दो साल पुरानी जर्मनी की ओलाफ शॉल्त्स सरकार का रिपोर्ट कार्ड
सबीने किंकार्त्स
२० जुलाई २०२३
जर्मनी में आधिकारिक तौर पर गर्मी की छुट्टी चल रही हैं लेकिन सत्ता के गलियारों में हलचल जारी है. चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की अगुआई वाली गठबंधन सरकार में खटपट लगातार जारी है और वोटर नाखुश.
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सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी), ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) के गठबंधन वाली जर्मनी की वर्तमान सरकार दो साल पहले सितंबर महीने में चुनी गई थी. चार साल के कार्यकाल का आधा वक्त गुजरने के बाद सरकार का रिपोर्ट कार्ड कुछ खास नजर नहीं आता.कम से कम जनता की राय जानने के लिए किए गए सर्वे तो यही बताते हैं. हर चार में से तीन जर्मन नागरिक सरकार से ज्यादा खुश नहीं हैं या पूरी तरह असंतुष्ट हैं.
2022 में पतझड़ के महीनों में ही यह साफ होने लगा था कि सरकार की लोकप्रियता भी गिरने लगी है और अगर इस वक्त चुनाव हो जाएं तो इस गठबंधन को बहुमत नहीं मिलेगा. ओपिनियन पोल में शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी, दूसरी पार्टी सीडीयू और धुर दक्षिणपंथी दल एएफडी से पिछड़कर तीसरे स्थान पर पहुंच गई है. वहीं गठबंधन में सबसे छोटी पार्टी एफडीपी पिछले चुनावों के मुकाबले अपना एक तिहाई जनाधार खो चुकी है जबकि ग्रीन पार्टी जनता की रेटिंग में पांच सालों के निचलने पायदान पर है.
ऐसा लगता है कि चांसलर शॉल्त्स इन नकारात्मक संकेतों के बावजूद ज्यादा परेशान नहीं हैं. शुक्रवार को बर्लिन में हुई प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा, "मुझे पूरा भरोसा है कि एएफडी का प्रदर्शन अगले चुनावों में भी वैसा ही होगा जैसा पिछली बार था." अपनी पार्टी के भविष्य को लेकर भी शॉल्त्स उम्मीद से भरे हैं.
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जर्मन प्रसारक एआरडी से बातचीत में उन्होंने बेफिक्री से कहा, "यह सरकार नया जनादेश लेकर आएगी." चांसलर शॉल्त्स एएफडी को 'खराब-मूड पार्टी' कहते आए हैं जिसकी लोकप्रियता सिर्फ संकट के समय ही बढ़ती है. मार्च में संसद के निचले सदन बुंडेसटाग में दिए एक बयान में उन्होने कहा, पर्यावरण संकट सिर पर है, यूरोप में युद्ध लौट आया है और दुनिया में ताकत का संतुलन बदल रहा है. संघीय सरकार इन सारी चुनौतियों का सामना कर रही है. इस हलचल का अंत हम सबके लिए बेहतर रहेगा लेकिन एएफडी के लिए नतीजा बुरा होगा क्योंकि उसका आधार खत्म हो जाएगा.
शॉल्त्स के पास बेहिसाब आत्मविश्वास है. वह शांत रहकर काम करते जाने और खुद पर कभी शक ना करने की नीति पर कायम रहते हैं. इसी मंत्र के आधार पर 65 वर्षीय शॉल्त्स तीस सालों से राजनीति करते आ रहे हैं. उनके आलोचक कहते हैं कि वो एक चतुर मूर्ख नजर आते हैं, खासकर जब उन्हें चुनौती दी जाए. ऐसा लगता है मानो उन्हें इस बात पर बहुत ज्यादा विश्वास है कि उनकी नीतियां तर्कसंगत हैं इसलिए सही हैं. जब उनसे सवाल पूछे जाएं तो कई बार आप पाएंगे कि शॉल्त्स दूसरों को नीचा दिखा रहे हैं. उनकी पार्टी में इसे ताकतवर नेता की खूबी माना जाता है लेकिन दूसरों के लिए यह अहंकार से कम नहीं है.
शॉल्त्स सवालों से बच कर निकलने में माहिर हैं और अक्सर गोल-मोल जवाब देते हैं. उनकी आवाज हमेशा शांत और भावहीन बनी रहती है. यही वजह है कि उनके स्टाइल की रोबोट से तुलना करते हुए उन्हें शॉल्त्जॉमैट कहा जाता है. हालांकि उनकी पार्टी के सांसदों का कहना है कि चांसलर अगर चाहें तो अलग तरह से काम कर सकते हैं. पर्दे के पीछे बहस करते समय वह काफी भावपूर्ण होते हैं लेकिन वह अपने इस रूप को जनता के सामने आने नहीं देते.
पवनचक्कियां नहीं युद्ध टैंक
सत्ता संभालने के बाद गठबंधन सरकार ने एक नई शुरूआत और तरक्की का वादा किया था. जलवायु संरक्षण, डिजिटाइजेशन और आर्थिक बदलाव के लिए अहम परियोजनाओं पर काम करने की बात कही गई हालांकि ये प्राथमिकताएं जल्दी ही बदल गईं. यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई और चांसलर शॉल्त्स के प्रसिद्ध 'टर्निगं पॉइंट' बयान के बाद स्थितियों ने बहुत तेजी के साथ करवट ली. जर्मनी में सालाना 400,000 घर और हर दिन पांच पवन चक्कियां लगाने के प्लान की जगह जर्मनी ने 100 अरब यूरो अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने पर खर्च के लिए दिए और ऐसे ही अरबों लगे रूसी गैस और मुद्रास्फीति की मार झेल रहे लोगों को आर्थिक राहत देने में.
संकट के दौर में इन उपायों से ऊर्जा बचा रहा है जर्मनी
जर्मनी और यूरोप ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं. यूरोपीय संघ ने 15 फीसदी ऊर्जा बचाने की मुहिम शुरू की है. जर्मन सरकार ने देशवासियों के लिये कुछ नियम तय किये हैं, हालांकि बहुत से लोग अपनी तरफ से भी कई कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Uwe Anspach/dpa/picture alliance
बैंक में बिजली की बचत
बैंकों ने भी ऊर्जा संकट को देखते हुए कदम उठाये हैं. ऑफिस में जगहों को नई तरह से व्यवस्थित किया जा रहा है और कम स्टाफ वाले दफ्तर एक जगह लाये जा रहे हैं. डॉयचे बैंक ने कहा है कि वह जर्मनी में अपनी 1400 इमारतों में ऊर्जा बचाने के उपाय लागू कर रहा है और इसके जरिये 49 लाख किलोवॉट बिजली बचाई जायेगी.
तस्वीर: Arne Dedert/dpa/picture alliance
ऊर्जा बचाने के नियम का दूसरा चरण अक्टूबर में
ऊर्जा बचाने के नियमों का पहला चरण 1 सितंबर से लागू हो गया जो फरवरी तक चलेगा. दूसरा चरण अक्टूबर में आयेगा जो अगले दो सालों के लिये होगा. इसमें गैस हीटिंग का इस्तेमाल करने वाली सभी इमारतों की ऊर्जा दक्षता की जांच भी होगी.
तस्वीर: Sabine Gudath/IMAGO
ऐतिहासिक इमारतों में अंधेरा
जर्मनी में ऐतिहासिक इमारतों के बाहर जलने वाली रोशनी रात को गुल कर दी जा रही है. पहले ये बड़ी बड़ी इमारतें सारी रात रोशनी से जगमग रहती थीं. कोलोन का विशाल कथीड्रल भी उन इमारतों में शामिल है जो अब रात में नहीं जगमगाते. उत्सव या सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिये यह पाबंदी नहीं है.
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सार्वजनिक इमारतों में बिजली की बचत
सार्वजनिक इमारतों के गलियारों और हॉल में अब हीटिंग नहीं होगी और दफ्तरों का तापमान भी 19 डिग्री से ज्यादा नहीं होगा. यहां सिर्फ हाथ धोने के इस्तेमाल होने वाले गर्म पानी के गीजर और टैंक स्विच ऑफ कर दिये गये हैं. अस्पताल, स्कूल और डे केयर सेंटर को इन नियमों से बाहर रखा गया है.
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दुकानों के लिये निर्देश
जर्मन सरकार ने दुकानों और शोरूम के लिये भी उर्जा बचाने के दिशा निर्देश जारी किये हैं. एयरकंडीशन या हीटिंग चलाते समय दुकानों के दरवाजे खुले नहीं रहेंगे ताकि बिजली बचाई जा सके. हीटिंग को 19 डिग्री से ज्यादा नहीं रखने के भी निर्देश दिये गये हैं.
तस्वीर: picture alliance
बिलबोर्ड और नियॉन साइन
बिजली से रोशन विज्ञापन और बिलबोर्ड को अब रात में 10 बजे के बाद बंद कर दिया जा रहा है. ट्रैफिक सुरक्षा से जुड़े विज्ञापन और साइनबोर्ड इसमें शामिल नहीं हैं. दुकानों के शोकेस पर अभी यह नियम लागू नहीं किया गया है.
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स्विमिंग पूल में गर्म पानी नहीं
स्विमिंग पूल और स्पोर्ट्स हॉल में अब हीटिंग बंद कर दी गई है. यहां तक कि स्विमंग पूल के शॉवर में भी गर्म पानी नहीं मिल रहा. प्राइवेट पूल को अब गैस या बिजली से गर्म नहीं किया जा सकता है. रिहैबिलिटेशन सेंटर या फिर रिक्रियेशनल फैसिलिटी और होटल को इस नियम के दायरे से बाहर रखा गया है.
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रेल सेवा में बिजली बचाने की मुहिम
जर्मन रेल कंपनी डॉयचे बान पूरे देश में सबसे ज्यादा बिजली का इस्तेमाल करती है. कुछ हफ्ते पहले डॉयचे बान ने ऊर्जा बचाने के उपाय लागू किये हैं और इसके लिये कर्मचारियों को बोनस भी देगी. कंपनी ने रोशनी, हीटिंग, एयरकंडीशन यहां तक कि लिफ्ट का कम इस्तेमाल कर बिजली बचाने वालों को बोनस देने का फैसला किया है.
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निजी स्तर पर कोशिशें
सरकार के सुझाये उपायों के अलावा भी बहुत से लोग निजी स्तर पर बिजली और ऊर्जा बचाने की कोशिशों में जुटे हैं. सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने के साथ ये लोग बिजली कम इस्तेमाल करने, खाना कम बनाने यहां तक कि शॉवर में कम समय बिताने जैसे उपाय आजमा रहे हैं.
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लकड़ी जला कर आग
बहुत से लोगों ने सर्दियों के लिये लकड़ी जमा करनी शुरू कर दी है. गैस की महंगाई और उसकी कमी को देखते हुए इसका इस्तेमाल करना पड़ सकता है. बहुत से घरों में अब भी ऐसी फायरप्लेस और चिमनियां लगी हुई हैं जिनमें लकड़ी जला कर घर को गर्म किया जा सकता है. हालत ये हो गई है कि लकड़ी बेचने वाली दुकानें कोटा तय कर रही हैं.
2022 में जर्मनी ने अकेले यूक्रेन से दस लाख रिफ्यूजी लोगों को पनाह दी. इसके अलावा अमेरिका और ईयी के साथ मिलकर यूक्रेन को मानवीय सहायता और हथियारों की मदद भी दी जा रही है हालांकि शुरूआत में शॉल्त्स पर आरोप लगे कि वो मदद के लिए आगे आने में आनाकानी कर रहे हैं. किसी भी संघीय सरकार ने इससे पहले इतनी मुसीबतें एक साथ नहीं झेली हैं.
गठबंधन सरकार ने पहले साल तो एकता दिखाई लेकिन धीरे-धीरे अनबन सतह पर आने लगी. एसडीपी और ग्रीन पार्टियां राज्य की ज्यादा भूमिका की समर्थक हैं जबकि नवउदारवादी पार्टी एफडीपी कम से कम सरकारी दखल चाहती है. जैसे जैसे सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है, हर पार्टी चाहती है कि उसकी अलग पहचान कायम रहे. ग्रीन पार्टी पर्यावरण संरक्षण के मसलों पर समझौता नहीं चाहती जबकि एफडीपी खुले बाजार के पक्ष में है जिससे गठबंधन में उठापटक खत्म होने का नाम नहीं ले रही.
यूक्रेन युद्ध के साए में जर्मनी में नए रक्षा मंत्री की नियुक्ति
जर्मनी में चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने बोरिस पिस्टोरियुस को नया रक्षा मंत्री नियुक्त किया है. जर्मनी रूसी हमला झेल रहे यूक्रेन को भारी हथियार देने में हिचकिचा रहा है और इसके कारण घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आलोचना झेल रहा है.
लोवर सेक्सनी के गृह मंत्री बोरिस पिस्टोरियुस की नियुक्ति राजनीतिक प्रेक्षकों के लिए आश्चर्य लेकर आई. ओलाफ शॉल्त्स की सरकार में लैंगिक समानता पर ध्यान दिया गया है. इसलिए किसी महिला को ही इस पद पर नियुक्त करने की चर्चा थी, लेकिन पिस्टोरियुस का अनुभव काम आया. जर्मनी को इस समय रक्षा के मोर्चे पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय छवि संभालनी है.
तस्वीर: Droese/localpic/IMAGO
क्रिस्टीने लाम्ब्रेष्ट (एसपीडी) 2021-2023
लाम्ब्रेष्ट का एक साल से कुछ ज्यादा का कार्यकाल छोटे-छोटे कांडों के कारण सुर्खियों में रहा. कभी बेटे को साथ हेलिकॉप्टर में ले जाने के कारण तो कभी उनके असामयिक बयानों के कारण. सबसे ज्यादा आलोचना यूक्रेन को भारी हथियार देने में जर्मन सरकार की हिचकिचाहट के कारण हुई. इसकी वजह से चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और एसपीडी की लोकप्रियता पर भी आंच आई.
तस्वीर: Sean Gallup/Getty Images
आनेग्रेट क्रांप कार्रेनबावर (सीडीयू) 2019-2021
कार्रेनबावर सीडीयू पार्टी की अध्यक्षता छोड़कर रक्षा मंत्री बनी थीं. लेकिन अपने कार्यकाल में उन्हें स्पेशल फोर्सेस की एक कंपनी को भंग करना पड़ा. पुलिस को उग्र दक्षिणपंथी नेटवर्क से जुड़े स्पेशल फोर्सेस के एक जवान के घर पर हथियारों का जखीरा मिला था. कार्रेनबावर ने सेना के उन जवानों से माफी मांगी, जिनके साथ उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन के कारण भेदभाव किया गया था.
तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance
उर्सुला फॉन डेय लाएन (सीडीयू) 2013-2019
उर्सुला फॉन डेय लाएन के कार्यकाल में बुंडेसवेयर का एजेंडा था, उसे भर्तियों के लिए आकर्षक बनाना. उसे कर्मचारियों, साजो-सामान और वित्तीय सुविधाओं से लैस करने की शुरुआत हुई. इसी दौरान जर्मन सेना ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई शुरू की और सुरक्षा बलों में जल, थल और वायु सेना के साथ साइबर युद्ध के लिए नई टुकड़ी का गठन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. I. Bänsch
थॉमस दे मेजियर (सीडीयू) 2011-2013
थॉमस दे मेजियर ने अनिवार्य सैन्य सेवा को खत्म किए जाने के बाद जर्मन सेना को नया रूप दिया. 2011 में उन्होंने सेना की संख्या घटाने, नौकरशाही को कम करने, अकुशलता को खत्म करने की योजना पेश की ताकि सेना को पूरी तरह पेशेवर सेना में बदला जा सके. बाद में उन्हें गृह मंत्री बना दिया गया.
तस्वीर: Reuters
कार्ल थियोडोर सू गुटेनबर्ग (सीएसयू) 2009-2011
गुटेनबर्ग जर्मनी के सबसे युवा रक्षा मंत्री थे. उन्हें कुंडुस में हुए हवाई हमले के नतीजों से निबटना पड़ा. बाद में उन्हें इन आरोपों से मुक्त कर दिया गया कि घटना के लिए रक्षा मंत्रालय की अपर्याप्त संचार नीति जिम्मेदार थी. उनके कार्यकाल में जर्मन सेना में व्यापक सुधार हुए और 2011 में अनिवार्य सैन्य सेवा को खत्म कर दिया गया. उन्हें अपने डॉक्टरल थीसिस में चोरी के आरोपों के चलते इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
फ्रांस योजेफ युंग (सीडीयू) 2005-2009
फ्रांस योजेफ युंग ने दक्षिणी अफगानिस्तान में लड़ाकू टुकड़ी भेजने की अमेरिका की मांग ठुकरा दी और उसके बदले अपेक्षाकृत शांत उत्तरी अफगानिस्तान में रेपिड रिएक्शन फोर्स भेजने का फैसला किया. उनके कार्यकाल में ही अमेरिकी लड़ाकू विमान ने जर्मन सेना के आग्रह पर कुंडुस में दो टैंकरों पर बमबारी की जिसमें 90 लोग मारे गए. युंग ने हमले की जिम्मेदारी ली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पेटर श्ट्रुक (एसीपीडी) 2002-2005
अफगानिस्तान में जर्मनी की सेना की तैनाती को उचित ठहराने के लिए पेटर श्ट्रुक ने कहा था, "जर्मनी की रक्षा हिंदूकुश में भी की जाएगी.“ उनके कार्यकाल में जर्मन सेना का आधुनिकीकरण हुआ और वह छोटे व क्षेत्रीय विवादों में हस्तक्षेप करने लायक बनी. सेना को तेज बनाने के साथ ही पेटर स्ट्रुक ने उसमें 2010 तक 10 फीसदी की कटौती की भी घोषणा की.
तस्वीर: Kurt Vinion/Getty Images
रूडॉल्फ शार्पिंग (एसपीडी) 1998-2002
रूडॉल्फ शार्पिंग के रक्षा मंत्री रहने के दौरान जर्मनी ने सर्बिया पर नाटो के हवाई हमलों में हिस्सा लिया. ये पहला मौका था जब जर्मन सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के बाहर लड़ाकू कार्रवाई में हिस्सा लिया था. लेकिन यही वह समय भी था जब जर्मनी ने अमेरिका पर 09/11 के आतंकवादी हमले के बाद आतंकवाद विरोधी युद्ध में सीधे शामिल होने से इंकार कर दिया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
फोल्कर रूहे (सीडीयू) 1992-1998
पहले शिक्षक रहे फोल्कर रूहे के नेतृत्व में जर्मन सेना बुंडेसवेयर की भूमिका में बदलाव शुरू हुआ और उसने नाटो के इलाके से बाहर विदेशी अभियानों में भाग लेना शुरू किया. कंबोडिया, सोमालिया और बाल्कन में संयुक्त राष्ट्र मिशनों में भाग लेकर जर्मन सेना ने आरंभिक अनुभव हासिल किए. बाद में उसने अफगानिस्तान और माली जैसे अभियानों में हिस्सा लिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गेरहार्ड श्टॉल्टेनबर्ग (सीडीयू) 1989-1992
पहले देश के वित्त मंत्री रह चुके गेरहार्ड श्टॉल्टेनबर्ग, उस समय देश के रक्षा मंत्री थे जब 1990 में कम्युनिस्ट विरोधी जन आंदोलन और साम्यवादी शासन के पतन के बाद जर्मनी का एकीकरण हुआ. 3 अक्तूबर 1990 को वे एकीकृत जर्मनी की संयुक्त सेना के प्रमुख बने. पूर्वी जर्मनी की सेना का पश्चिम जर्मनी की सेना में विलय हो गया और वह वारसॉ संधि से अलग होकर नाटो का हिस्सा बन गई.
तस्वीर: Sepp Spiegl/IMAGO
रूपर्ट शॉल्त्स (सीडीयू) 1988-1989
कम्युनिस्ट ब्लॉक के विघटन के दौर में रूपर्ट शॉल्त्स जर्मनी के रक्षा मंत्री थे. उन्होंने अपने कार्यकाल में दोनों सैनिक गुटों के बीच तनाव शिथिलन की नीति जारी रखी. 1989 में मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के दौरान उन्हें हटा दिया गया, लेकिन वह सैन्य मामलों पर बोलते रहे. 2007 में उन्होंने यह कहकर हंगामा मचा दिया कि जर्मनी में परमाणु सत्ता बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
तस्वीर: Sven Simon/United Archives/IMAGO
मानफ्रेड वोएर्नर (सीडीयू) 1982-1988
हेल्मुट कोल ने चांसलर बनने के बाद सेना में पाइलट रहे मानफ्रेड वोएर्नर को रक्षा मंत्री बनाया. बाद में वे नाटो के महासचिव भी रहे. वोएर्नर की 1983 में जनरल गुंटर कीसलिंग के मामले को लेकर आलोचना हुई. कीसलिंग पर सैन्य खुफिया सेवा ने समलैंगिक होने का झूठा आरोप लगाया था. उन्हें रिटायर कर दिया गया क्योंकि समलैंगिकता को उस समय सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हंस आपेल (एसपीडी) 1978-1982
हंस आपेल जर्मनी के ऐसे पहले रक्षा मंत्री थे जिन्होंने सेना में काम नहीं किया था. उनके कार्यकाल के दौरान ही पश्चिमी सैन्य सहबंध नाटो का दोहरा फैसला हुआ. इस फैसले के तहत 1979 में कम्युनिस्ट सैनिक सहबंध वारसॉ पैक्ट को बैलिस्टिक मिसाइलों की संख्या में आपसी कटौती का प्रस्ताव दिया गया. लेकिन दूसरी तरफ और ज्यादा परमाणु हथियारों की तैनाती की धमकी भी दी गई.
तस्वीर: dapd
गेयॉर्ग लेबर (एसपीडी) 1972-1978
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गेयॉर्ग लेबर नाजी वायुसेना में थे. बाद में वे ट्रेड यूनियन में सक्रिय रहे. बुंडेसवेयर के सैनिकों में उनका बड़ा सम्मान था. उनके कार्यकाल में बुंडेसवेयर का विस्तार हुआ और म्यूनिख व हैम्बर्ग में सेना की दो यूनिवर्सिटी शुरू की गईं. अपने मंत्रालय में पूर्वी जर्मन जासूसी के एक मामले में जिम्मेदारी को लेकर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: Egon Steiner/dpa/picture alliance
हेल्मुट श्मिट (एसपीडी) 1969-1972
बाद में चांसलर बनने वाले हेल्मुट श्मिट वामपंथी एसपीडी के पहले रक्षामंत्री थे. वे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी सेना में अधिकारी थे और बाद में हैम्बर्ग ने मेयर और देश के वित्त मंत्री रहे. उनके कार्यकाल में सेना में अनिवार्य भर्ती के कार्यकाल को 15 महीने से घटाकर 8 महीने कर दिया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गेरहार्ड श्रोएडर (सीडीयू) 1966-1969
गेरहार्ड श्रोएडर रक्षा मंत्री बनने से पहले देश के गृहमंत्री और विदेश मंत्री रह चुके थे. 1966 में तत्कालीन चांसलर कुर्ट गियॉर्ग कीसिंगर ने उन्हें रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी. 1969 में उन्होंने सीडीयू और उग्र दक्षिणपंथी एनपीडी के समर्थन से राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा. लेकिन एसीपीडी के गुस्ताव हाइनेमन से चुनाव हार गए.
तस्वीर: Kurt Rohwedder/dpa/picture alliance
काई ऊवे फॉन हासेल (सीडीयू) 1963-1966
शुरुआत में जर्मन सेना बहुत से गैर सैनिक अभियानों में शामिल रही. मसलन बाढ़ और भूकंप के समय राहत और बचाव कार्य. काई ऊवे फॉन हासेल के कार्यकाल में ही 1960 के दशक के मध्य से सेना के असैनिक अभियानों की शुरुआत हुई. इसके साथ साथ उन्होंने बुंडेसवेयर के विस्तार और उसे मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
तस्वीर: Fritz Fischer/dpa/picture alliance
फ्रांस योजेफ श्ट्राउस (सीएसयू) 1956-1963
जर्मनी के दक्षिणी प्रांत बवेरिया के रूढ़िवादी नेता फ्रांस योजेफ श्ट्राउस 1953 से 1969 के बीच सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उन्हें पश्चिमी जर्मनी की नई सेना बुंडेसवेयर बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी. 1961 में उनपर और उनकी सीएसयू पार्टी पर लॉकहीड कंपनी से रिश्वत लेने के आरोप लगे. दोनों ने आरोपों का लगातार खंडन किया.
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थियोडोर ब्लांक (सीडीयू) 1955-1956
थियोडोर ब्लांक बढ़ई परिवार में पैदा हुए थे और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सेना में भर्ती हुए थे. 1945 में सीडीयू पार्टी की स्थापना के समय वे उसके संस्थापक सदस्यों में शामिल थे. रक्षा मंत्री के रूप में छोटे कार्यकाल के बाद वे 1957 से 1965 तक देश के श्रम और समाज कल्याण मंत्री रहे.
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कौन तय करता है एजेंडा
घरों को गर्म रखने के लिए कार्बन मुक्त व्यवस्था लागू करना, बजट में कटौती या बच्चों के लिए आर्थिक मदद जैसे मामलों पर सरकार में शामिल तीनों पार्टियां एकमत ही नहीं हो पा रही हैं. एफडीपी अगले साल कोई नया कर्ज नहीं चाहती और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह जबरदस्त बजट कटौती करना चाहती है क्योंकि अमीरों पर कर्ज लगाना उसकी नीतियों के खिलाफ है. पार्टियों की इस खटपट में चांसलर शॉल्त्स अक्सर नदारद रहते हैं जिसकी वजह से उनकी आलोचना होती है. ग्रीन्स पार्टी का कहना है कि शॉल्त्स एफडीपी की कोशिशों पर इसलिए चुप हैं क्योंकि इससे उन्हें ही फायदा होता है लेकिन शॉल्त्स अपनी जगह से हिलते नहीं हैं.
अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने अमेरिकी काउबॉय का किरदार निभाने वाले जाने-माने अभिनेता जॉन वेन का जिक्र करते हुए कहा था कि जब राजनीति की बात आती है तो लोगों के लिए वो किरदार एक मानक मॉडल है जिसे लोग महान समझते हैं, एक ऐसा शख्स जो ताकतवर है दूसरों के खिलाफ खड़ा हो सकता है लेकिन चीजें इस तरह से काम नहीं करतीं. शॉल्त्स ने कहा, ये तीन पार्टियों और 8 करोड़ लोगों का एक परिवार है जिनकी सुखद भविष्य को लेकर बहुत सारे मसलों पर अपनी राय है. इस आधुनिक परिवार के लिए एक तानाशाही पितृसत्तात्मक अधिकारवादी इंसान सही नहीं होगा.
जर्मन सरकार की वैधता नहीं मानने वाला राइषबुर्गर आंदोलन
राइषबुर्गर आंदोलन जर्मनी की सरकार की वैधता को नहीं मानता है. इसके कुछ सदस्य तो हिंसा के लिए भी तैयार रहते हैं. जानिए क्या है ये आंदोलन और इसके बारे में क्या कर रही है जर्मन सरकार.
तस्वीर: picture-alliance/chromorange/C. Ohde
क्या मानते हैं राइषबुर्गर?
"राइषबुर्गर" का मतलब है "राइष के नागरिक." यह एक अस्पष्ट आंदोलन है जो आधुनिक जर्मन राष्ट्र को ही नकारता है. इसके सदस्यों का मानना है कि जर्मन साम्राज्य की 1937 या 1871 की सीमाएं अभी भी अस्तित्व में हैं और आधुनिक जर्मनी सिर्फ एक प्रशासनिक व्यवस्था है जो अभी भी अलाइड ताकतों के अधीन है. राइषबुर्गरों के लिए सरकार, संसद, न्यायपालिका और सुरक्षा एजेंसियां सब विदेशियों द्वारा चलाई जा रही कठपुतलियां हैं.
तस्वीर: picture-alliance/SULUPRESS/MV
पहला 'राइषबुर्गर' वोल्फगांग एबेल
जर्मन राइश अभी भी अस्तित्व में है यह सिद्धांत देने वाला पहला व्यक्ति वोल्फगांग एबेल था. एबेल बर्लिन की लोकल ट्रेन सेवा के लिए काम करता था. इसे पूर्वी जर्मनी की सरकार "डॉयचे राइषबान" के नाम से चलाती थी. 1980 में जब एबेल को नौकरी से निकाल दिया गया तो उसने कहा कि वो असल में राइष का अधिकारी था और उसे युद्ध के बाद बनी कोई संस्था निकाल नहीं सकती. अंत में वो सभी मुकदमे हार गया और रैडिकल बन गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Ebener
क्या करते हैं राइषबुर्गर
राइशबुर्गर न टैक्स भरते हैं न जुर्माना. वो अपने घरों और अन्य निजी संपत्ति को जर्मन सरकार के अधिकार से बाहर स्वतंत्र संपत्ति मानते हैं और जर्मन संविधान और अन्य कानूनी दस्तावेजों को ठुकराते हैं. हालांकि इन्होंने जर्मन अदालतों में कई मुकदमे भी दायर किए हुए हैं. वो खुद अपने ही पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस आदि जैसे दस्तावेज जारी करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online/Ohde
कितना खतरा है इनसे
जर्मन खुफिया अधिकारियों के मुताबिक यह आंदोलन 1980 के दशक में शुरू हुआ था और यह एक असमान, नेतृत्वहीन आंदोलन है जिसके करीब 23,000 समर्थक हैं. इनमें से करीब 950 लोगों की धुर दक्षिणपंथी चरमपंथियों के रूप में पहचान हुई है. करीब 1,000 लोगों के पास बंदूक रखने का लाइसेंस है. कई तो यहूदी विरोधी विचारधारा का भी समर्थन करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Weihrauch
आंदोलन के सदस्य कौन हैं
जर्मन अधिकारियों के मुताबिक, औसत राइषबुर्गर 50 साल का है, पुरुष है और सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित है. आंदोलन के ज्यादातर सदस्य जर्मनी के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में रहते हैं. मिस्टर जर्मनी ब्यूटी पेजेंट का पूर्व विजेता एड्रियन उर्साचे भी एक राइषबुर्गर है. उसे 2019 में एक पुलिस अधिकारी को गोली मारने और घायल करने के जुर्म में सात साल जेल की सजा दी गई थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Schmidt
नया मोड़
वोल्फगांग पी को 2017 में एक पुलिस अधिकारी की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा दी गई थी. इस मामले को एक नया मोड़ माना जाता है. वोल्फगांग पी पर एक राइषबुर्गर होने का आरोप था. एक बार जब हथियार बरामद करने के लिए पुलिस ने उसके घर पर छापा मारा तो उसने पुलिस पर गोलियां चला दीं. मामले ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा और हिंसा के बढ़ने के खतरे को लेकर चिंताएं उत्पन्न की.
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जर्मन सरकार इसके बारे में क्या कर रही है
जर्मन अधिकारियों पर लंबे समय से इस खतरे को कम समझने का आरोप लगता रहा है. 2017 में पहली बार जर्मनी की अंदरूनी खुफिया सेवा ने एक राइषबुर्गर द्वारा किए गए चरमपंथी अपराधों का खाका तैयार किया. तब से राइषबुर्गरों के खिलाफ कई छापे मारे जा चुके हैं और इनके उप-समूहों को बैन किया जा चुका है. पुलिस और सेना ने भी यह जानने के लिए छानबीन की है कि उनके बीच भी कहीं राइषबुर्गर तो नहीं हैं.
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अंतरराष्ट्रीय समानताएं, षड़यंत्र सिद्धांत
राइषबुर्गरों को रूसी झंडे लहराते हुए देखा गया है जिससे आरोप लगे हैं कि उन्हें जर्मन सरकार को अस्थिर करने के लिए रूस से पैसे मिलते हैं. उनकी अमेरिका के "फ्रीमेन-ऑन-द-लैंड" जैसे समूहों से भी तुलना की जाती है, जो यह मानते थे कि उन पर वही कानून लागू होंगे जिनकी वो अनुमति देंगे और इस वजह से वो खुद को सरकार और न्याय के शासन से स्वतंत्र घोषित कर सकते हैं.
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रिंगलीडर हाइनरिश तेरहवां, राजकुमार होएस
राजकुमार होएस उन राइषबुर्गर सहयोगियों के नेता थे जिन्होंने 2022 में तख्तापलट की योजना बनाई थी. होएस अपनी पुरानी जमीनें फिर से पाने के लिए दायर किए गए कई मुकदमे हार गए और फिर सार्वजनिक रूप से कहा कि मौजूदा लोकतांत्रिक संघीय गणराज्य का कोई आधार नहीं है. उन्होंने यहूदी विरोधी अलंकारों का इस्तेमाल किया और जर्मन शहंशाह काइजर को फिर से राजगद्दी पर बिठाने का सुझाव दिया. (समांथा अर्ली, रीना गोल्डनबर्ग)