भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो का अहम मिशन तीसरे चरण में विफल हो गया. धरती पर निगरानी रखने वाले उपग्रह ईओएस-03 का प्रक्षेपण गुरुवार सुबह हुआ लेकिन उसमें तकनीकी गड़बड़ी आ गई.
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भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को गुरुवार को एक गंभीर झटका लगा. GSLV-F10/EOS-03 रॉकेट जियो-इमेजिंग सैटेलाइट-1 (जीआईएसएटी-1) को कक्षा में स्थापित करने के अपने मिशन में विफल हो गया.
इस सैटेलाइट ने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से गुरुवार सुबह 5.43 बजे उड़ान तो भरी लेकिन तय समय से कुछ सेकेंड पहले तीसरे स्टेज (क्रायोजेनिक इंजन) में गड़बड़ी आने से यह ऑर्बिट में स्थापित नहीं हो सका.
मिशन की विफलता की घोषणा करते हुए, इसरो अध्यक्ष के सिवन ने कहा, "क्रायोजेनिक चरण में देखी गई तकनीकी विसंगति के कारण मिशन पूरा नहीं किया जा सका है."
57.10 मीटर लंबा, 416 टन के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी-एफ10) का दूसरे लॉन्च पैड से सुबह 5.43 बजे प्रक्षेपण हुआ था. जियो-इमेजिंग सैटेलाइट-1 लदा रॉकेट अपने पिछले हिस्से में नारंगी रंग की मोटी लौ के साथ उग्र रूप से आसमान की ओर बढ़ा. लगभग पांच मिनट तक सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से चला.
रॉकेट की उड़ान में लगभग छह मिनट और क्रायोजेनिक इंजन के संचालन शुरू होने के तुरंत बाद, मिशन कंट्रोल सेंटर में तनाव का माहौल हो गया क्योंकि रॉकेट से कोई डेटा नहीं आ रहा था. इसरो के एक अधिकारियों ने घोषणा की कि क्रायोजेनिक इंजन के प्रदर्शन में विसंगति थी.
गुरुवार को हुआ यह प्रक्षेपण पहले इस साल अप्रैल या मई महीने में होना था, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण इसको टाल दिया गया था. GSLV-F10/EOS-03 अभियान के लिए उल्टी गिनती बुधवार भोर तीन बजकर 43 मिनट पर शुरू हो गई थी.
कैसे मिलती है उपग्रहों की ऊर्जा
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मिशन का उद्देश्य
इस मिशन का उद्देश्य नियमित समय पर बड़े क्षेत्र की वास्तविक समय पर तस्वीरें उपलब्ध कराना, प्राकृतिक आपदाओं की त्वरित निगरानी करना और कृषि, वनीकरण, जल संसाधनों और आपदा चेतावनी देना, चक्रवात की निगरानी करना, बादल फटने आदि के बारे में जानकारी हासिल करना था.
कहा जा रहा है कि EOS-03 सफल तरीके से ऑर्बिट में स्थापित हो जाता तो हर रोज देश की तीन से चार तस्वीरें भेजता. इस सैटेलाइट के जरिए चीन और पाकिस्तान से सटे इलाके की तस्वीर भी ली जा सकती. इसी कारण इस सैटेलाइट को "आई इन द स्काई" भी कहा जा रहा है.
यह मिशन इस साल का दूसरा मिशन था. इस साल पहला मिशन 28 फरवरी को सफलता के साथ इसरो ने अंजाम दिया था. भारतीय रॉकेट श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से ब्राजील का उपग्रह लेकर अंतरिक्ष के लिए रवाना हुआ था.
चटगांव से वेनिस तक का सैटेलाइट व्यू
अगर आपने कभी हवाई जहाज से नीचे जमीन की तरफ देखा है, तो आपने भी कई तरह के पैटर्न नोटिस किए होंगे. असल में ये होते क्या हैं, जानिए इन तस्वीरों में..
तस्वीर: eoVision/GeoEye, 2011, distributed by e-GEOS
प्रकृति या मनुष्य
इस तस्वीर में हरे भरे जंगल तो दिख रहे हैं लेकिन इनसे पता चलता है कि मनुष्य अपने पर्यावरण को कैसे बदलता है. क्राइस्टचर्च न्यूजीलैंड में इन पेड़ों को कृत्रिम रूप से उगाया गया है.
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रेगिस्तान में फूल
उत्तर अफ्रीका में सूखी नदी को वादी कहते हैं. सऊदी अरब के वादी अस सहबा में हरी क्यारियां भी हैं, जो धूप और सूखे मरुस्थल के बीच राहत पहुंचाती हैं.
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आईने का खेल
स्पेन के सेविया में सौर उद्यान प्लांटा 10 और प्लांटा 20 की तस्वीर. यहां तापमान 1000 डिग्री तक पहुंच सकता है और ऊर्जा भी खूब पैदा होती है.
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फूलों का सागर
उत्तरी जर्मनी के ल्युबेक में मई का महीना. सरसों के खेत लहलहाते हैं और इनसे खाना पकाने के लिए तेल ही नहीं बल्कि गाड़ियों को चलाने वाला बायो डीजल भी बनता है.
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कहां है प्रकृति
मलेशिया के सारावाक प्रांत में प्राचीन जंगल खत्म हो रहे हैं. यह इतने घने हैं कि इनसे गुजरने का एक ही रास्ता है नदी में नाव से जाना. लेकिन अब खेती के लिए हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं.
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रंग बिरंगी जमीन
बोमोंट ऑस्ट्रेलिया में नमक निकाला जा रहा है. यहां पानी में पौधों और जमीन में नमक की बदलती मात्रा से रंग बदलते रहते हैं.
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अमीरों की बस्ती
अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में है वेस्टन शहर. इसे बहुत नियोजित तरीके से बनाया गया है. पहले यहां दलदल हुआ करता था. यहां रहने वाले 66,000 लोगों की आमदनी काफी ज्यादा है.
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रिसाइक्लिंग या गंदगी
बांग्लादेश के चटगांव में काफी शोर होता है. टैंकर और जहाजों को यहां लाकर उन्हें तोड़ा जाता है और उनके पुर्जों का दोबारा इस्तेमाल किया जाता है.
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बहता सोना
स्पेन के खाएन प्रांत में पांच करोड़ जैतून के पेड़ हैं. यहां दुनिया का सबसे ज्यादा जैतून उगाया जाता है. हर साल छह लाख लीटर तेल निकलता है.
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शाही आराम
कतर में एक बंदरगाह के साथ नए घर बन रहे हैं. इन घरों को देखकर लगता है जैसे किसी ने मोतियों का हार बनाया हो.
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हरे खेत
चीन में इस तरह के हजारों खेत हैं. यहां की मिट्टी में अच्छी खेती हो सकती है. बासांग इलाके में सीढ़ीदार खेत हैं जहां चावल उगाया जाता है.
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हीरों की बरसात
बोत्सवाना में दुनिया की सबसे बड़ी हीरे की खानें है. पत्थरों में खनिज ज्यादा होने से ये नीले हैं. यहां 1971 से खनन हो रहा है और कहते हैं कि यहां के हीरे अगले 50 साल में खत्म हो जाएंगे.
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बदलता इंसान
वेनिस की इस छवि से सैटेलाइट तस्वीरें बेचने वाली कंपनी ईओविजन दिखाना चाहती है कि मनुष्य प्रकृति पर कितना हावी है.
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