ग्रीनपीस ने कम दूरी की उड़ानों को बंद करने का आह्वान किया है. संगठन ने पर्यावरण के अनुकूल ट्रेन से यात्रा को हवाई यात्रा का विकल्प बताया है.
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गैर सरकारी पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस ने एक अध्ययन में कहा है कि यूरोप में छोटी दूरी की उड़ानों की संख्या अधिक है. और इसे बंद करने से इस लिहाज से यह एक बड़ा और सकारात्मक कदम होगा. ग्रीनपीस ने कहा है कि यात्रियों को रेल से यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित करके कम दूरी की उड़ानों को प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए, जो पर्यावरण के लिए कम हानिकारक है.
ग्रीनपीस ने यूरोपीय सरकारों से ऐसी उड़ानों को निलंबित करने का आह्वान किया है, और उनसे रेल यात्रा को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाने की अपील की है. पर्यावरण समूह का यह भी कहना है कि यूरोपीय देशों के हवाई क्षेत्र में जितने कम विमान होंगे, महाद्वीप उतना ही कम पर्यावरण प्रदूषण का सामना करेगा.
ट्रेन से यात्रा पर्यावरण के लिए बेहतर
ग्रीनपीस की ओर से ओबीसी ट्रांसयूरोपा ने इस शोध को किया है. इसके आंकड़ों के अनुसार महाद्वीप में कम से कम 150 ऐसे मार्ग हैं और जिन शहरों के बीच ये उड़ानें संचालित होती हैं, वे भी रेल से जुड़े हुए हैं. इन शहरों तक ट्रेन से छह घंटे या उससे कम समय में पहुंचना संभव है.
शोध ऐसे समय में पेश किया गया है जब संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन ग्लासगो में चल रहा है. शोध के लेखकों के मुताबिक ट्रेनें छोटी दूरी की उड़ानों की तुलना में बहुत कम पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनती हैं.
ग्लासगो से उम्मीदें
स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो में यूएन का जलवायु सम्मेलन चल रहा है, जिसे पृथ्वी को बचाने का आखिरी मौका कहा जा रहा है. इस सम्मेलन से पर्यावरण प्रेमियों की क्या उम्मीदें हैं, जानिए...
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
ग्लासगो से चाहती क्या है दुनिया
ग्लासगो में हिस्सा ले रहे नेताओं की ओर पूरी दुनिया के लोग उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं. पर्यावरणविदों का कहना है कि यह बड़े फैसले लेना का आखरी मौका है. पर वे फैसले क्या हैं?
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
जलवायु वित्त
विशेषज्ञ चाहते हैं कि अमीर देश जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले देशों की आर्थिक और वित्तीय मदद करें ताकि वे इस संकट से निपट सकें.
तस्वीर: Lee Smith/REUTERS
1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य
पेरिस में तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न बढ़ने देने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन तब से बहुत पानी भाप बनकर उड़ चुका है. ग्लासगो में यह लक्ष्य तय करना होगा कि पृथ्वी का तापमान सदी के आखिर तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया जाएगा.
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महत्वाकांक्षी योजनाएं
पेरिस समझौते को पांच साल हो गए हैं. अब समय है कि ग्लासगो में सारे सदस्य देश और ज्यादा बड़ी और महत्वाकांक्षी योजनाओं पर सहमत हों और कोशिश करें कि ज्यादा जोर लगाया जा सके क्योंकि 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने की योजना को भी वैज्ञानिक बहुत सुरक्षित नहीं मान रहे हैं.
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जवाबदेही
बहुत सारे देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्यों का ऐलान तो किया है लेकिन उनकी कोई कानूनी जवाबदेही तय नहीं है. विशेषज्ञ और कार्यकर्ता चाहते हैं कि तमाम देश इन लक्ष्यों को कानूनन बाध्य बनाएं ताकि इनका ज्यादा असर हो.
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सहमतों का संगठन
120 देशों का किसी एक योजना पर सहमत हो पाना आसान नहीं होगा. पेरिस में 2 डिग्री के लक्ष्य पर सहमति बनाने में ही पसीने छूटे गए थे. पर्यावरणविद चाहते हैं कि जो देश सहमत हैं वे जरूर साथ आएं और संगठित होकर काम करें.
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कुछ छोटी दूरी के मार्ग
शोध टीम ने कम दूरी की उड़ानों का उदाहरण देते हुए कहा कि मैड्रिड से बार्सिलोना, फ्रैंकफर्ट से बर्लिन, ब्रसेल्स से एम्स्टर्डम आदि के लिए मार्ग हैं, जिन पर उच्च गति वाली ट्रेनें नियमित अंतराल पर चलती हैं. ट्रेन दो से चार घंटे में इन शहरों के बीच का सफर तय करती है.
रिपोर्ट के मुताबिक करीब 250 रूटों पर कम दूरी की उड़ानें रद्द की जा सकती हैं. और ऐसा करने से सालाना आधार पर लगभग 2.35 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकना संभव होगा. यह अनुमान लगाया गया है कि रिपोर्ट यूरोपीय सरकारों को अपने लोगों को ट्रेन से यात्रा करने के लिए मनाने में मदद कर सकती है.
एए/सीके (एपी)
धरती के सबसे महत्वपूर्ण सात वन
धरती के ये सात वन पर्यावरण का जीवन हैं. लेकिन इनके अपने जीवन पर कई तरह के खतरे मंडरा रहे हैं. देखिए, पृथ्वी के सात सबसे महत्वपूर्ण जंगलों को और सोचिए, कैसे बचेंगे ये जंगल...
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अमेजोन के जंगल
दक्षिण अमेरिका में अमेजन के जंगल दुनिया के सबसे अधिक जैव विविधता वाल जगहों में से एक हैं. कार्बन को सोखने का यह सबसे अहम स्रोत है इसलिए इसे धरती के फेफड़े भी कहते हैं. लेकिन कटाई और पशुपालन ने 20 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल खत्म कर दिए हैं. एक हालिया अध्ययन के मुताबिक अमेजोन के कुछ हिस्से अब जितनी कार्बन सोखते हैं उससे ज्यादा उत्सर्जित करते हैं.
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टाएगा
स्कैंडेनीविया और रूस में फैले ये वन ज्यादातर शंकुधारी वृक्षों से बने हैं. सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस में पिछले कुछ दशकों की आर्थिक गिरावट ने इन वनों को खतरे में डाल दिया है.
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बोरियल वन
टाएगा वनों का जो हिस्सा उत्तरी अमेरिका में पड़ता है उसे बोरियल कहते हैं. यह अलास्का से क्यूबेक तक फैले हैं और कनाडा के लगभग एक तिहाई हिस्से को कवर करते हैं. इनका आठ प्रतिशत हिस्सा ही सुरक्षित श्रेणी में है और कागज व लकड़ी का सबसे बड़ा निर्यातक कनाडा हर साल 4,000 वर्ग किलोमीटर वन काट रहा है.
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कॉन्गो बेसिन
कॉन्गो नदी दुनिया के सबसे पुराने और घने जंगलों को पाल पोस रही है. अफ्रीका के सबसे प्रसिद्ध जानवरों जैसे गोरिल्ला, हाथी और चिंपाजी आदि के घर ये वन ही हैं. लेकिन यहां तेल, सोना और हीरे जैसी बेशकीमती चीजें भी खूब मिलती हैं जो इन वनों के लिए खतरा बन गई हैं.
ब्रुनई, इंडोनेशिया और मलयेशिया में लगभग 14 करोड़ साल पुराने ये जंगल कुछ अद्भुत जीवों के घर हैं. लेकिन लकड़ी, पाम ऑयल, रबर और अन्य खनिजों ने इन वनों को खतरे में डाल दिया है.
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प्रिमोराइ वन
रूस के सुदूर उत्तर में स्थित ये साइबेरियाई बाघ और दर्जनों अन्य ऐसी प्रजातियों को सहेजे हैं जिनका वजूद खतरे में है. इनका दूर होना फिलहाल इन्हें बचाए रखे है लेकिन व्यवसायिकता की आंच यहां भी महसूस होने लगी है.
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वाल्दीवियाई वन
प्रशांत महासागर और आंदेस के बीच एक पतली सी पट्टी पर यह घना वन बसा है. यहां सदियों तक जीवित रहने वाले और धीमा जीवन जीने वाले वृक्ष हैं. लेकिन उनकी लकड़ी के कारण अब वक्त की आरी इन की ओर बढ़ रही है.
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