भारत से लेकर दक्षिण कोरिया तक और क्रोएशिया से लेकर उत्तरी मैसिडोनिया तक, फर्जी खबरों की पड़ताल करके उनके तथ्यों को दुनिया के सामने लाने वाले फैक्ट-चेकर बहुत सी चुनौतियों से जूझ रहे हैं.
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दुनियाभर में फैक्ट-चेकिंग संस्थाओं के लिए यह मुश्किल वक्त है. एक तरफ दुष्प्रचार और फर्जी खबरों की बाढ़ आई हुई है, इसलिए उनके सिर पर काम का बोझ बहुत बढ़ गया है. दूसरी तरफ, कानूनी लड़ाइयां, धन की कमी और ताकतवर नेताओं व सरकारों द्वारा प्रताड़ना उनकी मुश्किलों को बढ़ा रहे हैं.
संगठन में या अकेले ही काम कर रहे फैक्ट-चेकर यूरोप से लेकर एशिया तक हमले झेल रहे हैं. दर्जनों देशों में हो रहे चुनावों के दौरान उनका काम बहुत बढ़ गया है. चुनावों में फर्जी खबरों और झूठे दावों की बाढ़ आई हुई है.
69 देशों के 137 संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले इंटरनेशनल फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (आईएफसीएन) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि ये संगठन और लोग जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनमें धन सबसे बड़ी है.
बंद होने के कगार पर
दक्षिण कोरिया का एकमात्र फैक्ट-चेकिंग संस्थान सोल नेशनल यूनिवर्सिटी (एसएनयू) बंद होने के कगार पर है क्योंकि पिछले साल उसके लिए फंडिंग के सबसे बड़े स्रोत, सर्च इंजन कंपनी नेवर ने मदद रोक दी है. नेवर ने यह नहीं बताया कि उसने यह फैसला क्यों लिया.
एसएनयू में संस्थान के निदेशक चोंग युन-रेयुंग कहते हैं कि सत्ताधारी पीपल पावर पार्टी का "राजनीतिक दबाव” इसकी सबसे बड़ी वजह है. पीपीपी के नेता एसएनयू पर पक्षपात का आरोप लगाते रहे हैं, जिससे सेंटर इनकार करता है. इससे पहले देश का एक और फैक्ट-चेकिंग संस्थान फैक्ट-चेक नेट पिछले साल बंद हो गया था, जब सरकार ने उसकी फंडिंग बंद कर दी थी.
वियतनाम का 'अगरबत्तियों का गांव'
वियतनाम के कांग फू चाउ गांव को 'अगरबत्तियों का गांव' के नाम से जाना जाता है. यहां रंग-बिरंगी अगरबत्तियां बनाई जाती हैं, जो कि एक बड़ा उद्योग है. लेकिन अब 'सेल्फी' लेने वालों की वजह से कमाई का एक और जरिया खुल गया है.
तस्वीर: Nhac Nguyen/AFP
चमत्कारी दृश्य
कांग फू चाउ गांव वियतनाम की राजधानी हनोई के पास ही स्थित है. गांव में हर सुबह हजारों रंगी हुई अगरबत्तियों को करीने से सजा कर धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है. डांग थी होआ का परिवार तीन पीढ़ियों से नए साल के त्योहार 'तेत' से पहले अगरबत्तियों को स्कारलेट लाल या मजेंटा गुलाबी रंग से रंग रहा है.
तस्वीर: Nhac Nguyen/AFP
रंग बिरंगी तस्वीरें
लेकिन आजकल यहां रहने और काम करने वाले डांग थी होआ और अन्य लोग अब अगरबत्तियों को पीले, नीले और हरे रंग से भी रंग रहे हैं. इतने रंग पर्यटकों के लिए सजाए जा रहे हैं जिन्हें इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया सेवाओं के लिए तस्वीरें लेना पसंद है.
तस्वीर: Nhac Nguyen/AFP
अगरबत्तियों के बीच सेल्फी
तीन दशकों से अगरबत्तियां बना रहे 45 वर्षीय होआ कहते हैं, "हमारा गांव पर्यटकों के लिए एक हॉटस्पॉट बन गया है." सेल्फी लेने वालों की बदौलत गांव वालों की अच्छी कमाई हो जाती है. 50,000 डॉन्ग (करीब 1.80 यूरो) के बदले पर्यटक अगरबत्तियों के साथ उतनी तस्वीरें खींच सकते हैं जितना उनका मन चाहे. अगरबत्तियों की कीमत काफी कम है. सिर्फ 50 सेंट में 20 अगरबत्तियों का एक पैकेट खरीदा जा सकता है
तस्वीर: Nhac Nguyen/AFP
फलता-फूलता उद्योग
अगरबत्ती बनाने के लिए बांस की टहनियों को काट कर लकड़ियां तराशने की एक मशीन में डाला जाता है. फिर पतली-पतली पट्टियों को रंगीन सुगंध में डुबो कर निकाला जाता है. उसके बाद उन्हें फूलों के एक गुलदस्ते की तरह सजा कर हवा में सुखाया जाता है. उद्योग काफी फल-फूल रहा है - ना सिर्फ एशियाई मंदिरों में बल्कि दुनियाभर के योग स्टूडियो में भी इनका इस्तेमाल हो रहा है.
तस्वीर: Chris Humphrey/dpa/picture alliance
वियतनामी परंपरा
वियतनाम में नया साल करीब आ रहा है और अगरबत्ती उत्पादन जोरों पर है. परंपरागत रूप से इन्हें पूजा करने के लिए मंदिरों या घरों के अंदर पूजा के स्थान में जलाया जाता है. शादियों और अन्य समारोहों में भी इनका इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: Pascal Deloche/Godong/picture alliance
परफेक्ट तस्वीर के लिए
व्यस्त सीजन में भी पर्यटकों के लिए कोई न कोई हमेशा उपलब्ध रहता है. इस वर्कशॉप के मालिक गुयेन हू लॉन्ग ने एएफपी समाचार एजेंसी को बताया, "मैं तस्वीरों के लिए सबसे अच्छा एंगल खोजने में पर्यटकों की मदद करने के लिए एक या दो लोगों को काम पर लगा देता हूं और यह सुनिश्चित करता हूं कि सूख रही अगरबत्तियों को कुछ ना हो."
तस्वीर: Nhac Nguyen/AFP
आसमान से ऐसा दिखता है नजारा
गांव के एक मंदिर के सामने सैकड़ों रंग-बिरंगी अगरबत्तियों को सुखाने के लिए धूप में रखा गया है. इन्हें वियतनाम के एक विशालकाय नक्शे और झंडे के आकार में सजाया गया है. डांग थी होआ खुशी से कहते हैं, "मुझे अपने परिवार की परंपरागत कारीगरी पर गर्व है...और खुशी भी होती है कि हमारे गांव का नाम हुआ है...मैं ज्यादा कमा भी रहा हूं." पर्यटक इन लोगों की मेहनत की सराहना भी कर रहे हैं. (यूली ह्यूएनकेन)
तस्वीर: Nhac Nguyen/AFP
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आईएफसीएन की निदेशक एंजी द्रोबनिक होलन कहती हैं, "फैक्ट-चेकर के सामने फर्जी दावों और अफवाहों का अंबार है लेकिन उनके संसाधान सीमित हैं. जो लोग सूचना-युद्ध में लगे हैं और सबूत या तर्क की परवाह नहीं करते, वे फैक्ट-चेकरों पर दुष्प्रचार और कानूनी कार्रवाई का दबाव बना रहे हैं.”
प्रताड़ना और धमकियां
आईएफसीएन ने अपने सर्वे में पाया कि 72 फीसदी संस्थाओं ने प्रताड़ना झेली है जबकि बहुत से अन्य संगठनों ने शारीरिक हमलों या कानूनी धमकियों का सामना किया है.
क्रोएशिया में फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट Faktograf.hr की निदेशक आना ब्राकुस बताती हैं कि उन्हें तब सुरक्षा बढ़ानी पड़ी जब उसके कर्मचारियों को जान से मारने की धमकियां मिलीं. ब्राकुस कहती हैं कि महिला कर्मचारियों के बारे में अभद्र टिप्पणियां की गईं. एक कर्मचारी को मेसेज मिला कि उसकी ‘उंगलियां काट दी जाएंगी.'
ब्राकुस कहती हैं तथ्यों की जांच के अभियान पर असर ना पड़े, यह सुनिश्चित करते हुए, "इस तरह के तनाव से निपटने के लिए कुछ उपाय करने पड़े हैं.”
भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा सर्टिफाइड फैक्ट-चेकर हैं. वहां आम चुनाव हो रहे हैं जिनमें सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के जीतने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. लेकिन बीजेपी सरकार पर आरोप है कि वह मीडिया की आजादी को कुचल रही है.
देश के सबसे चर्चित फैक्ट-चेकरों में से एक आल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मुहम्मद जुबैर को हर वक्त ऑनलाइन हमले झेलने पड़ते हैं. उन्हें लगातार कानूनी कार्रवाई की धमकियां मिलती हैं. 2022 में उन्हें एक चार साल पुराने ट्वीट में "हिंदू देवताओं के अपमान” के आरोप में जेल में भी डाला गया.
सोशल मीडिया साइट एक्स पर धन जुटाने की कोशिश में जुबैर ने लिखा कि भारतीय मीडिया संस्थान "अपनी जुबान बंद रखने को मजबूर किए जा रहे हैं” और ‘सरकार के मुखपत्र' बनते जा रहे हैं.
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तरह-तरह के हमले
आईएफसीएन की रिपोर्ट कहती है कि कम होते संसाधनों के कारण फैक्ट-चेकरों को ‘फर्जी मुकदमों' जैसी चुनौतियों से लड़ने के लिए बाहरी स्रोत खोजने पड़ रहे हैं.
उत्तरी मैंसिडोनिया की मेटामॉरफिस फाउंडेशन के संगठन ट्रूथमीटर के खिलाफ इस साल की शुरुआत में एक बड़ा अभियान चलाया गया था. संगठन के मुताबिक उसके कर्मचारियों को निंदा और अपमान से लेकर "जान से मारने की छिपी हुई धमकियां” तक झेलनी पड़ीं.
इंस्टाग्राम पोस्ट से करोड़ों कमाते हैं सेलिब्रिटी
एक रिपोर्ट के मुताबिक क्रिकेटर विराट कोहली इंस्टाग्राम पर हर एक स्पॉन्सर्ड पोस्ट से करोड़ों रुपये कमाते हैं. हालांकि विराट कोहली ने एक्स यानी पूर्व में ट्विटर रहे सोशल मीडिया पर अपनी कमाई के आंकड़े का खंडन किया है.
तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images
14 करोड़ प्रति पोस्ट
हॉपर एचक्यू नाम के एक इंस्टाग्राम शेड्यूलिंग टूल ने 2023 की इंस्टाग्राम रिच लिस्ट की घोषणा की है. इंस्टाग्राम से कमाई के मामले में चोटी के 20 लोगों में भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली इकलौते भारतीय हैं. कोहली हर स्पॉन्सर्ड पोस्ट से करीब 14 करोड़ रुपये कमाते हैं. वो सूची में 14वें स्थान पर हैं. हालांकि विराट ने इन आंकड़ों का खंडन किया है.
तस्वीर: Martin Keep/AFP
चोटी पर रोनाल्डो
इस सूची के शीर्ष पर हैं फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो, जो हर पोस्ट से करीब 26 करोड़ रुपये कमाते हैं. रोनाल्डो को इंस्टाग्राम पर 59.6 करोड़ लोग फॉलो करते हैं. कोहली को फॉलो करने वालों की संख्या है 25.5 करोड़.
तस्वीर: Franck Fife/AFP
दूसरे नंबर पर मेसी
सूची में दूसरे नंबर पर हैं दुनिया के सबसे चहेते फुटबॉल खिलाड़ियों में से एक, लियोनेल मेसी. मेसी को 47.9 करोड़ लोग फॉलो करते हैं और वो हर पोस्ट से करीब 21 करोड़ रुपये कमाते हैं.
तस्वीर: Lynne Sladky/AP Photo/picture alliance
टॉप पांच
इस सूची में चोटी के पांच सेलेब्रिटियों में रोनाल्डो और मेसी के बाद तीसरे नंबर पर हैं अमेरिकी गायिका और अभिनेत्री सेलेना गोमेज, चौथे नंबर पर अमेरिकी सोशलाइट काइली जेनर और पांचवें नंबर पर हैं 'द रॉक' के नाम से जाने जाने वाले पूर्व रेस्टलर ड्वेन जॉनसन.
तस्वीर: Marechal Aurore/ABACA/picture alliance
दूसरा भारतीय नाम
29वे नंबर पर हैं इस सूची में जगह पाने वाली दूसरी भारतीय सेलिब्रिटी अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा. इंस्टाग्राम पर उन्हें 8.8 करोड़ लोग फॉलो करते हैं और वो हर पोस्ट से 4.40 करोड़ रुपये कमाती हैं.
तस्वीर: Sujit Jaiswal/AFP/Getty Images
अफ्रीकी नाम भी हैं
सूची में कुछ अफ्रीकी सेलेब्रिटी भी हैं. इनमें सबसे ऊपर है मिस्र की फुटबॉल टीम के कप्तान मोहम्मद सलाह, जिन्हें मो सलाह के नाम से भी जाना जाता है. उन्हें 6.1 करोड़ लोग फॉलो करते हैं और वो हर पोस्ट से करीब 2.7 करोड़ रुपये कमाते हैं.
तस्वीर: DW
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उत्तरी मैसिडोनिया में इसी महीने राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. मेटामॉरफिस फाउंडेशन ने कहा, "हम जानते हैं हमारे खिलाफ ये अभियान, हमले, धमकियां और हेट स्पीच जारी रहेंगी, खासकर राष्ट्रपति चुनाव के दौरान.”
यही हाल अमेरिका का है जहां नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. अमेरिका में एक फैक्ट-चेकिंग संस्था चलाने वाले एरिक लित्के कहते हैं कि तथ्यों की जांच करने वालों के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क होता है कि उनकी जांच कौन करता है.
होलन कहती हैं, "मैंने देखा है कि यह अभियान चलाने वाले फैक्ट-चेकिंग को मीडिया की सेंसरशिप का तरीका बताते हैं. विडंबना यह है कि यह एक भ्रामक तर्क है जो बहस और आलोचना को दबाने का तरीका है.”