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समाज

महामारी के बहाने ऑनलाइन असंतोष को दबाती सरकारें

१४ अक्टूबर २०२०

मानवाधिकार निगरानी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर की सरकारें महामारी का इस्तेमाल निगरानी बढ़ाने और ऑनलाइन असंतोष को दबाने के लिए कर रही हैं. असंतोष की आवाजें दबाने को सरकारें जायज भी ठहरा रही हैं.

तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Amro

कोरोना वायरस महामारी के बहाने सरकारें ऑनलाइन असंतोष की आवाजों को दबा रही हैं. यह दावा किया है बुधवार को जारी एक मानवाधिकार निगरानी रिपोर्ट ने. रिपोर्ट के मुताबिक सरकारें महामारी का इस्तेमाल निगरानी बढ़ाने और ऑनलाइन असंतोष को दबाने के लिए कर रही है. वॉशिंगटन स्थित फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि दर्जनों देशों के अधिकारियों ने कोविड-19 के प्रकोप का हवाला देते हुए "विस्तारित निगरानी शक्तियों और नई प्रौद्योगिकियों की तैनाती को सही ठहराया है, जिन्हें कभी दखल के तौर पर देखा जाता था." रिपोर्ट के मुताबिक यह असंतोष की बढ़ती सेंसरशिप और सामाजिक नियंत्रण के लिए तकनीकी प्रणालियों के विस्तार के लिए अगुआ है.

गैर लाभकारी समूह के अध्यक्ष माइकल अब्रामोविट्ज के मुताबिक, "महामारी के ऐसे समय में डिजिटल तकनीक समाज की निर्भरता में तेजी ला रही है, तब इंटरनेट और कम आजाद हो रहा है." उन्होंने आगे कहा, "गोपनीयता और कानून के शासन के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना इन तकनीकों को राजनीतिक दमन के लिए आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है."

फ्रीडम हाउस इंडेक्स में 65 देशों में 100 अंको के स्कोर पर लगातार दसवें साल इंटरनेट फ्रीडम में गिरावट दर्ज की गई है. यह पैमाना 21 संकेतकों पर आधारित है, जिनमें इंटरनेट इस्तेमाल की बाधाएं, सामग्री पर सीमा और उपयोगकर्ता अधिकारों का उल्लंघन शामिल है.

रिपोर्ट के मुताबिक लगातार छठे साल चीन सबसे खराब रैंकिंग पाने वाला देश है. रिपोर्ट कहती है कि चीनी अधिकारियों ने कम और उच्च तकनीक वाले उपकरण का इस्तेमाल न केवल कोरोना वायरस के प्रकोप का प्रबंधन करने के लिए किया बल्कि इंटरनेट यूजर्स को स्वतंत्र स्रोतों से जानकारी साझा करने और आधिकारियों से सवाल पूछने से भी रोका.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ये रुझान वैश्विक स्तर पर चीनी शैली के "डिजिटल अधिनायकवाद" की ओर बढ़ते झुकाव के रूप में दिखाई दे रहे हैं क्योंकि हर सरकार अपने नियमों को लागू करती है.

फ्रीडम हाउस का कहना है कि अनुमानित 3.8 अरब लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं और सिर्फ 20 फीसदी लोग ही ऐसे देश में रहते हैं जहां इंटरनेट आजाद है, 32 फीसदी ऐसे देश में रहते हैं जहां इंटरनेट "आंशिक रूप से स्वतंत्र" है. जबकि 35 फीसदी लोग ऐसे देश में रहते हैं जहां ऑनलाइन गतिविधियां आजाद नहीं है.

एए/सीके (एएफपी)

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