जर्मनी में उत्तराधिकारी की कमी से बंद हो रही है कंपनियां
११ जून २०२५
जर्मनी के रुडॉल्फ किसलिंग अब रिटायर होना चाहते हैं. कई सालों की मेहनत से उन्होंने हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडिशनिंग का कारोबार खड़ा किया. हालांकि उनके सामने अब जो चुनौती है, उसका उन्होंने कभी सामना नहीं किया.
62 साल के किसलिंग उन हजारों कारोबारियों में हैं जो उत्तराधिकारी नहीं ढूंढ पाने की वजह से अपना कारोबार बंद होने का खतरा झेल रहे हैं. यह हालत उस दौर में है जब एक साल के में एक लाख से ज्यादा नौकरियां खत्म हो गई हैं. जर्मनी की लगभग 99 फीसदी कंपनियां छोटे और मध्यम दर्जे में हैं और उन्हें सामूहिक रूप से 'मिटेलश्टांड' या एसएमई कहा जाता है.
इन्हें जर्मन अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. एसएमई कुल मिला कर जर्मनी के आर्थिक उत्पादन में आधे से ज्यादा का योगदान करते हैं. इसके अलावा लगभग 60 फीसदी लोगों को रोजगार यहीं से आता है और इन्हें निजी निवेश का इंजिन माना जाता है.
कंपनी के बूढ़े मालिकों की चिंता
इनमें हजारों ऐसी कंपनियां हैं जिनके मालिक बूढ़े हो रहे हैं और काम से रिटायर होना चाहते हैं. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था के सामने यह एक बड़ा संकट है. इस समय जर्मनी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की सबसे लंबी आर्थिक मंदी से जूझ रहा है.
किसलिंग ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "मेरे पास कोई नहीं है. मेरा एक बेटा है लेकिन वह यह काम नहीं कर सकता क्योंकि उसने एक बिल्कुल अलग पेशे में काम किया है. कुछ कर्मचारियों की शायद दिलचस्पी हो लेकिन वो यह जिम्मेदारी लेने से डरते हैं."
सरकारी विकास बैंक केएफडब्ल्यू के एक सर्वे के नतीजों से पता चला है कि लगभग 231,000 इस साल के आखिर में अपनी कंपनियां बंद करने की योजना बना रहे हैं. यह संख्या पिछले साल की तुलना में 67,500 ज्यादा है.
इन फैसलों के पीछे सबसे बड़ा कारण है उम्र. आबादी के आंकड़े दिखाते हैं कि लगभग आधे मिटेलश्टांड के मालिकों की उम्र 55 साल से ज्यादा है. 10 साल पहले की तुलना में यह 20 फीसदी ज्यादा है. वो देश की आबादी की तुलना में ज्यादा तेजी से बूढ़े हो रहे हैं. इनमें से 39 फीसदी 60 साल से ज्यादा उम्र के हैं. दूसरी तरफ आबादी जर्मनी की आबादी में 60 साल से ज्यादा उम्र के सिर्फ 30 फीसदी लोग हैं.
केएफडब्ल्यू के मिटेलश्टांड विशेषज्ञ मिषाएल श्वार्त्स का कहना है, "जबसे हमने इन कारोबारों की निगरानी शुरू की तब से कभी ऐसा नहीं हुआ कि इतने सारे छोटे और मध्यम दर्जे के कारोबारी अपना काम बंद करने की योजना बना रहे हों."
उत्तराधिकारी की समस्या ना सिर्फ नौकरियों के लिए खतरा बन रही है बल्कि जर्मनी की आर्थिक स्थिति को भी मोटे तौर पर प्रभावित कर रही है. सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर फंड, कार्पोरेट टैक्स में कमी और दूसरे लुभावने कदमों के जरिए निवेश बढ़ाना चाहती है. हालांकि कारोबारी निवेश बढ़ाने पर अपनी प्रतिबद्धता नहीं दिखा रहे हैं जब कि उन्हें अपने कारोबार के लिए भविष्य के नेतृत्व का सही अंदाजा ना लग जाए.
आईएनजी के ग्लोबल हेड कार्स्टेन ब्रेस्की ने कुछ रिसर्चों का हवाला दे कर बताया कि पिछले दशक में जर्मनी में निवेश 40 से 60 करोड़ डॉलर तक कम हुआ है. ब्रेस्की ने रॉयटर्स से कहा, "निवेश रोके जा रहे हैं क्योंकि कारोबारों के मालिक उत्तराधिकार की पर्याप्त योजना नहीं बना पा रहे हैं."
हुनर का बाजार
फरवरी में आम चुनाव से पहले मिटेलश्टांड के एक और संगठन कमीशन फॉर बिजनेस सक्सेशन बीवीएमडब्ल्यू ने समस्या का समाधान निकालने के लिए कुछ सुझाव दिए. इनमें बिजनेस ट्रांसफर के लिए करों में छूट और वित्तीय हालातों को सुधारने के तरीके शामिल थे.
आयोग के चेयरमैन बेनो बाकी का कहना है, "नई सरकार गठबंधन की शर्तों के मुताबिक इस मुद्दे पर बहुत कम योजना बना रही है, इसमें बिजनेस सक्सेशन का टर्म तो शामिल ही नहीं है."
अर्थव्यवस्था से जुड़े मामलों के मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि सरकार कारोबार में उत्तराधिकार को कई तरीकों से सहयोग दे रही है. मसलन नेक्स्ट-चेंज.ओआरजी जैसी फ्री वेबसाइट जो कारोबारियों की संभावित खरीदारों से मुलाकात कराती है और कम दर पर ब्याज के साथ कर्ज मुहैया कराती है.
सिर्फ पैसे खर्च करने से नहीं होगा जर्मनी का विकास
आंतरिक उम्मीदवारों का छोटा सा दायरा, हुनरमंदों को ढूंढना मुश्किल बनाएगा, खासतौर से अगर बड़ी कंपनियां ज्यादा बड़े पैकेज दें. जर्मनी के पास पहले ही हुनरमंद कामगारों की कमी है.
हालांकि उत्तराधिकारी की कमी का असर बड़ी कंपनियों पर भी हो रहा है. ज्यादातर बड़ी कंपनियों के लिए सप्लायर का काम छोटी कंपनियां करती हैं और उनकी जगह लेने वाला ढूंढना भी कम मुश्किल नहीं. उम्मीदवारों की कमी कई बार भावनात्मक परिवर्तनों को और ज्यादा मुश्किल बना देती हैं. आखिर लोगों ने अपना जीवन लगा कर इन कंपनियों को खड़ा किया है.
कंपनियों के सक्सेशन मामलों के विशेषज्ञ होल्कर वासरमन बताते हैं, "मिटेलश्टांड व्यापार के बिकने में कम से कम दो तिहाई मामलों में मनोविज्ञान की भूमिका होती है. बहुत से कंपनी मालिकों के लिए उनकी कंपनी उनके शरीर के हिस्से जैसे होती है, उन्हें इसे बेचना ऐसा महसूस होता है जैसे हाथ कट रहा हो."
कंपनी बेचने वालों की औसत आयु पिछले साल 61.5 साल से बढ़ कर 63 साल हो गई. दूसरी तरफ जो लोग इन कंपनियों की कमान अपने हाथ में ले रहे हैं उनकी औसत आयु अब भी 38 साल पर स्थिर है. मार्सेल क्रीब भी इनमें शामिल हैं. महज 25 साल की उम्र में वह प्रेटियम एसोसिएट्स के प्रबंध निदेशक बन गए. यह एसएमई 2003 में शुरू हुई थी. कंपनी के फाउंडर के साथ वह एक प्रोजेक्ट में शामिल हुए थे.
क्रीब ने रॉयटर्स को बताया, "उन्होंने सही समय पर मुझसे कहा कि क्या मैं किसी तरह उनकी कंपनी में उनकी जगह ले सकता हूं." उनका यह भी कहना है, "बहुत से युवा एक सतत वेतन और निश्चित भविष्य की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं, बजाय स्वरोजगार की अनिश्चितता को."
पारिवारिक कारोबार
बहुत सी 'मिटेलश्टांड' कंपनियां परिवारों से चलती हैं लेकिन अब कम बेटे-बेटियां ही उस जिम्मेदारी को लेने के लिए तैयार हैं. एक सर्वे से पता चला कि 42 फीसदी परिवारों में कोई सदस्य उत्तराधिकार के लिए मौजूद नहीं था.
याकॉब फॉन डेयर डेकेन 30 साल और उनके पिता 68 साल के थे, जब याकॉब ने उत्तरी जर्मनी में परिवार के कृषि व्यापार को संभालना शुरू किया. हालांकि जब वह 14 साल के थे तभी से इस पर बार बार चर्चा होती थी. याकॉब ने बताया, "इसमें आपके कंधों पर बहुत जिम्मेदारी आएगी." उन्होंने कृषि अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है और एक फिनटेक कंपनी में अक्षय ऊर्जा के प्रोजेक्टों पर काम कर रहे हैं.
याकॉब का कहना है, "कृषि में आपको एक पीढ़ी के लिए एक फार्म मिलता है जिसे आप अपनी अगली पीढ़ी को देते हैं. आप के पास करीब 30 साल होते हैं, जिसमें आप इसे आगे बढ़ाते हैं और यह तय करते हैं कि अगले दशकों तक बना रहे."
प्राइवेट इक्विटी के जरिए कंपनी किसी और को सौंपने के विकल्प को समाधान के तौर पर सुझाया जाता है लेकिनव यह सिर्फ बड़ी कंपनियों के लिए ही विकल्प है. 10 से 20 कर्मचारियों वाले फर्मों के लिए फिलहाल ऐसा कोई समाधान नहीं दिखाई देता है जो लोगों की मदद कर सके. ऐसे में छोटी और मझोली जर्मन कंपनियों की समस्या बढ़ती जा रही है.