15 मार्च 1985 का दिन था जब इंटरनेट की दुनिया में क्रांति हुई. इस दिन पहली बार डॉट कॉम डोमेन पर वेबसाइट रजिस्टर हुई. इसके बाद इंटरनेट की दुनिया में डॉट कॉम की बाढ़ आ गई.
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इंटरनेट की दुनिया में अमेरिका के सिम्बॉलिक्स कंप्यूटर ने पहली बार डॉट कॉम डोमेन नेम को रजिस्टर किया. कॉम कमर्शियल यानी व्यावसायिक इस शब्द से आया है. डॉट कॉम डोमेन है. अगर सीधी भाषा में कहा जाए तो कहीं पहुंचने का पता.
सिम्बॉलिक डॉट कॉम के बाद 1985 में ही पांच और कंपनियों ने डॉट कॉम डोमेन रजिस्टर किए. इसके बाद 1986 में पंजीकरण की बाढ़ आ गई. इसके बाद 2000 के शुरुआती दौर में लाखों डोमेन नेम रजिस्टर किए गए. साथ ही अलग अलग देशों ने अपनी पहचान इस एड्रेस में जोड़ दी. मतलब डॉट कॉम की जगह ब्रिटेन की वेबसाइट डॉट यूके हो गई, तो भारत में डॉट इन और जर्मनी में डॉट डीई.
जनवरी 1985 में डोमेन सिस्टम शुरू किया गया, जिसके बाद मार्च में पहली बार डॉट कॉम से शुरुआत हुई. इसके पहले आम तौर पर अमेरिका का रक्षा विभाग इंटरनेट की तरह की सेवा इस्तेमाल करता था. पहली जनवरी 1993 को अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन ने डॉट कॉम की देख रेख की जिम्मेदारी संभाली. 1995 में इसके सालाना पंजीकरण की फीस 50 डॉलर थी.
बिलकुल शुरू में डॉट कॉम सिर्फ व्यावसायिक साइट्स के लिए इस्तेमाल होते थे लेकिन 1990 के दशक में इंटरनेट की लोकप्रियता बढ़ने के साथ डॉट कॉम को सार्वजनिक कर दिया गया मतलब कोई भी किसी भी नाम को इसमें रजिस्टर करा सकता था.
1997 से 2001 के समय को डॉट कॉम बबल के नाम से जाना जाता है. इस समय में डॉट कॉम बहुत तेजी से फैल रहा था. 2001 में बिजनेस के लिए कॉम की जगह बिज का इस्तेमाल शुरू किया गया लेकिन तब तक लोगों और बाजार के दिमाग में डॉट कॉम जगह बना चुका था.
माइक्रोसॉफ्ट ने 1991 में अपना डोमेन नेम रजिस्टर किया और ऐप्पल ने 19 फरवरी 1987 में पंजीकरण किया. कई छोटे छोटे डोमेन नेम्स को बड़ी कंपनियों ने लाखों डॉलर्स में खरीदा है. जैसे भारतीय सबीर भाटिया की बनाई हुई हॉटमेल को माइक्रोसॉफ्ट ने 40 करोड़ डॉलर में खरीदा था, तो ईबे ने स्काइप को ढाई अरब डॉलर में खरीदा.
क्या हैं भारत में इंटरनेट पर पांच सबसे बड़े जोखिम
माइक्रोसॉफ्ट के एक नए शोध में सामने आया है कि अवांछित संपर्क, अवांछित सेक्सटिंग, नफरत की भाषा, ट्रोल करना और कठोर व्यवहार भारत में इंटरनेट के इस्तेमाल से जुड़े पांच सबसे बड़े जोखिम हैं. आइए इन्हें समझते हैं.
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कैसे कैसे जोखिम
अवांछित संपर्क, अवांछित सेक्सटिंग, नफरत की भाषा, ट्रोल करना और कठोर व्यवहार - इन्हें भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने से जुड़े पांच सबसे बड़े जोखिम बताया है माइक्रोसॉफ्ट द्वारा किए गए एक नए शोध में. इस शोध के लिए कंपनी के शोधकर्ताओं ने 13 साल से ले कर 74 साल तक के इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों से बातचीत की.
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कितनी आम हैं ऐसी घटनाएं
शोध में पता चला कि करीब 79 प्रतिशत लोगों को इंटरनेट पर इनमें से किसी एक जोखिम का सामना दो या उससे भी ज्यादा बार करना पड़ा है. लगभग 98 प्रतिशत लोगों को इन जोखिमों की वजह से किसी न किसी तरह की तकलीफ भी हुई. शायद यही कारण है कि 80 प्रतिशत लोगों ने यह चिंता जताई कि ये जोखिम फिर से उनके सामने आएंगे.
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क्या परिचित करते हैं तंग
रिसर्चरों को पता चला कि दोषी व्यक्ति से परिचय होने और उससे जोखिम के बढ़ने में पक्का संबंध है. शोध में भाग लेने वालों में से 45 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो दोषी व्यक्ति से वास्तविक जीवन में मिले हैं. इसके विपरीत 55 प्रतिशत लोग दोषी व्यक्ति से कभी नहीं मिले थे.
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किसे है सबसे ज्यादा खतरा
युवा लड़कियों को लड़कों के मुकाबले ज्यादा जोखिम महसूस होता है. व्यस्क समूहों में मिलेनियल कहे जाने वाले लोग यानि वे युवा जिनका जन्म 1981 से ले कर 1996 के बीच हुआ था, सबसे ज्यादा जोखिम का सामना करते पाए गए हैं. कम से कम 80 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि ऐसे जोखिम एक बड़ी समस्या बन गए हैं. वहीं पुरुषों में ये आंकड़ा 77 प्रतिशत है.
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भारत में कितनी सभ्यता
इस मौके पर माइक्रोसॉफ्ट ने अपने डिजिटल सिविलिटी इंडेक्स का ताजा संस्करण भी जारी किया, जो कि इंटरनेट पर सभ्य व्यवहार का आंकलन करता है. भारत में इस सूचकांक में एक साल में 12 अंकों की वृद्धि दर्ज की गई है और अब ये 71 प्रतिशत पर है. सूचकांक पर जिस देश का स्कोर जितना ऊंचा होता है वहां इंटरनेट पर सभ्य व्यवहार में उतनी ही गिरावट हुई है.
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कौन से विषय सबसे ज्यादा जोखिम भरे
भारत में जिन विषयों पर असभ्य व्यवहार सबसे ज्यादा होता है, उनमे 40 प्रतिशत के स्कोर के साथ सबसे आगे है लैंगिक रूझान. इसके बाद आते हैं धर्म (39 प्रतिशत), राजनीति (37 प्रतिशत), शारीरिक दिखावट (31 प्रतिशत) और लैंगिक पहचान (29 प्रतिशत). इंटरनेट पर भी सबसे ज्यादा जोखिम सोशल मीडिया साइटों पर है.