कार्बन उत्सर्जन का नया रिकॉर्ड, भारत और चीन जिम्मेदार
५ दिसम्बर २०२३
दुनिया का कार्बन उत्सर्जन इस साल नए रिकॉर्ड पर पहुंच रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि सात साल के भीतर ही 1.5 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान की सीमा पार हो सकती है.
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2023 में कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन का स्तर सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच जाएगा. वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इससे जलवायु परिवर्तन की रफ्तार और तेज होगी और भीषण मौसम के दौर देखने को मिलेंगे.
दुबई में जारी कॉप28 जलवायु सम्मेलन में 5 दिसंबर को ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट जारी की गई. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल जो कार्बन उत्सर्जन का स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था, उसमें इस साल बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं देखी गई है. इसकी वजह वनों की कटाई में आई कुछ कमी को माना गया है.
2023 में बनेगा नया रिकॉर्ड
2023 में उत्सर्जन का नया रिकॉर्ड बन सकता है क्योंकि जीवाश्म ईंधनों के जलाने से दुनियाभर में 36.8 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन होने का अनुमान है. यह मात्रा पिछले साल से 1.1 फीसदी ज्यादा होगी. इस रिपोर्ट को 90 संस्थानों के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है, जिनमें एक्स्टर विश्वविद्यालय शामिल है.
जलवायु परिवर्तनः ये हैं सबसे अच्छे देश
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग पूरी धरती का संकट है. लेकिन कुछ देश हैं जो इस संकट से लड़ने में बाकियों से बहुत आगे हैं. ताजा क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स के मुताबिक सबसे अच्छा प्रदर्शन किसने किया, जानिए...
जर्मनवॉच संस्था ने यूरोपीय संघ के अलावा 60 देशों का अध्ययन किया है. ये देश कुल मिलाकर 92 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मादर हैं. पहले तीन स्थान खाली छोड़े गए हैं, यह कहते हुए कि किसी भी देश का परफॉरमेंस इतना अच्छा नहीं कि उन्हें टॉप तीन में रखा जाए.
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पहले तीन स्थान
स्कैंडेनेविया के तीन देश डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे को क्रमशः 4, 5 और 6 रैंक मिला है.
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भारत टॉप 10 में
इस सूची में भारत को 10वें नंबर पर रखा गया है. पिछले साल भी उसकी रैंकिंग यही थी. भारत से ऊपर यूके, मोरक्को और चिली हैं.
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यूरोप का प्रदर्शन अच्छा
जिन देशों का प्रदर्शन अच्छा माना गया है उनमें ज्यादातर देश यूरोप के हैं. लिथुआनिया, माल्टा, जर्मनी, फिनलैंड, स्विट्जरलैंड, पुर्तगाल, फ्रांस और लग्जमबर्ग ग्रीन जोन में हैं.
सूची में आखिरी स्थान पर कजाखस्तान है, जिसका 64वां रैंक है. पिछले साल के मुकाबले उसके रैंक में 9 स्थानों की गिरावट आई है.
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रेड जोन के देश
कजाखस्तान के बाद सऊदी अरब, ईरान, कनाडा, ताइपेई, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, मलयेशिया, रूस, अमेरिका, अल्जीरिया, हंगरी, पोलैंड, चेक गणराज्य और स्लोवेनिया क्रमशः सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देश हैं.
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हालांकि उत्सर्जन के आंकड़े में जमीन के इस्तेमाल से होने वाला उत्सर्जन शामिल नहीं है. उसे मिलाकर इस साल कुल उत्सर्जन 40.9 अरब टन हो जाएगा.
वैज्ञानिकों ने चीन और भारत में कोयले, तेल और गैस के उपभोग को वृद्धि के लिए विशेष रूप से जिम्मेदार माना है. चीन ने कोविड-19 के बाद इसी साल अपनी सीमाओं को फिर से खोला और आर्थिक गतिविधियां तेज हुईं. भारत में भी बिजली की मांग बहुत तेज हुई है और अक्षय ऊर्जा स्रोतों की रफ्तार से ज्यादा तेजी से ऊर्जा की मांग बढ़ रही है, इसलिए कोयले का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है.
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1.5 डिग्री का लक्ष्य
उत्सर्जन में इस तेज रफ्तार वृद्धि के कारण पृथ्वी के तापमान को औद्योगिक क्रांति के स्तर से औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक पर रोक पाना मुश्किल लग रहा है. रिपोर्ट तैयार करने वाले दल के मुखिया एक्सटर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पिएरे फ्रीडलिंग्स्टाइन कहते हैं, "अब तो यह अटल दिखाई दे रहा है कि हम पेरिस समझौते में तय किए गए 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पार कर जाएंगे.”
2015 में पेरिस में हुए जलवायु सम्मेलन में पूरी दुनिया के नेताओं ने तय किया था कि इस सदी के आखिर तक धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया जाएगा. लेकिन ताजा रिपोर्टें कहती हैं कि यह लक्ष्य अब पूरा नहीं हो पाएगा और 1.5 डिग्री सेल्सियस का स्तर इसी दशक के आखिर तक पार हो सकता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ता है, तो उसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं. इस कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा और कई तटीय शहर डूब जाएंगे. इसके अलावा गर्मी, बाढ़ और कोरल रीफ के विनाश जैसी जानलेवा घटनाएं भी झेलनी होंगी.
फ्रीडलिंग्स्टाइन कहते हैं, "कॉप28 में नेताओं को जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में भारी कटौती पर सहमत होना होगा, ताकि उत्सर्जन कम किया जा सके और 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को जिंदा रखा जा सके.”
कुछ देशों में घटा उत्सर्जन
संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति (IPCC) ने कहा है कि धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियसपर रोकना है, तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी तक घटना होगा. लेकिन उत्सर्जन का स्तर पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ा है. कोविड महामारी के कारण कुछ समय के लिए इसमें कमी देखी गई थी, लेकिन अब यह कोविड के पहले के स्तर से 1.4 फीसदी ऊपर जा चुका है.
बस चार साल बचे हैं!
कुछ साल पहले तक जिस बात को असहनीय माना जाता था, वह अब निकट भविष्य की संभावना के रूप में नजर आने लगी है. यूएन के जलवायु विशेषज्ञ कहते हैं कि अगले चार साल में धरती के तापमान की वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर सकती है.
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मनुष्य के पास वक्त नहीं है
संयुक्त राष्ट्र के जेनेवा स्थित विश्व मौसम संगठन के मुताबिक इस बात की लगभग 50 फीसदी संभावना है कि अगले पांच साल में कम से कम एक बार ऐसा होगा जबकि धरती का औसत तापमान ओद्यौगिक क्रांति से पहले के मुकाबले 1.5 डिग्री ज्यादा रहेगा. नतीजा, जंगल में आग लगने की ज्यादा घटनाएं होंगी.
तस्वीर: David Swanson/REUTERS
मौसम की मार
विश्व मौसम संगठन के महासचिव पेटेरी टालस ने ताजा शोध के हवाले से कहा कि अस्थायी तौर पर ही सही, अब यह संभावना बढ़ गई है कि तापमान 1.5 डिग्री से ऊपर चला जाएगा. ऐसा हुआ तो मौसमी आपदाओं में भी वृद्धि होगी, जैसे कि चीन के ग्वांगजो में 2021 में हुआ था जब बाढ़ ने दर्जनों जानें ली थीं.
तस्वीर: Aly Song/REUTERS
इकोसिस्टम को नुकसान
2015 में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सदी के आखिर तक धरती के औसत तापमान को 2 डिग्री से ज्यादा ना बढ़ने देने पर सहमति जताई थी. तब यह अनुमान नहीं था कि बदलाव इतनी तेजी से होंगे. तापमान बढ़ने के असर नजर आने लगे हैं. तुर्की के मरमारा सागर में पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि 60 प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं.
तस्वीर: Umit Bektas/REUTERS
पिघलते ग्लेशियर
विश्व मौसम संगठन इस बात को लेकर भी चिंतित है कि आर्कटिक का तापमान असामान्य रूप से बढ़ा हुआ है. मसलन, ग्रीनलैंड के जैकब्सहेवन ग्लेशियर ने 2000 और 2010 के बीच पिघलकर इतना पानी बहा दिया पूरी दुनिया का समुद्र जलस्तर एक मिलीमीटर बढ़ गया.
तस्वीर: Hannibal Hanschke/REUTERS
घातक नतीजे
तापमान बढ़ने के नतीजे घातक होंगे. बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होंगे या मारे जाएंगे. 2021 के आइडा चक्रवातीय तूफान जैसी आपदाओं में हजारों लोग बेघर हो गए थे और अरबों की संपत्ति का नुकसान हुआ था.
तस्वीर: Adrees Latif/REUTERS
अभी फैसले का वक्त
जेनेवा स्थित विशेषज्ञों की नजर अब 2027 में मिस्र में होने वाले जलवायु सम्मेलन पर है. पिछले साल ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन में कई बड़े फैसले लिए गए लेकिन विशेषज्ञों को डर है कि मनुष्य के पास जलवायु सुरक्षा चाक-चौबंद करने के लिए ज्यादा समय नहीं है.
तस्वीर: Christoph Hardt/Geisler-Fotopres/picture alliance
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जीवाश्म ईंधन से कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन सबसे ऊपर है. वह कुल उत्सर्जन के 31 फीसदी के लिए जिम्मेदार है. हालांकि ताजा रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ में उत्सर्जन घट रहा है. इसकी वजह पुराने कोयला संयंत्रों को बंद किया जाना है.
दुनिया के सिर्फ 26 देश ऐसे हैं, जो 28 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं और जहां उत्सर्जन का स्तर गिर रहा है. इनमें से अधिकतर यूरोप में हैं.