ग्रेट बैरियर रीफ के कोरल के लिए 400 सालों का सबसे बुरा दशक
८ अगस्त २०२४
ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ के लिए बीता दशक पिछले 400 सालों में सबसे बुरा साबित हुआ है. बढ़ता तापमान उसके लिए बड़ा संकट बन कर सामने आया है.
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ग्रेट बैरियर रीफ के शानदार कोरल सिस्टम के आसपास समुद्र का तापमान 1960 के दशक से ही हर साल बढ़ता आ रहा है. साइंस जर्नल नेचर में छपी एक नई रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक हाल के वर्षों में कोरल ब्लीचिंग की घटनाएं जिस स्तर पर दिखी हैं उनके पीछे पानी का बहुत गर्म होना वजह है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पानी की गर्मी बढ़ने के पीछे इंसानी गतिविधियों से प्रेरित जलवायु परिवर्तन है.
रिसर्च रिपोर्ट की सह लेखिका हेलेन मैकग्रेगर का कहना है कि वह रीफ को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं, उन्होंने तापमान में बढ़ोत्तरी को "अभूतपूर्व" बताया है. मैकग्रेगर ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "ये कोरल यहां 400 सालों से हैं और इस वक्त जो वो झेल रहे हैं वह सबसे गर्म तापमान है."
सबसे बड़ी जीवित संरचना
द ग्रेट बैरियर रीफ को दुनिया की सबसे बड़ी जीवित संरचना कहा जाता है. इसका विस्तार 2,300 किलोमीटर में है. इसमें जैव विविधता की अनोखी दुनिया बसी हैं, जिसमें 600 से ज्यादा प्रकार के कोरल और 1,625 किस्म की मछलियां हैं. हालांकि लगातार मास ब्लीचिंग की घटनाओं की वजह से रीफ का नाजुक इकोसिस्टम खतरे में पड़ गया है. अत्यधिक तापमान कोरल के पोषण और रंग को नुकसान पहुंचाता है. इसे ही ब्लीचिंग कहा जाता है. कोरल की ब्लीचिंग तब होती है जब पानी का तापमान एक डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ जाता है.
ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चरों ने कोरल सी में सतह के तापमान का परीक्षण किया है. कोरल सी सागर के उत्तर पूर्वी तट का 2000 किलोमीटर में फैला इलाका है जिसमें ग्रेट बैरियर रीफ भी शामिल है. वैज्ञानिकों ने कोरल के नमूने ले कर समुद्र के सतह पर 1618 से 1995 तक के तापमान की संरचना बनाई है. इसमें हाल के आंकड़ों को भी शामिल किया गया है.
उन्होंने देखा कि साल 1900 के पहले तापमान तुलनात्मक रूप से स्थिर था लेकिन 1960 से ले कर अब तक समुद्र का तापमान औसत रूप से 0.12 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. यह तापमान बीते सालों में जो पांच मास ब्लीचिंग की घटनाओं के दौरान और ज्यादा ऊंचे थे.
खतरे में हैं कोरल
मैकग्रेगर का कहना है कि भले ही कोरल इस स्थिति से उबर सकते हैं लेकिन बढ़ता तापमान और बार बार ब्लीचिंग की घटनाएं उनकी क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं. उन्होंने बताया, "अब तक जो हमने देखा है उससे लग रहा है कि ये बदलाव इतनी तेजी से हो रहे हैं कि कोरल इनके हिसाब से खुद को तैयार नहीं कर पा रहे हैं और इससे रीफ को खतरा है."
इस साल की ब्लीचिंग ने करीब 81 फीसदी रीफ को अत्यधिक या फिर ऊंचे स्तर का नुकसान पहुंचाया है. सरकार की तरफ से जारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि वे अब तक के सबसे विस्तृत और गंभीर नुकसान हैं. वैज्ञानिकों को अभी कुछ और महीने ये पता लगाने में लगेंगे कि रीफ का कितना हिस्सा है जो रिकवर नहीं हो पाएगा.
दुनिया भर की सरकारें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने की कोशिशों में जुटी हैं. इसके साथ ही रीफ को इस स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करने और खतरों को घटाने पर भी काम हो रहा है. ऑस्ट्रेलिया ने पानी की गुणवत्ता सुधारने, जलवायु परिवर्तन के असर को घटाने और खतरे से जूझ रही प्रजातियों को बचाने पर करीब 5 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर खर्च किए हैं. हालांकि यह भी सच है कि ऑस्ट्रेलिया दुनिया में गैस और कोयले के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है. उसने हाल ही में कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य तय किया है.
एनआर/एए (एएफपी)
ग्रेट बैरियर रीफ में भयानक ब्लीचिंग
ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ के कोरल, ब्लीच के भयानक खतरे का सामना कर रहे हैं. वैज्ञानिकों के सर्वे में शामिल इलाके के 73 फीसदी कोरल को भारी नुकसान हुआ है.
तस्वीर: Grace Frank/Australian Institute of Marine Science/REUTERS
ग्रेट बैरियर रीफ का सर्वे
वैज्ञानिकों ने हवाई सर्वे में 1,000 रीफ को देखा जिसमें 730 रीफ में ब्लीच नजर आया. ब्लीच की मात्रा 90 फीसदी से ज्यादा है. ऑस्ट्रेलिया के रीफ प्रशासन के मुताबिक यह ब्लीच इस रीफ के पूरे विस्तार में नजर आया है.
तस्वीर: Grace Frank/Australian Institute of Marine Science/REUTERS
क्या है कोरल रीफ
कोरल दूसरे जीवों की तरह छोटे समुद्री जीव हैं. ये छोटे छोटे जीव कुछ खास समुद्री इलाकों में अपनी जड़ें जमा कर बैठते हैं और एक दूसरे से जंगल के पेड़ों की तरह जुड़ कर रीफ बनाते हैं. ये अपनी सुरक्षा के लिए अपने आस पास सख्त ढांचे तैयार करते हैं जो चूना पत्थर जैसे होते हैं.
तस्वीर: Supplied/CSIRO/dpa/picture alliance
कोरल के भूखे मरने का खतरा
कोरल रीफ का भोजन हैं कवक. अलग अलग तरह के कवक इनके लिए आहार बनते हैं. समुद्र का तापमान बढ़ने और प्रदूषण से कवकों में कमी आती है तो कोरल भूखे रह जाते हैं. उनका रंग सफेद पड़ कर पारदर्शी हो जाता है और उनके मरने का खतरा पैदा हो जाता है. इसी को ब्लीचिंग कहा जाता है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Great Barrier Reef Foundation
जैव विविधता के लिए खतरा
समुद्र के सिर्फ एक प्रतिशत इलाके में कोरल रीफ का विस्तार है. जबकि दुनिया के 25 फीसदी समुद्री प्रजातियों को कोरल के इलाके में घर मिलता है. जाहिर है कि अगर समुद्र के नीचे का यह जंगल खत्म हो गया तो जीवों का बसेरा उजड़ जाएगा.
तस्वीर: Grace Frank/Australian Institute of Marine Science/REUTERS
ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर कोरल रीफ
ऑस्ट्रेलिया के ग्रैट बैरियर रीफ को दुनिया की सबसे विशाल जीवित संरचना भी कहा जाता है. यह 2,300 किलोमीटर के इलाके में फैला हुआ है. इसमें 600 से ज्यादा कोरल के प्रकार और 1,625 मछलियों की प्रजातियां हैं.
तस्वीर: HPIC/dpa/picture alliance
कब होती है ब्लीचिंग
पानी का तापमान अत्यधिक बढ़ने पर कोरल अपना अस्तित्व बचाने के लिए सूक्ष्म कवकों को बाहर निकालते हैं. अगर ऊंचा तापमान बना रहे तो कोरल सफेद हो कर मर जाते हैं.
तस्वीर: WWF AUSTRALIA/AAP/dpa/picture alliance
पहले से बहुत ज्यादा खतरे में है रीफ
इसी साल की गर्मियों में सरकार की तरफ से जारी रिपोर्ट में 46 फीसदी रीफ में अत्यधिक गर्मी की वजह से दबाव की बात की गई थी. इससे पहले 2016 में केवल 20 फीसदी रीफ ही दबाव झेल रहे थे. पिछले 8 सालों में यह पांचवां मौका है जब बड़े पैमाने पर रीफ ब्लीचिंग झेल रहे हैं.
तस्वीर: Grace Frank/ Australian Institute of Marine Science/REUTERS
कैसे बचेंगे कोरल
विशेषज्ञों ने कोरल की ब्लीचिंग रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की है. इसमें वैश्विक उत्सर्जन को घटाने के साथ ही स्थानीय पुनर्वास परियोजनाओं को बढ़ाना शामिल है.
तस्वीर: Grace Frank/Australian Institute of Marine Science/REUTERS
क्या कर रहा है ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया ने पानी की गुणवत्ता सुधारने, जलवायु परिवर्तन के असर को घटाने और खतरे का सामना कर रही प्रजातियों को बचाने पर करीब 3.2 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. हालांकि यह देश गैस और कोयले के सबसे बड़े निर्यातकों में है और इसने कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य हाल ही में तय किया है.