हक्कानी गुट जिन परियोजनाओं को अपने कब्जे में लेना चाहता है, उनमें मुख्य रूप से तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत यानी तापी गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट है. गुट अफगानिस्तान वाले हिस्से में इस परियोजना पर कब्जा चाहता है.
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1988 की तालिबान प्रतिबंध समिति की विश्लेषणात्मक सहायता और प्रतिबंध निगरानी टीम की 14वीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तालिबान समूह अपनी प्रमुख नीतियों, सत्ता के केंद्रीकरण और अफगानिस्तान में वित्तीय और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण को लेकर आंतरिक संघर्षों से जूझ रहा है.
रिपोर्ट में जिस तापी परियोजना का जिक्र है, वह पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान से निकलकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत पहुंचनी है. साल 2010 में इस पाइपलाइन को बनाने पर समझौता हुआ था और 2015 में काम शुरू हुआ था. लेकिन अफगानिस्तान में अस्थिरता के कारण काम ठप है.
यह गैस पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान के गिल्किनेश से भारतीय पंजाब के फाजिल्का तक आएगी. अफगानिस्तान से यह पाकिस्तान के क्वेटा और मुल्तान से गुजरेगी. हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद से ही यह परियोजना रुकी पड़ी है. प्राकृतिक गैस पाइपलाइन करीब 1,800 किलोमीटर लंबी होगी और इसे तुर्कमेनिस्तान से भारत तक लाने में करीब 10 अरब डॉलर के खर्च का अनुमान है.
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तालिबान के भीतर सत्ता संघर्ष
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हो रहा सत्ता संघर्ष स्थिति को और अस्थिर कर रहा है और प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच सशस्त्र संघर्ष के फैलने का स्पष्ट खतरा भी है.
हालिया महीनों में काबुल में स्थित तालिबान के कम-से-कम दो प्रवक्ताओं को कंधार के दक्षिणी शहर में स्थानांतरित करने के लिए कहा गया है. इसने सत्ता के हस्तांतरण के बारे में अटकलों को जन्म दिया है और ऐसा लगता है कि तालिबान अपनी राजधानी, काबुल से कंधार में स्थानांतरित करना चाहता है, जहां तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्ला अखुनजादा रहते हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है अफगानिस्तान में पदों के बंटवारे पर हक्कानी गुट और कार्यवाहक प्रथम उप-प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर के बीच मतभेद है. रिपोर्ट कहती है कि अफगान तालिबान और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों अल-कायदा और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के बीच "मजबूत और सौहार्दपूर्ण" गठजोड़ बना हुआ है.
तालिबान ने खारिज की यूएन रिपोर्ट
यूएन की रिपोर्ट को तालिबान ने "आधारहीन और पक्षपाती" बताते हुए इसकी निंदा की है. तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने एक बयान में कहा कि "अफगानिस्तान का इस्लामिक अमीरात इन आरोपों को आधारहीन और अफगानिस्तान के लोगों के प्रति स्पष्ट शत्रुता बताता है."
उन्होंने आगे कहा, "ये पिछले 20 वर्षों से चल रहे निराधार प्रचार की निरंतरता हैं."
अगस्त 2021 में सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने बड़े पैमाने पर महिलाओं के अधिकार सीमित किए हैं और उनका शासन निरंतर सत्तावादी बनता गया है. महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर दिया गया है और साथ ही उनके यात्रा करने और चिकित्सा हासिल करने पर भी प्रतिबंध लगा दिए गए हैं.
तालिबान ने छठी कक्षा से आगे की लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है और अब तक यह नहीं बताया है कि शिक्षा दोबारा कब बहाल होगी.
देश की लगभग 50 फीसदी आबादी, यानी लगभग दो करोड़ लोग, फिलहाल संकट स्तर पर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जबकि 60 लाख लोग अकाल जैसी परिस्थितियों की कगार पर हैं.
एए/ एसएम (एएफपी, एपी)
गर्भवती अफगान महिलाओं की उम्मीदें टिकी हैं इन दाइयों पर
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अफगानिस्तान में हर दो घंटों में प्रसूति के दौरान एक महिला की मौत हो जाती है. ऐसे में दाइयों के प्रशिक्षण के लिए शुरू किया एक पायलट प्रोजेक्ट अफगान महिलाओं को उम्मीद दे रहा है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
प्रसूति वार्ड को देखना, समझना
बामियान के एक अस्पताल में प्रशिक्षु दाइयां विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में प्रसूति के समय गर्भवती महिलाओं का और नवजात बच्चों का ध्यान रखना सीख रही हैं. इस कार्यक्रम की शुरुआत शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने स्थानीय संगठन वतन सोशल एंड टेक्निकल सर्विसेज एसोसिएशन के साथ मिल की है.
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प्रसव का इंतजार
2021 में सत्ता फिर से हासिल करने के बाद तालिबान ने महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर दिया है. स्वास्थ्य क्षेत्र एकमात्र अपवाद है. बामियान के इस अस्पताल में जिन 40 महिलाओं को इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है वो बाद में अपने अपने गांवों में गर्भवती महिलाओं का ध्यान रखेंगी.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
महिलाएं ही शिक्षक, महिलाएं ही छात्र
सभी प्रशिक्षु महिलाएं हर सबक को एकाग्रता और प्रेरणा के साथ सीख रही हैं. एक 23 वर्षीय छात्रा कहती हैं, "मैं सीखना और फिर अपने गांव के लोगों की मदद करना चाहती हूं." इस मदद की जरूरत भी है: अफगानिस्तान में करीब छह प्रतिशत नवजात बच्चों की पांच साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
तजुर्बा भी जरूरी है
रोज के प्रशिक्षण का एक हिस्सा है गर्भवती महिलाओं का रक्तचाप मापना. प्रशिक्षुओं में से कुछ महिलाएं खुद मां हैं और गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में जानती हैं. उनमें से एक ने बताया, "शुरू में तो मैं नर्स या दाई नहीं बनना चाहती थी." लेकिन उन्होंने बताया कि खुद गर्भवती होने के समय उन्हें जो अनुभव हुए उनकी वजह से उनकी राय बदल गई.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
एक बार शीशे में देख लेना
20 साल की एक प्रशिक्षु शिफ्ट शुरू होने से पहले आईने में देख कर अपना हिजाब और मास्क ठीक कर रही हैं. प्रशिक्षण के लिए वो इतनी प्रतिबद्ध हैं कि वो अस्पताल पहुंचने के लिए दो घंटे पैदल चल कर आती हैं.
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जहां मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है
प्रशिक्षण के बाद ये दाइयां दूर दराज के गांवों में महिलाओं की मदद करेंगी. ऐसे स्थानों पर अक्सर लोगों को स्वास्थ्य सेवायें नहीं मिल पाती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अफगानिस्तान की मातृत्व मृत्यु दर दुनिया की सबसे ऊंची दरों में से है. वहां करीब तीन प्रतिशत महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान या उसकी वजह से मौत हो जाती है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
बेटे की मौत का दुख
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी की वजह से 35 साल की अजीजा रहीमी ने अपना बेटा खो दिया. उन्होंने बताया, "करीब दो घंटों तक मेरा खून बहता रहा और मेरे पति को एम्बुलेंस नहीं मिली." उन्हें अपने बेटे को अपने घर पर बिना किसी मदद के जन्म देना पड़ा लेकिन उसकी जन्म के थोड़ी देर बाद ही मौत हो गई. वो कहती हैं, "मैंने अपने बच्चे को अपने पेट में नौ महीनों तक रखा और फिर उसे खो दिया, ये बेहद दुखदाई है."
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
अफगान महिलाओं के लिए जानकारी की कमी
बामियान के अस्पताल में इलाज का इंतजार कर रहीं कई महिलाओं के पास गर्भावस्था, प्रसव या परिवार नियोजन के बार में कोई जानकारी नहीं है. यहां जन्म दर भी प्रांत के औसत से ज्यादा है. आंकड़े कहते हैं कि यहां एक महिला औसत 4.64 बच्चों को जन्म देती है. पड़ोसी देश ईरान में यह दर 1.69 है. (फिलिप बोल)