इटली के तानाशाह रहे बेनितो मुसोलिनी की नातिन ने रोम की म्यूनिसिपल काउंसिल का चुनाव जीता है. वह अति दक्षिणपंथी ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ पार्टी की सदस्य हैं.
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तानाशाह बेनितो मुसोलिनी की नातिन रोम काउंसिल में दोबारा पार्षद चुनी गई हैं. 47 वर्षीय रकेले मुसोलिनी शहर की परिषद में सदस्य बने रहने लायक वोट दोबारा जुटा लिए.
3 और 4 अक्टूबर को हुए चुनाव के बाद बुधवार को मतगणना हुई. रकेले मुसोलिनी को 8,200 मत मिले, जो किसी भी अन्य उम्मीदवार से ज्यादा थे. 2016 में वह पहली बार चुनी गई थीं. पिछली बार के मुकाबले उन्हें इस बार 657 मत ज्यादा मिले हैं.
रेकेले अति दक्षिणपंथी पार्टी ब्रदर्स ऑफ इटली की सदस्य हैं. उनके दादा बेनितो मुसोलिनी इटली के तानाशाह रहे थे लेकिन रकेले मानती हैं कि वह अपने नाम की वजह से नहीं बल्कि काम की वजह से जीती हैं.
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‘नाम नहीं काम की जीत'
ला रिपब्लिका अखबार को मुसोलिनी ने बताया कि अपने नाम से जुड़े इतिहास और उसके दबाव से उनका कोई लेना देना नहीं है. उन्होंने कहा कि उनके बहुत सारे वामपंथी मित्र हैं.
मुसोलिनी ने कहा, "अब तक मेरा इंटरव्यू सिर्फ मेरे नाम की वजह से होता रहा है. मेरे पिछले कार्यकाल में लोग मेरे काम के बारे में, काउंसिल में मेरे द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में पूछने लगे. मैंने मेहनत की है.”
मुसोलिनी कहती हैं कि अपने उप नाम के साथ जुड़े दबाव के बारे में उन्हें बचपन से ही पता है. उन्होंने बताया, "मैंने अपने नाम के साथ जीना बचपन में ही सीख लिया था. स्कूल में वे मेरी ओर इशारे करते थे. लेकिन फिर रकेले उससे उबरी और उसकी शख्सियत नाम के ऊपर हावी साबित हुई, चाहे उस नाम का कितना ही बोझ क्यों ना हो.”
तस्वीरेंः हिमलर की खूनी डायरी
हिमलर की खूनी डायरी
सबसे क्रूर नाजी नेताओं में शुमार हाइनरिष हिमलर की एक डायरी सार्वजनिक हुई, जिसमें उसने 1937-38 और 1944-45 यानि दूसरे विश्व युद्ध के पहले और अपने आखिरी दिनों का ब्यौरा दर्ज किया था.
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मॉस्को स्थित जर्मन इतिहास संस्थान (डीएचआई) अगले साल हिमलर की उन डायरियों को प्रकाशित करने जा रहा है जिसमें दूसरे विश्व युद्ध के ठीक पहले और बाद के दिनों में उसकी ड्यूटी के दौरान जो भी घटा वो दर्ज है. कुख्यात नाजी संगठन एसएस के राष्ट्रीय प्रमुख की यह आधिकारिक डायरी 2013 में मॉस्को के बाहर पोडोल्स्क में रूसी रक्षा मंत्रालय ने बरामद की थी.
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डायरी में हिमलर अपने अगले दिन की योजना के बारे में टाइप करके लिखता था. इसे देखकर जाना जा सकता है कि तब हिमलर के दिन कैसे गुजरते थे. इसमें तमाम अधिकारियों, एसएस के जनरलों के साथ रोजाना होने वाली बैठकों के अलावा मुसोलिनी जैसे विदेशी नेताओं से मुलाकात की बात दर्ज है. इसके अलावा आउशवित्स, सोबीबोर और बूखेनवाल्ड जैसे यातना शिविरों के दौरे का भी जिक्र है.
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हिमलर की सन 1941-42 की डायरी 1991 में ही बरामद हो गई थी और उसे 1999 में प्रकाशित किया गया था. हिमलर को अडोल्फ हिटलर के बाद नंबर दो नेता माना जाता था. 23 मई 1945 को ल्यूनेबुर्ग में ब्रिटिश सेना की हिरासत में आत्महत्या करने वाले हिमलर ने अपने जीवनकाल में एसएस प्रमुख के अलावा, गृहमंत्री और रिप्लेसमेंट आर्मी के कमांडर के पद संभाले थे.
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सभी यातना शिविरों के नेटवर्क के अलावा घरेलू नाजी गुप्तचर सेवा का काम भी हिमलर देखता था. हिमलर के अलावा ऐसी डायरी नाजी प्रोपगैंडा प्रमुख योसेफ गोएबेल्स रखता था. इन डायरियों से होलोकॉस्ट के नाम से प्रसिद्ध यहूदी जनसंहार में हिमलर की भूमिका साफ हो जाती है. डायरी में दिखता है कि उसने यातना शिविरों और वॉरसॉ घेटो का भी दौरा किया और वहां यहूदियों की सामूहिक हत्या करवाई.
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जर्मन दैनिक "बिल्ड" में प्रकाशित इस डायरी के कुछ अंशों में दिखता है कि 4 अक्टूबर, 1943 को हिमलर ने पोजनान में एसएस नेताओं के एक समूह को संबोधित किया. इस तीन घंटे के भाषण में हिमलर ने "यहूदी लोगों के सफाए" की बात कही थी. आधिकारिक तौर पर किसी नाजी नेता के होलोकॉस्ट का जिक्र करने के प्रमाण दुर्लभ ही मिले हैं. हिमलर यूरोप के साठ लाख यहूदियों के खात्मे का गवाह और कर्ताधर्ता रहा.
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नाजी काल के विशेषज्ञों को पूरा भरोसा है कि यह डायरी और दस्तावेज सच्चे हैं. रूस की रेड आर्मी के हाथ लगी इस डायरी के 1,000 पेजों को 2017 के अंत तक दो खंडों वाली किताब के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.
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पोडोल्स्क आर्काइव में करीब 25 लाख पेजों वाले ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं जिन्हें युद्ध के दौरान रेड आर्मी ने बरामद किया था. अब इन्हें डिजिटलाइज किया जा रहा है और रूसी-जर्मन संस्थानों द्वारा प्रकाशित भी.
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डायरी में एक दिन की एंट्री देखिए- 3 जनवरी, 1943: हिमलर अपने डॉक्टर के पास "थेरेपी मसाज" के लिए गया. मीटिंग्स कीं, पत्नी और बेटी से फोन पर बातें कीं और उसी रात मध्यरात्रि को अनगिनत पोलिश परिवारों को मरवा दिया.
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इन दस्तावेजों से हिमलर की विरोधाभासी तस्वीर उभरती है. एक ओर वो सबका ख्याल रखने वाला पारिवारिक व्यक्ति था तो दूसरी ओर अवैध संबंध के तहत मिस्ट्रेस रखता था और उसकी नाजायज संतान भी थी. वो ताश खेलने और तारे देखने का शौकीन था तो यातना शिविरों में आंखों के सामने लोगों को मरते देखने का भी.
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हिमलर की अपनी सेक्रेटरी हेडविग पोटहास्ट के साथ भी दो संतानें थीं. डायरी में उसने 10 मार्च, 1938 को नाजी प्रोपगैंडा प्रमुख योसेफ गोएबेल्स के साथ जाक्सेनहाउजेन के यातना शिविर का दौरा करने और 12 फरवरी, 1943 को सोबीबोर में तबाही को देखने जाने का ब्यौरा लिखा है. ऐसी विस्तृत और पक्की जानकारी पहली बार हिमलर की डायरी के कारण ही सामने आई है.
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रकेले मुसोलिनी ने फासीवाद के बारे में अपने विचारों से जुड़े सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया. उन्होंने बस इतना कहा कि वह इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाने के खिलाफ हैं. उन्होंने कहा, "इस मुद्दे पर बात करने के लिए तो हमें कल सुबह तक बात करनी पड़ेगी.”
रकेले मुसोलिनी रोमानो मुसोलिनी की बेटी हैं. रोमानो मुसोलिनी एक जैज पियानोवादक थे और एक्टर सोफिया लॉरेन के भी रिश्तेदार थे.
कौन था बेनितो मुसोलिनी?
बेनितो मुसोलिनी 1922 से 1943 तक इटली का प्रधानमंत्री रहा था. उसने राष्ट्रीय फासीवादी पार्टी की स्थापना की थी. उसे इतालवी फासीवाद का प्रवर्तक कहा जाता है. उसकी नीति रोमन साम्राज्य की ऐतिहासिक शान ओ शौकत को वापस हासिल करने की थी.
जानें, ऐन फ्रैंक की कहानी
ऐन फ्रैंक की कहानी
कई सालों तक ऐन फ्रैंक का परिवार नीदरलैंड्स में छिपता रहा. लेकिन आखिरकार नाजियों ने उनका पता लगाकर 4 अगस्त 1944 में आउश्वित्स के यातना शिविर भेज दिया. ऐन ने अपनी छिपने की जगह में अपनी डायरी लिखी जो दुनिया भर में मशहूर है.
इस फोटो में ऐन आगे बाईं तरफ खड़ी हैं. उनकी बहन मार्गोट पीछे दाहिनी तरफ खड़ी हैं. ऐन के पिता ओटो फ्रैंक ने मार्गोट की आठवीं सालगिरह पर यह फोटो खीचीं थी. 1934 में यह तस्वीर नीदरलैंड्स में ली गई.
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एम्सटरडम में छिपने की जगह
नीदरलैंड्स की राजधानी में ओटो फ्रैंक ने अपनी कंपनी बनाई. इस घर में कंपनी का दफ्तर था और इसके पीछे ऐन के पिता ने छिपने की जगह बनाई. 1942 से लेकर 1944 तक ऐन का परिवार चार और परिवारों के साथ यहां रहा. ऐन ने यहीं अपनी डायरी भी लिखी.
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डायरी बनी सहेली
शुरुआत से ही ऐन ने हर दिन अपनी डायरी में लिखा. वह उसकी सहेली थी और ऐन उसे किटी बुलाती थी. इस दौरान ऐन की जिंदगी में कई चिंताएं आ गईं. "मुझे लेकिन अच्छा लगता है कि मैं जो सोचती और महसूस करती हूं, उसे कम से कम लिख सकती हूं, नहीं तो मेरा दम बिलकुल घुट जाता."
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बैर्गेन बेलसेन में मौत
ऐन फ्रैंक और उसकी बहन मार्गोट को 30 अक्तूबर 1944 को आउश्वित्स से बैर्गेन बेलसेन लाया गया. इस यातना शिविर में 70,000 से ज्यादा लोग मारे गए. नाजियों को हराने के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने बंदियों को छुड़ाया और मृतकों के शवों को सार्वजनिक कब्रिस्तान तक लाए. ऐन और उसकी बहन मार्गोट की मौत लेकिन टाइफस बीमारी की वजह से हो चुकी थी. ऐन उस वक्त 15 साल की थीं.
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ऐन की कब्र
बेर्गन बेलसेन में ऐन की कब्र भी है. फ्रैंकफर्ट में पैदा होने वाली ऐन ने अपनी जिंदगी में कई सपने देखे. अपनी डायरी में उसने लिखा, "मैं बेकार में नहीं जीना चाहती, जैसे ज्यादातर लोग जीते हैं. मैं उन लोगों को जानना चाहती हूं जो मेरे आसपास रहते हैं लेकिन मुझे नहीं जानते, उनके काम आना और उनके जीवन में खुशी लाना चाहती हूं. मैं और जीना चाहती हूं, अपनी मौत के बाद भी."
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डायरी से मशहूर
ऐन फ्रैंक लेखक बनना चाहती थीं. उनके पिता ने 25 जून 1947 को डायरी प्रकाशित की और उसे नाम दिया, "पिछवाड़े वाला घर." किताब बहुत मशहूर हुई और ऐन नाजी यातना का प्रतीक बन गई. 6 जुलाई 1944 को ऐन ने लिखा, "हम सब खुश होने के मकसद से जीते हैं, हम सब अलग अलग जीते हैं लेकिन फिर भी एक ही तरह से."
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मुसोलिनी के नेतृत्व में इटली ने दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी का साथ दिया. 1943 में जब इटली की हार नजर आने लगी तो उसकी अपनी पार्टी के सदस्यों ने उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया और उसे पद से हटाकर गिरफ्तार कर लिया गया.
दो महीने बाद ही उसे जेल से छुड़ा लिया गया. लेकिन 27 अप्रैल 1945 को देश छोड़कर भागते हुए उसे पकड़ लिया गया और भीड़ ने पीट-पीट कर उसकी जान ले ली.
रेकेल मुसोलिनी के पिता रोमानो बेनितो मुसोलिनी की दूसरी पत्नी रकेले गीडी की दूसरी बेटी आना मारिया के बेटे थे.
रिपोर्टः विवेक कुमार (एएफपी)
भारत से निकल कर यूरोप तक पहुंचने वाले रोमा कौन हैं?
नेटफ्लिक्स की फिल्म रोमा ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रोमा भारत से निकली बंजारा जाति है. जानिए इनके बारे में और.
दसवीं सदी में भारत से पलायन करने वाली रोमा बंजारा जाति को दुनिया भर में मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. आज भी ये समुदाय हाशिए पर जीने को मजबूर है.
तस्वीर: Dokumentations- und Kulturzentrum Deutscher Sinti und Roma
यूरोप भर में
यूरोप में मौजूद जातीय रूप से अल्पसंख्यकों में रोमा लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. करीब सवा करोड़ रोमा यूरोप भर में फैले हुए हैं. अधिकतर मध्य और पूर्वी यूरोप में रहते हैं.
तस्वीर: Tomas Rafa
गरीबी रेखा के नीचे
2016 में यूरोपीय संघ के नौ सदस्य देशों में हुए एक सर्वे के अनुसार यूरोप में रहने वाले लगभग 80 प्रतिशत रोमा गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं.
तस्वीर: DW/M.Smajic
भेदभाव का सामना
एक रिपोर्ट के अनुसार हर चार में से एक रोमा व्यक्ति ने कहा कि उसे भेदभाव का सामना करना पड़ा है लेकिन इनमें से महज दस फीसदी लोगों ने ही इसके खिलाफ शिकायत दर्ज की.
तस्वीर: DW/J. Djukic Pejic
जिप्सियों से दूरी
एक अन्य शोध के अनुसार यूरोप के आधे से ज्यादा लोगों का कहना था कि वे अपने आसपड़ोस में "जिप्सी" लोगों को रहते नहीं देखना चाहते. नशा करने वालों और अपराधियों के अलावा लोगों को बस इन्हीं से दिक्कत थी.
तस्वीर: DW/J. Djukic Pejic
छोटा जीवन
आंकड़े दिखाते हैं कि यूरोप के बाकी लोगों की तुलना में रोमा लोग दस साल कम जीते हैं. साथ ही इनमें बाल मृत्यु दर भी यूरोप के औसत से ज्यादा है.
तस्वीर: DW/A. Feilcke
साक्षरता भी मुद्दा
यूरोप में रहने वाले लगभग बीस फीसदी रोमा लोग पढ़ लिख नहीं सकते. हर चार में से बमुश्किल एक ही रोमा व्यक्ति स्कूली शिक्षा पूरी करता है.
तस्वीर: DW/S. Kljajic
कहां की राष्ट्रीयता?
2016 की संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि केवल इटली में ही 15 हजार बच्चों पर स्टेटलेस यानी किसी भी देश की नागरिकता ना होने का खतरा है.
तस्वीर: DW/M.Smajic
मान्यता भी नहीं
लातिन अमेरिका में केवल कोलंबिया और ब्राजील ही रोमा को अल्पसंख्यक जाति का दर्जा देते हैं. बाकी देशों में इन्हें कोई मान्यता प्राप्त नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/AA/A. Paduano
बुरा जीवनस्तर
रोमा लोग अधिकतर ऐसे घरों में रहते हैं जहां जीवनस्तर बेहद बुरा होता है. साथ ही इन्हें पुलिस की कार्रवाई का डर भी रहता है. इटली और बुल्गारिया में कई रोमा लोगों को जबरन घर से निकाला गया है.