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गिनीज बुक में दर्ज हुआ असम का त्योहार रंगाली बिहू

प्रभाकर मणि तिवारी
१४ अप्रैल २०२३

असम ने एक ही परिसर में बिहू नृत्य के सबसे बड़े आयोजन के जरिए बृहस्पतिवार को अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज करा लिया.

बिहू का वर्ल्ड रिकॉर्ड
बिहू का वर्ल्ड रिकॉर्डतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

विश्व रिकॉर्ड बनाने के मकसद से राजधानी गुवाहाटी के सरूसजाई स्टेडियम में आयोजित इस आयोजन में 11 हजार से युवक-युवतियों ने एक साथ बिहू नृत्य किया.

पहले इसका आयोजन 14 अप्रैल को होना था. लेकिन इसे एक दिन पहले ही कर दिया गया. शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुवाहाटी में आयोजित एक समारोह में मौजूद रहेंगे. गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स का प्रमाण पत्र 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में जारी किया जाएगा.

गिनीज बुक के लिए तैयारियांतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि कोरोना काल के दौरान राज्य के इस सबसे बड़े त्योहार का आयोजन फीका रहा था. इसलिए सरकार ने इसे यादगार बनाते हुए इस साल गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज कराने के लिए महीनों पहले से तैयारी शुरू की थी. इसके लिए पूरे राज्य से युवक और युवतियों को चुना गया था.

सरमा ने उम्मीद जताई कि अब असम और उसकी सांस्कृतिक विरासत को दुनिया में एक नई पहचान मिलेगी. सरकार ने इस आयोजन में हिस्सा लेने वालों को 25-25 हजार रुपये देने का एलान किया है.

क्या है बहाग या रंगाली बिहू

वैसे, तो असम में साल भर के दौरान तीन बार इस उत्सव का आयोजन किया जाता है. लेकिन बोहाग बिहू ही इनमें सबसे प्रमुख है. इस दौरान पूरे राज्य के लोग ही नहीं, बल्कि पेड़,पौधे व पहाड़ भी मानो सजीव हो उठते हैं. पहले तो यह उत्सव पूरे एक महीने तक चलता था. लेकिन जिंदगी की आपाधापी ने अब इसे एक सप्ताह तक सीमित कर दिया है. इस एक सप्ताह के दौरान राज्य में सब कुछ बिहूमय हो उठता है. उस समय फसलें कट चुकी होती हैं, नए मौसम की तैयारियां शुरू होने में कुछ समय होता है. इस बीच के समय को ही उत्सव के तौर पर मनाया जाता है.

इस त्योहार के दौरान कई खेलों का आयोजन भी किया जाता है जैसे-बैलों की लड़ाई, मुर्गों की लड़ाई और अंडों का खेल आदि. बिहू के पहले दिन को गाय बिहू के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन लोग सुबह अपनी-अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं. गायों को नहलाने के लिए रात में ही भिगो कर रखी गई उड़द की दाल और कच्ची हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है. उसके बाद वहीं पर उनको लौकी और बैगन खिलाया जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से गायें साल भर स्वस्थ रहती हैं. शाम के समय गाय को उसकी जगह पर नई रस्सी से बांधा जाता है और तरह-तरह के औषधि वाले पेड़-पौधे जला कर मच्छर-मक्खियों को भगाया जाता है.

दूसरा दिन साफ-सुथरे नए कपड़े पहनने का दिन होता है. इस दिन बुजुर्गों को सम्मान दिया जाता है और लोग पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लेते हैं. तमाम लोग खुशी के साथ नए साल को बधाई देने के लिए रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाते हैं. पारंपरिक असमिया गामोछा को सम्मान का प्रतीक माना जाता है. इस दिन लोग एक-दूसरे को यह गमछा ओढ़ाते हैं.

बिहू के दौरान ही युवक-युवतियां अपना मनपसंद जीवन साथी भी चुनते हैं और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं. यही वजह है कि राज्य ज्यादातर शादियां बिहू के तुरंत बाद वैशाख महीने में ही होती हैं. बिहू के समय में गांव में तरह-तरह के खेल-तमाशे का आयोजन किया जाता है.

बिहू का इतिहास

बिहू की शुरुआत सबसे पहले कब हुई, इसका कहीं कोई साफ जिक्र नहीं मिलता. लेकिन समझा जाता है कि ईसा से लगभग साढ़े तीन हजार साल पहले इसका आयोजन शुरू हुआ. बिहू के दौरान राज्य में जगह-जगह मंच बना कर सात दिनों तक बिहू गीत व नृत्य का आयोजन किया जाता है. लोग नए कपड़े पहनते हैं. सरकारी दफ्तरों में भी छुट्टियां होती हैं.

गुवाहाटी के स्टेडियम में तैयारीतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

फसलों की कटाई का जश्न मनाते हुए मनाए जाने वाले इस पर्व में नारियल, चावल, तिल, दूध का इस्तेमाल पकवान बनाने के लिए प्रमुखता से किया जाता है. इस दौरान प्यार व आदर जताने के लिए लोग एक-दूसरे को अपने हाथों से बुने हुए गमछे भी भेंट करते हैं. यह उत्सव अमूमन हर साल 14 अप्रैल से शुरू होता है. असमिया नववर्ष भी इसी दिन से शुरू होता है.

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इस सप्ताह-व्यापी उत्सव के दौरान इस दौरान जगह-जगह बने मंच पर युवक-युवतियां सामूहिक नृत्य करते हैं. बिहू में पुरुष और महिला दोनों अलग-अलग संरचनाओं में नृत्य करते हैं. लेकिन बावजूद इसके इस नृत्य में लय और तालमेल बेहद अहम और लाजवाब होता है. इस दौरान गीतों के जरिए बिहू की महिला का बखान किया जाता है. इनमें कहा जाता है कि वैशाख केवल एक ऋतु ही नहीं, न ही यह एक महीना है, बल्कि यह असमिया जाति की जीवन रेखा और सामान्य जनजीवन का साहस है.

बिहू गीतों का असमिया साहित्य पर भी गहरा असर है. रामायण के अनुवादक माधवदेव और शंकरदेव भी इसके असर से नहीं बच सके थे. बिहू के दौरान राज्य में जगह-जगह बिहू कुंवरी या बिहू सुंदरी प्रतियोगिता का भी आयोजन होता है. इसमें बेहतर नृत्य करने वाले को सम्मानित किया जाता है. असम में बोहाग बिहू शुरू होने के पहले से ही घर-घर से बिहू गीतों की गूंज हवा में समाने लगती है.

प्रधानमंत्री का दौरा

इस ऐतिहासिक मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शुक्रवार को असम के दौरे पर जाएंगे. वे वहां बिहू नृत्य के आयोजन में शिरकत करने के अलावा इलाके के विकास के लिए 14,300 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करेंगे. मोदी दोपहर करीब करीब 12 बजे एम्स गुवाहाटी पहुंचेंगे और इसके नवनिर्मित परिसर का निरीक्षण करेंगे. बाद में एक सार्वजनिक समारोह में वह एम्स, गुवाहाटी और तीन अन्य मेडिकल कॉलेजों को राष्ट्र को समर्पित करेंगे. इसके बाद प्रधानमंत्री श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में गौहाटी हाईकोर्ट के प्लैटिनम जयंती समारोह में शामिल होंगे.

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उसी दिन शाम को एक सार्वजनिक समारोह की अध्यक्षता करने के लिए गुवाहाटी के सरूसजाई स्टेडियम पहुंचेंगे, जहां वह दस हजार से अधिक कलाकारों/बिहू नर्तकों की ओर से पेश रंगारंग बिहू कार्यक्रम देखेंगे. कार्यक्रम के दौरान वह नामरूप में 500 टीपीडी मेन्थॉल संयंत्र को चालू करने के अलावा पलासबाड़ी और सुआलकुची को जोड़ने के लिए ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल की आधारशिला रखने समेत विभिन्न विकास परियोजनाओं परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे व पांच रेल परियोजनाओं को राष्ट्र को समर्पित करेंगे.

 

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