खाड़ी देशों में प्रवासी श्रमिकों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वहां तालाबंदी लागू है. इस वजह से नियोक्ता वेतन रोक रहे हैं या कर्मचारी बिना काम के बैठे हैं. सख्ती में निर्वासन और कारावास तक शामिल है.
विज्ञापन
कतर में पाकिस्तान के 27 साल के एक इंजीनियर कहते हैं, "हम यहां पिछले 10 दिनों से तालाबंदी में हैं. हमें नहीं पता कि लॉकडाउन कब खत्म होगा." यह इंजीनियर अनिवार्य क्वारंटीन के तहत दूसरा हफ्ता बिता रहा हैं. इंजीनियर ने बताया, "हम जिस मूल समस्या का सामना कर रहे हैं वह राशन है. सरकार हमें भोजन मुहैया करा रही है लेकिन वह कुछ ही दिनों के लिए है और छोटी-मोटी चीजें दे रही हैं.”
यह उन लाखों कर्मचारियों में शामिल हैं जिन्हें सख्ती के साथ दोहा औद्योगिक क्षेत्र में रखा गया है. यहां पिछले दिनों एक दर्जन मजदूरों में कोविड-19 की पुष्टि हुई थी. मजदूरों के लिए काम करने वाले अधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आगाह किया है कि तंग आवास और अपर्याप्त स्वच्छता ऐसे लाखों प्रवासी मजदूरों को पूरे खाड़ी में खतरे में डाल सकता है जिनके पास स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच उपलब्ध नहीं है.
उन्हें वेतन नहीं मिलने और मनमाने ढंग से बर्खास्तगी या निर्वासन का भी सामना करना पड़ रहा है. ऐसे लोगों की आय पर चलते उनके परिवारों के सामने एक नई आपदा पैदा हो सकती है.
खाड़ी में एचआरडब्ल्यू की शोधकर्ता हिबा जयादीन कहती हैं, "खाड़ी में प्रवासी श्रमिक पहले से ही वंचित हैं. यहां श्रम कानून ऐसे हैं जो नियोक्ताओं को प्रवासी श्रमिकों पर अत्यधिक अधिकार देते हैं और जिससे उनके शोषण को बढ़ावा मिलता है.”जयादीन का कहना है, "खाड़ी देशों को प्रवासियों के केंद्रों में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए उपायों को लागू करने के लिए और अधिक काम करने की जरूरत है."
किसका काम है सबसे अहम?
सन 2008 के विश्व आर्थिक संकट के दौरान बैंक और उनका काम केंद्र में था. जानिए कोविड-19 के साये में कौन से पेशे सबसे अहम बन कर उभरे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/H. Schmidt
सबसे अहम काम करने वाले
इनके लिए एक नाम है "सिस्टेमिकली इंपॉर्टेंट" - ऐसी वित्तीय कंपनियां जो व्यवस्था को चलाने के लिए जरूरी हैं. बड़े बैंक और वित्तीय संस्थाएं 2008 में सबसे महत्वपूर्ण बन कर उभरे. बैंकों से शुरु हुए वित्तीय संकट ने पूरे विश्व को प्रभावित किया. तब से बैंकों और बैंकरों को एक तरह के सुरक्षा कवच में रख लिया गया ताकि उन पर ऐसी नौबत फिर ना आए.
तस्वीर: Carl Court/AFP/GettyImages
हर हाल में जिम्मेदारी उठाने वाले
वित्तीय संकट की जड़ भी खुद बड़े बैंकर ही थे. लेकिन उनकी गैरजिम्मेदाराना कदमों के कारण आई मुसीबत का मुकाबला करने के काम में कैशियर, नर्स, लैब टेकनीशियन से लेकर बस ड्राइवर तक को जुटना पड़ा. अब कोविड-19 के संक्रमण काल में इन सब पेशों से जुड़े लोग "सिस्टेमिकली इंपॉर्टेंट" हो गए हैं. इन्हीं पर सारी जरूरी चीजें चलाने की जिम्मेदारी आ पड़ी है जबकि ये संकट इनका पैदा किया नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/J. Villegas
काम अहम मगर कमाई इतनी कम
दुकान चलाने वाले या नर्स का काम करने वाले हर दिन अपने काम के दौरान संक्रमित होने का भारी खतरा उठा रहे हैं. लेकिन उन्हें काम करते जाना है क्योंकि वे काम नहीं करेंगे तो किराया भरने के पैसे तक नहीं होंगे. जर्मनी में एक नर्स का औसत सालाना वेतन करीब 38,554 यूरो होता है.
तस्वीर: Imago Images/epd/H. Lyding
ऐसी होनी चाहिए कंपनी कार
कौन सा हाई फाई बैंकर कोई सस्ती कार चलाता होगा. 50,000 यूरो से कम की कार में तो वे बैठते भी नहीं. वहीं पेशे से ट्रक या बस चलाने वालों को देखें तो उनकी दुनिया के अलग ही नियम हैं. वे भले ही लाखों की गाड़ी चलाते हों लेकिन उनकी औसत सालाना कमाई केवल 29,616 यूरो होती है.
तस्वीर: DW/Jelena Djukic Pejic
इस पेशे की सही कदर नहीं
कुछ लोगों के ना होने पर ही उनकी कीमत का अंदाजा होता है. फिलहाल जर्मनी में किंडरगार्टेन बंद हैं और उनकी टीचरों को घर बैठना पड़ रहा है. वे बच्चों को मिस करती हैं और बच्चे अपना रूटीन. अब जब माता पिता को पूरे दिन बच्चों को घर पर ही संभालना और अपनी नौकरियां भी करनी पड़ रही हैं तो उन्हें इन टीचरों के काम की सही कीमत पता चल रही है. लेकिन फिर भी इनकी औसत सैलरी 36,325 यूरो ही है.
तस्वीर: picture-alliance/chromorange/A. Bernhard
पैसों से ऊपर है ये काम
बीमार और कमजोर इम्यूनिटी वाले बुजुर्गों की देखभाल का काम करने वाले खुद भी कोरोना के संक्रमण के भारी खतरे में हैं. लेकिन जर्मनी में इस पेशे से जुड़े कर्मचारियों की औसत सालाना आय केवल 32,932 है. तुलना के लिए देखिए कि एक ऑटो मेकैनिक भी इससे ज्यादा कमाता है. किसी इंवेस्टमेंट बैंकर से तुलना की तो सोची भी नहीं जा सकती.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Bütner
खतरे से बाहर निकालने वाले
कोरोना वायरस का खतरा तो तभी टला माना जा सकेगा जब इसका कोई टीका बन जाएगा. फार्मा कंपनियों में काम करने वाले लोग दिन रात इसमें जुटे हैं. जिनके काम पर दुनिया भर की सांसें टिकी हैं इनकी सालाना आय मात्र 28,698 है. वहीं कोई इंवेस्टमेंट बैंकर तो लाखों यूरो सालाना के नीचे बात ही नहीं करेगा.
तस्वीर: Reuters
एक शर्मनाक तुलना
किसी बैंक के मुकाबले एक अस्पताल की इमारत या उसमें काम करने वालों को मिलने वाली सुविधाओं की तुलना भी नहीं की जा सकती. साफ पता चलता है कि हमारे सिस्टम में ऐसे लोगों के काम का कितना मूल्य है जो वाकई दूसरों के लिए काम करते हैं. सवाल यह है कि क्या कोरोना संकट बीतने के बाद हम इन बेहद अहम पेशों में लगे लोगों की बेहतरी के बारे में सोचेंगे? (डिर्क काउफमान/आरपी)
तस्वीर: picture alliance/dpa/B. Roessler
8 तस्वीरें1 | 8
खाड़ी क्षेत्र में अब तक 3,200 से अधिक संक्रमण के मामलों की पुष्टि हो चुकी है. एमनेस्टी का कहना है कि जो मजदूर "कैंपों में फंसे" हुए हैं उनको खतरा अधिक हैं. वहां ऐसे हालात हैं कि सामाजिक दूरी संभव नहीं है.
तेल समृद्ध खाड़ी क्षेत्र में विदेशी श्रमिक मुख्य रूप से बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान से आते हैं और यह दुनिया भर में सभी प्रवासियों का लगभग 10 प्रतिशत है. समाचार एजेंसी एएफपी से बात करने वाले कई लोगों का कहना है कि वे अब अपने स्वास्थ्य और नौकरी की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. सऊदी अरब में प्रवासी मजदूरों की संख्या करीब एक करोड़ है.
सऊदी अरब में काम करने वाले कुछ श्रमिकों को शिकायत है कि क्वारंटीन के दौरान उनके बॉस ने उन्हें काम करने को कहा जबकि सऊदी नागरिकों को वेतन के साथ छुट्टी दी गई. एक और कर्मचारी ने बताया कि उसे कहा गया कि अगर वह अस्वस्थ महसूस कर रहा है तो बिना वेतन के छुट्टी ले सकता है, लेकिन उसने काम जारी रखने का विकल्प चुना.रियाद स्थित एक अरब राजनयिक ने एएफपी को बताया, "निजी क्षेत्र के अधिकतर कर्मचारी काम बंद होने की वजह से कष्ट उठा रहे हैं क्योंकि मालिक उन्हें बिना वेतन के घरों में बैठने के लिए मजबूर कर रहे हैं. निजी क्षेत्र के लिए प्रशासन के मुआवजे के बावजूद, श्रमिकों की देखभाल किए बिना मालिक बंद के कारण हुए नुकसान की भरपाई कर रहे हैं.”
सऊदी अरब के बाद संयुक्त अरब अमीरात में 87 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं और उसके बाद 28 लाख प्रवासी कामगार कुवैत में काम करते हैं. दोहा स्थित अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के दफ्तर का कहना है कि कई नियोक्ताओं ने अपने श्रमिकों को अधिक विशाल आवासों में पहुंचाया है जिससे संक्रमण का खतरा कम हो पाए.
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भारत में तालाबंदी की गई. उसके बाद कई मजदूर काम और भोजन नहीं मिलने की वजह से अपने गांव की तरफ चल गए थे. लेकिन जो मजदूर अब दिल्ली में ही हैं उनके लिए खास इंतजाम किए गए हैं.
तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir
पहले सड़क पर अब आश्रयों में
तालाबंदी की वजह से जो लोग सड़क पर आ गए थे और अपने अपने गांव चाहते थे अब उनके रहने के लिए दिल्ली में शिविरों का इंतजाम किया गया है. तालाबंदी के दूसरे ही दिन भारी संख्या में लोग अपने राज्य और गांव की तरफ चल दिए थे. जो लोग अब भी दिल्ली में रहना चाहते हैं उनके लिए सरकार ने राहत शिविर लगा कर हर तरह की सुविधा देने की कोशिश की है.
तस्वीर: DW/S. Kumar
काम ठप्प, संकट शुरू
कई मजदूरों का कहना था कि तालाबंदी की वजह से फैक्ट्रियां बंद हो गई, उनके पास इतने पैसे नहीं कि वे अपना खर्च निकाल पाएं. दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक से लोग अपने गांव की तरफ चल दिए. भारी संख्या में प्रवासियों का सड़क पर आना लॉकडाउन के मकसद को ही विफल बना रहा था. इसके बाद केंद्र ने एडवाइजरी जारी कर राज्यों से लोगों की ऐसी आवाजाही रोकने के लिए कहा.
तस्वीर: DW/S. Kumar
राहत शिविर
कई राज्यों में प्रवासी, दिहाड़ी मजदूरों और जरूरतमंदों के लिए राहत शिविर लगाए हैं. जहां उनके लिए सोने, खाने-पीने की व्यवस्था की गई है.
तस्वीर: DW/S. Kumar
महामारी से बचाव जरूरी
सरकार की कोशिश है कि जो लोग जहां हैं वहीं रहें लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि वे आपदा के इस वक्त में अपने परिवार के साथ वापस लौट जाए. हालांकि सरकार ने गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की घोषणा की है, जिसके तहत 1.7 लाख करोड़ रुपये खर्च ऐसे लोगों पर किए जाएंगे जो तालाबंदी की वजह से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं.
तस्वीर: DW/S. Kumar
ड्रोन से नजर
तालाबंदी के दौरान कुछ इलाकों में लोग कानून की अनदेखी कर बाहर निकल जा रहे हैं. दिल्ली के एक ऐसे ही इलाके में ड्रोन के जरिए निगरानी रखी जा रही है. तालाबंदी को ना मानने और बेवजह सड़क पर आने वालों के खिलाफ कानून के मुताबिक सख्ती से कार्रवाई की जा रही है.
तस्वीर: DW/S. Kumar
भोजन वितरण
रोज कमाने और खाने वालों के लिए तालाबंदी किसी मुसीबत से कम नहीं है, दिल्ली और अन्य राज्यों में ऐसे लोगों के भोजन का इंतजाम किया गया और उन्हें मुफ्त में भोजन दिया जा रहा है. कई एनजीओ और सामाजिक संगठन जरूरतमंदों के घरों तक राशन भी पहुंचा रहे हैं.
तस्वीर: DW/S. Kumar
सुप्रीम कोर्ट में मामला
31 मार्च को मजदूरों के पलायन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई है. सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार से कह चुका है कि वायरस से कहीं अधिक मौत घबराहट के कारण हो जाएगी. कोर्ट ने सरकार को प्रवासियों की काउंसलिंग की भी सलाह दी. कोर्ट ने ऐसे लोगों के लिए भोजन, आश्रय, पोषण और चिकित्सा सहायता के मामले में ध्यान रखने को कहा. कोर्ट ने कोरोना वायरस को लेकर फेक न्यूज फैलाने पर सख्ती से कार्रवाई करने को कहा.
तस्वीर: DW/M. Raj
जरूरतमंदों को भोजन
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 22 लाख से अधिक लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. प्रवासी मजदूरों के पलायन पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई थी. मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर सुनवाई की. केंद्र ने कोर्ट को बताया कि 6 लाख 60 हजार लोगों को आश्रय दिया गया है और अब कोई सड़क पर नहीं है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
सोशल डिस्टैंसिंग का संदेश नहीं पहुंचा!
सरकार ने तो सोशल डिस्टैंसिंग या सामाजिक दूरी बनाए रखने को कह दिया लेकिन जब लाखों लोग दिल्ली या अन्य राज्यों से अपने घरों की तरफ गए तो एक संदेश अप्रभावी साबित हुआ. आशंका है कि घर लौटने वालों की बड़ी भीड़ के साथ वायरस भी नए इलाक़ों तक पहुंचा हो.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
खतरों के साथ पहुंचे घर
कई प्रवासी मजदूर जान जोखिम में डालकर महानगरों से अपने गांव की तरफ निकल गए. कुछ पैदल गए और कुछ लोग इस तरह से जोखिम उठाकर अपने गांव तक पहुंचे.