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इतिहासजर्मनी

75 साल का हुआ जर्मन संविधान

मार्सेल फुर्स्टेनाउ
२३ मई २०२४

पश्चिमी जर्मनी ने 1949 में अपना संविधान अपनाया और बाद में कई संशोधन भी हुए. इनमें से कुछ संशोधन विवादास्पद रहे, जैसे वह संशोधन जिससे जर्मन सेना का जन्म हुआ.

जर्मनी
जर्मनी के संसद भवन के बाहर शीशे के पैनलों पर संविधान के शब्द उकेरे गए हैंतस्वीर: Maja Hitij/Getty Images

"मानव गरिमा अनुल्लंघनीय है" - जर्मनी के संविधान का पहला अनुच्छेद इन्हीं शब्दों से शुरू होता है. इस संविधान को आधिकारिक तौर पर "बेसिक लॉ" कहा जाता है. इस पहली लाइन को नाजी जर्मनी के अभूतपूर्व अपराधों की प्रतिक्रिया के रूप में लिखा गया था, वो नाजी जर्मनी जो द्वितीय विश्व युद्ध और होलोकॉस्ट यानी पूरे यूरोप में 60 लाख यहूदियों की हत्या का जिम्मेदार था.

1949: बेसिक लॉ को अपनाया गया

23 मई, 1949 को जब बेसिक लॉ को अपनाया गया, तो उस समय यह सिर्फ फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी या पश्चिमी जर्मनी, पर लागू था. पश्चिमी जर्मनी की आधिकारिक स्थापना उसी दिन हुई थी. इसके तहत वो तीनों इलाके आते थे जिन पर द्वितीय विश्व युद्ध जीतने वाली पश्चिमी शक्तियों ने कब्जा किया हुआ था. ये शक्तियां थीं अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस.

देश का पूर्वी हिस्सा सोवियत ऑक्यूपेशन जोन में था. यह सात अक्टूबर, 1949 को जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (जीडीआर) बन गया जो सोशलिस्ट यूनिटी पार्टी ऑफ जर्मनी (एसईडी) के शासन में चलने वाली एक साम्यवादी तानाशाही थी.

पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एक होने के बाद सब कुछ बदल गया, सिवाय "बेसिक लॉ" केतस्वीर: Norbert Michalke/imageBROKER/picture alliance

जर्मनी के बंटवारे की वजह से बेसिक लॉ का मसौदा तैयार करने वाले पुरुष और महिलाएं अपने काम को तात्कालिक समझते थे. यह उन कारणों में से एक था जिनकी वजह से इसे "संविधान" नहीं कहा गया. आज जब जर्मनी बेसिक लॉ की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, कई लोगों ने इस ऐतिहासिक विषमता की तरफ फिर से इशारा किया है.

पॉट्सडाम में रहने वाले इतिहासकार मार्टिन साबरोव कहते हैं, "उद्देश्य यह था कि इसे एक स्थायी संविधान की जगह परिवर्ती व्यवस्था बनाया जाए जो तब तक मान्य रहे जब एक सभी जर्मन लोग अपने फैसले खुद लेने के लिए आजाद न हो जाएं." साबरोव ने यह बात फेडरल फाउंडेशन फॉर द स्टडी ऑफ द कम्युनिस्ट डिक्टेटरशिप द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कही.

1956: जर्मन सेना की स्थापना

किसी नए संविधान का मसौदा कभी तैयार नहीं किया गया, लेकिन बेसिक लॉ में बीते दशकों में करीब 70 बार संशोधन किए जा चुके हैं. इन संशोधनों को अमूमन सामाजिक और भू-राजनीतिक बदलावों के मद्देनजर किया गया. देश का फिर से सशस्त्रीकरण करना एक खासा विवादास्पद विषय रहा.

इसकी जरूरत तब पड़ी जब पश्चिमी जर्मनी 1955 में नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाईजेशन (नाटो) में शामिल हो गया. उसी साल जर्मनी की सेना यानि बुंडेसवेयर की स्थापना हुई. इसके बाद 1956 में जर्मनी को शस्त्र-युक्त करने और अपनी सुरक्षा करने के लिए एक संवैधानिक ढांचा देने के लिए बेसिक लॉ में फिर से संशोधन किया गया.

1968: आपातकाल के समय मूलभूत अधिकारों को सीमित करना

1968 में पारित किए गए "आपातकाल कानून" संशोधन के भी दूरगामी परिणाम थे. इन अधिनियमों का उद्देश्य था संकट की स्थितियों में आवश्यक कदम उठाने की सरकार की क्षमता को सुनिश्चित करना.

जर्मन सेना की स्थापना देश के इतिहास में एक विशेष रूप से विवादास्पद क्षण थातस्वीर: Christoph Hardt/Panama Pictures/picture alliance

विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं, बगावत और युद्ध के समय इसकी जरूरत पड़ सकती थी. इस संशोधन की वजह से जर्मन सेना की देश के अंदर तैनाती और आपातकालीन स्थितियों में मूलभूत अधिकारों पर नियंत्रण मुमकिन हो पाया. इसमें संचार की खुफिया निगरानी भी शामिल है. 

1990: फिर से एकीकृत हुए जर्मनी के लिए नया बेसिक लॉ नहीं

1990 में जब जर्मनी के दोनों हिस्सों का एकीकरण हुआ तो वह एक निर्णायक क्षण हो सकता था. बर्लिन की दीवार और उसके साथ ही जीडीआर शासन के गिरने के बाद नया जर्मनी नया संविधान अपना सकता था. लेकिन इसकी जगह जर्मनी की संसद ने सिर्फ बेसिक लॉ के क्षेत्र को बढ़ा कर उसमें पूर्वी जर्मनी के नए राज्यों को शामिल करने पर वोट दिया.

इससे संविधान का तात्कालिक दर्जा प्रभावी रूप से स्थायी हो गया. लाइप्जिष विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंटिस्ट आस्ट्रिड लोरेन्स बताते हैं, "पूरे जर्मनी के लिए एक संविधान पर बहस शुरू तो हुई थी, लेकिन इस विचार को जर्मनी में बहुमत का समर्थन नहीं मिला. इसका मुख्य यह कारण था कि बेसिक लॉ की उपयोगिता साबित हो चुकी थी और एक नए संविधान की जरूरत नहीं थी. लोगों को स्थिरता चाहिए थी."

1993: शरण के अधिकार को सीमित करना

दोनों हिस्सों के एक होने के तीन साल बाद 1993 में, राजनीतिक शरण के आवेदनों में तेजी से आई बढ़ोत्तरी की वजह से बेसिक लॉ में निहित शरणार्थियों के लिए शरण के अधिकार को काफी सीमित कर दिया.

इस सुधार के बाद, जिन लोगों के पास जर्मनी की नागरिकता नहीं है उन्हें उनके मूल देश भेजे जाना मुमकिन हुआ. हां, यह शर्त जरूर रखी गई कि मूल देश सुरक्षित देशों की श्रेणी में हो. जॉर्जिया इस सूची में जोड़ा जाने वाला सबसे नया राष्ट्र है.

2009: कर्जे पर लगाम

सरकारी कर्जे पर लगाम लगाने के लिए, 2009 में जर्मन बेसिक लॉ में "डेट ब्रेक" को लाया गया था. इस कदम को वित्तीय संकट के बाद उठाया गया ताकि वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी कर्ज पर कड़ी सीमा लगा दी जाए.

अप्रत्याशित संकटों के समय इस लगाम को हटाया जा सकता है, जैसे कोविड महामारी के समय किया गया. चूंकि जर्मनी 2024 में आर्थिक संकटों का सामना कर रहा है, इस लगाम को थोड़ा ढीला करने की मांगें उठ रही हैं.

बेसिक लॉ के मूलभूत नियम

बेसिक लॉ में संशोधन तभी लाया जा सकता है जब बुंडेसटाग और बुंडेसराट के दो तिहाई सदस्य संशोधन की इजाजत दें. इस इंतजाम का मकसद है संसद में बहुमत से आई सरकारों द्वारा संविधान के मूल्यों को गैर-लोकतांत्रिक ताकतों की मदद से खोखला होने से बचाना.

कुल मिला कर राजनीतिक और शैक्षणिक विशेषज्ञों में मोटे तौर पर सहमति है कि बेसिक लॉ अपने 75 सालों के इतिहास में समय की कसौटी पर खरा उतरा है. इसके बावजूद, जीडीआर में पैदा हुए पॉलिटिकल साइंटिस्ट आस्ट्रिड लोरेन्स के पास एक सवाल जरूर है, "क्या संवैधानिक बहसों ने जर्मनी के पुन: एकीकरण से कोई सबक सीखा है?"

जर्मन संसद से दो तिहाई मतों से अनुमति मिले बिना बेसिक लॉ में संशोधन नहीं लाया जा सकतातस्वीर: Michael Sohn/AP Photo/picture alliance

उनकी नजर में जवाब साफ है: "बेसिक लॉ में पूर्वी जर्मन इतिहास और शांतिपूर्ण क्रांति का बहुत कम जिक्र है." फेडरल फाउंडेशन फॉर द स्टडी ऑफ द कम्युनिस्ट डिक्टेटरशिप की निदेशक एना कामिन्स्की कहती हैं, "यह वर्षगांठ यह याद करने का भी मौका होना चाहिए कि सोवियत कब्जे वाले इलाके और जीडीआर में भी हमेशा से बहादुर लोग थे जिन्होंने अपने रोजगार और अपनी जान तक का जोखिम उठाया और मांग की कि पश्चिम में जो अधिकार और स्वतंत्रताएं लागू हैं वो पूरे जर्मनी में लागू हों."

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