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भारत आने वाली गैस पाइपलाइन पर हक्कानी की नजर

१२ जून २०२३

हक्कानी गुट जिन परियोजनाओं को अपने कब्जे में लेना चाहता है, उनमें मुख्य रूप से तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत यानी तापी गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट है. गुट अफगानिस्तान वाले हिस्से में इस परियोजना पर कब्जा चाहता है.

तापी गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट
तापी गैस पाइपलाइन प्रोजेक्टतस्वीर: DW/S. Tanka Shokran

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1988 की तालिबान प्रतिबंध समिति की विश्लेषणात्मक सहायता और प्रतिबंध निगरानी टीम की 14वीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तालिबान समूह अपनी प्रमुख नीतियों, सत्ता के केंद्रीकरण और अफगानिस्तान में वित्तीय और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण को लेकर आंतरिक संघर्षों से जूझ रहा है.

रिपोर्ट में जिस तापी परियोजना का जिक्र है, वह पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान से निकलकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत पहुंचनी है. साल 2010 में इस पाइपलाइन को बनाने पर समझौता हुआ था और 2015 में काम शुरू हुआ था. लेकिन अफगानिस्तान में अस्थिरता के कारण काम ठप है.

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क्या है तापी गैस पाइपलाइन परियोजना

यह गैस पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान के गिल्किनेश से भारतीय पंजाब के फाजिल्का तक आएगी. अफगानिस्तान से यह पाकिस्तान के क्वेटा और मुल्तान से गुजरेगी. हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद से ही यह परियोजना रुकी पड़ी है. प्राकृतिक गैस पाइपलाइन करीब 1,800 किलोमीटर लंबी होगी और इसे तुर्कमेनिस्तान से भारत तक लाने में करीब 10 अरब डॉलर के खर्च का अनुमान है.

तालिबान के भीतर सत्ता संघर्ष

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हो रहा सत्ता संघर्ष स्थिति को और अस्थिर कर रहा है और प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच सशस्त्र संघर्ष के फैलने का स्पष्ट खतरा भी है.

हालिया महीनों में काबुल में स्थित तालिबान के कम-से-कम दो प्रवक्ताओं को कंधार के दक्षिणी शहर में स्थानांतरित करने के लिए कहा गया है. इसने सत्ता के हस्तांतरण के बारे में अटकलों को जन्म दिया है और ऐसा लगता है कि तालिबान अपनी राजधानी, काबुल से कंधार में स्थानांतरित करना चाहता है, जहां तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्ला अखुनजादा रहते हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है अफगानिस्तान में पदों के बंटवारे पर हक्कानी गुट और कार्यवाहक प्रथम उप-प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर के बीच मतभेद है. रिपोर्ट कहती है कि अफगान तालिबान और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों अल-कायदा और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के बीच "मजबूत और सौहार्दपूर्ण" गठजोड़ बना हुआ है.

गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images

तालिबान ने खारिज की यूएन रिपोर्ट

यूएन की रिपोर्ट को तालिबान ने "आधारहीन और पक्षपाती" बताते हुए इसकी निंदा की है. तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने एक बयान में कहा कि "अफगानिस्तान का इस्लामिक अमीरात इन आरोपों को आधारहीन और अफगानिस्तान के लोगों के प्रति स्पष्ट शत्रुता बताता है."

उन्होंने आगे कहा, "ये पिछले 20 वर्षों से चल रहे निराधार प्रचार की निरंतरता हैं."

अगस्त 2021 में सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने बड़े पैमाने पर महिलाओं के अधिकार सीमित किए हैं और उनका शासन निरंतर सत्तावादी बनता गया है. महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर दिया गया है और साथ ही उनके यात्रा करने और चिकित्सा हासिल करने पर भी प्रतिबंध लगा दिए गए हैं.

तालिबान ने छठी कक्षा से आगे की लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है और अब तक यह नहीं बताया है कि शिक्षा दोबारा कब बहाल होगी.

देश की लगभग 50 फीसदी आबादी, यानी लगभग दो करोड़ लोग, फिलहाल संकट स्तर पर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जबकि 60 लाख लोग अकाल जैसी परिस्थितियों की कगार पर हैं.

एए/ एसएम (एएफपी, एपी)

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