दिग्गज बाइक निर्माता हार्ले डेविडसन ने कहा है कि वह भारतीय बाजार से बाहर होगी. हार्ले ने कहा है कि वह बाइक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को बंद करेगी. वह पिछले 10 साल से भारतीय बाजार में मौजूद है लेकिन पैठ नहीं बना पाई.
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अमेरिकी बाइक कंपनी हार्ले डेविडसन की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हरियाणा में स्थित है और उसने इसे बंद करने की घोषणा की है. कंपनी ने एक बयान में कहा है कि वह बिक्री कार्यालय को भी काफी हद तक सीमित करेगी. कंपनी का कहना है कि वह अपने कारोबार का पुनर्गठन कर रही है जिसके तहत भारत में "बिक्री और उत्पादन यूनिट को बंद करने का फैसला संचालन मॉडल और बाजार संरचना के वैश्विक बदलाव का हिस्सा है."
दुनिया के सबसे बड़े मोटरसाइकिल बाजार में हार्ले डेविडसन ने 2011 में अपना प्लांट खोला था. लेकिन इतने साल बीत जाने के बावजूद कंपनी भारतीय बाजार पर मजबूत पकड़ नहीं बना पाई. उसका मुकाबला स्थानीय ब्रांड हीरो मोटोकॉर्प और साथ ही होंडा मोटरसाइकिल से रहा. होंडा मोटोकॉर्प की मालिक जापान की होंडा मोटर है. कंपनी को 100 फीसदी आयात शुल्क से भी जूझना पड़ रहा था.
भारत, एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन यहां ग्राहकों की मांग धीमी हो गई थी और इसके बाद कोरोना वायरस का प्रभाव भी मांग पर पड़ा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भारत को "टैरिफ किंग" कहने के साथ ही ऊंचे आयात शुल्क की शिकायत भी कर चुके थे. जिसके बाद भारत ने शुल्क को 50 फीसदी तक कम कर दिया लेकिन यह ब्रांड ग्राहकों को अपनी ओर खींचने में असफल रहा.कंपनी का कारोबार समेटना भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक झटके की तरह है. क्योंकि मोदी मेक इन इंडिया रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं और उन्होंने इसके तहत विदेशी निवेशकों से भारत में निवेश करने का आग्रह किया है.
पिछले साल अमेरिकी दिग्गज ऑटो कंपनी फोर्ड ने अपनी ज्यादातर भारतीय संपत्ति महिंद्रा एंड महिंद्रा को ट्रांसफर कर दी थी. कंपनी ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि वह बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में नाकाम हो रही थी. साल 2017 में अमेरिकी कार कंपनी जनरल मोटर्स ने बाजार में पैठ बनाने में नाकाम रहने के बाद कार बिक्री बंद कर दी थी. भारतीय कार बाजार पर सुजुकी का प्रभुत्व है, उसका 50 फीसदी कार बाजार पर कब्जा है. भारतीय ग्राहक गाड़ी खरीदने को लेकर कीमतों पर काफी ध्यान देते हैं और सुजुकी की कारें अन्य कारों के मुकाबले थोड़ी सस्ती होती हैं.
कोरोना वायरस के कारण वाहनों की बिक्री धीमी हो गई थी लेकिन अगस्त के महीने में कार की बिक्री में थोड़ी तेजी देखने को मिली.
इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग इको फ्रेंडली बताया जा रहा है. लोगों से इसका ज्यादा उपयोग करने की अपील की जा रही है. लेकिन क्या यह इतना इको फ्रेंडली और सुरक्षित है जितना बताया जा रहा है? इसके क्या-क्या खतरे हैं?
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स्कूल टाइम की याद दिलाती साइकिल
पहले जब भी घर के बाहर घूमने का मन होता, बस पैडल मारिए और साइकिल पर घूमिए. लेकिन आज इलेक्ट्रिक साइकिल जैसे विकल्प उपलब्ध हैं जिनमें पैडल मारने की जरूरत नहीं होती. लेकिन ये ई वाहन उतने ईको फ्रेंडली नहीं है जितने हमको लगते हैं. साथ ही इनसे दूसरी समस्याएं भी होती हैं.
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दुर्घटनाओं में वृद्धि
साधारण साइकिल और बाइक का सबसे बढ़िया विकल्प फिलहाल ई-बाइक है. बैटरी और मोटर तेज चलने और चढ़ाई आराम से चढ़ने में मदद करती हैं. लेकिन एक समस्या भी है. आज कल ई बाइक्स को बुजुर्ग लोग ज्यादा चलाते हैं जो साधारण ट्रैफिक में नहीं चल पाते. इससे दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है.
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बैटरी की समस्या
दूसरी समस्या है ई बाइक की बैटरी, इन बैटरियों का उत्पादन करने में बहुत सारे प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है. ई बाइक रिचार्ज की जा सकने वाली लीथियम बैटरी से चलती है. लीथियम को जमीन से खनन करके निकाला जाता है. बैटरियों के लिए लीथियम निकालने के लिए बड़ी खदानों की जरूरत पड़ती है. और यह एक सीमित संसाधन भी है. साल 2018 में संसार में बस 53.8 टन लीथियम बचे होने का अनुमान है.
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बढ़ती हुई ऊर्जा की जरूरत
इलेक्ट्रिक वाहनों से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता लेकिन इन्हें नियमित चार्ज करना होता है. सभी तरह के इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है. और यह बिजली की आवश्यकता सिर्फ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरी नहीं होगी.
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नए विचार और नई बैटरियां
चार्ज करने के लिए बैटरियों की संख्या बढ़ती जा रही है. हर रोज नए ई-गैजेट आ रहे हैं. हर नए गैजेट में नई बैटरी की जरूरत होती है चाहे वो ई-बाइक हो, ई-यूनीसाइकिल या ई-हॉवरबोर्ड.
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छोटी दूरी के स्कूटर
ई-स्कूटर कुछ-कुछ बच्चों के स्कूटरों जैसे लगते हैं. बस फर्क इतना है कि ये सिर्फ पैर के सहारे नहीं चलाने पड़ते, इनमें बैटरी भी लगी होती है. ये एक ईंधन से चलने वाले इंजन की तुलना में ईको फ्रेंडली है. लेकिन अधिकांश लोग इनका इस्तेमाल छोटी दूरी के लिए ही कर रहे हैं. जैसे घर से ऑफिस के पार्किंग तक कार से और पार्किंग से ऑफिस तक ई-स्कूटर से.
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कई जगह अभी गैर-कानूनी हैं ये
जर्मनी में ई-स्कूटर से घूमना आज तक गैर कानूनी है. वजह है इनका छोटा इंजन. इंजन लगा होने की वजह से कार की तरह इसका भी परमिट चाहिए लेकिन इतने छोटे इंजन का परमिट अभी उपलब्ध ही नहीं है. 2019 की गर्मियों से जर्मनी में 20 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ई-स्कूटर चलाने की अनुमति होगी. अमेरिका में फिलहाल इन्हें चलाने की अनुमति है.