मध्य अमेरिकी देश ग्वाटेमाला में इन दिनों एलजीबीटी समुदाय के लोग खौफ में जी रहे हैं. इस महीने समुदाय के तीन सदस्यों की हत्या ने चिंता और बढ़ा दी है. अधिकार कार्यकर्ता इन अपराधों को रोकने की मांग कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/E. Biba
विज्ञापन
इस महीने ग्वाटेमाला में तीन एलजीबीटी+ लोगों की हत्या से मध्य अमेरिकी देश में पूर्वाग्रह के बढ़ते ज्वार की आशंका जताई जा रही है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के अपराध को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई की जरूरत है. ग्वाटेमाला में एलजीबीटी+ अधिकार समूह के प्रमुख मार्को विनिचियो कहते हैं, "हमलों की एक लहर आ गई है. हम लोगों की हत्याएं की जा रही हैं. मुझे लगता है कि हम इसकी चपेट में हैं."
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को एक टेलीफोन साक्षात्कार में बताया, "ट्रांस होना ही आपको निशाना बना सकता है." विनिचियो ने छह दिनों के भीतर ग्वाटेमाला में तीन हत्याओं के बाद बात की. देश में अब तक एलजीबीटी+ के 13 लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं.
निशाने पर समुदाय के सदस्य
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2020 में देश में कम से कम 19 एलजीबीटी+ लोग मारे गए. राजधानी ग्वाटेमाला सिटी में 11 जून को ट्रांसजेंडर अधिकार समूह ओत्रांस रेनास डे ला नोचे की 28 साल की प्रमुख एंड्रिया गोंजालेज की अज्ञात लोगों द्वारा गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.
ओत्रांस की एक और ट्रांस सदस्य सेसी इक्सपाता पर हमला किया गया और उनकी इलाज के दौरान 9 जून को अस्पताल में मौत हो गई. इसके बाद 14 जून को एक और गे जोस मानुएल की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
देखें:एक ट्रांसजेंडर बनीं जर्मनी की अगली टॉपमॉडल
एक ट्रांसजेंडर बनीं जर्मनी की अगली टॉपमॉडल
एक ट्रांसजेंडर, एक शरणार्थी, एक सुडौल मॉडल - जर्मनी की सबसे लोकप्रिय सौंदर्य प्रतियोगिता का स्वरूप बदलता जा रहा है. प्रतियोगिता के आयोजक शायद यह संदेश देना चाह रहे हैं कि असली सुंदरता ऊपरी नहीं बल्कि अंदरूनी होती है.
तस्वीर: Matthias Balk/dpa/picture alliance
मिलिए विजेता ऐलेक्स से
जर्मनी के कोलोन की रहनी वालीं ऐलेक्स मरिया पीटर सौंदर्य प्रतियोगिता "जर्मनीज नेक्स्ट टॉप मॉडल" के इतिहास में उसे जीतने वाली पहली ट्रांसजेंडर महिला बन गई हैं. जीत के बाद 23 वर्षीय ऐलेक्स ने कहा, "अलग होने के बारे में जितना हम अपने आप से स्वीकार करते हैं, वो उससे ज्यादा सामान्य है."
सुंदरता का समावेशी अवतार
"समावेश" अब एक वैश्विक नारा है और इस कार्यक्रम ने इसे अपने लोगों में एक '*' जोड़ कर शामिल किया. '*' कई लिंग आधारित भूमिकाओं के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक चिन्ह है. ऐसी महिलाएं जो अलग होने की वजह से पहले अधिकारहीन थीं वो अब इस प्रतियोगिता से जुड़ सकती हैं. शरणार्थी, सुडौल महिलाएं और ट्रांसजेंडर - सब को यहां स्पॉटलाइट में एक मौका मिला.
सुडौल और सुंदर
यूक्रेन में पैदा हुई 21 वर्षीय डाशा पांच साल की उम्र से जर्मनी में रह रही हैं. उनका वजन 85 किलो है और वो कहती हैं कि सारी जिंदगी उन्हें लोग परेशान करते रहे और इसी वजह से वो सिर्फ जीतना ही नहीं बल्कि एक अहम संदेश देना चाहती थीं. आत्मविश्वास से भरी डाशा कहती हैं, "मैं एक आदर्श स्थापित करना चाहती हूं और जिन्हें सताया जाता है उनकी मदद करना चाहती हूं."
सपनों का पूरा होना
2015 में, सूलीन अपने परिवार के साथ अपने देश सीरिया से भाग कर तुर्की होते हुए जर्मनी आ गई थीं. जींस की एक कंपनी के लिए मॉडलिंग करते वक्त 20 वर्षीय सूलीन की आंखें भर आई थीं. वो अब एक मॉडल हैं और उन्होंने इस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया है. वो कहती हैं, "मैं वो लड़की हूं जो अपने सपनों को पूरा नहीं कर पा रही थी. अब मैं यहां हूं और अपने सपने को जी रही हूं."
कद की भी समस्या
पांच फीट छह इंच लंबी रोमिना को आप "छोटी" तो नहीं कहेंगे, लेकिन प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पांच फुट सात इंच का कद अनिवार्य होता है. प्रतियोगिता के लिए प्राकृतिक रूप से ही सुंदर होने के बावजूद रोमिना काइली जेनर जैसे सितारों की नकल करती थीं. उन्होंने अपने होंठों में बोटॉक्स के इंजेक्शन तक लगवाए थे. अब वो ऐसी लड़कियों की मदद करना चाहती हैं जो बिना सोचे समझे सोशल मीडिया के ट्रेंड के पीछे भागती हैं.
शरीर के रंग के परे
सारा नूरू के माता-पिता एथियोपिया से यूरोप आए थे. वो कहती हैं कि वो बवेरिया के एर्डिंग नगर के एक अस्पताल में पैदा होने वाली पहली अश्वेत बच्ची थीं. वो 2009 में इस प्रतियोगिता को जीतने वाली पहली अश्वेत मॉडल बनीं. उन्होंने उसके बाद एक लंबा सफर तय किया और आज वो अपने माता-पिता के मूल देश में विकास की परियोजनाओं से जुड़ी हुई हैं.
तस्वीर: Felix Heyder/dpa/picture-alliance
मॉडलों का सर्कस?
यह प्रतियोगिता 2006 से चल रही है और तब से सुप्रसिद्ध जर्मन सुपरमॉडल हाइडी क्लूम इसकी होस्ट हैं. कई सालों तक इसके मंच पर अधिकतर श्वेत, पतली और लंबी टांगों वाली लंबी महिलाओं को जगह दी जाती थी. ट्रांसजेंडर, कम साइज की और सुडौल महिलाओं की यहां कोई जगह नहीं थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kusch
अंदरूनी सुंदरता
इस प्रतियोगिता के जर्मनी में कई प्रशंसक हैं. खास कर युवा लड़कियां तो कार्यक्रम और उसके मॉडलों को अपना आदर्श मानती हैं. लेकिन आलोचक कहते हैं कि किशोरावस्था में अक्सर लड़कियां इस कार्यक्रम में दुबली और अस्वस्थ मॉडलों की नकल करती हैं जिससे यह संदेश जाता है कि सुंदरता शिक्षा से ज्यादा जरूरी है. इस साल भी महिलावादियों ने कार्यक्रम में "महिलाओं के शरीरों के कामुकीकरण" का विरोध किया. (सुजैन कॉर्ड्स)
तस्वीर: Matthias Balk/dpa/picture alliance
8 तस्वीरें1 | 8
कठोर कानून की मांग
विनिचियो एक अभियान चला रहे जिसका लक्ष्य संसद द्वारा एक ऐसा कानून पास कराना है जो घृणा अपराधों के दोषियों को दंडित करेगा. वे कहते हैं, "एलजीबीटी लोगों के खिलाफ घृणा अपराधों को निर्धारित करने के लिए कोई स्पष्ट और प्रभावी जांच नहीं होती है. मुझे निराशा है कि इन अपराधों की भी गहन जांच नहीं होगी."
ग्वाटेमाला के अटॉर्नी जनरल के कार्यालय ने इन हत्या की जांच के बारे में तुरंत नहीं बताया है या फिर हत्या से जुड़ी गिरफ्तारियों के बारे में कोई जानकारी दी है. ग्वाटेमाला के अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सामाजिक रूप से रूढ़िवादी देश में लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर लगातार दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का सामना करते आए हैं.
एलजीबीटी अधिकारों के समर्थक और ग्वाटेमाला मानवाधिकार लोकपाल कार्यालय के हेनरी एस्पाना कहते हैं कि जो हत्या के दोषी हैं उन्हें सजा देने की जरूरत है और "जनता को एक संदेश दिया जाना चाहिए कि एलजीबीटी लोगों के खिलाफ अपराध बर्दाश्त नहीं किए जाते हैं."
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
समलैंगिक होने पर ये देश देते हैं मौत
ब्रूनेई में समलैंगिकों को पत्थर मारकर मौत के घाट उतारने की इजाजत दी जाने पर दुनिया भर में आलोचना हुई. इसके बाद ब्रुनेई ने अपना फैसला टाल दिया. चलिए जानते हैं कि दुनिया में समलैंगिकों के लिए सबसे बुरे देश कौन से हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. de Waal
प्यार की सजा मौत
अंतरराष्ट्रीय लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन का कहना है कि ब्रूनेई दुनिया का सातवां देश है जहां समलैंगिक संबंधों के लिए मौत की सजा का प्रावधान है. वहीं बहुत से ऐसे देश भी हैं जहां समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. de Waal
यहां मिलती है मौत
जिन छह अन्य देशों में समलैंगिक सेक्स की सजा मौत है उनमें ईरान, सऊदी अरब, यमन, नाइजीरिया, सूडान और सोमालिया शामिल हैं. मॉरेटानिया का कानून समलैंगिकों को पत्थर मार कर मौत की सजा की अनुमति देता है, लेकिन वहां सजा ए मौत पर रोक है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Brandt
मलेशिया
मलेशिया में गुदा मैथुन और समलैंगिक संबंधों पर प्रतिबंध है. पिछले साल वहां दो महिलाओं को समलैंगिक संबंध कायम करने का दोषी पाया गया और उन्हें बेंत मारने की सजा दी गई. दुनिया भर में इस सजा की आलोचना हुई.
तस्वीर: AP
रूस
रूस में 2013 में एक व्यापक कानून बना जिसके तहत नाबालिगों में समलैंगिक 'दुष्प्रचार फैलाने' को प्रतिबंधित किया गया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून के बाद वहां समलैंगिकों पर हमले बढ़े हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Vaganov
नाइजीरिया
अफ्रीकी देश नाइजीरिया में गुदा मैथुन के लिए कैद का प्रावधान है, लेकिन 2014 में पारित एक कानून ने समलैंगिक शादियों और संबंधों पर भी प्रतिबंध लगा गया. समलैंगिक अधिकारों की बात करने वाले संगठनों की सदस्यता लेने पर भी रोक लगा दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Ludbrook
जापान
बेहद आधुनिक समझे जाने वाले जापान में भी ट्रांसजेंडरों के लिए हालात अच्छे नहीं हैं. वहां सेक्स चेंज कराने वाले लोगों को उनकी नई लैंगिक पहचान को कानूनी मान्यता मिलने से पहले नसबंदी कराने के लिए मजबूर किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. B. Tongo
अजरबैजान
अजरबैजान में समलैंगिक शादियां और समलैंगिकों जोड़ों से बच्चे गोद लेने पर प्रतिबंध है. 2017 में वहां एलजीबीटी समुदाय के लोगों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की गई, जिसमें मानवाधिकार समूहों के मुताबिक पुरुष समलैंगिकों को पीटा गया और उनका शोषण हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Stratenschulte
तंजानिया
अफ्रीकी देश तंजानिया में भी समलैंगिक शारीरिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इसका दोषी करार दिए जाने पर 30 साल तक की सजा हो सकती है.
तस्वीर: Reuters/J. Rinaldi
अमेरिका
अमेरिका में हाल के सालों में एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों को लेकर जितनी प्रगति हुई, राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप उस सब पर पानी फेर देना चाहते हैं. उनकी सरकार ट्रांसजेंडर लोगों की अमेरिकी सेना में भर्ती पर भी रोक लगाना चाहती है.