किसान आंदोलन के महीनों बाद केंद्र सरकार ने एमएसपी पर एक नई समिति गठित की है. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार सरकारों द्वारा जनता को मुफ्त सेवाएं देने के खिलाफ संदेश दे रहे हैं.
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कृषि मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक यह 26 सदस्यीय समिति एमएसपी व्यवस्था को अधिक "प्रभावी और पारदर्शी" बनाने के सुझावों पर विचार करेगी. यह कृषि उत्पादों के दाम सुझाने वाली सरकारी समिति सीएसीपी को अधिक स्वायत्तता देने पर भी विचार करेगी.
समिति को शून्य-बजट आधारित कृषि को बढ़ावा देने, फसलों का विविधीकरण करने, देश की बदलती जरूरतों के हिसाब से कृषि मार्केटिंग को मजबूत करने और प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने पर भी विचार करने के लिए कहा गया है. हालांकि अधिसूचना में समिति द्वारा एमएसपी की कानूनी गारंटी पर विचार करने की कोई बात नहीं है.
कौन कौन है समिति में
यह कानूनी गारंटी जून 2020 में सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानून के खिलाफ संघर्ष कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा की प्रमुख मांग थी. एक साल से ज्यादा समय तक तीनों कानूनों के खिलाफ किसानों के निरंतर आंदोलन के बाद तीनों कानूनों को वापस ले लिया गया था.
नई समिति की अध्यक्षता पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल को सौंपी गई है. इसमें संयुक्त किसान मोर्चा के तीन प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया है लेकिन अभी उनके नाम तय नहीं किए गए हैं. इनके अलावा समिति में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद, कृषि अर्थशास्त्री सीएससी शेखर और सुखपाल सिंह और सीएसीपी के सदस्य नवीन पी सिंह को शामिल किया गया है.
किसानों का प्रतिनिधित्व करने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किसान भारत भूषण त्यागी, किसान नेता गुणवंत पाटिल, कृष्णबीर चौधरी, प्रमोद कुमार चौधरी, गुनी प्रकाश और सैयद पाशा पटेल को भी समिति में शामिल किया गया है.
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क्या होगा एमएसपी का
इनके अलावा सहकारी संगठन इफको के चेयरमैन दिलीप संघाणी और सीएनआरआई के महासचिव विनोद आनंद को भी समिति में रखा गया है. कृषि विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ सदस्य, केंद्र सरकार के पांच विभागों/मंत्रालयों के सचिव और कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, सिक्किम तथा ओडिशा के मुख्य सचिवों को भी समिति में शामिल किया गया है.
इस समिति का गठन ऐसे समय में किया गया है जब प्रधानमंत्री मोदी बार बार अपने भाषणों में अलग अलग सरकारों द्वारा चलाई जा रही मुफ्त या दाम में छूट वाली सेवाओं की आलोचना कर चुके हैं.
कुछ ही दिनों पहले उन्होंने झारखंड में बीजेपी की एक रैली के दौरान कहा कि आजादी के बाद से आज तक सत्ता में रहने वाली पार्टियों ने देश में वोट पाने के लिए लोक लुभावने वादे कर 'शॉर्ट कट' की राजनीति की है और और लोगों को इस तरह की राजनीति से दूर रहने के लिए कहा.
उसके कुछ ही दिनों बाद उन्होंने जालौन में कहा कि लोगों को वोट लेने के लिए 'रेवड़ी' बांटने की राजनीति करने वालों से बच कर रहना चाहिए. उनके इन बयानों से अंदाजा लगाया जा रहा है कि आर्थिक मोर्चे पर कई चुनौतियों से जूझ रही केंद्र सरकार जल्द ही विभिन्न सरकारी समर्थन योजनाओं को रद्द या उनका दायरा छोटा कर सकती है.
ऐसे में देखना होगा कि समिति एमएसपी को लेकर किस निष्कर्ष पर पहुंचती है और देश के किसान उसे स्वीकार करते हैं या नहीं.
जब सरकार के खिलाफ खड़े हुए किसान
सबसे पहले अध्यादेश के रूप में जून में लाए गए कानूनों का किसान अपने प्रांतों में विरोध कर रहे थे. लेकिन जब दिल्ली ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वो अपनी मांगों को लेकर दिल्ली ही आ गए. देखिए किसान आंदोलन को कैमरे की नजर से.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आतंकवादी नहीं किसान
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से हजारों किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए निकले लेकिन पुलिस ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक दिया. राशन-पानी ले कर आए किसानों ने वही डेरा जमाया और आंदोलन छेड़ दिया. पुलिस के डंडे, ठंडे पानी की बौछार और आंसू गैस के गोलों के अलावा किसान प्रदर्शनकारियों ने जाहिल, आढ़तियों के एजेंट और आतंकवादी होने तक के आरोपों का सामना किया.
तस्वीर: Mohsin Javed
बात चंद किसानों की नहीं
हजारों की संख्या में किसान जीन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वो हैं आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून. इनका उद्देश्य ठेके पर खेती को बढ़ाना, भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, सब्जियों के दामों को तय करने को बाजार के हवाले करना है.
तस्वीर: Mohsin Javed
आर-पार की लड़ाई
किसान सिर्फ भारी संख्या में ही नहीं आए, बल्कि महीनों का राशन साथ लेकर आए हैं. सरकार ने नए कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन किसानों का मानना है कि इनसे सिर्फ बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे. उनका कहना है कि इन कानूनों की वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा.
तस्वीर: Mohsin Javed
पुलिस की बर्बरता का सामना
जय जवान और जय किसान का नारा लगाने वाले देश में किसान और जवान आमने सामने हैं. आंदोलन के दौरान किसानों को पुलिस की लाठियों का भी सामना करना पड़ा. कई बुजुर्ग किसान घायल हो गए और हालात कठिन होने की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई.
तस्वीर: Mohsin Javed
सर्दी में संघर्ष
सभी स्थानों पर किसान या तो खुले में या पतले शामियानों के नीचे दिन और रात बिता रहे हैं. सड़क-मार्ग से ही राजधानी आए किसान अपने ट्रैक्टरों को भी साथ लाए हैं, जो अब यहां पर उनका वाहन भी बना हुआ है, बेंच भी, बिस्तर भी और छत भी.
तस्वीर: Mohsin Javed
लंबी जद्दोजहद की तैयारी
किसान मान कर आए हैं कि केंद्र सरकार आसानी से उनकी मांगें नहीं मानेगी. इसलिए वो लंबे समय तक डेरा डालने की तैयारी करके आए हैं. धरना स्थलों पर खुद ही रोज अपना खाना पकाते हैं और खा-पी कर फिर धरने पर बैठ जाते हैं. सरकार के साथ बातचीत में भी वे अपना ही खाना लेकर जाते हैं और सरकारी खाना ठुकरा देते हैं.
तस्वीर: Seerat Chabba/DW
महिला शक्ति भी मौजूद
आंदोलन सिर्फ पुरुषों के कंधों पर ही नहीं चल रहा है. कुछ महिलाएं गांवों में खेती संभाल रही हैं तो कुछ मोर्चे पर डटी हुई हैं और पुरुषों का कंधे से कंधा मिला कर साथ दे रही हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
किताबों का साथ भी
धरना स्थलों पर प्रदर्शनकारियों का साथ देने, उनका हौसला बढ़ाने और उनकी सेवा करने कई लोग पहुंचे हुए हैं. कोई खाना खिला रहा है, कोई पानी पिला रहा है, कोई डॉक्टरी मदद दे रहा है तो कोई किताबें भी बांट रहा है.
तस्वीर: Mohsin Javed
मीडिया से नाराजगी
प्रदर्शनकारियों में मीडिया के एक धड़े के खिलाफ भी सख्त नाराजगी है. उनका आरोप है कि कुछ बड़े मीडिया संस्थान सिर्फ सरकार का पक्ष जनता के सामने परोस रहे हैं और सिर्फ किसानों की आलोचना कर रहे हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
हुक्के के बिना कैसे हो किसान आंदोलन
विशेष रूप से दिल्ली और नॉएडा की सीमा पर धरने पर बैठे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए किसान जरूरत जी दूसरी चीजों के साथ हुक्का भी साथ लाए हैं. सरकार के सामने पहले पलक किसानों की ना झपक जाए, इसीलिए इस लंबी लड़ाई में धैर्य और हुक्के का सहारा भी लिया जा रहा है.