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जर्मनी: ऑर्गेनिक खेतों पर बढ़ा मिटने का जोखिम

ओलिवर पीपर
२४ जनवरी २०२३

जर्मनी में खेती-बाड़ी में बड़े बदलाव आ रहे हैं. सन 2030 तक देश के एक-तिहाई खेतों को ऑर्गेनिक में बदलने का लक्ष्य है. लेकिन बढ़ती महंगाई के बीच किसान सरकार से ज्यादा मदद की मांग कर रहे हैं.

जर्मनी में ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसानों को हो रही हैं काफी परेशानियां
जर्मनी में ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसानों को हो रही हैं काफी परेशानियां तस्वीर: Oliver Pieper/DW

पश्चिमी जर्मनी में बैर्न्ड श्मित्स का एक छोटा सा ऑर्गेनिक फार्म है. उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा कि बढ़ती महंगाई के इस दौर में सरकार स्थायी खेती के नए-नए नियम बना रही है. परेशान होकर उन्होंने भी हजारों और किसानों के साथ राजधानी बर्लिन में विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेने का फैसला किया. इसमें शामिल किसानों की मांग है कि सरकार उन्हें और मदद दे, ताकि ईको-फ्रेंडली खेती को अपनाने के उनके लक्ष्य को पूरा किया जा सके. श्मित्स ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "हम मांग कर रहे हैं कि कृषि नीति में बदलाव लाया जाए, ताकि बढ़िया क्वालिटी की उपज को बढ़ावा मिले."

इस प्रदर्शन की योजना करीब 60 एक्टिविस्ट समूहों ने मिल कर बनाई थी. हर दिन जर्मनी में करीब छह खेत बंद हो रहे हैं क्योंकि खेती करने की कीमत बहुत बढ़ गई है. इस समय देश में ढाई लाख के करीब खेत हैं, लेकिन इनकी तादाद धीरे-धीरे कम ही हो रही है. 

श्मित्स ने अपने खेतों में होलस्टाइन गायें पाली हुई हैं, जिनका दूध बेच कर उनकी कमाई होती है. उनके खेत "हानफर फार्म" के नाम से मशहूर हैं और सन 1850 से उनके परिवार की पांच पीढ़ियां इसे चलाती आई हैं. इन हालात में वे बमुश्किल एक साल और खेत चला पाएंगे. श्मित्स कहते हैं, "पिछले साल के मुकाबले अब मुझे बिजली और ईंधन के लिए करीब 50 फीसदी ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है. ये बहुत लंबा नहीं चल सकता." 

छठवीं पीढ़ी को यह काम संभालने का मौका मिलेगा या नहीं, इस पर संशय पैदा हो गया है. वे कहते हैं, "अपनी बेटियों के साथ अब हम वाकई विचार कर रहे हैं कि इसमें उनका भविष्य है भी या नहीं."

जलवायु परिवर्तन लाया और सूखा

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर के कारण मैदान सूखने लगे हैं. बीते साल तीन महीने तक बिल्कुल बारिश नहीं हुई. उनके पास अपनी गायों को खिलाने के लिए पर्याप्त चारा नहीं जुट रहा था. इसके चलते उन्होंने गायों को घटाकर 48 से 35 कर दिया. एक दुष्चक्र में फंसे श्मित्स कहते हैं कि आसमान पानी नहीं दे रहा, धरती पर घास नहीं बढ़ रही, मवेशी कम हो रहे हैं तो दूध का उत्पादन भी कम हो रहा है और इस सबके ऊपर महंगाई तो है ही.

इस समय जर्मनी में करीब 35,000 किसान ऑर्गेनिक तरीके से खेती करते हैं. लेकिन यूक्रेन पर रूसी हमले के समय से बढ़ती ऊर्जा की कीमतों की उन पर भारी मार पड़ी है. ऐसा पहली बार हुआ है कि जर्मनी में ऑर्गेनिक उपज का बाजार सिकुड़ा है. ग्राहकों को इन चीजों के लिए पहले से कहीं ज्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं. कारण है कि जैविक खेती में ज्यादा श्रम लगाना पड़ता है और सभी कदमों पर ईको फ्रेंडली उपाय करने पड़ते हैं जो कि लागत को बढ़ा देते हैं. 57 साल के श्मित्स कहते हैं कि संकट की स्थित में रीटेल सेक्टर खुद तो हमें बहुत कम कीमत बढ़ाने दे रहा है, लेकिन खुद ग्राहकों को महंगे दामों पर चीजें बेच रहा है.

जर्मन सरकार सन 2030 तक ऑर्गेनिक खेतों की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी करना चाहती है. लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह एक बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य है. वे कहते हैं कि ना तो इसके लिए उसी तादाद में ग्राहक मिलेंगे और ना नेता ही किसानों को इसमें बड़ी मदद दे रहे हैं. श्मित्स कहते हैं, "अगर समाज में इस बारे में इतनी चर्चा हो ही रही है तो उसी के हिसाब से उसमें पैसे भी डालने होंगे. ऐसा नहीं करेंगे तो ये सब नहीं बदल पाएगा."

सरकार पर गंभीर ना होने के आरोप

मौजूदा सरकार के महागठबंधन में शामिल एसपीडी, एफडीपी और ग्रीन्स पार्टी से श्मित्स काफी निराश हैं. उनका कहना है कि एक साल पहले नई सरकार की बागडोर संभालने के समय किए वादे उन्होंने पूरे नहीं किए हैं. मिसाल के तौर पर, बुंडेसटाग के कैफेटेरिया के मेनू में अब भी केवल गिने-चुने ऑर्गेनिक उत्पाद हैं. किसानों को काफी चिंता है कि अगर मुक्त व्यापार समझौते हुए तो वह छोटे किसानों के लिए फायदेमंद नहीं होगा.

इसी साल दक्षिण अमेरिकी देशों, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों के साथ ईयू एलायंस बनाने पर काम चल रहा है. कनाडा के साथ CETA समझौते के बारे में श्मित्स कहते हैं, "हम जर्मनी में मीट की खपत कम करना चाहते हैं ताकि जलवायु को बचा सकें. लेकिन ठीक उसी समय एक समझौते में सुधार कर रहे हैं ताकि कनाडा से करीब 60,000 टन बीफ का आयात कर सकें?"

देश के किसान जर्मन सरकार से ऐसे सवालों पर गंभीरता से सोचने की मांग कर रहे हैं. ऑर्गेनिक किसान जर्मन सरकार से अपनी उपज के बेहतर दाम मांग रहे हैं, साथ ही ईको फ्रेंडली और जीवों की किस्मों को बचाए रखने वाले तरीके अपनाने की अपनी प्रतिबद्धता भी दोहरा रहे हैं.

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