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भारत को फेक न्यूज से बचाने के लिए गूगल का अभियान

७ दिसम्बर २०२२

गूगल की सब्सिडियरी जिग्सॉ भारत में एंटी मिसइनफॉर्मेशन प्रोजेक्ट शुरू कर रही है. इस प्रोजेक्ट का मकसद लोगों को गलत जानकारियों से बचाना है. अकसर ऐसी गलत जानकारियां हिंसा को भड़काने के लिए जिम्मेदार मानी जाती हैं.

भारत में फेकन्यूज के खिलाफ जागरूक करने की मुहिम
फेक न्यूज के खिलाफ गूगल की मुहिमतस्वीर: Toby Melville/REUTERS

इस पहल में "प्रीबंकिंग" वीडियो का इस्तेमाल किया जाएगा. ये वो वीडियो हैं जो गलत दावे करने वाले वीडियो के प्रसार से पहले उसका उत्तर देती हैं. इन्हें कंपनी के यूट्यूब प्लेटफॉर्म और दूसरी सोशल मीडिया साइटों के जरिये लोगों तक पहुंचाया जाएगा. 

फेक न्यूज पकड़ने की छोटी लेकिन अहम कोशिशें

गूगल गलत जानकारी के फैलाव को चुनौती देने की कोशिशों में जुटा है. उसका रुख ट्विटर से काफी अलग है जो इन दिनों अपनी ट्रस्ट और सेफ्टी टीमों में कटौती कर रहा है. हालांकि ट्विटर के नये मालिक इलॉन मस्क उसे हर तरह से सबके लिए मुक्त बनाना चाहते हैं.

भारत में फेक न्यूज

गूगल ने हाल ही में यूरोप में एक प्रयोग किया था जिसमें शरणार्थी विरोधी बयानों का ऑनलाइन सामना करने की कोशिश की गई थी. यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप में शरणार्थियों की बाढ़ आ गई है.

सच से कहीं ज्यादा तेजी से फैलता है झूठ

भारत में यह कोशिश ज्यादा बड़ी है क्योंकि इसमें बंगाली, हिंदी और मराठी समेत कई भाषाओं का इस्तेमाल होगा. इसके साथ ही अलग अलग समुदायों में बंटे एक अरब से ज्यादा लोगों के बीच यह अभियान चलने वाला है.

सोशल मीडिया फेकन्यूज का सबसे बड़ा जरिया बन गया हैतस्वीर: Gian Ehrenzeller/KEYSTONE/dpa/picture alliance

जिग्सॉ के शोध एवं विकास प्रमुख बेथ गोल्डमान का कहना है, "इससे हमें प्रीबंकिंग पर गैर पश्चिमी, वैश्विक दक्षिणी बाजार में रिसर्च करने का मौका मिला है." दूसरे देशों की तरह ही भारत में भी गलत जानकारी बहुत तेजी से फैलती है. इसमें सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है और इसकी वजह से कई बार राजनीतिक और धार्मिक तनाव भी फैल जाता है.

सरकार की सख्ती

भारत सरकार के अधिकारियों नेगूगल, मेटा और ट्विटर जैसी टेक कंपनियों से मांग की है कि वे फेक न्यूज के प्रसार के खिलाफ कड़े कदम उठाएं.

भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बार बार यूट्यूब के चैनलों और ट्विटर, फेसबुक के कुछ खातों को ब्लॉक करने के लिए अपने "असाधारण अधिकार" का इस्तेमाल किया है. कथित रूप से इनका इस्तेमाल गलत जानकारी फैलाने के लिए किया जा रहा था.

फेक न्यूज के खिलाफ लोगों को जागरूक करेगा गूगलतस्वीर: Thomas Banneyer/dpa/picture alliance

मेटा की मेसेजिंग सेवा व्हाट्सएप के जरिये भी भड़काऊ संदेश भेजे जाते हैं. 2018 में भारत में व्हाट्सएप के 30 करोड़ से ज्यादा यूजर थे. सरकार की सख्ती के बाद कंपनी ने किसी मेसेज को कितने लोगों तक फॉरवर्ड किया जाए इस पर कुछ अंकुश लगाए हैं. बच्चों का अपहरण करने वाले कथित गैंग के बारे में गलत जानकारी प्रसारित करने के कारण लोगों की भीड़ ने दर्जनों लोगों को जम कर पिटाई कर दी और उनमें से कुछ की मौत भी हो गई.

कैसे काम करेगी मुहिम

लोकतंत्र का समर्थन करने वाले जर्मनी के संगठन अल्फ्रेड लांडेकर फाउंडेशन, समाजसेवी निवेश कंपनी ओमिद्या नेटवर्क इंडिया और कई छोटे क्षेत्रीय सहयोगियों की मदद से जिग्सॉ ने तीन भाषाओं में पांच वीडियो बनवाए हैं.

इन वीडियो को देखने के बाद दर्शकों से एक फॉर्म भरने का अनुरोध किया जाएगा. इसके जरिये यह जानने की कोशिश है कि उन्होंने गलत जानकारी के बारे में क्या सीखा. हाल ही में कपनी ने इस बारे में एक रिसर्च किया तो पता चला कि दर्शक इन वीडियो को देखने के बाद गलत जानकारी की पहचान करने में पांच फीसदी ज्यादा सक्षम हो जाते हैं.

गोल्डमान का कहना है कि भारतीय पहल में उन मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा जिनकी देश में अकसर गूंज सुनाई देती है. गोल्डमान ने कहा, "लोगों को यह सब भेज कर हम उन्हें इस बात के लिए तैयार कर रहे हैं कि वह गलत दलीलों का जवाब दे सकें, भविष्य में वे भटकाए ना जाएं." इसके नतीजे अगले साल गर्मियों तक आने की उम्मीद की जा रही है.

एनआर/वीके (रॉयटर्स)

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