मानवाधिकार निगरानी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर की सरकारें महामारी का इस्तेमाल निगरानी बढ़ाने और ऑनलाइन असंतोष को दबाने के लिए कर रही हैं. असंतोष की आवाजें दबाने को सरकारें जायज भी ठहरा रही हैं.
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कोरोना वायरस महामारी के बहाने सरकारें ऑनलाइन असंतोष की आवाजों को दबा रही हैं. यह दावा किया है बुधवार को जारी एक मानवाधिकार निगरानी रिपोर्ट ने. रिपोर्ट के मुताबिक सरकारें महामारी का इस्तेमाल निगरानी बढ़ाने और ऑनलाइन असंतोष को दबाने के लिए कर रही है. वॉशिंगटन स्थित फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि दर्जनों देशों के अधिकारियों ने कोविड-19 के प्रकोप का हवाला देते हुए "विस्तारित निगरानी शक्तियों और नई प्रौद्योगिकियों की तैनाती को सही ठहराया है, जिन्हें कभी दखल के तौर पर देखा जाता था." रिपोर्ट के मुताबिक यह असंतोष की बढ़ती सेंसरशिप और सामाजिक नियंत्रण के लिए तकनीकी प्रणालियों के विस्तार के लिए अगुआ है.
गैर लाभकारी समूह के अध्यक्ष माइकल अब्रामोविट्ज के मुताबिक, "महामारी के ऐसे समय में डिजिटल तकनीक समाज की निर्भरता में तेजी ला रही है, तब इंटरनेट और कम आजाद हो रहा है." उन्होंने आगे कहा, "गोपनीयता और कानून के शासन के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना इन तकनीकों को राजनीतिक दमन के लिए आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है."
फ्रीडम हाउस इंडेक्स में 65 देशों में 100 अंको के स्कोर पर लगातार दसवें साल इंटरनेट फ्रीडम में गिरावट दर्ज की गई है. यह पैमाना 21 संकेतकों पर आधारित है, जिनमें इंटरनेट इस्तेमाल की बाधाएं, सामग्री पर सीमा और उपयोगकर्ता अधिकारों का उल्लंघन शामिल है.
रिपोर्ट के मुताबिक लगातार छठे साल चीन सबसे खराब रैंकिंग पाने वाला देश है. रिपोर्ट कहती है कि चीनी अधिकारियों ने कम और उच्च तकनीक वाले उपकरण का इस्तेमाल न केवल कोरोना वायरस के प्रकोप का प्रबंधन करने के लिए किया बल्कि इंटरनेट यूजर्स को स्वतंत्र स्रोतों से जानकारी साझा करने और आधिकारियों से सवाल पूछने से भी रोका.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये रुझान वैश्विक स्तर पर चीनी शैली के "डिजिटल अधिनायकवाद" की ओर बढ़ते झुकाव के रूप में दिखाई दे रहे हैं क्योंकि हर सरकार अपने नियमों को लागू करती है.
फ्रीडम हाउस का कहना है कि अनुमानित 3.8 अरब लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं और सिर्फ 20 फीसदी लोग ही ऐसे देश में रहते हैं जहां इंटरनेट आजाद है, 32 फीसदी ऐसे देश में रहते हैं जहां इंटरनेट "आंशिक रूप से स्वतंत्र" है. जबकि 35 फीसदी लोग ऐसे देश में रहते हैं जहां ऑनलाइन गतिविधियां आजाद नहीं है.
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
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1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
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2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
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4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
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5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
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6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
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7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
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8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
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9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
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10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
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11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
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भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
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अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
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पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.