दशकों बाद फिर से जंग की तैयारी में जुटी जर्मनी की सेना
फ्रांक होफमन
५ अप्रैल २०२४
सोवियत संघ के खिलाफ एक साझा रक्षा मोर्चे के तौर पर नाटो का गठन हुआ. उस दौर में पश्चिम जर्मनी की सेना, पूर्वी जर्मनी से हमले की स्थिति में सुरक्षा की तैयारियां करती थीं. तीन दशक बाद अब फिर रूस एक खतरा बन गया है.
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1996 की शुरुआत में जर्मन सैनिक दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार किसी अन्य यूरोपीय देश के भूभाग में सैन्य तैयारी से लैस होकर दाखिल हुए थे. बोस्निया-हर्जेगोविना में जर्मन सैनिक संयुक्त राष्ट्र शांति सेना, या ब्लू हेलमेट की ओर से नहीं गए थे, बल्कि वो नाटो की अगुआई वाले क्रियान्वयन बल (इंप्लिमेंटेशन फोर्स) का हिस्सा थे.
1992 में पूर्वी युगोस्लाव गणराज्य, बोस्निया-हर्जेगोविना को यूरोपीय धरती पर 1945 के बाद जातीय सर्ब अल्पसंख्यकों की छेड़ी सबसे खूनी लड़ाई में उतरना पड़ा था. निरंकुश सर्ब नेता श्लोबोदन मिलोसेच की सेना इस लड़ाई को समर्थन दे रही थी. दिसंबर 1995 में युद्धरत पक्षों, पड़ोसी देशों और अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने डेटन शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
नाटो ने इंप्लिमेंटेशन फोर्स का गठन किया, बाद में स्टेबलाइजेशन फोर्स (एसफोर) ने उसकी जगह ली. इंप्लिमेंटेशन फोर्स का काम इलाके में युद्धविराम और शांति-स्थिरता बनाए रखना था.
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जर्मन सशस्त्र सेना तैयार नहीं थी
जर्मनी ने इसमें भाग तो लिया, लेकिन जर्मन सशस्त्र सेना बुंडेसवेयर पर्वतीय देश में सैन्य अभियान के लिए आंशिक तौर पर ही तैयार थी. जर्मन सैनिक इलाके से बाहर के अभियानों के लिए प्रशिक्षित नहीं थे. कई बार उन्हें सड़कें चौड़ी करनी पड़ती थीं क्योंकि भारी सैन्य उपकरण संकरे रास्तों से नहीं गुजर सकते थे.
1955 में नाटो में शामिल होने वाले जर्मन संघीय गणराज्य (पश्चिम जर्मनी) की सेना शीत युद्ध के दौरान, मुख्य रूप से वारसॉ संधि वाले देशों के संभावित हमलों के खिलाफ बचाव के लिए जिम्मेदार थी. वारसॉ संधि वाले देश सोवियत प्रभाव वाले इलाके में आते थे, उनमें समाजवादी जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य (पूर्वी जर्मनी) भी शामिल था.
पूर्वी जर्मनी में पांच लाख सोवियत सैनिक तैनात थे. जीडीआर (पूर्वी जर्मनी) की नेशनल पीपल्स आर्मी (एनवीए) के पास डेढ़ लाख अतिरिक्त सैनिक थे. हर साल उत्तरी जर्मनी की एक सपाट जमीन पर हमलों के खिलाफ युद्ध अभ्यास किए जाते थे, जिनमें टैंक भी शामिल रहते थे.
विचार यह था कि नाटो के सबसे बड़े सदस्य अमेरिका की मदद से निर्बाध हवाई संप्रभुता के स्थापित होने तक, मुख्य युद्धक टैंक लेपर्ड और जर्मन सेना की इकाइयां पूरब से किसी हमले के खिलाफ रक्षा करेंगी.
आकार में आधी रह गई है जर्मन सेना
1958 से 1972 के बीच पश्चिम जर्मनी में सैन्यबल 249,000 से बढ़कर 493,000 तक पहुंच गया. बर्लिन दीवार के गिरने तक सेना की संख्या करीब 4,80,000 थी. जब पश्चिम जर्मनी और पूर्वी जर्मनी की सेनाओं का विलय हुआ, तो कुछ समय के लिए संख्या फिर से बढ़ गई.
करीब 20 साल बाद सेना में करीब दो लाख सैनिक बचे रह गए. जर्मन रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, साल 2023 में 1,81,000 सदस्य ही थे. इन सैनिकों का छोटा सा हिस्सा ही नाटो अभियानों में लड़ाई के लिहाज से प्रशिक्षित किया गया है.
नाटो के 75 साल: कोल्ड वॉर से यूक्रेन वॉर तक
नाटो 75 साल का हुआ. तनाव और असुरक्षा से भरे शीत युद्ध के लंबे दशकों से लेकर यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप में सुरक्षा की बदलती तस्वीर तक, देखिए नाटो का सफर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
12 संस्थापक देश
4 अप्रैल 1949 को 12 देशों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) का गठन किया. ये संस्थापक देश थे: अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल.
तस्वीर: Keystone/Hulton Archive/Getty Images
वॉशिंगटन में दस्तखत हुए
इन 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने वॉशिंगटन के डिपार्टमेंटल ऑडिटोरियम में समझौते पर दस्तखत किए. इसे वॉशिंगटन ट्रीटी के नाम से भी जाना जाता है. हस्ताक्षर समारोह के पांच महीनों के भीतर सदस्य देशों की संसद ने समझौते पर कानूनी मुहर लगा दी. इस तरह ये देश संधि में कानूनी और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ दाखिल हुए.
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आर्टिकल पांच और साझा सुरक्षा
समवेत सुरक्षा और एक-दूसरे के लिए खड़ा होना, नाटो के मूलभूत सिद्दांतों में है. ट्रीटी का आर्टिकल पांच साझा सुरक्षा की गारंटी देता है. इसके मुताबिक, सदस्य देश सहमति देते हैं कि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों पर हथियारबंद हमले की स्थिति में इसे पूरे ब्लॉक पर हमला माना जाएगा.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
एक पर हमला, सब पर हमला
हमले की स्थिति में हर सदस्य संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 51 में दर्ज निजी या सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उस सदस्य देश की मदद करेगा, जिसपर हमला हुआ है. सभी सदस्य नॉर्थ अटलांटिक इलाके की सुरक्षा बरकरार रखने और हनन की स्थिति में इसे वापस कायम करने के लिए जरूरत पड़ने पर सशस्त्र सेना और हथियारों का भी इस्तेमाल करेंगे.
तस्वीर: MDR/BR/DW
9/11 के बाद आर्टिकल पांच का इस्तेमाल
आर्टिकल पांच यह भी कहता है कि जो जवाबी कदम उठाए जाएंगे, उनकी सूचना तुरंत सुरक्षा परिषद को दी जाएगी. जब परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा वापस कायम करने की दिशा में जरूरी कदम उठा लेगा, उसके बाद नाटो की ओर से की जा रही कार्रवाई रोक दी जाएगी. अब तक नाटो ने आर्टिकल पांच का इस्तेमाल केवल 9/11 के आतंकी हमले के बाद किया है.
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नाटो में विस्तार
नाटो में समय-समय पर विस्तार होता रहा है. अब तक विस्तार के 10 चरण रहे हैं. पहली बार 1952 में समूह का विस्तार हुआ, जब ग्रीस और तुर्की ब्लॉक में शामिल हुए. फिर 6 मई 1955 को जर्मनी (तत्कालीन फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी, या वेस्ट जर्मनी) नाटो का 15वां सदस्य बना. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के कई देश नाटो में आए. ये दो चरणों में हुआ.
तस्वीर: Mike Nelson/dpa/picture alliance
शीतयुद्ध के बाद का विस्तार
साल 1999 में हुए पोस्ट-कोल्ड वॉर के पहले विस्तार में चेकिया, हंगरी और पोलैंड सदस्य बने. फिर मार्च 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया को नाटो की सदस्यता मिली. नाटो के सबसे नए सदस्य हैं फिनलैंड (अप्रैल 2023) और स्वीडन (मार्च 2024). इस तरह नाटो में अब 32 सदस्य हैं.
तस्वीर: Tom Samuelsson/Regeringskansliet/TT/IMAGO
बालकन्स पर रूस के साथ तनाव
2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मॉन्टेनीग्रो और 2020 में नॉर्थ मैसिडोनिया नाटो के सदस्य बने. ये बालकन देश हैं. बाल्कन्स का इलाका लंबे समय से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की वजह रहा है. पश्चिम की ओर से यूरोपीय संघ और नाटो यहां विस्तार करना चाहते हैं, वहीं रूस भी अपने इस पूर्व प्रभावक्षेत्र में सहयोगी तलाश रहा है.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
रूस का नाटो पर विस्तारवाद का आरोप
ऐसे में रूस लंबे समय से बालकन्स में नाटो के विस्तार का विरोध करता रहा है. वह इसे नाटो की विस्तारवादी नीति बताता है और अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद मॉस्को का नाटो से विरोध और गहराता गया. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद तनाव अपने चरम पर पहुंच गया.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
यूक्रेन में जारी युद्ध का गहरा असर
यूक्रेन युद्ध ने यूरोप में सुरक्षा की भावना को गहराई तक हिला दिया है. यूक्रेन को मदद चाहिए, ना केवल फंड बल्कि सैन्य साजो-सामान भी. ऐसे में अभी नाटो के आगे सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युद्ध के बीच कीव को किस तरह मदद मुहैया कराई जाए.
नाटो सीधे तौर पर युद्ध का हिस्सा नहीं बन सकता, लेकिन यूक्रेन में रूस को बढ़त पूरी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अकल्पनीय चुनौती होगी. ऐसे में नाटो देशों के बीच यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के प्रारूप, स्वभाव और आकार पर बातचीत जारी है. रूस के साथ समीकरण नाटो की सबसे बड़ी चुनौतियों में है.
तस्वीर: Christopher Ruano/picture alliance/Planetpi/Planet Pix/ZUMA Press Wire
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अफगानिस्तान में तैनाती
अमेरिका में सितंबर 2001 में हुए हमलों के बाद नाटो में जर्मन सेना की भूमिका फिर से बदल गई. अमेरिका ने नाटो गठबंधन के 'कॉमन डिफेंस क्लॉज' को सक्रिय करने पर जोर दिया और संधि के तहत जर्मनी ने अपने दायित्व निभाए. अफगानिस्तान पर हमले और तालिबान को हटाने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में नाटो गठबंधन के भीतर जर्मन सेना भी शामिल रही.
लंबे समय तक जर्मन सेना का ध्यान ऐसी यूनिटों की ट्रेनिंग कराने पर रहा, जिन्हें तत्परता से रवाना किया जा सके, चाहे अफगानिस्तान ही क्यों न हो. फिर 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने संसद में एक "टर्निंग पॉइंट" की बात कही. जर्मन सेना में अधिकांश लोग शीत युद्ध के खात्मे के तीन दशक बाद यूरोप में इस तरह के जमीनी हमले के लिए तैयार नहीं थे.
उसके बाद से जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस कहने लगे हैं कि सेना को "युद्ध के लिए तैयार" रहना होगा. कुछ विश्लेषक अनुमान जताते हैं कि युद्ध अर्थव्यवस्था की ओर मुड़ चुका रूस पांच साल से भी कम समय में नाटो के भूभाग पर हमला कर सकता है.
तीन दशक तक "इलाके से बाहर" किए गए अभियानों के बाद जर्मन सेना बुंडेसवेयर के पास इतना असलहा तो है कि वो ऐसे किसी हमले की स्थिति में कुछ दिनों तक अपनी रक्षा कर सकती है.
ऐसे में अब यह विचार है कि नाटो को इस हद तक अपग्रेड कर दिया जाए कि रूस के हमला करने की स्थिति में वो मजबूती से अपना बचाव कर सके. ठीक उसी तरह, जैसा शीत युद्ध के चार दशकों के दौरान हुआ करता था.