पिछले आम चुनावों में जर्मनी की एफडीपी पार्टी संसद में पहुंचने में नाकाम रही. इसलिए लोगों ने उसे खत्म मान लिया था. लेकिन कारोबारियों की पार्टी कही जाने वाली एफडीपी इस बार फिर से किंगमेकर बन सकती है.
विज्ञापन
गुरुवार को जारी एक सर्वे में पता चला है कि 24 सितंबर को होने वाले जर्मनी के आम चुनावों में फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) को सीडीयू और एसपीडी के बाद तीसरा स्थान मिल सकता है. सर्वे संस्था आलेन्सबाख के सर्वे में हिस्सा लेने वाले 10 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे एफडीपी को वोट देंगे. अगर एफडीपी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनती है तो संभावना है कि वह चुनाव के बाद बनने वाले सत्ताधारी गठबंधन में शामिल हो.
आलेन्सबाख के सर्वे के मुताबिक चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू और बवेरिया में उसकी सहयोगी सीएसयू पार्टी को 38.5 प्रतिशत मत मिल सकते हैं जबकि एसपीडी को 24 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिल सकता है. इस समय सीडीयू और एसपीडी मिल कर सरकार चला रही हैं. मैर्केल बतौर चांसलर चौथे कार्यकाल के लिए चुनावी मैदान में उतरी हैं जबकि उनके मुकाबले एसपीडी ने मार्टिन शुल्त्स को चांसलर पद का उम्मीदवार बनाया है.
आलेन्सबाख के सर्वे के अनुसार वामपंथी पार्टी डी लिंके को 7.5 प्रतिशत जबकि पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को उठाने वाली ग्रीन पार्टी को 8 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिल सकता है.
मजेदार नामों वाली जर्मनी की पार्टियां
चांसलर अंगेला मैर्केल की रूढ़िवादी सीडीयू और चुनावों में उन्हें चुनौती देने जा रहे मार्टिन शुल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी जैसे बड़े दल तो हैं ही, यहां जानिए अजीब नामों वाली कुछ छोटी जर्मन पार्टियों के बारे में.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler
एनीमल प्रोटेक्शन पार्टी
जर्मनी में ऐसे पशु अधिकार कार्यकर्ता भी हैं जो टोड मेंढकों को सड़क पार कराने के लिए पूरा हाइवे ब्लॉक कर चुके हैं. लेकिन पर्यावरण और पशु अधिकारों के एजेंडा पर काम करने वाली बड़ी ग्रीन पार्टी ऐसी कई छोटी पार्टियों की हवा निकाल चुकी है. तभी तो 2013 में एनीमल प्रोटेक्शन पार्टी को छह करोड़ से अधिक जर्मन वोटरों में से डेढ़ लाख से भी कम वोट मिले.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Pleul
द रिपब्लिकंस
जी हां, अमेरिका की ही तरह जर्मनी में भी एक रिपब्लिकन पार्टी है. इन्हें आरईपी कहते हैं और इनका डॉनल्ड ट्रंप की पार्टी से कोई सरोकार नहीं है. जर्मनी के रिपब्लिकंस असल में दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी हैं जो खुद को "रूढ़िवादी देशभक्त" कहते हैं और "अपनी संस्कृति और पहचान को बचाने" के लिए संघर्ष को अपना मकसद बताते हैं.
तस्वीर: DW
द पार्टी
बहुत ही सीधे सादे तरीके से इस पार्टी ने अपना नाम ही पार्टी रखा. जर्मनी की व्यंग्य पत्रिका "टाइटेनिक" के संपादकों ने मिल कर 2004 में इसे स्थापित किया. इस पार्टी के प्रमुख मार्टिन जोनेबॉर्न (तस्वीर में) ने अपनी पार्टी को 2014 में यूरोपीय संसद में एक सीट भी जितायी. आने वाले बुंडेसटाग चुनावों में इन्हें बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. पिछले चुनाव में तो 80 हजार से भी कम वोट मिले.
तस्वीर: picture-alliance/Sven Simon/M. Ossowski
रेफरेंडम पार्टी
इस पार्टी के लिए स्विट्जरलैंड बहुत बड़ा आदर्श है. पार्टी का नारा है "रेफरेंडम के द्वारा लोकतंत्र" लाना. इनके नेता चाहते हैं कि देश के सभी राजनीतिक फैसले सीधे जनता ही ले. वे मानते हैं कि इसी तरह देश में असली लोकतंत्र की स्थापना होगी और "राजनीतिक दलों के राज" से आगे बढ़ कर सीधे वोटरों के मतलब की नीतियां बनायी जा सकेंगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट पार्टी ऑफ जर्मनी (एमएलपीडी)
भले ही एक समय पर आधा जर्मनी कम्युनिस्ट राज में रहा, लेकिन एमएलपीडी एक बहुत छोटी पार्टी है. सन 1949 से 1989 तक पूर्वी जर्मनी पर सोशलिस्ट युनिटी पार्टी का राज चला. लेकिन आज अति वामपंथी एमएलपीडी की जर्मन राजनीति में कोई भूमिका नहीं है. पिछले बुंडेसटाग चुनाव में उन्हें केवल 24 हजार वोट मिले.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Link
क्रिस्चियंस फॉर जर्मनी
"एलायंस सी - क्रिस्चियंस फॉर जर्मनी" नाम के अनुसार ही एक ईसाई दल है, जो 2015 में तब बनी जब दो दल क्रिस्चियन-फंडामेंटलिस्ट पार्टी ऑफ बाइबल अबाइडिंग क्रिस्चियंस और पार्टी ऑफ लेबर, एनवायर्नमेंट एंट फैमिली मिल गयीं. पार्टी बाइबल के मूल्यों का समर्थन करती है. जैसे नागरिकों की आजादी, कानून, शादी, परिवार और ईश्वर की रचनाओं का संरक्षण.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. MacDougall
द पेंशनर्स
2017 के बुंडेसटाग चुनाव में यह पार्टी बैटल पेपर पर नहीं दिखेगी. जर्मन पेंशनर्स पार्टी अब रिटायर हो चुकी है. 2013 चुनाव में इन्हें केवल 25 हजार वोट मिले और 2016 में पार्टी ने खुद को भंग करने का फैसला कर लिया. (कार्ला ब्लाइकर/आरपी)
तस्वीर: picture-alliance/S. Gollnow
7 तस्वीरें1 | 7
सर्वे के नतीजों से इस बात की संभावना बढ़ गयी है कि एफडीपी मैर्केल के नेतृत्व में बनने वाली सीडीयू-सीएसयू की सरकार में शामिल हो सकती है. वह अकेले या फिर ग्रीन पार्टी के साथ सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा बन सकती है.
ऐतिहासिक रूप से, एफडीपी सीडीयू के साथ जूनियर पार्टी की हैसियत से सालों तक सरकार में रही है. लेकिन 1970 के दशक में वह एसपीडी के विली ब्रांट के जमाने में भी सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा रही. अभी जर्मन राज्य राइनलैंड पैलेटिनेट में भी वह एसपीडी के साथ मिल कर सरकार चला रही है.
जर्मनी में 2013 में हुए पिछले आम चुनावों में एफडीपी बहुत कम अंतर से पांच प्रतिशत मतों का आंकड़ा हासिल करने से चूक गयी थी जो संसद में जाने के लिए जरूरी है. लेकिन यह भी सही है कि वह दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में बनने वाली 25 में 17 सरकारों में किंगमेकर की भूमिका में रही है. ताजा सर्वे के आंकड़े इशारा करते हैं कि सत्ता की चाबी फिर से एक बार उसके हाथ में आ सकती है.
जर्मनी में चुनाव लड़ने के लिए क्या चाहिए
सीडीयू और एसपीडी जैसी बड़ी पार्टियां तो चुनावी सूची में होंगी ही, लेकिन छोटी पार्टियों के लिए जर्मन आम चुनाव के बैलट में जगह बनाना बड़ी बात है. देखिए कैसे होता है ये काम.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
24 सितंबर को जब जर्मन नागरिक अपनी नई सरकार चुनने के लिए वोट देंगे तो ज्यादातर सीडीयू, एसपीडी, ग्रीन पार्टी या शायद एएफडी को वोट दें. लेकिन कई पार्टियों का नाम तो वोटर पहली बार सीधे बैलट पेपर पर ही देखते हैं.
तस्वीर: Reuters/Hannibal
बैलेट पेपर में नाम लाने के लिए छोटी पार्टियों को पहला काम तो ये करना पड़ता है कि समय पर चिट्ठी 'लेटर ऑफ इंटेंट' भेज कर अपनी मंशा जाहिर करें. और दूसरा काम ये सिद्ध करना होता है कि वे असल में एक राजनैतिक दल हैं.
तस्वीर: AP
ऐसी पार्टी जिसके पिछले चुनाव से लेकर अब तक बुंडेसटाग या किसी राज्य की संसद में कम से कम पांच सदस्य भी ना रहे हों, वह गैर-स्थापित पार्टी मानी जाती है. इन्हें चुनाव से पहले लिखित में 'लेटर ऑफ इंटेंट' भेजना पड़ता है. इसे "बुंडेसवाललाइटर" यानि केंद्रीय चुनाव प्रबंधक को भेजना होता है और यह पत्र चुनाव की तारीख से 97 दिन पहले मिल जाना चाहिए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Andersen
इस लेटर ऑफ इंटेंट पर पार्टी प्रमुख और दो उप प्रमुखों के हस्ताक्षर होने चाहिए. उनके कार्यक्रमों का ब्यौरा होना चाहिए और साथ ही एक राजनीतिक दल के तौर पर उनके स्टेटस का सबूत होना चाहिए. जर्मन कानून (पार्टाइनगेजेत्स) के आधार पर चुनाव प्रबंधक और टीम तय करते हैं कि पार्टी मान्य है या नहीं. इसके लिए उनका मुख्यालय जर्मनी में होना चाहिए और कार्यकारिणी के बहुसंख्यक सदस्य जर्मन नागरिक होने चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Zinken
इसके पहले 2013 में हुए संसदीय चुनावों में वोटरों के पास 30 से भी अधिक पार्टियों में से चुनने का विकल्प था. इनमें से केवल पांच दल ही बुंडेसटाग में जगह बना पाये. ये थे सीडीयू और उसकी बवेरियन सिस्टर पार्टी सीएसयू, एसपीडी, लेफ्ट पार्टी डी लिंके और ग्रीन पार्टी.
तस्वीर: Reuters/H. Hanschke
आर्थिक रूप से उदारवादी मानी जाने वाली एफडीपी को बुंडेसटाग में जगह पाने के लिए जरूरी 5 फीसदी वोट भी नहीं मिल सके थे. पांच प्रतिशत की चौखट पार करने वाले को ही संसद में प्रवेश करने को मिलता है. ऐसा ही अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के साथ भी हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Hase
एएफडी और एफडीपी दोनों पार्टियां तो बहुत कम अंतर से पांच प्रतिशत की शर्त को पूरा करने से चूक गयीं. लेकिन कई दूसरी बहुत छोटी पार्टियां जैसे एनीमल प्रोटेक्शन पार्टी, मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट पार्टी और कुछ अन्य तो कुछ हजार वोट लेकर बहुत पीछे रह गयी थीं.
तस्वीर: Reuters/W. Rattay
7 तस्वीरें1 | 7
एफडीपी को कारोबारी तबके की पार्टी समझा जाता है. इसलिए उसके वोटरों में सेल्फ-इम्प्लॉयड लोग सबसे ज्यादा शामिल हैं जिनमें खासकर बिजनेसमैन, डेंटिस्ट, वकील और कुछ कामगार भी शामिल हैं. पार्टी का जोर हमेशा सरकारी नियंत्रण में कमी और टैक्स में कटौतियों पर रहा है, लेकिन वह वित्तीय बाजार को निरंकुश छोड़ने के भी खिलाफ है. यह पार्टी यूरोपीय संघ की मजबूत समर्थक है और उसका सबसे ताजा घोषणापत्र भी यूरोपीय संघ के भीतर और अधिक नजदीकी संबंधों की वकालत करता है.