आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में हरियाणा में हर दिन कम से कम चार महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ. वहीं मेट्रो शहरों में महिलाओं के साथ अपराधों में दिल्ली शीर्ष पर है.
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हरियाणा के भिवानी से 2015 में देशभर में शुरू हुए 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान की जमीनी हकीकत पर से हरियाणा पुलिस के महिलाओं के खिलाफ अपराध (सीएडब्ल्यू) सेल और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने पर्दा उठाया है. एनसीआरबी द्वारा जारी 2016 के आंकड़ों में महिलाओं और बच्चियों के साथ अपराधों में मेट्रो शहरों में जहां दिल्ली को शीर्ष स्थान दिया गया है, वहीं सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में हरियाणा अव्वल रहा.
हरियाणा राज्य में 2011 की जनगणना के मुताबिक, प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 879 थी. सीएडब्ल्यू सेल द्वारा 2017 के अंत में जारी किए गए आंकड़ों ने महिलाओं की स्थिति की जमीनी हकीकत खोल कर रख दी है.
बस, अब बहुत हुआ!
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सेल द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2017 के एक जनवरी से 30 नवंबर के बीच राज्य में 1,238 महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए. यानी राज्य में प्रत्येक दिन कम से कम चार महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुए. इसके अलावा समान समयावधि में महिला उत्पीड़न के 2,089 मामले दर्ज हुए.
हरियाणा पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, इस समयावधि में महिलाओं के साथ अपराधों के कुल 9,523 मामले दर्ज हुए. इससे दुष्कर्म और उत्पीड़न को हटा दिया जाए तो 2,432 मामले महिलाओं और लड़कियों के अपहरण के दर्ज किए गए और 3,010 महिलाएं दहेज उत्पीड़न का शिकार हुईं.
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 के दौरान हरियाणा में सामूहिक दुष्कर्म के 191 मामले दर्ज किए गए, जो देश के सबसे बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश से कहीं ज्यादा हैं. वहीं तमिलनाडु में तीन और केरल में सामूहिक दुष्कर्म के 19 मामले दर्ज किए गए.
दिल्ली दुनिया का सबसे भयानक महानगर
थॉम्पसन रॉयटर्स फॉउंडेशन के एक सर्वे में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों में दिल्ली दुनिया के सबसे खराब महानगरों के तौर पर सामने आया.
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खतरनाक शहर
जून से जुलाई 2017 के बीच दुनिया के 19 महानगरों में यह सर्वे कराया गया था. दिल्ली में हुये निर्भया गैंगरेप की पांचवी बरसी से ठीक दो महीने पहले एक बार फिर सामने आया है कि दिल्ली महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक शहर है.
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चौथा स्थान
दिल्ली दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला दूसरा सबसे बड़ा महानगर है. इसकी आबादी लगभग 2 करोड़ 60 लाख है. इस सर्वे में बलात्कार, यौन अपराधों और उत्पीड़न के मामलों में दिल्ली को बेहद खराब स्थान मिला. नतीजों में दिल्ली दुनिया का चौथा सबसे भयानक महानगर साबित हुआ.
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बांग्लादेश से भी पिछड़ा
महिलाओं की सुरक्षा के मामले में दिल्ली की स्थिति बांग्लादेश के ढाका से भी बदतर निकली. सर्वे के नतीजों में ढाका को सातवां स्थान मिला वहीं लाओस को आठवां स्थान मिला .
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सबसे खतरनाक शहर
इस लिस्ट में दुनिया का सबसे खतरनाक शहर के तौर पर मिस्र के काहिरा का नाम सामने आया. वहीं महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों में पाकिस्तान का कराची शहर दुनिया का दूसरा सबसे भयानक महानगर साबित हुआ.
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आर्थिक मामलों में भी खराब
महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामलों के अलावा आर्थिक स्त्रोत जैसे शिक्षा, जमीन में हिस्सा, बैंक अकाउंट आदि में भी महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर भी दिल्ली को नीचे से तीसरा स्थान मिला. इस सूची में लंदन सबसे बेहतरीन अंकों के साथ पहले पायदान पर रहा.
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स्वास्थ्य के मामले में भी बुरी हालत
दिल्ली की मातृ मृत्यु दर पर नियंत्रण सहित स्वास्थ्य सेवाओं के लिए महिलाओं की पहुंच को लेकर भी स्थिति खराब है. दिल्ली फिर से नीचे से पांचवें स्थान पर है, जो लाओस से भी नीचे है, जबकि लंदन एक बार फिर शीर्ष पर रहा.
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सबसे सुरक्षित शहर
महिलाओँ के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के खतरों के मामले में टोक्यो सबसे सुरक्षित शहर के तौर पर सामने आया. दिल्ली की तुलना में यौन अपराधों के मामले में पाकिस्तान के कराची शहर को बेहतर माना गया.
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पुलिस महानिरीक्षक (महिलाओं के खिलाफ अपराध) ममता सिंह भी पुलिस विभाग द्वारा जारी आंकड़ों की पुष्टि कर चुकी हैं.
हरियाणा में महिलाओं पर बढ़ते अपराध पर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने आईएएनएस से कहा, "हरियाणा में खट्टर सरकार महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है. सरकार कैसे गंभीर होगी? जब उनकी सरकार के ही मंत्री का बेटा खुलेआम महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करेगा, तो राज्य की जनता में कहां कानून का खौफ रहेगा." उन्होंने आगे कहा, "हरियाणा महिलाओं की सुरक्षा में फिसड्डी साबित हुआ है, यहां लैंगिक असामनता देश में सबसे अधिक है. महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध की वजह ही प्रशासन की नाकामी है."
वहीं बात की जाए देश के अन्य राज्यों की, तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2016 के आंकड़ें अलग कहानी बयान करते हैं. 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 3,29,243 थी जो 2016 में 2.9 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 3,38,954 हो गई. इन मामलों में पति और रिश्तेदारों की क्रूरता के 1,10,378 मामले, महिलाओं पर जानबूझकर किए गए हमलों की संख्या 84,746, अपहरण के 64,519 और दुष्कर्म के 38,947 मामले दर्ज हुए हैं.
वर्ष 2016 के दौरान कुल 3,29,243 दर्ज मामलों में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 49,262, दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल में 32,513 मामले, तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश 21,755 मामले, चौथे नंबर पर राजस्थान में 13,811 मामले और पांचवे स्थान पर बिहार है जहां 5,496 मामले दर्ज हुए.
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में अपराध की राष्ट्रीय औसत 55.2 फीसदी की तुलना में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में उच्चतम अपराध दर 160.4 रही. वहीं बात करें मेट्रो शहरों में महिलाओं के साथ अपराधों की तो दिल्ली इस सूची में शीर्ष पर है. 2016 के दौरान मेट्रो शहरों में महिलाओं के साथ अपराध के कुल 41,761 दर्ज हुए जिसमें 2015 के मुकाबले 1.8 फीसदी की वृद्धि देखी गई. 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 41,001 थी.
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले
बलात्कार और हत्या जैसे मामले हर बार इन मुद्दों पर नई बहस खड़ी करते हैं. इस मामले में आंकड़े भी कहते हैं कि स्थिति बहुत ही भयानक है. पढ़िए कि हाल के सालों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कितने मामले दर्ज किये गये हैं.
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सामाजिक दबाव
2015 में भारत में महिलाओं से बलात्कार के 34651 मामले सामने आए थे. लेकिन ऐसे मामलों की संख्या भी कम नहीं जिनमें समाजिक दबाव के चलते बलात्कार के मामले पुलिस में दर्ज नहीं कराये जाते.
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बलात्कार के प्रयास
इसी तरह 2015 में बलात्कार के प्रयास के 4434 मामले दर्ज किये गये थे. 2014 में इस तरह के 4232 मामले सामने आये थे. 2014 की तुलना में इन आंकड़ों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी.
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अपहरण
अपहरण के मामलों में 2014 की तुलना में 2015 में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2015 में महिलाओं के अपहरण के 59277 मामले दर्ज किये गये. वहीं 2014 में यह आंकड़ा 57311 मामलों का था.
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दहेज
दहेज के चलते हुई मौतों का आंकड़ा 2015 में 7,634 था. 2014 में दहेज के चलते मौतों के 8455 मामले दर्ज हुए थे. इस कमी के बावजूद हर साल महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के कुल आंकड़े बढ़ ही रहे हैं.
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छेड़खानी
छेड़खानी के मामलों का आंकड़ा काफी बड़ा है. साल 2015 में महिलाओं से छेड़खानी के 82,422 मामले दर्ज हुए. इसमें तेज वृद्धि हुई है. यह आंकड़ा 2011 में 42,968 मामलों का था.
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घरेलू हिंसा
सबसे ज्यादा मामले घरेलू हिंसा के दर्ज हुए. इस मामले में 2015 में 1,13,403 मामले दर्ज किये गये. यही आंकड़ा 2011 में 99,135 का रहा. रिपोर्ट के अनुसार घरेलू हिंसा के मामले हर साल बढ़ रहे हैं.
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हिंसा के मामले
गृह मंत्रालय की 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कुल 3,27,394 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि 2011 में इनकी तादाद 2,28,650 थी.
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वैवाहिक बलात्कार
महिला संगठन वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाना चाहती हैं, जबकि भारत सरकार का कहना है कि ऐसा करने से महिलाओं को पतियों को तंग करने का हथियार मिल जायेगा.
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2016 के दौरान पति और रिश्तेदारों की क्रूरता के 12,218 (दिल्ली 3,645 मामले), महिलाओं पर जानबूझकर किए गए हमलों की संख्या 10,458 (दिल्ली 3,746), अपहरण के 9,256 (दिल्ली 3,364) और दुष्कर्म के 4,935 (दिल्ली 1,996) मामले दर्ज किए गए. मेट्रो शहरों में 77.2 की राष्ट्रीय औसत दर की तुलना में दिल्ली में 182.1 फीसदी की सबसे ज्यादा अपराध दर रही.
वहीं 2016 में महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,037 मामले, बेंगलुरू में 1,494, जयपुर में 1,008 और पुणे में 354 मामले दर्ज हुए.
एनसीआरबी की रिपोर्ट में दिल्ली को मिले शीर्ष स्थान पर चिंता जताते हुए दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने आईएएनएस को बताया, "दिल्ली में महिलाएं क्या, बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं. इसी कारण मैं दिल्ली की सड़कों पर उतरी हूं. पिछले 34 दिनों से मैं घर नहीं गई, क्यों? क्योंकि महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, विशेषकर दिल्ली में तो और भी बुरा हाल है." उन्होंने कहा, "एनसीआरबी के आंकड़ें झूठे नहीं हो सकते हैं. यह आंकड़े गवाह हैं कि देशभर में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं."
महिलाओं पर होते अत्याचार की वजह बताते हुए स्वाति मालिवाल ने कहा, "अपराधों का सबसे बड़ा कारण है मानसिकता. अपराध का जन्म सोच और मानसिकता के साथ ही होता है. महिलाओं को लेकर समाज को सोच बदलने की जरूरत है." उन्होंने कहा, "सभी महिलाओं की उसी तरह तरह इज्जत करनी होगी, जैसे हम अपने परिवार की महिलाओं की इज्जत करते हैं. अपराधों के पीछे दूसरा सबसे बड़ा कारण है लोगों में कानून का डर न होना. इसलिए कानून का डर लोगों के दिलों में बैठना जरूरी है."
जितेंद्र गुप्ता (आईएएनएस)
वैवाहिक बलात्कार पर दुनिया का नजरिया
भारत समेत दुनिया के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार पर कोई कानून नहीं हैं तो वहीं बहुत से देशों ने इसे अपराध की श्रेणी में रखा है. जानते हैं मैरिटल रेप पर दुनिया का नजरिया.
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अपराध
दुनिया के लगभग हर बड़े देश में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. ऑस्ट्रेलिया ने साल 1976 में शादी में होने वाले बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखा. इसके अतिरिक्त यूरोपीय देशों मसलन स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, पूर्व सोवियत संघ और चेकोस्लोवाकिया में भी इसके खिलाफ कानून रहे हैं.
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संरक्षण समाप्त
साल 1932 में पोलैंड ने सबसे पहले स्पष्ट रूप से मैरिटल रेप को आपराधिक श्रेणी में रखा था. साल 1980 में कई देशों मसलन दक्षिण अफ्रीका, आयरलैंड, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूजीलैंड, मलेशिया, घाना और इस्राएल जैसे देशों ने भी वैवाहिक बलात्कार को मिले संरक्षण को समाप्त कर दिया.
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संवैधानिक अधिकार
साल 2002 में नेपाल ने भी वैवाहिक बलात्कार से छुटकारा पा लिया, नेपाल की शीर्ष अदालत ने माना कि यह समान संरक्षण और गोपनीयता के संवैधानिक अधिकार के खिलाफ था. अदालत ने कहा, "जब कोई कृत्य किसी अविवाहित लड़की के खिलाफ अपराध माना जाता है तो वह किसी विवाहित महिला के खिलाफ अपराध कैसे नहीं माना जा सकता."
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कही अपवाद भी
महिला मुद्दों पर जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुल 179 देशों में से तकरीबन 52 देशों ने अपने कानूनी ढांचे में बदलाव कर वैवाहिक बलात्कार को अपराध की सूची में शामिल कर लिया है. अन्य देशों में इन बलात्कारों को या तो अपवाद माना गया है तो वहीं कुछ देशों में इन्हें बलात्कार के आम कानूनों की श्रेणी में रखा जाता है.
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नाबालिग को नहीं राहत
एक सर्वेक्षण के मुताबिक घाना, भारत, इंडोनेशिया, जॉर्डन, नाइजीरिया, सिंगापुर, श्रीलंका और तंजानिया जैसे देशों के कानून वैवाहिक बलात्कार पर किसी भी तरह के प्रतिबंध नहीं लगाते, यहां तक कि अगर इन बलात्कार के मामलों में पीड़ित नाबालिग भी हैं तब भी उसके लिए कोई रियायत नहीं है.
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जूझती महिलायें
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की तकरीबन 2.6 अरब महिलाएं उन देशों में रह रहीं हैं जहां वैवाहिक बलात्कार पर कोई कानून ही नहीं है. भारत के अलावा पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, म्यांमार, अफगानिस्तान, मलेशिया, सिंगापुर, ईरान, बहरीन, मध्यपूर्व के तमाम देश और कई अफ्रीकी देशों में इस पर कोई कानून ही नहीं है.