पुलिस अधिकारियों ने अपराधियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक ऐप को हैक करके लाखों इनक्रिप्टेड संदेश पढ़े और फिर उनसे मिली जानकारियों के आधार पर 18 देशों में छापे मारकर सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है.
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ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन आयरनसाइड' में एएफपी और एफबीआई ने ऑस्ट्रेलिया, एशिया, दक्षिण अमेरिका और मध्य पूर्व में सक्रिय गैंग्स के सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है.
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस ऑपरेशन ने संगठित अपराध पर ऐसी चोट की है, जिसकी गूंज पूरी दुनिया के अपराध जगत में सुनाई देगी. उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया की पुलिस के इतिहास में यह एक अहम क्षण है.
ऑपरेशन में शामिल रही यूरोपीय एजेंसी यूरोपोल ने एक बयान में कहा,”यह ऑपरेशन दुनिया के चारों कोनों में अपराधियों की गतिविधियों को हिला देने वाला अब तक का सबसे परिष्कृत प्रयास था.”
फिंगरप्रिंट का सबक: अनोखा है हर इंसान
125 साल पहले अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानियों ने कैदियों के फिंगरप्रिंट लिये. तब से अब तक कैसा रहा है पहचान और शिनाख्त की वैज्ञानिक दुनिया का सफर.
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125 साल बाद भी आधुनिक
1891 में अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानी खुआन वुसेटिच ने मॉर्डन स्टाइल फिंगरप्रिंट आर्काइव बनाना शुरू किया. तब से फिंगरप्रिंट को अहम सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इस तस्वीर में चोरी के बाद पुलिस अफसर दरवाजे के हैंडल को साफ कर रहा है, ताकि फिंगरप्रिंट साफ दिखाई पड़ें.
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सहेजना और तुलना करना
मौके से फिंगरप्रिंट जुटाने के लिए एक चिपचिपी फिल्म का इस्तेमाल किया जाता है. अचूक ढंग से फिंगरप्रिंट जुटाने में कई घंटे लग जाते हैं. एक बार फिंगरप्रिंट जुटाने के बाद जांचकर्ता उनकी तुलना रिकॉर्ड में संभाले गए निशानों से करते हैं. इन दिनों तेज रफ्तार कंप्यूटर ये काम बड़ी तेजी से कर देते हैं.
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स्याही की जरूरत नहीं
पहले फिंगरप्रिंट जुटाना बहुत ही मुसीबत भरा काम होता था, स्याही से हाथ भी गंदे हो जाते थे. लेकिन अब स्कैनर ने स्याही की जगह ले ली है. स्कैन करती ही डाटा सीधे बायोमैट्रिक डाटा बैंक को भेज दिया जाता है.
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क्यों खास है फिंगरप्रिंट
कंप्यूटर अंगुली की बारीक लाइनों और उनके पीछे के उभार को पहचान लेता है. अंगुली के केंद्र से अलग अलग लाइनों की मिलीमीटर के बराबर छोटी दूरी, उनकी घुमावट, उनकी टूटन सब दर्ज हो जाती है. दो लोगों के फिंगरप्रिंट कभी एक जैसे नहीं हो सकते, भले ही वे हूबहू दिखने वाले जुड़वा क्यों न हों.
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कहां कहां इस्तेमाल
नाइजीरिया में चुनावों में धांधली रोकने के लिए अधिकारियों ने फिंगरप्रिंट स्कैनर का इस्तेमाल किया. यही वजह है कि सिर्फ रजिस्टर्ड वोटर ही वोट डाल पाए वो भी सिर्फ एक बार.
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कौन कहां से कब आया
शरणार्थी संकट का सामना करते यूरोप में भी अधिकारी फिंगरप्रिंट का सहारा ले रहे हैं. यूरोपीय संघ के जिस भी देश में शरणार्थी पहली बार पहुंचेगा, उसका फिंगरप्रिंट वहीं लिया जाएगा. फिंगरप्रिंट लेने के लिए स्थानीय पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग दी गई है, उन्हें स्कैनर भी दिये गए हैं.
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ये मेरा डाटा है
अब कई स्मार्टफोन फिंगरप्रिंट डिटेक्शन के साथ आ रहे हैं. आईफोन और सैमसंग में टच आईडी है. फोन को सिर्फ मालिक ही खोल सकता है, वो भी अपनी अंगुली रखकर. अगर फोन खो जाए या चोरी भी हो जाए तो दूसरे शख्स को फोन का डाटा नहीं मिल सकता.
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ATM बैंकिंग
स्कॉटलैंड के डुंडी शहर में ऑटोमैटिक टेलर मशीन (एटीएम). इस मशीन से सिर्फ असली ग्राहक पैसा निकाल सकते हैं. फिंगरप्रिंट के जरिये मशीन कस्टमर की बायोमैट्रिक पहचान करती है. यह मशीन फर्जीवाड़े की संभावना को नामुमकिन कर देती है.
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पासपोर्ट की सेफ्टी
जर्मनी समेत कई देशों ने 2005 से पासपोर्ट में डिजिटल फिंगरप्रिंट डाल दिया. पासपोर्ट में एक RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी कंट्रोल्ड आईडी) चिप होती है. चिप के भीतर बायोमैट्रिक फोटो होती है, यह भी फिंगरप्रिंट की तरह अनोखी होती है.
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चेहरे की बनावट से पहचान
फेशियल रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर भी पहचान को बायोमैट्रिक डाटा में बदलता है. कंप्यूटर और उससे जुड़े कैमरे की मदद से संदिग्ध को भीड़ में भी पहचाना जा सकता है. इंटरनेट और कंप्यूटर कंपनियां भी अब फेशियल रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर का काफी इस्तेमाल कर रही हैं.
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जेनेटिक फिंगरप्रिंट के जनक
एलेक जेफ्रीज ने 1984 में किसी संयोग की तरह डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की खोज की. उन्होंने जाना कि हर इंसान के डीएनए का पैटर्न भी बिल्कुल अलग होता है. डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की उन्होंने एक तस्वीर तैयार की जो बारकोड की तरह दिखती है.
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हर इंसान के लिये बारकोड
जर्मनी की फेडरल क्रिमिनल पुलिस ने 1998 से अपराधियों का डीएनए फिंगरप्रिंट बनाना शुरू किया. जेनेटिक फिंगरप्रिंट की मदद से जांचकर्ता अब तक 18,000 से ज्यादा केस सुलझा चुके हैं.
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निर्दोष की मदद
परिस्थितिजन्य सबूतों या वैज्ञानिक सबूतों के अभाव में कई बार निर्दोष लोग भी फंस जाते हैं. घटनास्थल की अच्छी जांच और बायोमैट्रिक पहचान की मदद से निर्दोष लोग झेमेले से बचते हैं. किर्क ब्लड्सवर्थ के सामने नौ साल तक मौत की सजा खड़ी रही. अमेरिका में डीएनए सबूतों की मदद से 100 से ज्यादा बेकसूर लोग कैद से बाहर निकले.
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पीड़ित परिवारों को भी राहत
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का पहली बार बड़े पैमाने पर इस्तेमाल स्रेब्रेनित्सा नरसंहार के मामले में हुआ. सामूहिक कब्रों से शव निकाले गए और डीएनए तकनीक की मदद से उनकी पहचान की गई. डीएनए फिंगरप्रिंट को परिजनों से मिलाया गया. पांच साल की एमा हसानोविच को तब जाकर पता चला कि कब्र में उनके अंकल भी थे. 6,000 मृतकों की पहचान ऐसे ही की गई.
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फोन और कंप्यूटर में बायोमैट्रिक डाटा
बायोमैट्रिक डाटा के मामले में काफी काम हो रहा है. वैज्ञानिक अब आवाज के पैटर्न को भी बायोमैट्रिक डाटा में बदलने लगे हैं. वॉयस रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर की मदद से धमकी देने वालों को पहचाना जा सकता है. फिंगरप्रिंट की ही तरह हर इंसान के बोलने के तरीका भी अलग होता है. मुंह से निकलती आवाज कई तरंगों का मिश्रण होती है और इन्हीं तरंगों में जानकारी छुपी होती है.
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ऑस्ट्रेलिया की पुलिस ने 224 लोगों की गिरफ्तारी की बात कही है जबकि न्यूजीलैंड पुलिस ने 35 लोगों को गिरफ्तार किया है. यह ऑपरेशन 2018 में ऑस्ट्रेलिया फेडरल पुलिस (एएफपी) और एफबीआई ने मिलकर शुरू किया था. इसका जरिया आपराधिक गैंग्स के बीच प्रचलित संदेश भेजने वाली ऐप एनोम को हैक करना था. गैंग्स समझते रहे कि यह ऐप सुरक्षित है लेकिन पुलिस इसमें घुसपैठ कर चुकी थी और उनके संदेश पढ़ रही थी.
बेखौफ अपराधी
एफफपी कमीशनर रीस केरशॉ ने बताया, "हम संगठित अपराध की पिछली जेब में मौजूद थे. वे बस ड्रग्स, हिंसा और एक दूसरे पर हमले करने और मासूम लोगों की हत्याओं की ही बातें करते हैं.”
पुलिस के मुताबिक अपनी बातचीत में ये अपराधी एकदम खुले तौर पर सब कुछ कहते थे और कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं होती थी. केरशॉ ने मिसाल के तौर पर बता कि वे लोग साफ तौर पर बताते थे कि कहां मिलेंगे और कौन क्या करेगा.
महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक है दिल्ली
भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों के देखते हुए कहा जा सकता है कि महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हर राज्य के अपराध दर के अनुसार इन्हें महिलाओं के लिए यह रैंक दी है.
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1. दिल्ली
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2. असम
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3. ओडिशा
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4. तेलंगाना
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5. राजस्थान
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6. हरियाणा
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7. पश्चिम बंगाल
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8. मध्य प्रदेश
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9. आंध्र प्रदेश
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10. अरुणाचल प्रदेश
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11. चंडीगढ़
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12. केरल
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13. महाराष्ट्र
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14. त्रिपुरा
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15. सिक्किम
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16. जम्मू और कश्मीर
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17. उत्तर प्रदेश
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18. छत्तीसगढ़
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19. कर्नाटक
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20. गोवा
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21. अंडमान और निकोबार
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22. पंजाब
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23. दमन और दीव
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24. हिमाचल प्रदेश
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25. झारखंड
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26. उत्तराखंड
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27. गुजरात
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28. मेघालय
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29. बिहार
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30. मिजोरम
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31. लक्षद्वीप
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32. मणिपुर
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33. दादर और नागर हवेली
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34. तमिलनाडु
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35. पुद्दुचेरी
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36. नागालैंड
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अधिकारियों को जिन हमलों के बारे में जानकारी मिली, उनमें ऑस्ट्रेलिया पर एक कैफे पर मशीन गन से हमला शामिल था जिसमें एक ही परिवार के पांच लोगों को निशाना बनाया गया था. अधिकारी उस हमले को रोकने में कामयाब रहे.
ऑस्ट्रेलिया में एक ही दिन में इतिहास के सबसे ज्यादा छापों के दौरान पुलिस ने 104 हथियार और 45 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग ढाई अरब रुपये नकद बरामद किए.
जर्मनी में पुलिस के छापे हेसे और फ्रैंकफर्ट के इर्द गिर्द केंद्रित थे. सुरक्षा बलों ने वीजबाडेन, में भी कुछ गिरफ्तारियां की हैं. गृह मंत्रालय के प्रवक्ता स्टीव ऑल्टर ने बताया कि मंगलवार को कई जगहों पर छापे मारे गए हैं और यह कार्रवाई सिर्फ जर्मनी में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी ही है.
हाईटेक होते अपराधी
विभिन्न देशों की पुलिस को यह कामयाबी जिस एनोम ऐप को हैक कर मिली, वह बहुत परिष्कृत ऐप थी और उसे बेहद सुरक्षित बनाया गया था. उसका हर संदेश एनक्रिप्टेड था और कैमरे आदि के जरिए भी उसमें घुसपैठ की कोई गुंजाइश नहीं थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह ऑपरेशन लगभग तीन साल तक चला जिसमें दसियों लाख संदेश पढ़े गए और तब जाकर कार्रवाई की गई.
लेकिन यह पहली बार नहीं है जबकि अपराधियों को इतनी आधुनिक ऐप्स का इस्तेमाल करते पकड़ा गया. पिछले साल यूरपीयन पुलिस ने एन्क्रोचैट नाम का एक अत्याधुनिक सिस्टम हैक किया था जिसे अपराधी गैंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे. इसी साल की शुरुआत में बेल्जियम के अधिकारियों ने स्काईएक नाम का एक ऐप हैक चैट सिस्टम हैक कर दर्जनों अपराधियों को पकड़ा था और 17 टन से ज्यादा कोकीन बरामद की थी.
वीके/सीके (एपी/डीपीए)
कौन कौन सी एजेंसियां कर सकती हैं भारत में फोन टैप?
फिल्मों में अक्सर पुलिस को लोगों के फोन टैप करते हुए दिखाया जाता है, लेकिन क्या ये इतना आसान है? जानिए भारत में वो कौन सी 10 एजेंसियां हैं जिन्हें कानूनन फोन टैप करने का अधिकार है.
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केंद्रीय अंवेषण ब्यूरो (सीबीआई)
ये देश की प्रमुख जांच संस्था है जो भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से लेकर, संगठित जुर्म, आर्थिक जुर्म और अंतरराष्ट्रीय जुर्म तक के मामलों की जांच कर सकती है. ये इंटरपोल से संपर्क रखने वाली भारत की एकमात्र संस्था है. ये कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन है.
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राष्ट्रीय अंवेषण अभिकरण (एनआईए)
ये देश में आतंकवाद का मुकाबला और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अन्य मामलों की देखरेख करने वाली मुख्य संस्था है. इसका गठन 2008 में हुआ था और ये भी गृह मंत्रालय के अधीन है.
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इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी)
ये भारत की प्रमुख इंटेलिजेंस एजेंसी है. इसका काम देश की आतंरिक सुरक्षा से संबंधी जानकारी बटोरना है. ये गृह मंत्रालय के अधीन होती है. टैपिंग के हर मामले के लिए केंद्रीय गृह सचिव और राज्यों में राज्य के गृह सचिव की अनुमति अनिवार्य होती है.
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कैबिनेट सचिवालय (रॉ)
ये भारत की विदेशी इंटेलिजेंस संस्था है और इसका काम विदेशों से इंटेलिजेंस एकत्रित करना, आतंकवाद का मुकाबला करना और देश के सामरिक हितों की रक्षा करना है. इसके बजट से लेकर संचालन तक गुप्त होता है. ये कैबिनेट सचिवालय के अधीन है और सीधा प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है.
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नारकॉटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी)
ये भारत में नशीली दवाओं और मादक पदार्थों से संबंधित कानूनों का पालन सुनिश्चित कराने वाले केंद्रीय संस्था है. इसका काम नशीली दवाओं के व्यापार को रोकना है. ये भी गृह मंत्रालय के अधीन होती है.
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प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)
इसे एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट भी कहा जाता है और इसका काम है आर्थिक इंटेलिजेंस एकत्रित करना और देश में आर्थिक जुर्म से लड़ना. ये वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन होती है.
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी)
ये देश में प्रत्यक्ष कर से संबंधित मामलों की शीर्ष संस्था है. ये केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 के तहत स्थापित एक सांविधिक प्राधिकरण है. इसका अध्यक्ष विशेष सचिव होता है और राजस्व सचिव के अधीन होता है.
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राजस्व सूचना निदेशालय (डीआरआई)
ये देश की शीर्ष तस्करी-विरोधी संस्था है, जिसका काम निषिद्ध वस्तुओं के व्यापार को रोकना, सीमा शुल्क की चोरी के मामलों की जांच और इंटेलिजेंस एकत्रित करना है. ये भी वित्त मंत्रालय के अधीन होती है.
तस्वीर: dapd
सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय
ये एक सैन्य इंटेलिजेंस संस्था है और ये थल सेना, वायु सेना और जल सेना तीनों के लिए काम करती है. इसका काम ही होता है दुश्मनों के संचार को इंटरसेप्ट करना. ये रक्षा मंत्रालय के अधीन होती है.
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दिल्ली पुलिस कमिश्नर
दिल्ली पुलिस कमिश्नर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की पुलिस फोर्स के मुखिया होते हैं और उनकी शक्तियां किसी भी राज्य के पुलिस डायरेक्टर जनरल जैसी होती हैं. दिल्ली पुलिस उप-राज्यपाल के जरिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन होती है.