जर्मनी: वेश्यावृत्ति कानून का विरोध कर रही हैं सेक्स वर्कर
इलियट डगलस
२२ अक्टूबर २०२१
जर्मनी की सरकार ने पांच साल पहले वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम को लागू किया था. इसका मकसद यौनकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करना था, लेकिन अब वही इस नियम का विरोध कर रही हैं. आखिर क्यों?
विज्ञापन
ओलिविया जर्मनी की राजधानी बर्लिन में रहती हैं. वह पिछले करीब एक दशक से सेक्स वर्कर के तौर पर काम कर रही हैं. इस नए नियम को वह दखलअंदाजी के तौर पर देखती हैं. मुस्कुराते हुए कहती हैं, "यूं ही नहीं लोग कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे पुराना पेशा है. लोग हमेशा सेक्स वर्क करने का कोई न कोई तरीका खोज ही लेंगे."
वेश्यावृत्ति को पेशे के तौर पर अपनाने की उनकी कोई योजना नहीं थी. वह तो रोमांचक जीवन की तलाश में देश के एक छोटे से शहर से बर्लिन चली आई थीं. हालांकि, बाद में दोस्त के कहने पर वह वेश्यावृत्ति के पेशे में आ गईं. अब उनकी उम्र 30 साल होने को है.
इस दौरान अब तक उन्होंने करीब हर तरह का सेक्स वर्क किया है. वह लक्जरी एस्कॉर्ट के तौर पर भी सेवा दे चुकी हैं और इरॉटिक मसाज करने वाली के तौर पर भी. उन्होंने वेश्यालय में भी काम किया है और घर पर भी ग्राहकों को सेवा दी है.
ओलिविया विस्तार से बताती हैं, "आय और सुरक्षा के लिहाज से कई तरह के लेवल हैं." उन्होंने अपने काम के दौरान ब्लैक सेक्स वर्कर्स कलेक्टिव के साथ मिलकर एक समुदाय की स्थापना की. ब्लैक सेक्स वर्कर्स अमेरिकी लोगों की एक पहल है. साथ ही, ओलिविया सेक्स वर्कर्स यूनियन की सदस्य भी हैं.
इसके बावजूद, वह जर्मनी की उन हजारों सेक्स वर्कर्स में से एक हैं जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है. पिछले पांच वर्षों से वह मुकदमा होने के खतरे के बीच अपना काम कर रही हैं.
कर्जे में डूबी दिल्ली के सेक्स वर्कर
04:08
90 प्रतिशत का नहीं है रजिस्ट्रेशन
ओलिविया ने जब सेक्स वर्कर के तौर पर काम करना शुरू किया था, तब जर्मनी में सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को आज की अपेक्षा अच्छी तरह से संरक्षित किया गया था. 2002 के वेश्यावृत्ति अधिनियम ने औपचारिक रूप से इसे व्यवस्थित कर रखा था. इसका उद्देश्य सेक्स वर्कर्स की स्वास्थ्य देखभाल और बेरोजगारी बीमा जैसे लाभ तक पहुंच सुनिश्चित करना था.
हालांकि, कुछ सांसदों को चिंता थी कि यह कानून काफी ज्यादा नर्म है. सेंटर लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी) की पूर्व परिवार कल्याण मंत्री मानुएला श्वेजिग ने 2014 में जर्मन अखबार डि त्साइट को बताया था, "इस देश में स्नैक बार से ज्यादा आसान वेश्यालय खोलना है."
इसके एक साल बाद, उनकी गठबंधन की सरकार ने नए कानून का बिल पेश किया. इसके तहत सभी सेक्स वर्कर्स को रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य बनाया गया. यह कानून 21 अक्टूबर 2016 को अधिनियमित किया गया और 1 जुलाई 2017 को लागू हुआ.
इसका मतलब, सेक्स वर्कर्स को अपना पता, संपर्क की जानकारी, असली नाम जैसे निजी डेटा देना और नियमित तौर पर स्वास्थ्य से जुड़ा परामर्श लेना अनिवार्य हो गया. इस स्थिति में अगर कोई सेक्स वर्कर रजिस्ट्रेशन नहीं कराती है, तो वह कानून तोड़ रही है. वजह चाहे गोपनीयता से जुड़ी चिंता हो या जर्मनी में कोई स्थायी या कानूनी पता न होना, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.
इस अधिनियम के तहत, सेक्स वर्क के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करना भी जरूरी होता है. साथ ही, वेश्यालय चलाने के लिए परमिट चाहिए होता है.
2019 के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम के तहत 40 हजार यौनकर्मियों का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है. हकीकत में यह आंकड़ा चार लाख से अधिक हो सकता है. इसका मतलब है कि जर्मनी में 90 प्रतिशत सेक्स वर्कर का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है और वे कानूनी रूप से अवैध हैं.
कानूनी तौर पर वैध सेक्स वर्कर का बड़ा हिस्सा वेश्यालयों में काम करता है. वहीं, जिन्होंने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है उनमें से ज्यादातर अपने घर या गलियों में ग्राहकों को सेवा देती हैं.
जर्मनी की 10 चौंका देने वाली बातें
भारतीय अक्सर एक बनी बनाई छवि के साथ जर्मनी या यूरोप आते हैं. लेकिन यहां काफी चीजें अलग हैं जो कई लोगों के लिए एक कल्चरल शॉक हो सकता है. तो पेश हैं 10 बड़े झटके...
तस्वीर: picture-alliance/Fellow
रात को सड़कों पर बियर पीतीं लड़कियां
राम राम राम. हमारे यहां तो ताऊ लोग ऐसे वाले कपड़े पहनकर दिन में ना निकलन दें छोरियों को. और यहां, बियर की बोतल हाथ में लेकर जो जोर-जोर से हंसते हुए दिख जाएंगी रात को 2 बजे भी.
तस्वीर: picture-alliance/F. Diemer
सेक्स फ्री है
हम सुनते आए हैं कि विदेशों में सेक्स फ्री है, पर उसका मतलब यहां समझ में आता है. फ्री मतलब, सेक्स वर्कर का रजिस्ट्रेशन होगा और फिर कोई छापा नहीं पड़ेगा पुलिस का. वर्कर को पैसे दो, सेक्स लो. ऐसे वाला फ्री है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रिक्शा, ऑटो तो है ही नहीं
घर से निकलो, बस और ट्राम उपलब्ध है. पर ऑटो और रिक्शा नहीं है. मतलब बस स्टॉप तक भी पैदल कहां जाए, कोई भैयाजी हों तो ले लेवें 5-10 रुपल्ली. इधर दिल्ली में तो ई-रिक्शा भी आ गए हैं. पर यहां ना हैं ये सब.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Schmidt
साइकल पर टाई वाले
हमारे यहां तो कोई टाई तब लगाए जब उसे इंटरव्यू पर जाना हो. नही तो टाईवाले सब कारों में ही चलते हैं. और वो भी नैनो नहीं, लंबे वालियों में. यहां जर्मनी में साइकलों पर घूम रहे हैं टाई वाले.
तस्वीर: Angelika Klein/Universität des Saarlandes
हर दुकान में शराब
शराबियों को तो पानी तक की जरूरत न रहे, हर खास ओ आम दुकान पर बिकती हर तरह की शराब देखकर मुंह में इतना पानी तो यूं ही आ जाएगा. खुली बिक्री है साहब.
तस्वीर: imago stock&people
सब काम अपने हाथ
यहां नौकर नहीं है. सब काम अपने हाथ ही करना पड़ेगा. मतलब कपड़े, बर्तन, सफाई सब कुछ. तो ज्यादा रईसी मत झाड़ो, चाहे जितना पैसा कमाते हो पर बर्तन खुद ही धोने होंगे.
तस्वीर: imago/mm images/Fickinger
लिखित वक्त पर बस
स्टॉप पर टाइमटेबल लगा है. बस शायद ही कभी इधर-उधर उधर होती हो. गूगल से टाइम चेक करके निकलो और वक्त पर पहुंच जाओ. लेट हो गए तो बस ना रुकने वाली है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Spata
बियर के लिए भीख
असल में भीख नहीं है. बड़े ही प्यार से मांगते हैं मांगने वाले. पैसा दो न, बियर पीनी है. और इतने प्यार से मांगते हैं कि मना भी नहीं होता. दे दो तो दुआ नहीं देते पर ना दो तो बुरा भी नहीं मानते, ज्यादातर मांगने वाले.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Andreas Gebert
ना लाइट जाए न पानी आए है
24 घंटे पानी भी है और लाइट भी. स्मार्ट सिटी है क्या जी? ना ना... ऐसे ही गांवों में भी होता है. पानी हर वक्त, ठंडा भी और गरम भी. बिजली भी चौबीसों घंटे. और नल में जो पानी आता है न, उसे पी भी सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/R. Weihrauch
उलटा ट्रैफिक
मैं बस में चढ़ा और अपनी तरफ से सही ही चढ़ा. पर बस उलटी तरफ चल दी. फिर पता चला कि यहां ट्रैफिक दाहिनी ओर चलता है. हम भारतीयों के लिए तो ये उलटा है.
तस्वीर: Soeren Stache/dpa/picture alliance
10 तस्वीरें1 | 10
गोपनीयता से जुड़ी चिंता
कानून का उद्देश्य सेक्स वर्कर्स की स्थितियों में सुधार करना, मानव तस्करी, शोषण और गुलामी की संभावना को कम करना था. हालांकि, सेक्स वर्कर्स का कहना है कि इसने वास्तव में उनकी स्थिति को और खराब कर दिया है.
हाइड्रा संगठन की प्रवक्ता रूबी रेबेल्डे कहती हैं, "जिन लोगों को सेक्स वर्क के बारे में कोई जानकारी नहीं है, वे कहते हैं कि यह उतना बुरा नहीं है. लेकिन जर्मनी में आज भी सेक्स वर्क को बुरे नजरिए से देखा जाता है. और इसका मतलब है कि बहुत से लोग खुलकर अपनी पहचान जाहिर नहीं कर सकते हैं."
बर्लिन में 40 साल पहले सेक्स वर्कर्स के लिए वकालत और परामर्श सेवा की स्थापना की गई थी. जब से नया कानून बना है, तब से यह संस्था इस कानून का विरोध कर रही है.
जर्मनी में काम करने वाली कई सेक्स वर्कर दूसरे देशों की हैं. वे लंबी प्रक्रिया और उलझनों की वजह से रजिस्ट्रेशन नहीं कराती हैं. रजिस्ट्रेशन कराने वाली गैर-जर्मन सेक्स वर्कर्स में सबसे ज्यादा संख्या यूरोपीय संघ के सदस्य रोमानिया और बुल्गारिया की है. लेकिन रेबेल्डे का मानना है कि जर्मनों की तुलना में विदेशी सेक्स वर्कर्स के रजिस्ट्रेशन की संभावना कम होती है.
रेबेल्डे कहती हैं, "इसका मतलब है कि जो लोग जर्मनी में सेक्स वर्कर के रूप में काम करने के लिए आती हैं, उन्हें वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम के तहत ‘अवैध' बना दिया जाता है."
इन सभी बातों के अलावा, इसका यह भी मतलब हुआ कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान जब लॉकडाउन लगाया गया तो उन सेक्स वर्कर्स को सहायता नहीं मिली जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था. इस दौरान रजिस्टर्ड सेक्स वर्कर्स की संख्या में भी काफी कमी देखी गई.
साथ मिलकर काम करना ज्यादा सुरक्षित
नए कानून के तहत, सेक्स वर्कर एक जोड़े या समूह के तौर पर नहीं रह सकते और न ही काम कर सकते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि तकनीकी रूप से अपार्टमेंट या घर शेयर करने से वह जगह वेश्यालय बन सकती है. और वेश्यालय के लिए परमिट चाहिए होता है जबकि यह एक सामान्य व्यवस्था है कि अगर सेक्स वर्कर समूह में होती हैं, तो ग्राहकों द्वारा हिंसा करने या ब्लैकमेल करने की संभावना कम होती है.
ओलिविया कहती हैं, "अगर मैं घर पर अकेले काम करूं, तो इससे मैं अधिक खतरे में पड़ सकती हूं. नए कानून के लागू होने के बाद, अपार्टमेंट में अकेले में काम करने के दौरान मेरे साथ दुर्व्यवहार और ब्लैकमेल के प्रयास पहले की तुलना में ज्यादा हुए हैं."
रेबेल्डे कहती हैं, "साथ काम करना ज्यादा सुरक्षित है क्योंकि आप एक-दूसरे पर नजर रख सकते हैं. अपने अनुभव साझा कर सकते हैं."
मर्लिन मुनरो की तस्वीर से हुई थी प्लेबॉय की शुरुआत
प्लेबॉय मैगजीन की शुरुआत ह्यू हेफनर ने की थी. प्लेबॉय नंगी तस्वीरें छापने के लिए मशहूर है, लेकिन सिर्फ इन तस्वीरों ने इस मैगजीन को इतना चर्चित नहीं बनाया. देखिए प्लेबॉय का सफर.
तस्वीर: picture-alliance/United Archives
मर्लिन मुनरो से शुरुआत
1953 में प्लेबॉय की पहली पत्रिका मर्लिन मुनरो की पुरानी तस्वीर वाले आवरण के साथ बाजार में उतरी जिसके अंदर कई नंगी तस्वीरों के साथ कुछ आलेख थे. उस वक्त यह एक क्रांतिकारी कदम था. इस पत्रिका ने इसके बाद लगातार सीमाओं को तोड़ा. माना जाता है कि अमेरिका में 1960 के दशक में लोगों के यौन आचरणों में जो क्रांतिकारी बदलाव आया उसे चिंगारी प्लेबॉय ने लगाई थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/I. West
नयी पत्रकारिता
ये सुनने में मजाक जैसा लगता है कि आलेख पढ़ने के लिए कोई प्लेबॉय लेता होगा लेकिन इस पत्रिका ने अपने आलेखों से भी काफी नाम बटोरा. इस पत्रिका के लिए बाइलाइन हासिल करने वालों में हंटर एस थॉम्पसन और ट्रूमैन कापोटे का भी नाम था. इन लोगों को इस पत्रिका के आलेखों से बहुत ख्याति मिली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Bond
राजनीति का प्लेबॉय
गुमनाम मॉडल और शोहरत पाने के इच्छुक लोगों ने प्लेबॉय में दिख कर अपना प्रचार किया. इनमें दुनिया के कई प्रमुख लोग भी थे. राजनेताओँ के बड़े बड़े इंटरव्यू भी पत्रिका में छपते थे. इतिहासकार एलेक्स हाले ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर और बाद में मैल्कम एक्स से अमेरिकी नागरिक अधिकार क्रांति के दौरान बात की थी और उसे इस पत्रिका ने छापा था.
तस्वीर: AP
अभूतपूर्व फोटोग्राफी
62 साल से इस पत्रिका के बिकने की सबसे बड़ी वजह है महिलाओं की नंगी तस्वीरें. ह्यू हेफनर ने अपने लिए एक अनोखी जीवनशैली रची थी, वो पत्रिका के लिए तस्वीर खिंचाने वाली कई युवा लड़कियों के साथ रोमांस करते और उनके साथ रहते थे. इसके अलावा एनी लाइबोवित्स और हेलमुट न्यूटन जैसे नामी फोटोग्राफरों पर पत्रिका के लिए तस्वीरें खींचने की जिम्मेदारी थी.
मार्गरेट एटवुड और हारुकी मुरुकामी जैसे लेखकों ने चमकते चिकने पन्नों पर अपनी कहानियां छपवा कर खूब चर्चा बटोरी और प्लेबॉय एक ऐसा प्रकाशन बन गया जहां हर लेखक छपना चाहता था. "फाइट क्लब" के मशहूर लेखक चक पालहनियुक ने भी कई बार अपनी नयू कृतियों को प्लेबॉय के जरिये लोगों के सामने रखा.
कई दूसरी भाषाओं में पहले ही छप चुका प्लेबॉय 1972 में आखिरकार जर्मनी पहुंचा. हालांकि नग्नता को लेकर यहां चल रही अलग अलग बहसों के बीच यहां यह अमेरिका की तरह लोकप्रिय नहीं हुआ. जर्मनी की विख्यात स्केटिंग वर्ल्ड चैंपियन काटरीना विट ने अमेरिकी संस्करण के लिए 1998 में नंगी तस्वीरें खिंचवायू. तब उनकी उम्र 32 साल थी और यह प्लेबॉय का दूसरा ऐसा संस्करण था जिसकी सारी प्रतियां बिक गयूं.
तस्वीर: picture-alliance/ZB/Playboy
असरदार कारीगरी
प्लेबॉय के पन्नों पर कई प्रभावशाली कलाकारों का भी असर रहा. पत्रिका के लिए मॉडलों की शूट को निर्देशित करने वालों में कीथ हैरिंग और डेविड लाशेपैल भी थे. सल्वाडोर डाली ने भी 1973 में पत्रिका के लिए अतियथार्थवादी कामुकता को निर्देशित किया था.
तस्वीर: Getty Images/Hulton Archive
तस्वीर लेने के बदलते तरीके
लेना सोडरबर्ग की नवंबर 1972 के संस्करण के लिए ली गयी यह तस्वीर संयोगवश इलेक्ट्रॉनिक इमेजिंग की दुनिया की एक मानक तस्वीर बन गयी. अकादमिक पेपर में तस्वीर उतारने की इस प्रक्रिया को "लेना" कहा जाता है और यह कंप्यूटर के इतिहास में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की गयी तस्वीर है.
तस्वीर: Gemeinfrei
वयस्कों की पत्रिका से पर्दा ना उठा
पत्रिका के संपादन की जिम्मेदारी 1988 में अपनी बेटी क्रिस्टी के हवाले करने से पहले तमाम वर्जनाओं और सीमाओं को तोड़ने के बावजूद ह्यू हेफनर इसे बेपर्दा नहीं कर सके. अमेरिका में वयस्कों की सभी पत्रिकाओं को एक आवरण में बंद करके ही बेचा जा सकता था. कवर ऐसा होना चाहिए जो नंगी तस्वीरों को 18 साल से कम उम्र के लोगों से छिपा ले. यह नियम 2015 में बदल दिया गया.
तस्वीर: Playboy/Christopher von Steinbach
नमस्कार भारत
लंबे समय से प्लेबॉय के प्रकाशक इस पत्रिका को भारत लाने की कोशिश में हैं लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली. 2012 में अभिनेत्री शर्लिन चोपड़ा पहली भारतीय महिला बनीं जिन्होंने प्लेबॉय के लिए नंगी तस्वीरें खिंचवायी. प्लेबॉय की योजना भारत में क्लब खोलने की भी थी. पहला क्लब गोवा में खुलना था लेकिन प्रशासन की अनुमति नहीं मिली.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari
मर्दों की नजर
महिलाओं को उपभोग की वस्तु के रूप में दिखाने के लिए इस पत्रिका की लगातार आलोचना होती रही है और ग्लोरिया स्टाइनेम इसकी सबसे बड़ी आलोचक रही हैं. प्लेबॉय ने इन आलोचनाओं के जवाब में पत्रिका का एक जुड़वां संस्करण प्लेगर्ल के रूप में 1973 से शुरू किया. इनमें केवल नग्न पुरुषों की तस्वीरें थी और इसके साथ कामुक नग्नता के एक नये युग की शुरुआत हुई.
खरगोश के दो बड़े कानों वाला लोगो प्लेबॉय का लोगो है. प्लेबॉय के लिए यह पत्रिका और इससे जुड़ी वेबसाइट की तुलना में ज्यादा मूल्यवान है. यह लोगो बहुत सारे क्लबों से लेकर टीशर्ट, फोन कवर, नोटबुक और तमाम दूसरी जगहों पर इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: Getty Images/C. Gallay
धीरे धीरे गायब नग्नता
अक्टूबर 2015 से पत्रिका में पूरी नंगी तस्वीरों पर रोक लगा दी गयी. यह फैसला इसलिए किया गया क्योंकि नये मालिकों को इंटरनेट पोर्नोग्राफी की बजाय वैनिटी फेयर जैसी पत्रिकाओँ से मुकाबला करना पड़ रहा था. इसके साथ ही हेफनर ने अपने विख्यात 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की कीमत वाले प्लेबॉय मैनसन को बेचने का एलान कर दिया. हालांकि यह उनका घर बना रहा. प्लेबॉय के लिए कई शूटिंग की पृष्ठभूमि में यही घर है.
13 तस्वीरें1 | 13
नए कानून का समर्थन
कुछ लोग नए कानून का समर्थन भी करते हैं. समर्थकों का कहना है कि नए कानून ने वाकई में सेक्स वर्कर्स की सुरक्षा बढ़ा दी है. बर्लिन शहर के सेक्स वर्क की प्रवक्ता और एसपीडी की निर्वाचित प्रतिनिधि एन कैथरीन बीवेनर कहती हैं, "वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम के अनुसार, रजिस्ट्रेशन कराने से राज्यों के पास इस बात की जानकारी होती है कि कितने लोग यह काम कर रहे हैं. इन आंकड़ों के आधार पर उनके अधिकरों के लिए काम किया जाता है."
कैथरीन पूरे बर्लिन शहर में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया की देखरेख के लिए जिम्मेदार हैं. वह कहती हैं, "रजिस्ट्रेशन की वजह से, सेक्स वर्क चोरी-छिपे नहीं होता. इससे सेक्स वर्कर्स की स्थिति में सुधार करने में मदद मिलती है."
विज्ञापन
नॉर्डिक मॉडल
महामारी के दौरान, जब सोशल डिस्टेंसिंग नियमों के तहत सेक्स वर्क पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, तब एसपीडी के सांसदों और तत्कालीन चांसलर अंगेला मैर्केल की सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेट पार्टी ने वेश्यालय को और भी लंबे समय तक बंद करने और सेक्स वर्क इंडस्ट्री की पूरी तरह समीक्षा करके इसमें सुधार करने की बात कही थी.
उनके और कई अन्य लोगों ने इसके लिए जो समाधान बताए उसे तथाकथित नॉर्डिक मॉडल कहते हैं. इसके तहत, सेक्स के लिए पैसे देना अवैध है, लेकिन सेक्स बेचना अवैध नहीं है.
हालांकि, ओलिविया यह नहीं मानती हैं कि ऐसी व्यवस्था जर्मनी में काम करेगी और सेक्स वर्क पर लगाम लगा पाएगी. वह कहती हैं, "यहां कुछ भी नहीं रुकेगा. कीमतें और बढ़ जाएंगी. अपराध, हिंसा, मानव तस्करी, और ब्लैकमेलिंग बढ़ जाएगी. मुझे इसमें किसी तरह का सकारात्मक पक्ष नजर नहीं आता है.”
नए अधिनियम का संघीय मूल्यांकन 2025 तक पूरा करने की योजना है. एक अंतरिम रिपोर्ट में सिर्फ 2017 और 2018 की घटनाओं को शामिल किया गया है. अब तक, यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि मानव तस्करी को कम करने के लिए अधिनियम का कोई भी कानून सफल रहा है या नहीं.
इस बीच कई राज्यों ने अपने-अपने मूल्यांकन प्रकाशित किए हैं. ब्रेमेन राज्य के दिसंबर 2020 की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया जारी है. हालांकि, सेक्स वर्कर और पेशेवर राजनेता आलोचना करते हैं कि यह कानून तस्करी के खिलाफ पर्याप्त रूप से सुरक्षा उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है. साथ ही, सेक्स वर्कर्स की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है. वे कलंक और भेदभाव की वजह से रजिस्ट्रेशन कराने के लिए अधिकारियों के पास जाने से डरते हैं. यह कानून सेक्स वर्कर्स की सभी जरूरतों को पूरा नहीं करता है.
वहीं, हाइड्रा रेबेल्डे कहती हैं कि अगली बार जब भी हो, सेक्स वर्कर्स की समस्या और उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाया जाएगा, ताकि उनके हिसाब से कानून में संशोधन हो सके. वह कहती हैं, "सेक्स वर्कर्स से बात किए बिना सेक्स वर्कर्स के बारे में बात करना, यह ठीक नहीं है."
नजरअंदाज ना करें डिप्रेशन के ये 10 लक्षण
अवसाद जैसी मानसिक बीमारियों को आज भी मन का वहम और दिमाग का फितूर कह कर नजरअंदाज कर दिया जाता है. लेकिन आप खुद में या अपने प्रियजनों में इन लक्षणों को देखें, तो जरूर ध्यान दें.
तस्वीर: Colourbox/Aleksandr
नींद में गड़बड़
डिप्रेशन कई तरह के होते हैं, इसलिए नींद का कोई एक पैट्रन नहीं होता. कुछ लोग अवसाद के कारण रात रात भर नहीं सो पाते. इसे इंसॉम्निया कहा जाता है. तो कुछ जरूरत से ज्यादा सोने लगते हैं.
तस्वीर: Vera Kuttelvaserova/Fotolia.com
थकान
मन अच्छा तो तन चंगा. जब दिमाग ही ठीक से काम नहीं कर रहा होगा, तो वह शरीर को कैसे संभालेगा. इसलिए डिप्रेशन से गुजर रहे लोग कई बार ज्यादा थका हुआ महसूस करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/CTK Photo/R. Fluger
बुरे ख्याल
डिप्रेशन से गुजर रहे लोग अक्सर अपनी या दूसरों की जान लेने के बारे में सोचते हैं. यहां तक कि नींद में भी उन्हें बुरे ख्याल आते हैं. कई बार इन बुरे सपनों के डर से भी वे सो नहीं पाते.
तस्वीर: Fotolia/fovito
गुस्सा
गुस्से और चिड़चिड़ेपन में फर्क होता है. डिप्रेशन के दौरान इंसान काफी तनाव से गुजरता है. वह सिर्फ सामने वाले पर ही नहीं, खुद पर भी गुस्सा हो जाता है. झगड़ने की जगह उस व्यक्ति को समझने, उससे बात करने की कोशिश करें.
तस्वीर: Fotolia/rangizzz
चिड़चिड़ापन
किसी के चिड़चिड़ेपन का मजाक उड़ाना बहुत आसान है. औरतों को "उन दिनों" का ताना मिल जाता है, तो मर्दों को बीवी से लड़ाई का. लेकिन यह इससे कहीं ज्यादा हो सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
एकाग्रता की कमी
अगर दिमाग को कंप्यूटर मान लिया जाए, तो समझिए कि डिप्रेशन में उसका प्रोसेसर ठीक से काम नहीं कर पाता. आप एक काम पर टिक नहीं पाते, छोटी छोटी बातें भूलने लगते हैं.
तस्वीर: Fotolia/Joerg Lantelme
डर
किसी के डर को निकालने के लिए उसे तर्क समझाने लगेंगे तो कोई फायदा नहीं होगा. अवसाद से गुजर रहा व्यक्ति तर्क नहीं समझता. उसे किसी भी चीज से डर लग सकता है, अंधेरे से, बंद कमरे से, ऊंचाई से, अंजान लोगों से.
तस्वीर: Colourbox
पीठ में दर्द
हमारी रीढ़ की हड्डी गर्दन से ले कर कूल्हे तक शरीर को संभालती है. ज्यादा तनाव से यह प्रभावित होती है और पीठ का दर्द शुरू होता है. कई लोगों को लगातार सर में दर्द भी रहता है जो दवाओं से भी दूर नहीं होता.
तस्वीर: Fotolia
खराब हाजमा
आप सोच रहे होंगे कि भला दिमाग का हाजमे से क्या लेना देना हो सकता है? याद कीजिए बचपन में परीक्षा के डर से कैसे पेट खराब हो जाया करता था. डिप्रेस्ड इंसान हर वक्त उसी अनुभव से गुजरता है.
तस्वीर: Fotolia/Alliance
सेक्स में रुचि नहीं
मर्दों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन आम होता है. परेशानी की बात यह है कि यह किसी दुष्चक्र जैसा है क्योंकि अपने पार्टनर की उम्मीदों पर खरा ना उतरना भी डिप्रेशन की वजह बन सकता है.
तस्वीर: Colourbox/Syda Productions
मदद
बहुत जरूरी है कि डिप्रेस्ड इंसान की मदद की जाए. डॉक्टर के पास जाने और दवाई से हरगिज परहेज नहीं करना चाहिए. जिस तरह किसी भी शाररिक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा और प्यार दोनों की जरूरत पड़ती है, ठीक वैसा ही मानसिक बीमारी के साथ भी होता है.