
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जर्मन संस्कृति में ‘सोशल पार्टनरशिप' का तरीका भी कर्मचारियों की जगह कंपनी में मजबूत करता है. इसके तहत निरंतर टकराव के बजाय, यह व्यवस्था सहयोग और बातचीत को प्रोत्साहित करती है, जिससे यूनियनों को अन्य देशों की तुलना में अधिक सम्मान मिलता है और उनमें आक्रामकता कम होती है.
द्वितीय विश्व युद्ध भी मजबूत यूनियन की वजह
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, जर्मनी ने लोकतांत्रिक पूंजीवाद के विचार के साथ अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण किया. इसमें मजबूत मजदूर संघ भी शामिल थे ताकि पहले जैसे टकराव रोके जा सकें और शांति बनी रहे. यूनियनों को लोकतांत्रिक व्यवस्था में शामिल किया गया, जिससे उन्हें वैधता और राजनीतिक प्रभाव मिला.
युद्ध की तबाही और उसके बाद अलाइड नेशंस के कब्जे ने सामाजिक कल्याण, मजदूर अधिकारों और अर्थव्यवस्था में लोकतांत्रिक भागीदारी के मूल्यों पर यूनियनों के संगठित होने को भी बढ़ावा दिया. कार्ल मार्क्स जैसे अर्थशास्त्री और दार्शनिक के जर्मनी में होने और उनके द्वारा बताए गए अर्थव्यवस्था चलाने के तरीकों ने भी जर्मन जनता पर काफी प्रभाव डाला है. जर्मनी में भले ही यूनियनें मजबूत हैं, लेकिन वास्तविक सदस्यता में गिरावट आ रही है. खासकर पूर्व जर्मनी और नौजवान कामगारों के योगदान में कमी देखने को मिल रही है.
ये बातें करती हैं भारत और जर्मनी को एक दूसरे से जुदा
भारत में कुत्ता पालने पर कोई कर नहीं देना पड़ता लेकिन जर्मनी में कुत्ता पालने पर टैक्स देना होता है. साथ ही कुत्ते का बीमा करवाना भी जरूरी है. ऐसी और कौन सी बातें हैं जो जर्मनी में भारत से बहुत अलग हैं, आइए जानते हैं.
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घरों में कूलर पंखे नहीं
जर्मनी में आधे साल ठंड का मौसम रहता है. बाकी साल में भी अधिकतकम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच पाता है. यहां हर घर में हीटर लगा होता है. कुछ घरों में एयर कंडीशनर हैं लेकिन यहां सीलिंग फैन या कूलर देखने को नहीं मिलते.
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हर जगह सुरक्षा जांच नहीं
भारत में मेट्रो, रेलवे स्टेशन और मॉल हर जगह सुरक्षा जांच होती है. लेकिन जर्मनी में ऐसा नहीं है. किसी भी जगह जाने पर अलग से कोई सुरक्षा जांच नहीं होती है. एक बार जर्मनी में प्रवेश लेने पर एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच होती है. इसके अलावा विशेष परिस्थितियों में सुरक्षा जांच हो सकती है.
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भीड़भाड़ ही नहीं है
भारत में आप किसी गली में भी चले जाइए वहां भीड़ जरूर होती है. लेकिन जर्मनी में सार्वजनिक जगहों पर भी ऐसी भीड़भाड़ देखने को नहीं मिलती है. शाम ढलने के बाद गलियों में तो किसी का दिखना भी दुर्लभ होता है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में यहां सीट के लिए आमतौर पर मारामारी नहीं होती. जर्मनी की कुल जनसंख्या सवा आठ करोड़ है जो उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के आधे से भी कम है.
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शाकाहारी को खाना खोजना पड़ेगा
भारत में एक बड़ी आबादी शाकाहारी है जबकि जर्मनी की बड़ी आबादी मांसाहारी है. यहां शाकाहारी लोगों को खाने के लिए जगह तलाश करनी पड़ती है. अधिकांश जगह शाकाहारी खाने के नाम पर उबली हुई सब्जियां मिलती हैं. पिछले समय में वीगन रेस्तरां लोकप्रिय हो रहे हैं. अब बड़े शहरों में भारतीय रेस्त्रां भी खुलने लगे हैं.
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बाएं नहीं दाएं चलें
भारत में सड़क पर बाईं तरफ चलने का नियम है और गाड़ियां दाईं तरफ स्टीयरिंग वाली होती हैं. जर्मनी और यूरोप में यह उल्टा है. यहां गाड़ियां बाईं तरफ स्टीयरिंग वाली और सड़क पर दाईं तरफ चलने का नियम है.
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देर शाम तक सूरज चमकना
जर्मनी में जून के महीने में देर शाम तक सूरज निकलता है. सुबह करीब 5 बजे से रात 10 बजे तक सूरज निकलता है. अप्रैल के महीने में एक सामान्य दिन रात साढ़े आठ बजे तक सूरज निकलता है. भारत में मई-जून की गर्मी में भी शाम साढ़े सात बजे तक ही सूरज निकलता है. रमजान के महीने में रोजा रखने वाले लोगों के लिए ये मुश्किल का समय होता है.
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कुत्ता पालने पर टैक्स
भारत में कुत्ता पालने पर कोई कर नहीं देना पड़ता लेकिन जर्मनी में कुत्ता पालने पर टैक्स देना होता है. साथ ही कुत्ते का बीमा करवाना भी जरूरी है.
भारत में एक सामान्य धारणा है कि यूरोप, अरब और अमेरिकी देशों में आईफोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस सस्ते मिलते हैं. लेकिन जर्मनी में ऐसा नहीं है. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस यहां भारत के बराबर या मंहगे दामों पर मिलते हैं.
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बटन दबाइए सड़क पार करिए
भारत में जेब्रा क्रॉसिंग से सड़क पार करने का नियम है. इसके लिए जेब्रा क्रॉसिंग पर खड़े होकर वाहनों के रुकने का इंतजार करना होता है. जर्मनी में सड़क पर लगे ट्रैफिक सिग्नल में एक बटन लगा होता है. इस बटन को दबाने पर समय होने पर वाहनों के लिए लाल सिग्नल हो जाएगा और पैदल यात्री निकल सकेंगे. यहां पैदल और साइकिल यात्रियों को प्राथमिकता दी जाती है.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
टीवी के पैसे देने होंगे
भारत में अगर आपके घर में टीवी है और आप कोई ऐसी सर्विस इस्तेमाल करते हैं जिसके पैसे लगते हैं तो आपको उसका खर्च देना होता है. लेकिन जर्मनी में भले ही आपके घर में टीवी हो या ना हो आपको टीवी टैक्स देना होता है.
तस्वीर: picture-alliance/Ulrich Baumgarten
सट्टेबाजी, लॉटरी, वैश्यावृत्ति सब वैध
भारत में सट्टेबाजी पूरी तरह अवैध है. लॉटरी और वैश्यावृत्ति के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम हैं. कहीं ये वैध हैं कही अवैध. लेकिन जर्मनी में ये तीनों वैध हैं.
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शराब के ठेके नहीं
भारत में सामान्य दुकानों में शराब नहीं बिकती है. इसके लिए अलग से ठेका दिया जाता है और शराब की अलग दुकानें होती है. लेकिन जर्मनी में ग्रोसरी की सामान्य दुकानों में शराब मिलती है. यहां जगह-जगह ठेका तलाशने की जरूरत नहीं है. साथ ही जर्मनी में खुले में शराब पीने पर कोई रोक नहीं है.
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मोबाइल रखना सस्ता नहीं
भारत में 4जी आने के बाद मोबाइल का खर्चा बेहद कम हो गया है. अब लगभग 500 रुपये में कंपनियां तीन महीने के अनलिमिटेड कॉलिंग और इंटरनेट के प्लान दे रही हैं. जर्मनी में ऐसा नहीं है. जर्मनी में दो जीबी 4जी इंटरनेट और 200 मिनट कॉलिंग के लिए 10 यूरो यानी करीब 800 रुपये खर्च करने होते हैं.
तस्वीर: Imago/Westend61
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श्रमिक संघ लंबे समय से बड़ी सफलताएं हासिल करता आ रहा है, खासकर सामूहिक सौदेबाजी पर चर्चा और मजदूर अधिकारों के मामले में. जैसे 1990 में मजदूर संघों ने हफ्ते में 35 घंटा काम करने की मांग मनवा ली थी. 2010 में उन्होंने स्टील उद्योग में अस्थायी मजदूरों के लिए समान वेतन की मांग भी मनवाई. 2018 में आईजी मेटल के मजदूरों की हड़ताल हुई जिसमें काम करने के घंटों, बच्चों की देखभाल के समय और वेतन में 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी की मांग उठाई गई थी. ये सभी मांगें पूरी मानी गईं. हालांकि वेतन में 6 के बजाय 4.3 प्रतिशत का ही इजाफा हो पाया. इसके अलावा, हाल ही में जर्मनी की राष्ट्रीय रेलवे कंपनी डॉयचे बान की लगातार चली हड़तालों के बाद रेलवे कर्मचारियों को 2023-2024 में बेहतर वेतन भी मिलने लगा.