टेक कंपनियों पर भारत जैसा टैक्स लगाने की तैयारी में जर्मनी
३० मई २०२५
जर्मनी उन अमेरिकी टेक कंपनियों पर कर लगाने के बारे में सोच रहा है जो देश में अरबों डॉलर का कारोबार करती हैं, जैसे गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट और फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा. यह कदम अमेरिका के साथ पहले से तनावपूर्ण व्यापार संबंधों में तनाव बढ़ा सकता है.
यह प्रस्ताव ऐसे वक्त में आया है जब जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स के जल्द ही अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मिलने वॉशिंगटन जाने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि इस यात्रा की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि वह विदेशी सरकारों को "अमेरिका के टैक्स बेस पर कब्जा करने की इजाजत नहीं देंगे."
जर्मनी के संस्कृति मामलों के मंत्री वोल्फ्राम वाइमार ने पत्रिका स्टर्न को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि उनके मंत्रालय में एक विधेयक का मसौदा तैयार किया जा रहा है. इसके साथ ही, वे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ऑपरेटरों से बातचीत भी शुरू करना चाहते हैं ताकि स्वैच्छिक योगदान जैसे विकल्पों पर भी चर्चा हो सके.
उन्होंने कहा, "ये कंपनियां जर्मनी में अरबों का मुनाफा कमाती हैं, देश के मीडिया और सांस्कृतिक संसाधनों का भरपूर लाभ उठाती हैं, लेकिन न टैक्स देती हैं, न निवेश करती हैं और न ही समाज को कुछ लौटाती हैं." वाइमार का कहना है कि ये कंपनियां "चतुराई से टैक्स चोरी" करती हैं और "एकाधिकार जैसी संरचनाएं" बना चुकी हैं जो प्रतिस्पर्धा को बाधित करती हैं और मीडिया ताकत को केंद्रीकृत करती हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा है. अल्फाबेट और मेटा ने फिलहाल इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. इसी साल यूरोप में एप्पल और मेटा पर 70 करोड़ यूरो का जुर्माना लगा था.
ट्रंप की चेतावनी, लेकिन जर्मनी पीछे नहीं हट रहा
इस साल की शुरुआत में जर्मनी की सत्ताधारी पार्टियों ने एक डिजिटल सेवा कर लाने की संभावना पर सहमति जताई थी, लेकिन यह उन प्राथमिक योजनाओं में शामिल नहीं थी जिन पर सरकार तत्काल काम करना चाहती है. अधिकारियों ने साफ किया है कि वाइमार का प्रस्ताव अभी सरकार द्वारा मंजूर नहीं है.
अगर यह कानून बना, तो जर्मनी उन देशों की सूची में शामिल हो जाएगा जो पहले ही डिजिटल सेवाओं पर टैक्स लगा चुके हैं. इनमें ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्पेन, तुर्की, भारत, ऑस्ट्रिया और कनाडा शामिल हैं.
ट्रंप के पिछले कार्यकाल में अमेरिका ने इन देशों की टैक्स नीतियों को अनुचित व्यापार व्यवहार बताया था और सेक्शन 301 के तहत जांच शुरू की थी, जिसके बाद इन देशों से कुछ आयातों पर जवाबी टैरिफ लगाए गए थे. इस साल फरवरी में ट्रंप ने अपने व्यापार प्रमुख को उन देशों की दोबारा जांच शुरू करने का आदेश दिया था जो अमेरिकी टेक कंपनियों पर डिजिटल टैक्स लगा रहे हैं.
भारत भी उन शुरुआती देशों में शामिल है जिन्होंने विदेशी डिजिटल कंपनियों पर कर लगाने की पहल की. 2020 में भारत ने "इक्वेलाइजेशन लेवी " के तहत दो प्रतिशत का टैक्स उन विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों पर लगाया जो भारत में डिजिटल सेवाओं के जरिए आय अर्जित करती हैं लेकिन वहां स्थायी भौतिक उपस्थिति नहीं रखतीं. यह टैक्स खासतौर पर गूगल, फेसबुक, एमेजॉन जैसी अमेरिकी कंपनियों को प्रभावित करता है.
अमेरिका ने इसे एकतरफा और अमेरिकी व्यवसायों के खिलाफ भेदभावपूर्ण माना, और इसे लेकर वॉशिंगटन और नई दिल्ली के बीच भी तनाव देखने को मिला. हालांकि भारत ने साफ किया है कि यह टैक्स घरेलू व्यवसायों के हितों की रक्षा के लिए लगाया गया है और इसका उद्देश्य टैक्स क्षेत्र में न्याय सुनिश्चित करना है.
नए टकराव की जमीन
इसी महीने सत्ता में आई जर्मनी की नई सरकार पीछे हटती नहीं दिख रही. मंत्री वाइमार ने एक उदाहरण देते हुए कहा, "अगर गूगल ट्रंप के दबाव में मेक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर 'गल्फ ऑफ अमेरिका' कर दे, और ऐसा महज अपनी वैश्विक सूचना शक्ति के बल पर कर पाए, तो यह दिखाता है कि मौजूदा ढांचे में कितनी गंभीर समस्याएं छिपी हैं."
जर्मनी का यह कदम अमेरिका के साथ डिजिटल अर्थव्यवस्था को लेकर और विवाद बढ़ा सकता है, खासकर तब जब ट्रंप प्रशासन फिर से अमेरिका की कंपनियों के हितों की रक्षा के लिए आक्रामक रुख अपना रहा है. फिलहाल यह देखना बाकी है कि यह प्रस्ताव कितना आगे बढ़ता है, और क्या यह यूरोप और अमेरिका के बीच एक और व्यापार युद्ध की शुरुआत बन सकता है.